१.
वे तेरे जीने की किस जी से तमन्ना करते?
मर न जाते जो शबे-हिज्र तो हम क्या करते?
तूने दावाए-ख़ुदाई न किया खूब किया।
ऐ सनम! हम तेरे दीदार को तरसा करते॥
दिले-बीमार से दावा है मसीहाई का।
चश्मे-बीमार को अपने नहीं अच्छा करते॥
भला किस दिल से हम इनकारे-दर्दे-इश्क़ करें।
नहीं कुछ है तो क्यों रह-रहके दिल पर हाथ धरते?
२.
नहीं होता कि बढ़कर हाथ रख दें।
तड़पता देखते हैं दिल हमारा॥
अगर क़ाबू न था दिल पर बुरा था।
वहाँ जाना सरे-महफ़िल हमारा॥
यह हालत है तो शायद रहम आ जाय।
कोई उसको दिखा दे दिल हमारा॥
३.
न कभी के बादापरस्त हम न हमें यह कैफ़े-शराब है।
लबेयार चूमें हैं ख़्वाब में वही जोशे-मस्तिये-ख़्वाब है॥
दिल मुब्तिला है तिरा ही घर उसे रहने दे कि ख़राब कर।
कोई मेरी तरह तुझे मगर न कहे कि ख़ानाख़राब है॥
उन्हें किब्रे-हुस्न की नख़वतें मुझे फ़ैज़े-इश्क़ की हैरतें।
न कलाम है न पयाम है न सवाल है न जवाब है।।
दिले-अन्दलीब यह शक नहीं गुलो-लाला के यह वरक़ नहीं।
मेरे इश्क़ का वो रिसाला है तेरे हुस्न की यह किताब है॥
४.
ताबे-दीदार जो लाये मुझे वो दिल देना।
मुँह क़यामत में दिखा सकने के क़ाबिल देना॥
रश्के-खुरशीद-जहाँ-ताब दिया दिल मुझ को।
कोई दिलबर भी इसी दिल के मुक़ाबिल देना॥
अस्ल फ़ित्ना है क़यामत में बहारे-फ़रदौस।
जुज़ तेरे कुछ भी न चाहे मुझे वो दिल देना॥
तेरे दीवाने का बेहाल ही रहना अच्छा।
हाल देना हो अगर रहम के क़ाबिल देना॥
हाय-रे-हाय तेरी उक़्दाकुशाई के मज़े।
तू ही खोले जिसे वो उक़्दये-मुश्किल देना॥
५.
जो रही और कोई दम यही हालत दिल की।
आज है पहलु-ए-ग़मनाक से रुख़स्त दिल की॥
घर छुटा शहर छुटा कूचये-दिलदार छुटा।
कोहो-सहरा में लिये फ़िरती है वहशत दिल की॥
रास्ता छोड़ दिया उसने इधर का ‘आसी’।
क्यों बनी रहगुज़रे-यार में तुरबत दिल की॥
६.
कोई तो पीके निकलेगा उडे़गी कुछ तो बू मुँह से।
दरे-पीरेमुग़ाँ पर मैपरस्ती चलके बिस्तर हो॥
किसी के दरपै ‘आसी’ रात रो-रोके यह कहता था--
कि "आखि़र मैं तुम्हारा बन्दा हूँ तुम बन्दापरवर हो"॥
तुम्हीं सच-सच बता दो कौन था शिरीं की सूरत में।
कि मुश्तेख़ाक की हसरत में कोई कोहकन क्यों हो॥
टुकडे़ होकर जो मिली कोहकनो-मजनूँ को।
कहीं मेरी ही वो फूटी हुई तक़दीर न हो॥
७.
इश्क़ ने फ़रहाद के परदे में पाया इन्तक़ाम।
एक मुद्दत से हमारा ख़ून दामनगीर था॥
वोह मुसव्वर था कोई या आपका हुस्नेशबाब।
जिसने सूरत देख ली इक पैकरे-तसवीर था॥
ऐ शबेगोर! वो बेताबि-ए-शब हाय फ़िराक़।
आज अराम से सोना मेरी तक़दीर में था॥
८.
आशिक़ी में है महवियत दरकार।
राहते-वस्ल-ओ-रंजे-फ़ुरक़त क्या?
न गिरे उस निगाह से कोई।
और उफ़्ताद क्या मुसीबत क्या?
जिनमें चर्चा न कुछ तुम्हारा हो।
ऐसे अहबाब ऐसी सुहबत क्या?
जाते हो जाओ हम भी रुख़सत हैं।
हिज्र में ज़िन्दगी की मुद्दत क्या?