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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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गुरुवार, 10 जनवरी 2013

डा. दिनेश त्रिपाठी `शम्स’ के मुक्तक


नाम – डा. दिनेश त्रिपाठी `शम्स’शिक्षा – एम . ए.(हिन्दी), बी. एड., पीएचडी.(हिन्दी) सम्प्रति – वरिष्ठ प्रवक्ता (हिन्दी) जवाहर नवोदय विद्यालय , बलरामपुर , उत्तर प्रदेश पुस्तकें – (१) जनकवि बंशीधर शुक्ल का खडी बोली काव्य (शोध प्रबंध ),मीनाक्षी प्रकाशन,नयी दिल्ली (२) आखों में आब रहने दे (गजल संग्रह )


 
हमारे दिल में क्या है ये किसी से कह नहीं सकते .

व्यथा जो मिल रही है वो मगर हम सह नहीं सकते .
हमारे प्यार को समझो न समझो आप की मर्जी .
मगर ये जान लो हम आपके बिन रह नहीं सकते
+++++++++
तुम्हारे बिन अकेली ज़िंदगी खैरात लगती है .
कंटीला दिन लगे नागिन-सी मुझको रात लगती है .
तुम्हारे साथ बीते उन पलों की याद की खुशबू ,
मेरे जीवन की सबसे कीमती सौगात लगती है .
++++++++++
ग़ज़ल के एक रिसाले-सी तुम्हारी याद आती है .
अँधेरे में उजाले-सी तुम्हारी याद आती है .
इबादत का बड़ा ही पाक एक अहसास जागता है ,
किसी मस्जिद-शिवाले-सी तुम्हारी याद आती है .
+++++++++++
मधुर भावों के कोई तार हिल जाएँ तो मत कहना .
नयन को इन्द्रधनुषी स्वप्न मिल जाएँ तो मत कहना .
यकीनन प्यार ये मेरा किसी दिन रंग लाएगा ,
तुम्हारे मन में भी कुछ फूल खिल जाएँ तो मत कहना .
++++++++++++
कोई आतंक रचता है कोई कोहराम लिखता है .
जिसे देखो वही नफरत का बस पैगाम लिखता है .
सृजन के छंद लिखता ही नहीं अब रहनुमा कोई ,
व्यथा के गीत ही केवल वतन के नाम लिखता है .
++++++++++
नहीं अब तक किया वो सब करूँगा आप की खातिर .
हर इक झूठी रिवायत से लडूंगा आप की खातिर .
मेरे जीने का मकसद आप है बस आप हैं केवल ,
जिया हूँ आप की खातिर मरुंगा आप की खातिर .
++++++++++
नयी उम्मीद देता है नया विश्वास देता है .
मेरे मन को निरंतर खुशनुमा अहसास देता है .
मेरे जीवन में अब तक सिर्फ सूनापन था पतझर का ,
तुम्हारा साथ फूलों से भरा मधुमास देता है .
++++++++++
जिधर देखिये जंग ही जंग है अब .
चढ़ा सब प नफरत क ही रंग है अब .
मुहब्बत का अहसास दिखता नहीं है ,
नज़रिया सभी का हुआ तंग है अब .
++++++++++
कभी विध्वंस के आगे न अपना सर झुकायेंगे .
सृजन के गीत गाये हैं सृजन के गीत गायेंगे .
अँधेरे हैं सघन पर हौसले भी कम नहीं मेरे ,
ज़माने में सदा उम्मीद का सूरज उगाएंगे .
++++++++++
ज़माने की हकीकत को बताने आ गया हूँ मैं .
नयी उम्मीद का दीपक जलाने आ गया हूँ मैं .
बजाओ दोस्तों स्वागत में मेरे तालियाँ जमकर ,
यहाँ इस मंच पर कविता सुनाने आ गया हूँ मैं .
++++++++++
देखिये मझधार में अपना सफीना हो गया .
आज के हालात में दुश्वार जीना हो गया .
स्वार्थ के माहौल में चालें घिनौनी चल रहा ,
आदमी इस दौर का कितना कमीना हो गया .
++++++++++
तेरी उल्फत की नगरी में हमारा अब बसेरा है .
हमारे पास जो कुछ है वो सब कुछ सिर्फ तेरा है .
तेरे रहमो-करम पर हैं हमारी अब सभी खुशियाँ ,
नज़र डाले उजाला है नज़र फेरे अँधेरा है .
++++++++++
हमारी भावनाओं में छुपा हर मर्म भारत है .
ये तन जिसको समर्पित है वो प्यारा कर्म भारत है .
समाहित है हमारे मन की हर पहचान इसमें ही ,
हमारी जाति भारत है हमारा धर्म भारत है .
++++++++++
उम्र भर जिसको संभालूं ऐसा खुशखत लिख गया .
कुछ नहीं है झूठ सब कुछ तो हकीकत लिख गया .
