१.
सारी दुनिया देख रही हैरानी से
हम भी हुए हैं इक गुड़िया जापानी से
बाँट दिए बच्चों में वो सारे नुस्खे
माँ ने जो भी कुछ सीखे थे नानी से
ढूंढ़ के ला दो वो मेरे बचपन के दिन
जिन मे सपने हैं कुछ धानी-धानी से
प्रीतम से तुम पहले पानी मत पीना
ये मैं ने सीखा है राजस्थानी से
मै ने कहा था प्यार के चक्कर में मत पड़
बाज़ कहाँ आता है दिल मनमानी से
बिन तेरे मैं कितना उजड़ा -उजड़ा हूँ
दरिया की पहचान फ़क़त है पानी से
मुझ से बिछड़ के मर तो नहीं जाओगे तुम
कह तो दिया ये तुमने बड़ी आसानी से
पिछली रात को सपने मे कौन आया था
महक रहे हो आदिल रात की रानी से
२.
आज का बीते कल से क्या रिश्ता
झोपड़ी का महल से क्या रिश्ता
हाथ कटवा लिए महाजन से
अब किसानों का हल से क्या रिश्ता
सब ये कहते हैं भूल जाओ उसे
मशवरों का अमल से क्या रिश्ता
किस की ख़ातिर गँवा दिया किसको
अब मिरा गंगा-जल से क्या रिश्ता
जिस में सदियों की शादमानी हो
अब किसी ऐसे पल से क्या रिश्ता
जो गुज़रती है बस वो कहता हूँ
वरना मेरा ग़ज़ल से क्या रिश्ता
ज़िंदा रहता है सिर्फ़ पानी में
रेत का है कँवल से क्या रिश्ता
मैं पुजारी हूँ अम्न का आदिल
मेरा जंग ओ जदल[1] से क्या रिश्ता--(लड़ाई झगड़ा)
३.
ख़मोश होता हे क्यूँ दरिया इश्तआल [1] के बाद
सवाल ख़त्म हुए उस के इस सवाल के बाद
वो लाश डाल गया कत्ल कर के साए में
उसे ख़याल मिरा आ गया जलाल[2] के बाद
नये ज़माने का दस्तूर बस मआज़ अल्लाह[3]
नवाज़ता[4] है खिताबों[5] से इन्तकाल[6] के बाद
जहाँ [7] को मैं ने बस इतनी ही अहमियत दी है
के जितनी क़ीमत-ए-आईना [8] एक बाल [9] के बाद
ये फ़ूल चाँद सितारे ये कहकशाँ[10] ये घटा
अज़ीज़[11] ये भी हैं लेकिन तिरे ख़याल के बाद
वो शख़्स[12] मुझको बस इतना सिखा गया आदिल
किसी को दोस्त बनाओ तो देखभाल के बाद
सवाल ख़त्म हुए उस के इस सवाल के बाद
वो लाश डाल गया कत्ल कर के साए में
उसे ख़याल मिरा आ गया जलाल[2] के बाद
नये ज़माने का दस्तूर बस मआज़ अल्लाह[3]
नवाज़ता[4] है खिताबों[5] से इन्तकाल[6] के बाद
जहाँ [7] को मैं ने बस इतनी ही अहमियत दी है
के जितनी क़ीमत-ए-आईना [8] एक बाल [9] के बाद
ये फ़ूल चाँद सितारे ये कहकशाँ[10] ये घटा
अज़ीज़[11] ये भी हैं लेकिन तिरे ख़याल के बाद
वो शख़्स[12] मुझको बस इतना सिखा गया आदिल
किसी को दोस्त बनाओ तो देखभाल के बाद
शब्दार्थ:
- ↑ ज्वार भाटा गुस्सा
- ↑ गुस्सा
- ↑ प्रभु ही बचाए
- ↑ इज़्ज़त प्रदान करना
- ↑ पुरस्कार अवार्ड
- ↑ स्वर्गवास
- ↑ दुनिया
- ↑ दर्पण का मूल्य
- ↑ दर्पण में दरार.चट्का दर्पण
- ↑ आकाश गंगा
- ↑ प्रिय
- ↑ व्यक्ति
४.
