जन्म: 22 मार्च 1968 को रावत भाटा (राजस्थान) में।
शिक्षा:अजमेर विश्व विद्यालय से गणित में स्नातकोत्तर के पश्चात भौतिकी में भी स्नात्तकोत्तर।
जनसत्ता सहित्य वार्षिकी (2010), समावर्तन, बया, पाखी, कथादेश, इन्द्रपस्थ भारती, सम्यक, सहचर, अक्षर पर्व आदि साहित्यिक पत्रिकाओं व दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, दैनिक जागरण आदि समाचार पत्रों में गज़लें व गीत प्रकाशित।
पुस्तकें: क़िस्सागोई करती आँखें (ग़ज़ल संग्रह) सम्प्रति: प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र में वैज्ञानिक अधिकारी के पद पर कार्यरत
सम्पर्क: Email: kant1008@rediffmail.com, kant1008@yahoo.co.in
ब्लॉग: तत्सम
धूप खड़ी है बाहर देख
गीत गगन के गाकर देख
अगर परखना है सच को
खुद से आँख मिला कर देख
जिस पत्थर से खाई ठोकर
पूजा उसकी भी कर देख
खुद पर ही आएँगे छींटे
दामन ज़रा बचा कर, देख
रावण है, है नहीं विभिषण
अब तू तीर चला कर देख
नींद सुलाती है इस पर भी
धरती का ये बिस्तर देख
२.
इतना क्यों बेकल है भाई
हर मुश्किल का हल है भाई
सूखा नहीं अभी भी सारा
कुछ आँखों में जल है भाई
आँख भले ही टिकी गगन पर
पैरों नीचे थल है भाई
यहाँ ठोस ही जी पाऐगा
जीवन भले तरल है भाई
कहाँ सूद की बात करें अब
डूबा हुआ असल है भाई
वही जटिल होता है सबसे
कहना जिसे सरल है भाई
आप भले ही ना माने पर
हमने कही ग़ज़ल है भाई
३.
खुशी भले पैताने रखना
दुख लेकिन सिरहाने रखना
कब आ पहुँचे भूखी चिड़िया
छत पर कुछ तो दाने रखना
१.
धूप खड़ी है बाहर देख
गीत गगन के गाकर देख
अगर परखना है सच को
खुद से आँख मिला कर देख
जिस पत्थर से खाई ठोकर
पूजा उसकी भी कर देख
खुद पर ही आएँगे छींटे
दामन ज़रा बचा कर, देख
रावण है, है नहीं विभिषण
अब तू तीर चला कर देख
नींद सुलाती है इस पर भी
धरती का ये बिस्तर देख
२.
इतना क्यों बेकल है भाई
हर मुश्किल का हल है भाई
सूखा नहीं अभी भी सारा
कुछ आँखों में जल है भाई
आँख भले ही टिकी गगन पर
पैरों नीचे थल है भाई
यहाँ ठोस ही जी पाऐगा
जीवन भले तरल है भाई
कहाँ सूद की बात करें अब
डूबा हुआ असल है भाई
वही जटिल होता है सबसे
कहना जिसे सरल है भाई
आप भले ही ना माने पर
हमने कही ग़ज़ल है भाई
३.
खुशी भले पैताने रखना
दुख लेकिन सिरहाने रखना
कब आ पहुँचे भूखी चिड़िया
छत पर कुछ तो दाने रखना
अर्थ कई हैं एक शब्द के
खुद में खुद के माने रखना
यूँ ही नहीं बहलते बच्चे
सच में कुछ अफ़साने रखना
घाघ हुऐ हैं आदमखोर
ऊँची और मचाने रखना
जब तुम चाहो सच हो जाएँ
कुछ तो ख़्वाब सयाने रखना
४.