है तभी से रूह में दीवानगी छाई हुई ,
वो हमारे दिल के कागज़ पर मुहब्बत लिख गया .
++++++++++
जिन्हें प्यार देना था डर दे रहे हैं .
कड़ी धूप अब तो शज़र दे रहे हैं .
ये आया है कैसी तरक्की का मौसम ,
मसीहा हैं जो वो ज़हर दे रहे हैं .
++++++++++
सतत लक्ष्य की ओर चलना न आया .
गिरे किन्तु गिरकर संभलना न आया .
ज़माना बदलने में हैं व्यस्त लेकिन ,
हमें खुद को अब तक बदलना न आया .
++++++++++
हथेली पे सरसों उगाने चले हैं .
असंभव को संभव बनाने चलें हैं .
जो खुद की बुराई नहीं देख पाए ,
बुराई को जड़ से मिटाने चलें हैं .
++++++++++
जिन्दगी को बोझ जैसा समझकर ढोते नहीं हैं .
लड़ रहे कठिनाइयों से समय को खोते नहीं हैं .
आदमी बस वही हैं जो दर्द में रोते नहीं हैं .
आंसुओं से ज़िन्दगी के प्रश्न हल होते नहीं हैं .
**********
करेगा जोड़ने की बात पर अलगाव ही देगा .
प्रगति के नाम पर हमको महज ठहराव ही देगा .
करेगा भाषणों में जिक्र मरहम का सदा लेकिन ,
हमारे देश का नेता हमें बस घाव ही देगा .
*************
अभी आँखों में सपनों का खुला आकाश बाकी है .
अभी तो प्रीति का खुद पर अटल विश्वास बाकी है .
न विचलित हो तू मेरे मन शरद के दिन अगर बीते ,
बचाकर रख हर एक ख्वाहिश अभी मधुमास बाकी है .
***********
सूर्य के हाथों पराजित रात होगी .
बस उजालों की यहाँ बरसात होगी .
रक्त से अभिषेक होगा जब धरा का ,
तब नए युग की कहीं शुरुआत होगी .
*******
आस ही खास है जिन्दगी के लिए .
तृप्ति आधार मन की खुशी के लिए .
हो अंधेरों से लड़ने की हिम्मत अगर ,
एक दीपक बहुत रोशनी के लिए .
*********
जिन्दगी का गीत गाती लौ .
दर्द में भी मुस्कुराती लौ .
दीप के संघर्ष की गाथा ,
कह रही है टिमटिमाती लौ
********
हमारे दिल में क्या है ये किसी से कह नहीं सकते .
व्यथा जो मिल रही है वो मगर हम सह नहीं सकते .
हमारे प्यार को समझो न समझो आप की मर्जी .
मगर ये जान लो हम आपके बिन रह नहीं सकते
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तुम्हारे बिन अकेली ज़िंदगी खैरात लगती है .
कंटीला दिन लगे नागिन-सी मुझको रात लगती है .
तुम्हारे साथ बीते उन पलों की याद की खुशबू ,
मेरे जीवन की सबसे कीमती सौगात लगती है .
++++++++++
ग़ज़ल के एक रिसाले-सी तुम्हारी याद आती है .
अँधेरे में उजाले-सी तुम्हारी याद आती है .
इबादत का बड़ा ही पाक एक अहसास जागता है ,
किसी मस्जिद-शिवाले-सी तुम्हारी याद आती है .
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मधुर भावों के कोई तार हिल जाएँ तो मत कहना .
नयन को इन्द्रधनुषी स्वप्न मिल जाएँ तो मत कहना .
यकीनन प्यार ये मेरा किसी दिन रंग लाएगा ,
तुम्हारे मन में भी कुछ फूल खिल जाएँ तो मत कहना .
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कोई आतंक रचता है कोई कोहराम लिखता है .
जिसे देखो वही नफरत का बस पैगाम लिखता है .
सृजन के छंद लिखता ही नहीं अब रहनुमा कोई ,
व्यथा के गीत ही केवल वतन के नाम लिखता है .
++++++++++
नहीं अब तक किया वो सब करूँगा आप की खातिर .
हर इक झूठी रिवायत से लडूंगा आप की खातिर .
मेरे जीने का मकसद आप है बस आप हैं केवल ,
जिया हूँ आप की खातिर मरुंगा आप की खातिर .
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नयी उम्मीद देता है नया विश्वास देता है .
मेरे मन को निरंतर खुशनुमा अहसास देता है .
मेरे जीवन में अब तक सिर्फ सूनापन था पतझर का ,
तुम्हारा साथ फूलों से भरा मधुमास देता है .