ख़्वाब आँखों में पालते रहना
जाल दरिया में डालते रहना
ज़िंदगी पर क़िताब लिखनी है
मुझको हैरत में डालते रहना
और कई इन्किशाफ़[1] होने हैं
तुम समंदर खंगालते रहना
ख़्वाब रख देगा तेरी आँखों में
ज़िन्दगी भर संभालते रहना
तेरा दीदार[2] मेरी मंशा[3] है
उम्र भर मुझको टालते रहना
ज़िंदगी आँख फेर सकती है
आँख में आँख डालते रहना
तेरे एहसान भूल सकता हूँ
आग में तेल डालते रहना
मैं भी तुम पर यकीन कर लूँगा
तुम भी पानी उबालते रहना
इक तरीक़ा है कामयाबी का
ख़ुद में कमियाँ निकालते रहना
जाल दरिया में डालते रहना
ज़िंदगी पर क़िताब लिखनी है
मुझको हैरत में डालते रहना
और कई इन्किशाफ़[1] होने हैं
तुम समंदर खंगालते रहना
ख़्वाब रख देगा तेरी आँखों में
ज़िन्दगी भर संभालते रहना
तेरा दीदार[2] मेरी मंशा[3] है
उम्र भर मुझको टालते रहना
ज़िंदगी आँख फेर सकती है
आँख में आँख डालते रहना
तेरे एहसान भूल सकता हूँ
आग में तेल डालते रहना
मैं भी तुम पर यकीन कर लूँगा
तुम भी पानी उबालते रहना
इक तरीक़ा है कामयाबी का
ख़ुद में कमियाँ निकालते रहना
५.
गिर के उठ कर जो चल नहीं सकता
वो कभी भी संभल नहीं सकता
तेरे सांचे में ढल नहीं सकता
इसलिए साथ चल नहीं सकता
आप रिश्ता रखें रखें न रखें
मैं तो रिश्ता बदल नहीं सकता
वो भी भागेगा गन्दगी की तरफ़
मैं भी फितरत बदल नहीं सकता
आप भावुक हैं आप पाग़ल हैं
वो है पत्थर पिघल नहीं सकता
इस पे मंज़िल मिले मिले न मिले
अब मैं रस्ता बदल नहीं सकता
तुम ने चालाक कर दिया मुझको
अब कोई वार चल नहीं सकता
६.
तुम्हारे ताज में पत्थर जड़े हैं
जो गौहर हैं वो ठोकर में पड़े हैं -मोतीगिर के उठ कर जो चल नहीं सकता
वो कभी भी संभल नहीं सकता
तेरे सांचे में ढल नहीं सकता
इसलिए साथ चल नहीं सकता
आप रिश्ता रखें रखें न रखें
मैं तो रिश्ता बदल नहीं सकता
वो भी भागेगा गन्दगी की तरफ़
मैं भी फितरत बदल नहीं सकता
आप भावुक हैं आप पाग़ल हैं
वो है पत्थर पिघल नहीं सकता
इस पे मंज़िल मिले मिले न मिले
अब मैं रस्ता बदल नहीं सकता
तुम ने चालाक कर दिया मुझको
अब कोई वार चल नहीं सकता
६.
तुम्हारे ताज में पत्थर जड़े हैं
उड़ानें ख़त्म कर के लौट आओ
अभी तक बाग़ में झूले पड़े हैं
मिरी मंज़िल नदी के उस तरफ़ है
मुक़द्दर में मगर कच्चे घड़े हैं
ज़मीं रो-रो के सब से पूछती है
ये बादल किस लिए रूठे पड़े हैं
किसी ने यूँ ही वादा कर लिया था
झुकाए सर अभी तक हम खड़े हैं
महल ख़्वाबों का टूटा है कोई क्या
यहाँ कुछ काँच के टुकड़े पड़े हैं
उसे तो याद हैं सब अपने वादे
हमीं हैं जो उसे भूले पड़े हैं
ये साँसें नींद और ज़ालिम ज़माना
बिछड़ के तुम से किस-किस से लड़े हैं
मैं पागल हूँ जो उनको टोकता हूँ
मिरे अहबाब[2] तो चिकने घड़े हैं
तुम अपना हाल किस से कह रहे हो
तुम्हारी अक्ल पर पत्थर पड़े हैं
७.
