जन्म: 15 अप्रैल,1918,जयपुर, राजस्थान
निधन:17 सिंतबर, 1999)
कुछ प्रमुख कृतियाँ: अब्शारे-गज़ल / हसरत जयपुरी
१.
तेरी ज़ुल्फ़ों से जुदाई तो नहीं माँगी थी
क़ैद माँगी थी रिहाई तो नहीं माँगी थी
मैने क्या जुर्म किया आप ख़फ़ा हो बैठे
प्यार माँगा था ख़ुदाई तो नहीं माँगी थी
मेरा हक़ था तेरी आँखों की छलकती मैं पर
चीज अपनी थी पराई तो नहीं माँगी थी
चाहने वालों को कभी तूने सितम भी न दिया
तेरी महफ़िल में रुसवाई तो नहीं माँगी थी
दुशमनी की थी अगर वह भी निबाहता ज़ालिम
तेरी हसरत में भलाई तो नहीं माँगी थी
अपने दीवाने पे इतने भी सितम ठीक नही
तेरी उलफ़त में बुराई तो नहीं माँगी थी
२.
यारो मुझे मुआफ़ करो मैं नशे में हूँ
अब थोड़ी दूर साथ चलो मैं नशे में हूँ
जो कुछ ही कह रहा हूँ नशा बोलत है ये
इस का न कुछ ख़याल करो मैं नशे में हूँ
उस मैकदे की राह मे गिर जाउँ न कहीं
अब मेरा हाथ थाम तो लो मैं नशे में हूँ
अंदज़-ए-सितम उन का देखे तो कोई हसरत
मिलने को तो मिलते हैं नश्तर से चुभोते हैं
६.
शोले ही सही आग लगाने के लिये आ
फिर तूर के मंज़र को दिखाने के लिये आ
ये किस ने कहा है मेरी तक़दीर बना दे
आ अपने ही हाथों से मिटाने के लिये आ
ऐ दोस्त मुझे गर्दिश-ए-हालात ने घेरा
तू ज़ुल्फ़ की कमली में छुपाने के लिये आ
दीवार है दुनिया इसे राहों से हटा दे
हर रस्म मुहब्बत की मिटाने के लिये आ
मतलब तेरी आमद से है दरमाँ से नहीं
'हसरत' की क़सम दिल ही दुखाने के लिये आ
७.
एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तों
ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों
बनता है मेरा काम तुम्हारे ही काम से
होता है मेरा नाम तुम्हारे ही नाम से
तुम जैसे मेहरबां का सहारा है दोस्तों
ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों
जब आ पडा है कोई भी मुश्किल का रास्ता
मैंने दिया है तुम को मुहब्बत का वास्ता
हर हाल में तुम्हीं को पुकारा है दोस्तों
ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों
यारों ने मेरे वास्ते क्या कुछ नहीं किया
सौ बार शुक्रिया अरे सौ बार शुक्रिया
बचपन तुम्हारे साथ गुज़ारा है दोस्तो
ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों
८.
इस तरह हर ग़म भुलाया कीजिये
रोज़ मैख़ाने में आया कीजिये
छोड़ भी दीजिये तकल्लुफ़ शेख़ जी
जब भी आयें पी के जाया कीजिये
ज़िंदगी भर फिर न उतेरेगा नशा
इन शराबों में नहाया कीजिये
ऐ हसीनों ये गुज़ारिश है मेरी
अपने हाथों से पिलाया कीजिये
निधन:17 सिंतबर, 1999)
कुछ प्रमुख कृतियाँ: अब्शारे-गज़ल / हसरत जयपुरी
हसरत जयपुरी ने तीन दशक लंबे अपने सिने कैरियर में 300 से अधिक फिल्मों के लिए लगभग 2000 गीत लिखे।जब भी 'टाइटल सॉन्ग' की बात होती है, तो हसरत जयपुरी का नाम बड़े अदब के साथ लिया जाता है।
तेरी ज़ुल्फ़ों से जुदाई तो नहीं माँगी थी
क़ैद माँगी थी रिहाई तो नहीं माँगी थी
मैने क्या जुर्म किया आप ख़फ़ा हो बैठे
प्यार माँगा था ख़ुदाई तो नहीं माँगी थी
मेरा हक़ था तेरी आँखों की छलकती मैं पर
चीज अपनी थी पराई तो नहीं माँगी थी
चाहने वालों को कभी तूने सितम भी न दिया
तेरी महफ़िल में रुसवाई तो नहीं माँगी थी
दुशमनी की थी अगर वह भी निबाहता ज़ालिम
तेरी हसरत में भलाई तो नहीं माँगी थी
अपने दीवाने पे इतने भी सितम ठीक नही
तेरी उलफ़त में बुराई तो नहीं माँगी थी
२.
