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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

प्राण शर्मा

प्राण शर्मा का जन्म वजीराबाद (पाकिस्तान) में 13 जून 1937 को हुआ। 1965 से यू.के. में प्रवास कर रहे हैं। उनकी दो पुस्‍तकें ‘ग़ज़ल कहता हूँ’ व ‘सुराही’ (मुक्तक-संग्रह) प्रकाशित हो चुकी हैं।

1.

रहके अकेला इस दुनिया में करना सब कुछ हासिल प्यारे
मैं ही जानू कितना ज़्यादा होता है ये मुश्किल प्यारे


प्यारे-प्यारे, न्यारे-न्यारे खेल-तमाशे सब के सब हैं
आ कि ज़रा तुझको दिखलाऊँ दिल वालों की महफ़िल प्यारे


मोह नहीं जीवन का तुझको, मान लिया है मैंने लेकिन
दरिया में हर डूबने वाला चिल्लाता है साहिल प्यारे


कुछ तो चलो तुझको अनजानी राहों की पहचान हुई है
कैसा रंज, निराशा कैसी पा न सका जो मंजिल प्यारे


२.

दोस्ती यूँ भी तेरी हम तो निभायेंगे
मानोगे जब तक नहीं तुझको मनायेंगे


सुनते हैं, बह जाती है सब मैल नफ़रत की
प्यार की गंगा में हम खुल कर नहायेंगे


कुछ भलाई जागी है हम में भी ए यारो
पंछियों को हम भी अब दाने खिलायेंगे


क्या हुआ जो बारिशों में ढह गयी यारो
राम ने चाहा कुटी फिर से बनायेंगे


हम फ़क़ीरों का ठिकाना हर जगह ही है
शहर से निकले तो जंगल ही बसायेंगे


आप जीवन में हमारे आके तो देखें
आपको दिल में कभी सर पर बिठायेंगे


एक से रहते नहीं दिन ‘प्राण’ जीवन के
आज रोते हैं अगर कल मुस्करायेंगे


३.

कर नहीं सकते अगरचे प्यार की बातें
कुछ तो करना सीखो तुम उपकार की बातें


हाँ में हाँ प्यारे कभी सबकी मिलाया कर
दिल दुखाती हैं सदा इनकार की बातें


एक ये भी नुस्खा है तीमारदारी का
ठण्डे मन से सुनियेगा बीमार की बातें


करते हो हर बात मतलब की हमेशा तुम
जैसे व्यापारी करे व्यापार की बातें


औरों की सुनिए भले ही शौक़ से लेकिन
पहले सुनिए अपने ही परिवार की बातें


काम की कुछ बातें हों आपस में ए यारो
सर दुखाने लगती हैं बेकार की बातें


‘प्राण’ अपनों से कोई हक़ क्या कोई मांगे
लगती हैं सब को बुरी हक़दार की बातें


४.

जिसकी सुखी है हर समय संतान दोस्तो
वो शख्स है जहान में धनवान दोस्तो


हक़दार हों भले ही कई उसके वास्ते
मिलता है कब हरेक को सम्मान दोस्तो


जीवन में भी तो होती है हलचल अजीब सी
जीवन में भी तो आता है तूफ़ान दोस्तो


संसार दानवीरों से वंचित नहीं हुआ
करते हैं अब भी लोग कई दान दोस्तो


रहते हैं साधुओं से, फ़क़ीरों से उम्र भर
मिल जाते हैं कुछ ऐसे भी धनवान दोस्तो


दुनिया का कोई माज़रा उससे नहीं छिपा
जिस शख्स को है थोड़ी भी पहचान दोस्तो


५.

कुछ नया करके दिखाने को मचलता रहता है
मेरा ऐसा दोस्त है जो घर बदलता रहता है


धुन का पक्का कुछ न कुछ तो होता है वो साहिबो
मीठे फल के जैसा जिसका भाग्य फलता रहता है


पहले जैसा तो कभी रहता नहीं वो दोस्तो
धीरे-धीरे आदमी का मन बदलता रहता है


किसलिए ए दोस्त अपने दिल को हम छोटा करें
ज़िन्दगी में घाटे का व्यापार चलता रहता है


ये ज़रूरी तो नहीं औरों की खुशियाँ देख कर
हर बशर ही द्वेष की ज्वाला में जलता रहता है


ज़लज़ले या आधियाँ, तूफ़ान या बरबादियाँ
कुछ न कुछ संसार में ए दोस्त चलता रहता है


`प्राण`कोई क्या करेगा उसकी नीयत पर यक़ीन
रंग गिरगिट की तरह वो तो बदलता रहता है

६.


उड़ते हैं हज़ारों आकाश में पंछी
ऊँची नहीं होती परवाज़ हरिक की


होना था असर कुछ इस शहर भी उसका
माना कि अँधेरी उस शहर चली थी


इक डूबता बच्चा कैसे वो बचाता
इन्सान था लेकिन हिम्मत की कमी थी


इक शोर सुना तो डर कर सभी भागे
कुछ मेघ थे गरजे बस बात थी इतनी


सूखी सी जो होती जल जाती वो पल में
कैसे भला जलती गीली कोई लकड़ी


दुनिया को समझना अपने नहीं बस में
दुनिया तो है प्यारे अनबूझ पहेली


पुरज़ोर हवा में गिरना ही था उसको
ए ‘प्राण’ घरों की दीवारें थी कच्ची

७.

चेहरों पर हों कुछ उजाले सोचता हूँ
लोग हों खुशियों के पाले सोचता हूँ

तन के काले हों भले ही दुःख नहीं है
लोग मत हों मन के काले सोचता हूँ


हो भले ही धर्म और मजहब की बातें
पर बहें मत खूं के नाले सोचता हूँ


वक़्त था जब दर खुले रहते थे सबके
अब तो हैं तालों पे ताले सोचता हूँ


ढूँढ लेता मैं कहीं उसका ठिकाना
पाँव में पड़ते न छाले सोचता हूँ


सावनी ऋतु है, चपल पुरवाइयाँ हैं
क्यों न छायें मेघ काले सोचता हूँ


‘प्राण’ दुःख आये भले ही ज़िन्दगी में
उम्र भर डेरा न डाले सोचता हूँ