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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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गुरुवार, 10 जनवरी 2013

डॉ अजय जनमेजय के मुक्तक


  • बंदगी बेटियां , आरती बेटियाँ |
    धन कि किंचित नहीं लालची बेटियाँ |
    प्यार ही चाहतीं बस विरासत में ये |
    प्यार की जौहरी , पारखी बेटियाँ ||

  • डर गईं खुद कि बढ़ी परछाइयों से बेटियां |
    लड़ रहीं हैं रोज ही तन्हाइयों से बेटियां |
    गढ़ गयीं वो शर्म से खामोश लव चेहरा उदास |
    बाप की छोटी बड़ी रुसवाइयों से बेटियां ||

  • चाहतीं है आपका बस नेह बेटियाँ |
    आप पर करतीं कहाँ संदेह बेटियाँ |
    मौत के अंतिम क्षणों में दूर देश में |
    भूल कब पातीं है अपना गेह बेटियाँ ||

  • बेटियाँ गिरजा शिवाला इस सदी में |
    त्याग कि हैं पाठशाला इस सदी में |
    बन रहीं हैं बेटियाँ फिर आजकल क्यूं |
    मौत का निर्मम निवाला इस सदी में ||

  • आपके जो शब्द नफरत में सने हैं |
    बेटियों के भाव देखो अनमने हैं |
    आप अपनी असलियत भी देख लीजे |
    बेटियाँ घर को मिलीं ज्यों आइने हैं |

  • बेटियाँ निश्छल हमेशा ही रहीं हैं |
    शुद्ध गंगाजल हमेशा ही रहीं हैं |
    कुछ कहो पर बेटियाँ माँ -बाप की तो |
    आँख का काजल हमेशा ही रहीं हैं ||

  • बेटियाँ ज्यों आ रही महकी हवाएँ |
    बेटियाँ ज्यों सामने चहकी दिशाएँ |
    कैद फिर वो चारदीवारी में क्यों हैं |
    पूछतीं हैं बेटियाँ कुछ तो बताएं ||

  • आजकल हैं बेकली में बेटियाँ क्यों |
    प्यार कि विरूदावली में बेटियाँ क्यों |
    भ्रूण हत्या "ओ" दहेजी भेडियों से |
    मौत कि अंधी गली में बेटियाँ क्यों ||