जगजीत सिंह के गाये हुए १०१ गजलें.
१.
चाँद से फूल से या मेरी जुबां से सुनिए,
हर तरफ आप का किसा जहां से सुनिए,
सब को आता है दुनिया को सता कर जीना,
ज़िंदगी क्या मुहब्बत की दुआ से सुनिए,
मेरी आवाज़ पर्दा मेरे चहरे का,
मैं हूँ खामोश जहां मुझको वहां से सुनिए,
क्या ज़रूरी है की हर पर्दा उठाया जाए,
मेरे हालात अपने अपने मकान से सुनिए..
२.
तन्हा-तन्हा हम रो लेंगे महफ़िल-महफ़िल गायेंगे,
जब तक आंसू साथ रहेंगे तब तक गीत सुनायेंगे,
तुम जो सोचो वो तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं,
देर न करना घर जाने में वरना घर खो जायेंगे,
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारें छूने दो,
चार किताबे पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे,
किन राहों से दूर है मंजिल कौन सा रास्ता आसान है,
हम जब थक कर रुक जायेंगे, औरों को समझायेंगे,
अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर दिल हों मुमकिन है,
हम तो उस दिन रायें देंगे जिस दिन धोखा खायेंगे..
३.
न शिवाले न कालिस न हरम झूठे हैं,
बस यही सच है के तुम झूठे हो हम झूठे हैं,
हमने देखा ही नहीं बोलते उनको अब तक,
कौन कहता है के पत्थर के सनम झूठे हैं,
उनसे मिलिए तो ख़ुशी होती है उनसे मिलकर,
शहर के दुसरे लोगों से जो कम झूठे हैं,
कुछ तो है बात जो तहरीरों में तासीर नहीं,
झूठे फनकार नहीं हैं तो कलम झूठे हैं..
४.
क्या खबर थी इस तरह से वो जुदा हो जाएगा,
ख्वाब में भी उसका मिलना ख्वाब सा हो जाएगा,
ज़िन्दगी थी क़ैद हम-में क्या निकालोगे उसे,
मौत जब आ जायेगी तो खुद रिहा हो जाएगा,
दोस्त बनकर उसको चाहा ये कभी सोचा न था,
दोस्ती ही दोस्ती में वो खुदा हो जाएगा,
उसका जलवा होगा क्या जिसका के पर्दा नूर है,
जो भी उसको देख लेगा वो फ़िदा हो जाएगा..
५.
खुदा हमको ऐसी खुदाई न दे,
के अपने सिवा कुछ दिखाई न दे,
खतावार समझेगी दुनिया तुझे,
के इतनी जियादा सफाई न दे,
हंसो आज इतना के इस शोर में,
सदा सिसकियों की सुनायी न दे,
अभी तो बदन में लहू है बहुत,
कलम छीन ले रोशनाई न दे,
खुदा ऐसे एहसास का नाम है,
रहे सामने और दिखाई न दे..
६.
कभी यूंह भी आ मेरी आँख में,
के मेरी नज़र को खबर न हो,
मुझे एक रात नवाज़ दे,
मगर उस के बाद सहर न हो,
वोह बड़ा रहीम-ओ-करीम है,
मुझे यह सिफत भी अत करे,
तुझे भूलने की दुआ करू,
तो दुआ में मेरी असर न हो,
कभी दिन की धुप में जहम के,
कभी शब् के फूल को चूम के,
यूंह ही साथ साथ चले सदा,
कभी ख़त्म आपना सफ़र न हो,
मेरे पास मेरे हबीब आ,
जरा और दिल के करीब आ,
तुझे धडकनों में बसा लू में,
के बिचादने का कभी दार न हो..
७.
धुप है क्या और साया क्या है अब मालूम हुआ,
ये सब खेल तमाशा क्या है अब मालूम हुआ,
हँसते फूल का चेहरा देखूं और भर आई आँख,
अपने साथ ये किस्सा क्या है अब मालूम हुआ,
हम बरसों के बाद भी उनको अब तक भूल न पाए,
दिल से उनका रिश्ता क्या है अब मालूम हुआ,
सेहरा सेहरा प्यासे भटके सारी उम्र जले,
बादल का इक टुकड़ा क्या है अब मालूम हुआ..
