जन्म 13 नवम्बर 1969 को जोबट, जिला झाबुआ, म. प्र. में हुआ।
१.
जीवन में कभी ऐसे न मजबूर हुए हम,
चाहत की नजर से न कभी दूर हुए हम।
थे शक्ल से कुछ भी मगर मन से थे समन्दर,
सीरत पे कभी भी नहीं मगरूर हुए हम।
मन की हरेक पंखुरी देकर हुए अमीर,
बेगाने तकल्लुफ से मगर चूर हुए हम ।
तकते रहे हैं दूर से एकलव्य की तरह,
फिर भी तेरी आँखों को न मंजूर हुए हम।
रहते थे अपने घर में भी अनजान की तरह,
तुझसे लगा के लौ बहुत मशहूर हुए हम
२.
उम्र हर दौर में बचपन है मचल कर देखो,
वक्त तालीम है अपने को बदल कर देखो।
बेवफा ख्वाब का जीवन में कभी गम न करों,
फिर से उम्मीद की बाहों में मचल कर देखो।
दर्द भी फूल की खुशबू-सा महक जायेगा,
तुम कभी गीत के आगोश में ढल कर देखों।
रश्क कर जायेगी कितनी ही निगाहें तुम पर,
सिर्फ ईमान की गलियों में टहल कर देखों ।
जिंदगी जेठ की तपती है दुपहरी, माना,
इसमें सावन की घटा भी है संभल कर देखो।
मौत पतझर की तरह है जो हमें क्या देगी
जिन्दगी फूल की खुशबू है मसल कर देखो।
३.
शौहरत में हम तो गुम थे, ज्यों ही ख़याल आया,
हम भीड़ से हटे तो तन्हाइयों में पाया ।
कितनी ही बार फिसला ये वक्त उंगलियों से,
ऐसा नहीं कि इसने फिर हाथ न मिलाया।
हमने वफा के ढेरों दे डाले इम्तहां पर,
पीछे चला है हरदम इन आसुंओं का साया।
निकले यकीन झूठे, उलझे मुसीबतों से,
जब भी रवायतों को इस शीश पर बिठाया।
जोड़ा है हमने कितना उस टूटे आइने को,
उसने हरेक चेहरा बिखरा हुआ दिखाया।
बुलबुल को कैद करके पिंजरा सजाया हमने,
इतने बड़े चमन ने खामोशियों को गाया ।
१.
जीवन में कभी ऐसे न मजबूर हुए हम,
चाहत की नजर से न कभी दूर हुए हम।
थे शक्ल से कुछ भी मगर मन से थे समन्दर,
सीरत पे कभी भी नहीं मगरूर हुए हम।
मन की हरेक पंखुरी देकर हुए अमीर,
बेगाने तकल्लुफ से मगर चूर हुए हम ।
तकते रहे हैं दूर से एकलव्य की तरह,
फिर भी तेरी आँखों को न मंजूर हुए हम।
रहते थे अपने घर में भी अनजान की तरह,
तुझसे लगा के लौ बहुत मशहूर हुए हम
२.
उम्र हर दौर में बचपन है मचल कर देखो,
वक्त तालीम है अपने को बदल कर देखो।
बेवफा ख्वाब का जीवन में कभी गम न करों,
फिर से उम्मीद की बाहों में मचल कर देखो।
दर्द भी फूल की खुशबू-सा महक जायेगा,
तुम कभी गीत के आगोश में ढल कर देखों।
रश्क कर जायेगी कितनी ही निगाहें तुम पर,
सिर्फ ईमान की गलियों में टहल कर देखों ।
जिंदगी जेठ की तपती है दुपहरी, माना,
इसमें सावन की घटा भी है संभल कर देखो।
मौत पतझर की तरह है जो हमें क्या देगी
जिन्दगी फूल की खुशबू है मसल कर देखो।
३.
शौहरत में हम तो गुम थे, ज्यों ही ख़याल आया,
हम भीड़ से हटे तो तन्हाइयों में पाया ।
कितनी ही बार फिसला ये वक्त उंगलियों से,
ऐसा नहीं कि इसने फिर हाथ न मिलाया।
हमने वफा के ढेरों दे डाले इम्तहां पर,
पीछे चला है हरदम इन आसुंओं का साया।
निकले यकीन झूठे, उलझे मुसीबतों से,
जब भी रवायतों को इस शीश पर बिठाया।
जोड़ा है हमने कितना उस टूटे आइने को,
उसने हरेक चेहरा बिखरा हुआ दिखाया।
बुलबुल को कैद करके पिंजरा सजाया हमने,
इतने बड़े चमन ने खामोशियों को गाया ।