कहाँ हमारा हाल नया है
कहने को ही साल नया है
कहता है हर बेचने वाला
दाम पुराना माल नया है
बड़े हुए हैं छेद नाव में
माझी कहता पाल नया है
इन्तज़ार है रोटी का बस
आज हमारा थाल नया है
लोग बेसुरे समझाते हैं
नवयुग का सुर-ताल नया है
नहीं सहेगा मार दुबारा
गाँधी जी का गाल नया है
५.
चाँद उगेगा अम्बर में फिर
ज्वार पढ़ेगा सागर में फिर
लफ़्ज गढ़ूँ तब ज़रा देखना
दर्द जगेगा पत्थर में फिर
फिक्र अगर हो रोटी की तो
ख़्वाब चुभेगा बिस्तर में फिर
अगर ज़रूरी है तो पूछो
प्रश्न उठेगा उत्तर में फिर
६
कौन गया है रखकर इतने
आँखें दो हैं मंज़र इतने
जगह नहीं है अर्जुन को भी
चढ़े सारथी रथ पर इतने
तितली के हिस्से में थे जो
फूल चढ़े हैं बुत पर इतने
ज़मीं तलाशे नींद हमारी
और आपको बिस्तर इतने
नाइन्साफ़ी की भी हद है
शीशा इक है पत्थर इतने
खाली है अपना भी पेट
और कबूतर छत पर इतने
बोल आपके काफी मुझ पर
क्यों ताने हैं ख़ंज़र इतने
७.
पत्तों की ख़ता न पूछ
हवा का पता न पूछ
मुकम्मल हो पाएगी
बच्चों की रज़ा न पूछ
आँसू ज़मीन के पोंछ
आसमाँ की सज़ा न पूछ
बेनकाब कर देगा सब
हमारा बयाँ न पूछ
८.
इतना क्यों बेकल है भाई
हर मुश्किल का हल है भाई
सूखा नहीं अभी भी सारा
कुछ आँखों में जल है भाई
आँख भले ही टिकी गगन पर
पैरों नीचे थल है भाई
यहाँ ठोस ही जी पाऐगा
जीवन भले तरल है भाई
कहाँ सूद की बात करें अब
डूबा हुआ असल है भाई
वही जटिल होता है सबसे
कहना जिसे सरल है भाई
आप भले ही ना माने पर
हमने कही ग़ज़ल है भाई
९.
आपको पहले बताया जाएगा
हुक्म हो तो मुस्कुराया जाएगा
मोड़ हैं इतने तुम्हारे घर तलक
बाखुद़ा हमसे न आया जाएगा
आँधियाँ कहती कहाँ हैं ये हमे
किन चरागो़ं को बुझाया जाएगा
वो नहीं सुनते, नहीं सुनते हैं वो
शोर ये कब तक मचाया जाएगा
थपकियाँ दे दे के यूँ ही कब तलक
भूखे बच्चों को सुलाया जाएगा
आपकी मर्ज़ी कि रूठो रोज़ रोज़
रोज़ ना हमसे मनाया जाएगा
१०.
खुद में खुद के माने रखना
यूँ ही नहीं बहलते बच्चे
सच में कुछ अफ़साने रखना
घाघ हुऐ हैं आदमखोर
ऊँची और मचाने रखना
जब तुम चाहो सच हो जाएँ
कुछ तो ख़्वाब सयाने रखना
४.
कहाँ हमारा हाल नया है
कहने को ही साल नया है
कहता है हर बेचने वाला
दाम पुराना माल नया है
बड़े हुए हैं छेद नाव में
माझी कहता पाल नया है
इन्तज़ार है रोटी का बस
आज हमारा थाल नया है
लोग बेसुरे समझाते हैं
नवयुग का सुर-ताल नया है
नहीं सहेगा मार दुबारा
गाँधी जी का गाल नया है
५.