८.
देखा जो आइना तो मुझे सोचना पड़ा,
खुद से न मिल सका तो मुझे सोचना पड़ा,
उसका जो ख़त मिला तो मुझे सोचना पड़ा,
अपना सा वो लगा तो मुझे सोचना पड़ा,
मुझको था गुमान के मुझी में है एक अना,
देखा तेरी अना तो मुझे सोचना पड़ा,
दुनिया समझ रही थी के नाराज़ मुझसे है,
लेकिन वो जब मिला तो मुझे सोचना पड़ा,
इक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा करार,
जब खुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा..
९.
ऐसे हिज्र के मौसम तब तब आते हैं,
तेरे अलावा याद हमें सब आते हैं,
जादू की आँखों से भी देखो दुनिया को,
ख़्वाबों का क्या है वो हर सब आते हैं,
अब के सफ़र की बात नहीं बाक़ी वरना,
हम को बुलाएं दस्त से जब वो आते हैं,
कागज़ की कस्थी में दरिया पार किया,
देखो हम को क्या क्या करतब आते हैं..
१०.
ना मुहब्बत ना दोस्ती के लिए,
वक़्त रुकता नहीं किसी के लिए,
दिल को अपने सज़ा न दे यूं ही,
सोच ले आज दो घडी के लिए,
हर कोई प्यार ढूढता है यहाँ,
अपनी तन्हा सी ज़िंदगी के लिए,
वक़्त के साथ साथ चलता रहे,
यही बेहतर है आदमी के लिए..
११.
मेरे दरवाज़े से अब चाँद को रुक्सत कर दो,
साथ आया है तुम्हारे जो तुम्हारे घर से,
अपने माथे से हटा दो ये चमकता हुआ ताज,
फेंक दो जिस्म से किरणों का सुनहरी जेवर,
तुम्ही तनहा मेरा ग़म खाने में आ सकती हो,
एक मुद्दत से तुम्हारे ही लिए रखा है,
मेरे जलते हुए सीने का दहकता हुआ चाँद..
१२.
हम तो यूँ अपनी ज़िन्दगी से मिले,
अजनबी जैसे अजनबी से मिले,
हर वफ़ा एक जुर्म हो गया,
दोस्त कुछ ऎसी बेरुखी से मिले,
फूल ही फूल हमने मांगे थे,
दाग ही दाग ज़िंदगी से मिले,
जिस तरह आप हम से मिलते हैं,
आदमी यूँ न आदमी से मिले..
१३.
होंठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो,
बन जाओ मीत मेरे मेरी प्रीत अमर कर दो,
न उम्र की सीमा हो न जनम का हो बंधन,
जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन,
नयी रीत चला कर तुम ये रीत अमर कर दो,
आकाश का सूनापन मेरे तन्हा मन में,
पायल छनकाती तुम आ जाओ जीवन में,
साँसें देकर अपनी संगीत अमर कर दो,
जग ने छीना मुझसे मुझे जो भी लगा प्यारा,
सब जीता किये मुझसे मैं हर दम ही हारा,
तुम हार के दिल अपना मेरी जीत अमर कर दो..
१४.
ये करें और वो करें ऐसा करें वैसा करें,
ज़िन्दगी दो दिन की है दो दिन में हम क्या क्या करें,
जी में आता है की दें परदे से परदे का जवाब,
हम से वो पर्दा करें दुनिया से हम पर्दा करें,
सुन रहा हूँ कुछ लुटेरे आ गये हैं शहर में,
आप जल्दी बांध अपने घर का दरवाजा करें,
इस पुरानी बेवफ़ा दुनिया का रोना कब तलक,
आइये मिलजुल के इक दुनिया नयी पैदा करें..
१५.
