जन्म स्थान : मेरठ (उत्तर प्रदेश),प्रकाशित कृतियाँ : ग़ज़ल संग्रह- और कब तक चुप रहें।
१.
छोटा सा उसका कद है
पर बाहर से बरगद है
रोज बहस सी होती है
मेरे अन्दर संसद है
मन में घुंघरू बजते हैं
जाने किसकी आमद है
कोई पार करे इसको
मन ये मेरा सरहद है
कोई परिंदा तो आए
कब से सूना गुम्बद है
रोज डराता है मुझको
मेरा मन ही शायद है
२.
शेख बिरहमन दोनों हैं
मेरे दुश्मन दोनों हैं
ज्यादा धन और ज्यादा मोह
दुःख के कारण दोनों हैं
घर आँगन से बँटे हुए
अपने तन मन दोनों हैं
इस बूढ़े मन के अन्दर
बचपन, यौवन दोनों हैं
उसकी लीला है प्यारे
राम और रावण दोनों हैं
जीवन की इस बगिया में
पतझर - सावन दोनों हैं
बजना इनका वाज़िब है
खाली बरतन दोनों हैं
उसके मेरे बीच में अब
चाहत अनबन दोनों हैं
अब किस पर विश्वास करूं
रहबर रहजन दोनों हैं
३.
ख्वाबों में अब आए कौन
देखूँ साथ निभाए कौन
सूरज, मुर्गा, चिड़िया चुप
मुझको आज जगाए कौन
दीपक रख तो आया हूँ
देखूँ इसे जलाए कौन
समय स्वयं समझा देगा
अपने और पराए कौन
मैं मुद्दत से उसका हूँ
लेकिन उसे बताए कौन
खुला छोड़ दर सोता हूँ
जाने कब आ जाए कौन
मैं खुद से ही बिछड़ा हूँ
मेरा पता बताए कौन
बिटिया भी ससुराल गयी
अब माथा सहलाए कौन
वो पत्ता है, पेड़ नहीं
पर उसको समझाए कौन
सारे जग से रूठा हूँ
आकर मुझे मनाए कौन
४.
घर से बाहर आया मैं
सबसे हुआ पराया मैं
कोशिश तो सबने ही की
किससे गया भुलाया मैं
चुनने निकला था मोती
कुछ पत्थर ले आया मैं
बस तब तक ही जीवित था
जब तक हँसा हँसाया मैं
इक अनबूझ पहेली का
उत्तर रटा रटाया मैं
इंसानों की बस्ती से
जान बचा कर आया मैं
अपने अन्दर झाँका था
खुद से ही शरमाया मैं
बिना पता लिखा ख़त हूँ
वो भी खुला खुलाया मैं
५.
जब से बेसरमाया हूँ
सबके लिए पराया हूँ
अब मैं कोई जिस्म नहीं
एक मुकम्मल साया हूँ
मेरे सर पे हाथ तो रख
मैं तेरा ही जाया हूँ
किसी ग़ज़ल का शेर हूँ मैं
लेकिन सुना सुनाया हूँ
एक घरौंदा तोडा था
फिर कितना पछताया हूँ
लेने गया था कुछ खुशियाँ
बस आँसू ले आया हूँ
तू तुलसी का पौधा है
और मैं तेरी छाया हूँ
कैसे दूर रहूँ तुझसे
मैं तेरा हमसाया हूँ
अपना चेहरा बेच के मैं
इक दर्पण ले आया हूँ
इक दरवाजा बंद हुआ
दो मैं खोल के आया हूँ
दर्द तुम्हारा पढ़ लूँ मैं
इतना तो पढा पढाया हूँ
६.
वो इस जहाँ का खुदा है, मुगालता है उसे
हैं सब बुरे वो भला है, मुगालता है उसे
उछालता है वो कीचड़ लिबास पर सबके
और खुद दूध धुला है, मुगालता है उसे
नजर के सामने इक चीज जो चमकती है
फलक पे चाँद खिला है, मुगालता है उसे
गई है कान में सरगोशियाँ सी करके हवा
कुछ उससे मैंने कहा है, मुगालता है उसे
चमकती रेत में डाली जरूर है उँगली
पर उसका नाम लिखा है, मुगालता है उसे
वो एक जुगनू है हवाओं जलता बुझता हुआ
किसी सूरज का सगा है, मुगालता है उसे
१.
