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सन्देश

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और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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मंगलवार, 22 जनवरी 2013

प्रभुदयाल श्रीवास्तव


१.
एक रुपये में से दस पैसे ही मिल पाते
पता करो बाकी नब्बे किसके घर जाते|

नहीं हमारी खुद की क्या ये नाकामी है
बिना डरे ही लोग करोड़ों यूं खा जाते|

चोर लुटेरे नेता तस्कर सब पर भारी
पता नहीं उनका हम क्यों कुछ न कर पाते|

बात बात में हम शासन सत्ता पर निर्भर
क्यों न हम खुद उचित दंड उनको दे पाते|

बहिष्कार कर घर,समाज,सारे कुनबे से
क्यों न करनी का उनको अहसास कराते|

छोटी मोटी धमकी घुड़की से क्या होगा
इन पर फतवा क्यों न हम जारी करवाते|

हम बैठे चुपचाप हाथ पर धरे हाथ हैं
इस कारण से वे हमको हर तरह सताते|


२.

घोड़े पुराने थक गये हैं चूर हैं|
हम सवारी के लिये मजबूर हैं|


है आदमी के पास कितना आदमी
पर दिलों से हाय मीलों दूर हैं|


हाथ में हंटर लिये मालिक खड़े
हाथ जोड़े जो खड़े मजदूर हैं|


कायदों को छोड़कर जो आ गये
फायदे उनको मिले भरपूर हैं|


सेंकना हो सेंक जितनी रोटियां
सामने लाशों भरे तंदूर हैं|


3.
रखा जीभ पर मीठा मीठा स्वाद अभी तक‌
मां के हाथों बनी चाय है याद अभी तक|

खुली आंख से भले न उससे मिल पाता हूं
सपने में होते रहते संवाद अभी तक|

“राजा बेटा उठ जाओ हो गया सबेरा”
कानों में गूंजा करती आवाज अभी तक|

कितने शेर दिलेर बहादुर देखे हमने
नहीं मिला है मां जैसा जांबाज़ अभी तक|

सारी मांओं से अच्छी जग में मेरी मां
होता रहता हर दिन यह अहसास अभी तक|