बल्ली सिंह चीमा का जन्म 2 सितम्बर 1952 को गांव चीमा खुर्द ,तहसील चभाल जिला अमृतसर ,पंजाब में हुआ था | कृतियाँ -ख़ामोशी के खिलाफ़ [गीत /गजल 1980] जमीन से उठती आवाज़ [गज़ल संग्रह 1990] तय करो किस ओर [कविता संग्रह -गीत /गज़ल 1998]
१.
यूँ मिला आज वो मुझसे कि खफ़ा हो जैसे
मैंने महसूस किया मेरी खता हो जैसे
तुम मिले हो तो ये दर -दर पे भटकना छूटा
एक बेकार को कुछ काम मिला हो जैसे
जिंदगी छोड़ के जायेगी न जीने देगी
मैंने इसका कोई नुकसान किया हो जैसे
वो तो आदेश पे आदेश दिये जाता है
सिर्फ़ मेरा नहीं दुनिया का का खुदा हो जैसे
तेरे होठों पे मेरा नाम खुदा खैर करे
एक मस्जिद पे श्रीराम लिखा हो जैसे
मेरे कानों में बजी प्यार भरी धुन बल्ली
उसने हौले से मेरा नाम लिया हो जैसे
२.
आग ,पानी ,अस्मां ,धरती हवा मौजूद है
हर किसी में जिन्दगी तेरी अदा मौजूद है
मस्जिदें ,मन्दिर तो अच्छे आदमी के दिल में हैं
मत कहो कि ईंट पत्थर में खुदा मौजूद है
आप तो पीते नहीं फिर भी शराबी हो गये
मान भी लीजै कि सत्ता में नशा मौजूद है
शहंशाह होता तो फिर भी ताज़ बनवाता नहीं
उससे भी सुंदर मेरे दिल में वफ़ा मौजूद है
खुश न हो अच्छी फसल को देखकर बल्ली अभी
इन फ़िज़ाओं में अभी काली हवा मौजूद है
३.
झूम के बरसे बादल पुरवा दिल में आग लगाये तो
वादा तो परसों का है पर आज ही वो आ जाये तो
जग जाहिर है आग बुझाना पहला काम है पानी का
क्या होगा गर ये पानी ही दिल में आग लगाये तो
अन्दर आकर पूछा मैंने क्या मैं अन्दर आ जाऊँ
मेरी गलती पर ही चलिए वो थोड़ा मुस्काये तो
हम हैं परिन्दे दाने चुगना आदत नहीं जरूरत है
हम तो फंस ही जायेंगे वो अपना जाल बिछाये तो
नंगा दौडूं बारिश में और नाव चलाऊं कागज की
दिल करता है फिर से मेरा बचपन लौट के आये तो
तेरी उसकी जोड़ी सचमुच खूब जमेगी ऐ बल्ली
दिल करता है ऐसी बातें आज कोई दोहराये तो
४.
साजिश में वो खुद शामिल हो ऐसा भी हो सकता है
मरने वाला ही कातिल हो ऐसा भी हो सकता है
आज तुम्हारी मंजिल हूँ मैं मेरी मंजिल और कोई
कल को अपनी हक मंजिल हो ऐसा भी हो सकता है
मेरे कातिल के चेहरे पर एक निशान है छोटा सा
मेरे गाल पे काला तिल हो ऐसा भी हो सकता है
साहिल की चाहत है लेकिन तैर रहा हूँ बीचो -बीच
मझधारों में ही साहिल हो ऐसा भी हो सकता है
जीवन भर भटका हूँ बल्ली मंजिल हाथ नहीं आयी
मेरे पैरों में मंजिल हो ऐसा भी हो सकता है