चाँद उगेगा अम्बर में फिर
ज्वार पढ़ेगा सागर में फिर
लफ़्ज गढ़ूँ तब ज़रा देखना
दर्द जगेगा पत्थर में फिर
फिक्र अगर हो रोटी की तो
ख़्वाब चुभेगा बिस्तर में फिर
अगर ज़रूरी है तो पूछो
प्रश्न उठेगा उत्तर में फिर
६
कौन गया है रखकर इतने
आँखें दो हैं मंज़र इतने
जगह नहीं है अर्जुन को भी
चढ़े सारथी रथ पर इतने
तितली के हिस्से में थे जो
फूल चढ़े हैं बुत पर इतने
ज़मीं तलाशे नींद हमारी
और आपको बिस्तर इतने
नाइन्साफ़ी की भी हद है
शीशा इक है पत्थर इतने
खाली है अपना भी पेट
और कबूतर छत पर इतने
बोल आपके काफी मुझ पर
क्यों ताने हैं ख़ंज़र इतने
७.
पत्तों की ख़ता न पूछ
हवा का पता न पूछ
मुकम्मल हो पाएगी
बच्चों की रज़ा न पूछ
आँसू ज़मीन के पोंछ
आसमाँ की सज़ा न पूछ
बेनकाब कर देगा सब
हमारा बयाँ न पूछ
८.
इतना क्यों बेकल है भाई
हर मुश्किल का हल है भाई
सूखा नहीं अभी भी सारा
कुछ आँखों में जल है भाई
आँख भले ही टिकी गगन पर
पैरों नीचे थल है भाई
यहाँ ठोस ही जी पाऐगा
जीवन भले तरल है भाई
कहाँ सूद की बात करें अब
डूबा हुआ असल है भाई
वही जटिल होता है सबसे
कहना जिसे सरल है भाई
आप भले ही ना माने पर
हमने कही ग़ज़ल है भाई
९.
आपको पहले बताया जाएगा
हुक्म हो तो मुस्कुराया जाएगा
मोड़ हैं इतने तुम्हारे घर तलक
बाखुद़ा हमसे न आया जाएगा
आँधियाँ कहती कहाँ हैं ये हमे
किन चरागो़ं को बुझाया जाएगा
वो नहीं सुनते, नहीं सुनते हैं वो
शोर ये कब तक मचाया जाएगा
थपकियाँ दे दे के यूँ ही कब तलक
भूखे बच्चों को सुलाया जाएगा
आपकी मर्ज़ी कि रूठो रोज़ रोज़
रोज़ ना हमसे मनाया जाएगा
१०.
अपनी ही परछाई से खुश
लोग रहे तन्हाई से खुश
दर्प गगन का है ऊँचाई
सागर है गहराई से खुश
जनता को भरमा रक्खा है
राजा इस दानाई से खुश
ख़ुद से आगे दिखे न कोई
वो हैं इसी ख़ुदाई से खुश
फिर तारीख़ मिली है अगली
मुलज़िम है सुनवाई से खुश
एक उन्हे लाखों भी कम हैं
हम हैं इधर दहाई से खुश
ठुकरा के भी अगर रहें वो
हम अपनी रुसवाई से खुश
११.
उम्र भर छलती रही
आस जो पलती रही
रात भी लम्बी रही
नींद भी छलती रही
धूप की आदी न थी
बर्फ थी, गलती रही
आपको फुर्सत न थी
बात यूँ टलती रही
सादगी मेरी यही
आपको खलती रही
याद थी बस आपकी
ज़िन्दगी चलती रही
१२.
मौसमों की तल्खियाँ हैं
दहशतों में बस्तियाँ हैं
डूबने में क्या बचा है
बस भँवर में कश्तियाँ हैं
इन गुलाबों में नया क्या
कुछ वही सी सुर्खियाँ है
फिर चराग़ों को बता दें
उठ रही फिर आँधियाँ हैं
सह रही थीं बट बला के
कट गई ये रस्सियाँ हैं
हम रहे परछाइयाँ बस
आपकी तो हस्तियाँ हैं