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जिधर देखिये जंग ही जंग है अब .
चढ़ा सब प नफरत क ही रंग है अब .
मुहब्बत का अहसास दिखता नहीं है ,
नज़रिया सभी का हुआ तंग है अब .
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कभी विध्वंस के आगे न अपना सर झुकायेंगे .
सृजन के गीत गाये हैं सृजन के गीत गायेंगे .
अँधेरे हैं सघन पर हौसले भी कम नहीं मेरे ,
ज़माने में सदा उम्मीद का सूरज उगाएंगे .
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ज़माने की हकीकत को बताने आ गया हूँ मैं .
नयी उम्मीद का दीपक जलाने आ गया हूँ मैं .
बजाओ दोस्तों स्वागत में मेरे तालियाँ जमकर ,
यहाँ इस मंच पर कविता सुनाने आ गया हूँ मैं .
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देखिये मझधार में अपना सफीना हो गया .
आज के हालात में दुश्वार जीना हो गया .
स्वार्थ के माहौल में चालें घिनौनी चल रहा ,
आदमी इस दौर का कितना कमीना हो गया .
++++++++++
तेरी उल्फत की नगरी में हमारा अब बसेरा है .
हमारे पास जो कुछ है वो सब कुछ सिर्फ तेरा है .
तेरे रहमो-करम पर हैं हमारी अब सभी खुशियाँ ,
नज़र डाले उजाला है नज़र फेरे अँधेरा है .
++++++++++
हमारी भावनाओं में छुपा हर मर्म भारत है .
ये तन जिसको समर्पित है वो प्यारा कर्म भारत है .
समाहित है हमारे मन की हर पहचान इसमें ही ,
हमारी जाति भारत है हमारा धर्म भारत है .
++++++++++
उम्र भर जिसको संभालूं ऐसा खुशखत लिख गया .
कुछ नहीं है झूठ सब कुछ तो हकीकत लिख गया .
है तभी से रूह में दीवानगी छाई हुई ,
वो हमारे दिल के कागज़ पर मुहब्बत लिख गया .
++++++++++
जिन्हें प्यार देना था डर दे रहे हैं .
कड़ी धूप अब तो शज़र दे रहे हैं .
ये आया है कैसी तरक्की का मौसम ,
मसीहा हैं जो वो ज़हर दे रहे हैं .
++++++++++
सतत लक्ष्य की ओर चलना न आया .
गिरे किन्तु गिरकर संभलना न आया .
ज़माना बदलने में हैं व्यस्त लेकिन ,
हमें खुद को अब तक बदलना न आया .
++++++++++
हथेली पे सरसों उगाने चले हैं .
असंभव को संभव बनाने चलें हैं .
जो खुद की बुराई नहीं देख पाए ,
बुराई को जड़ से मिटाने चलें हैं .
++++++++++
जिन्दगी को बोझ जैसा समझकर ढोते नहीं हैं .
लड़ रहे कठिनाइयों से समय को खोते नहीं हैं .
आदमी बस वही हैं जो दर्द में रोते नहीं हैं .
आंसुओं से ज़िन्दगी के प्रश्न हल होते नहीं हैं .

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करेगा जोड़ने की बात पर अलगाव ही देगा .
प्रगति के नाम पर हमको महज ठहराव ही देगा .
करेगा भाषणों में जिक्र मरहम का सदा लेकिन ,
हमारे देश का नेता हमें बस घाव ही देगा .
*************
अभी आँखों में सपनों का खुला आकाश बाकी है .
अभी तो प्रीति का खुद पर अटल विश्वास बाकी है .
न विचलित हो तू मेरे मन शरद के दिन अगर बीते ,
बचाकर रख हर एक ख्वाहिश अभी मधुमास बाकी है .
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सूर्य के हाथों पराजित रात होगी .
बस उजालों की यहाँ बरसात होगी .
रक्त से अभिषेक होगा जब धरा का ,
तब नए युग की कहीं शुरुआत होगी .
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आस ही खास है जिन्दगी के लिए .
तृप्ति आधार मन की खुशी के लिए .
हो अंधेरों से लड़ने की हिम्मत अगर ,
एक दीपक बहुत रोशनी के लिए .
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जिन्दगी का गीत गाती लौ .
दर्द में भी मुस्कुराती लौ .
दीप के संघर्ष की गाथा ,
कह रही है टिमटिमाती लौ .