गिर के उठ कर जो चल नहीं सकता
वो कभी भी संभल नहीं सकता
तेरे सांचे में ढल नहीं सकता
इसलिए साथ चल नहीं सकता
आप रिश्ता रखें रखें न रखें
मैं तो रिश्ता बदल नहीं सकता
वो भी भागेगा गन्दगी की तरफ
मैं भी फितरत बदल नहीं सकता
आप भावुक हैं आप पागल हैं
वो है पत्थर पिघल नहीं सकता
इस पे मंजिल मिले मिले न मिले
अब मैं रस्ता बदल नहीं सकता
तुम ने चालाक कर दिया मुझको
अब कोई वार चल नहीं सकता
इस कहावत को अब बदल डालो
खोटा सिक्का तो चल नहीं सकता
८.
न दौलत ज़िंदा रहती है न चेहरा ज़िंदा रहता है
बस इक किरदार ही है जो हमेशा ज़िंदा रहता है
कभी लाठी के मारे से मियाँ पानी नहीं फटता
लहू में भाई से भाई का रिश्ता ज़िंदा रहता है
ग़रीबी और अमीरी बाद में ज़िंदा नहीं रहती
मगर जो कह दिया एक-एक जुमला[1] ज़िंदा रहता है
निवालों के लिए हर्गिज़ [2] न मैं ईमान बेचूंगा
सुना हे मॆं ने पत्थर मे भी कीडा ज़िन्दा रहता है
न हो तुझ को यकीं तारीख़एदुनिया[3] पढ़ अरे ज़ालिम
कोई भी दौर हो सच का उजाला ज़िंदा रहता है
अभी आदिल ज़रा सी तुम तरक्की और होने दो
पता चल जाएगा दुनिया में क्या-क्या ज़िंदा रहता है
शब्दार्थ:↑ वाक्य↑ कभी भीनहीं↑ दुनिया का इतिहास
९.
पहले सच्चे का बहिष्कार किया जाता है
फिर उसे हार के स्वीकार किया जाता है
ज़हर में डूबे हुए हो तो इधर मत आना
ये वो बस्ती है जहाँ प्यार किया जाता है
क्या ज़माना है के झूठों का तो सम्मान करे
और सच्चों का तिरस्कार किया जाता है
तू फ़रिश्ता है जो एहसान तुझे याद रहे
वर्ना इस बात से इनकार किया जाता है
जिस किसी शख़्स के ह्रदय में कपट होता है
दूर से उसको नमस्कार किया जाता है
१०.
रूहों ने शहीदों की फिर हमको पुकारा है
सरहद की सुरक्षा का अब फ़र्ज़ तुम्हारा है
हमला हो जो दुश्मन का हम जाएँगे सरहद पर
जाँ देंगे वतन पर ये अरमान हमारा है
इन फिरकापरस्तों की बातों में न आ जाना
मस्जिद भी हमारी है मंदिर भी हमारा है
ये कह के हुमायूँ को भिजवाई थी इक राखी
मजहब हो कोई लेकिन तू भाई हमारा है
अब चाँद भले काफ़िर कह दें ये जहाँ वाले
जिसे कहते हैं मानवता वो धर्म हमारा है
रूहों ने शहीदों की फिर हमको पुकारा है
सरहद की सुरक्षा का अब फ़र्ज़ तुम्हारा है
११.
वफ़ा इखलास[1] ममता भाई-चारा छोड़ देता है
तरक्की के लिए इन्सान क्या-क्या छोड़ देता ही
तड़पने के लिए दिन-भर को प्यासा छोड़ देता है
अजाँ[2] होते ही वो किस्सा अधूरा छोड़ देता है
किसी को ये जुनूँ बुनियाद थोड़ी-सी बढ़ा लूँ मैं
कोई भाई की ख़ातिर अपना हिस्सा छोड़ देता है
सफ़र में ज़िन्दगी के लोग मिलते हैं बिछड़ते हैं
किसी के वास्ते क्या कोई जीना छोड़ देता है
हमारे बहते खूँ में आज भी शामिल है वो जज़्बा
अना[3] की पासबानी[4] में जो दरिया छोड़ देता हैं
सफ़र में ज़िन्दगी के मुन्तज़िर[5] हूँ ऐसी मंज़िल का
जहाँ पर आदमी ये तेरा - मेरा छोड़ देता है
अभी तो सच ही छोड़ा है जनाब-ऐ-शेख ने आदिल
अभी तुम देखते जाओ वो क्या-क्या छोड़ देता है
शब्दार्थ:↑ खुलापन मैत्री स्नेह↑ अज़ान↑ स्वाभिमान↑ सुरक्षा↑ इन्तिज़ार