यारो मुझे मुआफ़ करो मैं नशे में हूँ
अब थोड़ी दूर साथ चलो मैं नशे में हूँ
जो कुछ ही कह रहा हूँ नशा बोलत है ये
इस का न कुछ ख़याल करो मैं नशे में हूँ
उस मैकदे की राह मे गिर जाउँ न कहीं
अब मेरा हाथ थाम तो लो मैं नशे में हूँ
३.
ये कौन आ गई दिलरुबा महकी महकी
फ़िज़ा महकी महकी हवा महकी महकी
वो आँखों में काजल वो बालों में गजरा
हथेली पे उसके हिना महकी महकी
ख़ुदा जाने किस-किस की ये जान लेगी
वो क़ातिल अदा वो सबा महकी महकी
सवेरे सवेरे मेरे घर पे आई
ऐ हसरत वो बाद-ए-सबा महकी महकी
४.
वो अपने चेहरे में सौ अफ़ताब रखते हैं
इस लिये तो वो रुख़ पे नक़ाब रखते हैं
वो पास बैठे तो आती है दिलरुबा ख़ुश्बू
वो अपने होठों पे खिलते गुलाब रखते हैं
हर एक वर्क़ में तुम ही तुम हो जान-ए-महबूबी
हम अपने दिल की कुछ ऐसी किताब रखते हैं
जहान-ए-इश्क़ में सोहनी कहीं दिखाई दे
हम अपनी आँख में कितने चेनाब रखते हैं
५.
हम रातों को उठ उठ के जिन के लिये रोते हैं
वो ग़ैर की बाहों में आराम से सोते हैं
हम अश्क जुदाई के गिरने ही नहीं देते
बेचैन सी पलओं में मोती से पिरोते हैं
होता चला आया है बेदर्द ज़माने में
सच्चाई की राहों में काँटे सभी बोतें हैं
ये कौन आ गई दिलरुबा महकी महकी
फ़िज़ा महकी महकी हवा महकी महकी
वो आँखों में काजल वो बालों में गजरा
हथेली पे उसके हिना महकी महकी
ख़ुदा जाने किस-किस की ये जान लेगी
वो क़ातिल अदा वो सबा महकी महकी
सवेरे सवेरे मेरे घर पे आई
ऐ हसरत वो बाद-ए-सबा महकी महकी
४.
वो अपने चेहरे में सौ अफ़ताब रखते हैं
इस लिये तो वो रुख़ पे नक़ाब रखते हैं
वो पास बैठे तो आती है दिलरुबा ख़ुश्बू
वो अपने होठों पे खिलते गुलाब रखते हैं
हर एक वर्क़ में तुम ही तुम हो जान-ए-महबूबी
हम अपने दिल की कुछ ऐसी किताब रखते हैं
जहान-ए-इश्क़ में सोहनी कहीं दिखाई दे
हम अपनी आँख में कितने चेनाब रखते हैं
५.
हम रातों को उठ उठ के जिन के लिये रोते हैं
वो ग़ैर की बाहों में आराम से सोते हैं
हम अश्क जुदाई के गिरने ही नहीं देते
बेचैन सी पलओं में मोती से पिरोते हैं
होता चला आया है बेदर्द ज़माने में
सच्चाई की राहों में काँटे सभी बोतें हैं
अंदज़-ए-सितम उन का देखे तो कोई हसरत
मिलने को तो मिलते हैं नश्तर से चुभोते हैं
६.
शोले ही सही आग लगाने के लिये आ
फिर तूर के मंज़र को दिखाने के लिये आ
ये किस ने कहा है मेरी तक़दीर बना दे
आ अपने ही हाथों से मिटाने के लिये आ
ऐ दोस्त मुझे गर्दिश-ए-हालात ने घेरा
तू ज़ुल्फ़ की कमली में छुपाने के लिये आ
दीवार है दुनिया इसे राहों से हटा दे
हर रस्म मुहब्बत की मिटाने के लिये आ
मतलब तेरी आमद से है दरमाँ से नहीं
'हसरत' की क़सम दिल ही दुखाने के लिये आ
७.
एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तों
ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों
बनता है मेरा काम तुम्हारे ही काम से
होता है मेरा नाम तुम्हारे ही नाम से
तुम जैसे मेहरबां का सहारा है दोस्तों
ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों
जब आ पडा है कोई भी मुश्किल का रास्ता
मैंने दिया है तुम को मुहब्बत का वास्ता
हर हाल में तुम्हीं को पुकारा है दोस्तों
ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों
यारों ने मेरे वास्ते क्या कुछ नहीं किया
सौ बार शुक्रिया अरे सौ बार शुक्रिया
बचपन तुम्हारे साथ गुज़ारा है दोस्तो
ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों
८.
इस तरह हर ग़म भुलाया कीजिये
रोज़ मैख़ाने में आया कीजिये
छोड़ भी दीजिये तकल्लुफ़ शेख़ जी
जब भी आयें पी के जाया कीजिये
ज़िंदगी भर फिर न उतेरेगा नशा
इन शराबों में नहाया कीजिये
ऐ हसीनों ये गुज़ारिश है मेरी
अपने हाथों से पिलाया कीजिये