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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

रोहित कुमार 'हैप्पी'

रोहित कुमार 'हैप्पी' न्यूज़ीलैंड में हिंदी भाषा, लेखन व साहित्य के प्रचार-प्रसार हेतु प्रयासरत हैं। आप मूलत: कैथल (हरियाणा) से सम्बंध रखते हैं।


१.
मुझको अपने बीते कल में, कोई दिलचस्पी नहीं
मैं जहां रहता था अब वो घर नहीं, बस्ती नहीं।

सब यहां उदास, माथे पर लिए फिरते शिकन
अब किसी चेहरे पे दिखता नूर औ’ मस्ती नहीं।

ना कोई अपना बना, ना हम किसी के बन सके
इस शहर में जैसे अपनी कुछ भी तो हस्ती नहीं।

तेरी तरह हो जाऊं क्यों, भीड़ में खो जाऊं क्यों
शख्सियत ‘रोहित’ हमारी इतनी भी सस्ती नहीं।

२.
खुद ही बनाया और बिगाड़ा तकदीरों को
मैं मानता नहीं हाथ की लकीरों को।

महलों में रहें या कभी हों बेघर
फर्क पडता है कब फकीरों को।
कर्म अपने का फल मियाँ भोगो
कोसते क्यों हो भला तकदीरों को।

दुख गरीबों को ही बस नहीं होते
खुशियाँ मिलती नहीं सब अमीरों को।
३.
हाथ में हाथ मेरे थमा तो जरा
हम कदम हमको अपना बना तो जरा

रँग दुनिया का तुझको समझ आएगा
आँख से अपने पर्दा हटा तो जरा

कद छोटा सभी का क्यूं दिखता तुम्हें
है खड़ा तू कहाँ, ये बता तो जरा

लोग हो जाएंगे तेरे अपने सभी
तू अपना किसी को बना तो जरा

सुनते रहते हैं जिनको सुनाता है तू
खुद को खुद की कभी तू सुना तो जरा

पास आ जाएगी मंजिलें भी सभी
तेज अपने कदम तू चला तो जरा

तुम करोगे ना शिकवा गिला कोई भी
दर्द में खुद को जीना सिखा तो जरा

तुमको दिखती है सारे जहां में कमी
खुद में हैं कितनी कमियाँ गिना तो जरा
४.
इल्ज़ाम जमाने के हम तो हँस के सहेंगे
खामोश रहे हैं ये लब खामोश रहेंगे
तुमने शुरू किया तमाम तुम ही करोगे
हम दिल का मामला ना सरेआम करेंगे
हम बदमिज़ाज ही सही दिल के बुरे नहीं
दिल के बुरे हैं जो हमें बदनाम करेंगे
बदनाम करके हमको बड़ा काम करोगे
शायद जहां में ऊँचा अपना नाम करोगे
हर दाम पे ‘रोहित’ उन्हें तो नाम चाहिए
अच्छे से ना मिला तो बुरा काम करेंगे

५.
तेरा हँसना कमाल था साथी
हमको तुमपर मलाल था साथी

दाग चेहरे पे दे गया वो हमें
हमने
समझा गुलाल था साथी
रात
में आए तेरे ही सपने
दिन
में तेरा ख्याल था साथी
उड़
गई नींद मेरी रातों की
तेरा
कैसा सवाल था साथी
करने
बैठे थे दिल का वो सौदा
कोई
आया दलाल था साथी