मेरे दिल में तू ही तू है दिल की दावा क्या करूँ,
दिल भी तू है जान भी तू है तुझपे फ़िदा क्या करूँ,
खुद को खोके तुझको पाकर क्या क्या मिला क्या कहो,
तेरी होके जीने में क्या आया मज़ा क्या कहूँ,
कैसे दिन हैं कैसी रातें कैसी फिजा क्या कहूँ,
मेरी होके तुने मुझको क्या क्या दिया क्या कहूँ,
मेरे पहलू में जब तू है फिर मैं दुआ क्या करूँ,
दिल भी तू है जान भी तू है तुझपे फ़िदा क्या करूँ,
है ये दुनिया दिल की दुनिया मिलके रहेंगे यहाँ,
लूटेंगे हम खुशियाँ हर पल दुःख न सहेंगे यहाँ,
अरमानो के चंचल धारे ऐसे बहेंगे यहाँ,
ये तो सपनो की जन्नत है सब ही कहेंगे यहाँ,
ये दुनिया मेरे दिल में बसी है दिल से जुदा क्या करूँ,
दिल भी तू है जान भी तू है तुझपे फ़िदा क्या करूँ..
१६.
हमसफ़र बन के हम साथ हैं आज भी,
फिर भी है ये सफ़र अजनबी अजनबी,
राह भी अजनबी मोड़ भी अजनबी,
जाएँ हम किधर अजनबी अजनबी,
ज़िन्दगी हो गयी है सुलगता सफ़र,
दूर तक आ रहा है धुंआ सा नज़र,
जाने किस मोड़ पर खो गयी हर ख़ुशी,
देके दर्द-ऐ-जिगर अजनबी अजनबी,
हमने चुन चुन के तिनके बनाया था जो,
आशियाँ हसरतों से सजाया था जो,
है चमन में वही आशियाँ आज भी,
लग रहा है मगर अजनबी अजनबी,
किसको मालूम था दिन ये भी आयेंगे,
मौसमों की तरह दिल बदल जायेंगे,
दिन हुआ अजनबी रात भी अजनबी,
हर घडी हर पहर अजनबी अजनबी..
१७.
उसकी बातें तो फूल हो जैसे,
बाकि बातें बाबुल हो जैसे,
छोटी छोटी सी उसकी वो आंखे,
दो चमेली के फूल हो जैसे,
उसकी हसकर नज़र झुका लेना,
साडी शर्ते कुबूल हो जैसे,
कितनी दिलकश है उसकी ख़ामोशी,
सारी बातें फिजूल हो जैसे..
१८.
परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता,
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता,
बड़े लोगो से मिलने में हमेशा फासला रखना,
जहा दरिया समंदर से मिला दरिया नहीं रहता,
तुम्हारा शहर तो बिलकुल नए अंदाज़ वालाहाई,
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता,
मोहब्बत एक खुसबू है हमेशा साथ चलती है,
कोई इंसान तन्हाई में भी तनहा नहीं रहता..
१९.
बादल की तरह झूम के लहरा के पियेंगे,
सकी तेरे मएखाने पे हम जा के पियेंगे,
उन मदभरी आखों को भी शर्मा के पियेंगे,
पएमाने को पएमाने से टकरा के पियेंगे,
बादल भी है बादा भी है मीना भी तुम भी,
इतराने का मौसम है अब इतराके पियेंगे,
देखेंगे की आता है किधर से गम-ए-दुनिया,
साकी तुझे हम सामने बैठा के पियेंगे..
२०.
कभी गुंचा कभी शोला कभी शबनम की तरह,
लोग मिलते हैं बदलते हुए मौसम की तरह,
मेरे महबूब मेरे प्यार को इलज़ाम न दे,
हिज्र में ईद मनाई है मुहर्रम की तरह,
मैंने खुशबू की तरह तुझको किया है महसूस,
दिल ने छेड़ा है तेरी याद को शबनम की तरह,
कैसे हमदर्द हो तुम कैसी मसीहाई है,
दिल पे नश्तर भी लगाते हो तो मरहम की तरह..
२१.