छोटा सा उसका कद है
पर बाहर से बरगद है
रोज बहस सी होती है
मेरे अन्दर संसद है
मन में घुंघरू बजते हैं
जाने किसकी आमद है
कोई पार करे इसको
मन ये मेरा सरहद है
कोई परिंदा तो आए
कब से सूना गुम्बद है
रोज डराता है मुझको
मेरा मन ही शायद है
२.
शेख बिरहमन दोनों हैं
मेरे दुश्मन दोनों हैं
ज्यादा धन और ज्यादा मोह
दुःख के कारण दोनों हैं
घर आँगन से बँटे हुए
अपने तन मन दोनों हैं
इस बूढ़े मन के अन्दर
बचपन, यौवन दोनों हैं
उसकी लीला है प्यारे
राम और रावण दोनों हैं
जीवन की इस बगिया में
पतझर - सावन दोनों हैं
बजना इनका वाज़िब है
खाली बरतन दोनों हैं
उसके मेरे बीच में अब
चाहत अनबन दोनों हैं
अब किस पर विश्वास करूं
रहबर रहजन दोनों हैं
३.
ख्वाबों में अब आए कौन
देखूँ साथ निभाए कौन
सूरज, मुर्गा, चिड़िया चुप
मुझको आज जगाए कौन
दीपक रख तो आया हूँ
देखूँ इसे जलाए कौन
समय स्वयं समझा देगा
अपने और पराए कौन
मैं मुद्दत से उसका हूँ
लेकिन उसे बताए कौन
खुला छोड़ दर सोता हूँ
जाने कब आ जाए कौन
मैं खुद से ही बिछड़ा हूँ
मेरा पता बताए कौन
बिटिया भी ससुराल गयी
अब माथा सहलाए कौन
वो पत्ता है, पेड़ नहीं
पर उसको समझाए कौन
सारे जग से रूठा हूँ
आकर मुझे मनाए कौन
४.
घर से बाहर आया मैं
सबसे हुआ पराया मैं
कोशिश तो सबने ही की
किससे गया भुलाया मैं
चुनने निकला था मोती
कुछ पत्थर ले आया मैं
बस तब तक ही जीवित था
जब तक हँसा हँसाया मैं
इक अनबूझ पहेली का
उत्तर रटा रटाया मैं
इंसानों की बस्ती से
जान बचा कर आया मैं
अपने अन्दर झाँका था
खुद से ही शरमाया मैं
बिना पता लिखा ख़त हूँ
वो भी खुला खुलाया मैं
५.
जब से बेसरमाया हूँ
सबके लिए पराया हूँ
अब मैं कोई जिस्म नहीं
एक मुकम्मल साया हूँ
मेरे सर पे हाथ तो रख
मैं तेरा ही जाया हूँ
किसी ग़ज़ल का शेर हूँ मैं
लेकिन सुना सुनाया हूँ
एक घरौंदा तोडा था
फिर कितना पछताया हूँ
लेने गया था कुछ खुशियाँ
बस आँसू ले आया हूँ
तू तुलसी का पौधा है
और मैं तेरी छाया हूँ
कैसे दूर रहूँ तुझसे
मैं तेरा हमसाया हूँ
अपना चेहरा बेच के मैं
इक दर्पण ले आया हूँ
इक दरवाजा बंद हुआ
दो मैं खोल के आया हूँ
दर्द तुम्हारा पढ़ लूँ मैं
इतना तो पढा पढाया हूँ
६.
वो इस जहाँ का खुदा है, मुगालता है उसे
हैं सब बुरे वो भला है, मुगालता है उसे
उछालता है वो कीचड़ लिबास पर सबके
और खुद दूध धुला है, मुगालता है उसे
नजर के सामने इक चीज जो चमकती है
फलक पे चाँद खिला है, मुगालता है उसे
गई है कान में सरगोशियाँ सी करके हवा
कुछ उससे मैंने कहा है, मुगालता है उसे
चमकती रेत में डाली जरूर है उँगली
पर उसका नाम लिखा है, मुगालता है उसे
वो एक जुगनू है हवाओं जलता बुझता हुआ
किसी सूरज का सगा है, मुगालता है उसे