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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

अनन्त कौर

१.
तिरे ख़्याल के साँचे में ढलने वाली नहीं
मैं ख़ुशबुओं की तरह अब बिखरने वाली नहीं

तू मुझको मोम समझता है पर ये ध्यान रहे
मैं एक शमा हूँ लेकिन पिघलने वाली नहीं

तिरे लिये मैं ज़माने से लड़ तो सकती हूँ
तिरी तलाश में घर से निकलने वाली नहीं

मैं अपने वास्ते भी ज़िंदा रहना चाहती हूँ
सती हूँ पर मैं तेरे साथ जलने वाली नहीं

हरेक ग़म को मैं हँस कर ग़ुज़ार देती हूँ अब
कि ज़िंदगी की सज़ाओं से डरने वाली नहीं


२.

आईने ने सुना दी कहानी मिरी
याद मुझ को दिलाई जवानी मिरी

जाने क्या बात थी सोचते ही जिसे
रुक गई धड़कनों की रवानी मिरी

बात पहुँची मिरी उसके होंटों तलक
काम आई मिरे बेज़बानी मिरी

वो जहाँ भी था अपना समझता मुझे
बात इतनी भी कब उसने मानी मिरी

बेतलब बेसबब मुस्कुराती हुई
वो थी तस्वीर शायद पुरानी मिरी

तुझसे बिछुड़ी हूँ लेकिन मैं तन्हा नहीं
अब मिरे साथ है रायगानी मिरी