कभी तो खुल के बरस अब के मेहरबान की तरह,
मेरा वजूद है जलते हुए मकां की तरह,
मैं इक ख्वाब सही आपकी अमानत हूँ,
मुझे संभाल के रखियेगा जिस्म-ओ-जान की तरह,
कभी तो सोच के वो साक्ष किस कदर था बुलंद,
जो बिछ गया तेरे क़दमों में आसमान की तरह,
बुला रहा है मुझे फिर किसी बदन का बसंत,
गुज़र न जाए ये रूठ भी कहीं खिज़ां की तरह..
२२.
तेरे खुशबु में बसे ख़त मैं जलाता कैसे,
जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाये रखा,
जिनको इक उम्र कलेजे से लगाए रखा,
जिनका हर लफ्ज़ मुझे याद था पानी की तरह ,
याद थे मुझको जो पैगाम-इ-जुबानी की तरह,
मुझ को प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह,
तूने दुनिया की निगाहों से जो बचाकर लिखे ,
सालाहा-साल मेरे नाम बराबर लिखे,
कभी दिन में तोह कभी रात में उठकर लिखे,
तेरे खुशबु में बसे ख़त मैं जलाता कैसे,
प्यार में दूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे,
तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे,
तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ,
आग बहेती हुए पानी में लगा आया हूँ…
२३.
इन्तिहा आज इश्क की कर दी,
आप के नाम ज़िन्दगी कर दी,
था अँधेरा गरीब खाने में,
आप ने आ के रोशनी कर दी,
देने वाले ने उन को हुस्न दिया,
और अता मुझ को आशिकी कर दी,
तुम ने जुल्फों को रुख पे बिखरा कर,
शाम रंगीन और भी कर दी
२४.
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो
पत्थरों में भी ज़ुबां होती है दिल होते हैं
अपने घर के दरोदीवार सजा कर देखो
फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है
वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो
२५.
आँख से दूर न हो दिल से उतर जायेगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जायेगा
इतना मानूस न हो ख़िलवतेग़म से अपनी
तू कभी खुद को भी देखेगा तो ड़र जायेगा
तुम सरेराहेवफ़ा देखते रह जाओगे
और वो बामेरफ़ाक़त से उतर जायेगा
ज़िंदगी तेरी अता है तो ये जानेवाला
तेरी बख़्शिश तेरी दहलीज़ पे धर जायेगा
ड़ूबते ड़ूबते कश्ती को उछाला दे दूँ
मै नहीं कोई तो साहिल पे उतर जायेगा
ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का ‘फ़राज़’
ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जायेगा
२६.
वस्ल की रात तो राहत से बसर होने दो
शाम से ही है ये धमकी के सहर होने दो
जिसने ये दर्द दिया है वो दवा भी देगा
लादवा है जो मेरा दर्द-ए-जिगर होने दो
ज़िक्र रुख़सत का अभी से न करो बैठो भी
जान-ए-मन रात गुज़रने दो सहर होने दो
वस्ल-ए-दुश्मन की ख़बर मुझ से अभी कुछ ना कहो
ठहरो ठहरो मुझे अपनी तो ख़बर होने दो
२७.
हर गोशा गुलिस्तां था कल रात जहां मै था
एक जश्न-ए-बहारां था कल रात जहां मै था
नग़्मे थे हवाओं में जादू था फ़िज़ाओं में
हर साँस ग़ज़लफ़ां था कल रात जहां मै था
दरिया-ए-मोहब्बत में कश्ती थी जवानी की
जज़्बात का तूफ़ां था कल रात जहां मै था
मेहताब था बाहों में जलवे थे निगाहों में
हर सिम्त चराग़ां था कल रात जहां मै था
‘ख़ालिद’ ये हक़ीक़त है नाकर्दा गुनाहों की
मै ख़ूब पशेमां था कल रात जहां मै था
२८.
घर से हम निकले थे मस्जिद की तरफ़ जाने को
रिंद बहका के हमें ले गये मैख़ाने को
ये ज़बां चलती है नासेह के छुरी चलती है
ज़ेबा करने मुझे आय है के समझाने को
आज कुछ और भी पी लूं के सुना है मैने
आते हैं हज़रत-ए-वाइज़ मेरे समझाने को
हट गई आरिज़-ए-रोशन से तुम्हारे जो नक़ाब
रात भर शम्मा से नफ़रत रही दीवाने को
२९.
