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सन्देश

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गुरुवार, 17 जनवरी 2013

देवमणि पांडेय

4 जून 1958 को सुलतानपुर (उ.प्र.) में जन्म.दो काव्यसंग्रह प्रकाशित हो चुके हैं- "दिल की बातें" और "खुशबू की लकीरें"।
१.
इस तरह कुछ आजकल अपना मुक़द्दर हो गया
सर को चादर से ढका तो पाँव बाहर हो गया

ज़िंदगी को हार का तोहफ़ा मिला तो यूँ लगा
आँसुओं का सिलसिला पलकों का ज़ेवर हो गया

जब तलक दुःख मेरा दुःख था एक क़तरा ही रहा
मिल गया दुनिया के ग़म से तो समंदर हो गया

मुश्किलों के दरमियाँ बढ़ते रहे जिसके क़दम
वो ज़माने की निगाहों में सिकंदर हो गया

इस क़दर बदला है चेहरा आदमी ने इन दिनों
कल तलक जो आईना था आज पत्थर हो गया

थी जहाँ फूलों की बारिश, ख़ूँ का दरिया है वहाँ
क्या उम्मीदें थीं रुतों से क्या ये मंज़र हो गया


२.

हाल अपना किसी से मत कहिए
इससे अच्छा है आप चुप रहिए


देख कर लोग फेर लें नज़रें
सबकी नज़रों में ऐसे मत गिरिए


जो भी दिल आपका इजाज़त दे
काम हर वक्त बस वही करिए


सुख की कीमत तभी तो समझेंगे
ये ज़रूरी है कुछ तो दुख सहिए


आज सच को सराहेगी दुनिया
ऐसे धोखे में आप मत रहिए


मिल ही जाएगी एक दिन मंज़िल
शर्त इतनी है राह खुद चुनिए


ज़िन्दग़ी का यही तक़ाज़ा है
वक़्त मुश्किल हो, फिर भी चुप रहिए


३.
इस जहाँ में प्यार महके जिन्दगी बाकी रहे
ये दुआ माँगो दिलों में रोशनी बाकी रहे।


आदमी पूरा हुआ तो देवता बन जायेगा
ये जरूरी है कि उसमें कुछ कमी बाकी रहे।


हर किसी से दिल का रिश्ता काश हो कुछ इस तरह
दुश्मनी के साये में भी दोस्ती बाकी रहे।


दिल के आंगन में उगेगा ख्वाब का सब्जा जरूर
शर्त है आँखों में अपनी कुछ नमी बाकी रहे।


लब पे नगमा वफा का दिल में ये जज्बा भी हो
लाख हों रूसवाइयाँ पर आशिकी बाकी रहे।


दिल में मेरे पल रही है यह तमन्ना आज भी
इक समंदर पी चुकूँ जब तिश्नगी बाकी रहे।

४.
शहर हमारा जो भी देखे उस पर छाए जादू
हरा समंदर कर देता है हर दिल को बेकाबू


ताजमहल में ताज़ा काफ़ी जो भी पीने आए
चर्चगेट की चकाचौंध में वो आशिक़ बन जाए


चौपाटी की चाट चटपटी मन में प्यार जगाती है
भेलपुरी खाते ही दिल की हर खिड़की खुल जाती है


कमला नेहरु पार्क पहुँचकर खो जाता जो फूलों में
प्यार के नग़मे वो गाता है एस्सेल वर्ल्ड के झूलों में


जुहू बीच पर सुबह-शाम जो पानी-पूरी खाए
वही इश्क़ की बाज़ी जीते दुल्हन घर ले आए


नई नवेली दुल्हन जैसी हर पल लगती नई
सबको ऊँचे ख़्वाब दिखाकर खूब लुभाती मुंबई

५.
चाहत के हर मुकाम पर रूसवाइयाँ मिलीं
अपनों की भीड़ में हमें तनहाइयाँ मिलीं।


इस दौर में ये बात अजूबे से कम नहीं
झूठों की बातचीत में सच्चाइयाँ मिलीं।


कितने दिलों में आज भी जिंदा हैं कुछ रिवाज
पक्के घरों के बीच में अंगनाइयाँ मिलीं।


जितने भी हम करीब गये डूबते गये
आंखों में उसकी झील सी गहराइयाँ मिलीं।


पलकों ने जब सजाया है कोई हसीन ख्वाब
वादी में दिल की गूँजती शहनाइयाँ मिलीं।

६.
जब तक रतजगा नहीं चलता
इश्क क्या है पता नहीं चलता।


ख्वाब की रहगुज़र पे आ जाओ
प्यार में फासला नहीं चलता।


उस तरफ चल के तुम कभी देखो
जिस तरफ रास्ता नहीं चलता।


कोई दुनिया है क्या कहाँ ऐसी
जिसमें शिकवा गिला नहीं चलता


दिल अदालत है इस अदालत में
वक्त का फैसला नहीं चलता।


लोग चेहरे बदलते रहते हैं
कौन क्या है पता नहीं चलता।


दुनिया होती नहीं हसीन अगर
प्यार का सिलसिला नहीं चलता।

७.
 दिल वालों की बस्ती है
यहाँ मौज और मस्ती है

पत्थर दिल है ये दुनिया
मजबूरों पर हँसती है


खुशियों की इक झलक मिले
सबकी रूह तरसती है


क्यों ना दरिया पार करें
हिम्मत की जब कश्ती है


हर इक इंसां के दिल में
अरमानों की बस्ती है


महँगी है हर चीज़ मियाँ
मौत यहाँ पर सस्ती है


उससे आँख मिलाएँ, वो
सुना है ऊँची हस्ती है