एक दीवाने को ये आये हैं समझाने कई
पहले मै दीवाना था और अब हैं दीवाने कई
मुझको चुप रहना पड़ा बस आप का मुंह देखकर
वरना महफ़िल में थे मेरे जाने पहचाने कई
एक ही पत्थर लगे है हर इबादतगाह में
गढ़ लिये हैं एक ही बुत के सबने अफ़साने कई
मै वो काशी का मुसलमां हूं के जिसको ऐ ‘नज़ीर’
अपने घेरे में लिये रहते हैं बुतख़ाने कई
३०.
बज़्म-ए-दुश्मन में बुलाते हो ये क्या करते हो
और फिर आँख चुराते हो ये क्या करते हो
बाद मेरे कोई मुझ सा ना मिलेगा तुम को
ख़ाक में किस को मिलाते हो ये क्या करते हो
छींटे पानी के ना दो नींद भरी आँखों पर
सोते फ़ितने को जगाते हो ये क्या करते हो
हम तो देते नहीं क्या ये भी ज़बरदस्ती है
छीन कर दिल लिये जाते हो ये क्या करते हो
हो ना जाये कहीं दामन का छुड़ाना मुश्किल
मुझ को दीवाना बनाते हो ये क्या करते हो
३१.
मिलकर जुदा हुए तो न सोया करेंगे हम,
एक दूसरे की याद में रोया करेंगे हम,
आंसू छलक छलक के सतायेंगे रात भर,
मोती पलक पलक में पिरोया करेंगे हम,
जब दूरियों की याद दिलों को जलायेगी,
जिस्मों को चांदनी में भिगोया करेंगे हम,
गर दे गया दगा हमें तूफ़ान भी ‘क़तील’,
साहिल पे कश्तियों को डुबोया करेंगे हम,
३२.
तेरे खुशबु मे बसे ख़त मैं जलाता कैसे,
जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाये रखा,
जिनको इक उम्र कलेजे से लगाए रखा,
जिनका हर लफ्ज़ मुझे याद था पानी की तरह,
याद थे मुझको जो पैगाम-ऐ-जुबानी की तरह,
मुझ को प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह,
तूने दुनिया की निगाहों से जो बचाकर लिखे,
सालाहा-साल मेरे नाम बराबर लिखे,
कभी दिन में तो कभी रात में उठकर लिखे,
तेरे खुशबु मे बसे ख़त मैं जलाता कैसे,
प्यार मे डूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे,
तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे,
तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ,
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ,
३३.
ऐसी आंखें नही देखी, ऐसा काजल नही देखा,
ऐसा जलवा नही देखा, ऐसा चेहरा नही देखा,
जब ये दामन की हवा ने, आग जंगल में लगा दे,
जब ये शहरो में जाए, रेत में फूल खिलाये,
ऐसी दुनिया नही देखी, ऐसा मंजर नही देखा,
ऐसा आलम नही देखा, ऐसा दिलबर नही देखा,
उस के कंगन का खड़कना, जैसा बुल-बुल का चहकना,
उस की पाजेब की छम-छम, जैसे बरसात का मौसम,
ऐसा सावन नही देखा, ऐसी बारिश नही देखी,
ऐसी रिम-झिम नही देखी, ऐसी खवाइश नही देखी,
उस की बेवक्त की बाते, जैसे सर्दी की हो राते,
उफ़ ये तन्हाई, ये मस्ती, जैसे तूफान में कश्ती,
मीठी कोयल सी है बोली, जैसे गीतों की रंगोली,
सुर्ख गालों पर पसीना, जैसे फागुन का महीना,
३४.
मुझसे मिलने के वो करता था बहाने कितने,
अब गुजारेगा मेरे साथ ज़माने कितने,
मैं गिरा था तो बहुत लोग रुके थे लेकिन,
सोचता हूँ मुझे आए थे उठाने कितने,
जिस तरह मैंने तुझे अपना बना रखा है,
सोचते होंगे यही बात न जाने कितने,
तुम नया ज़ख्म लगाओ तुम्हे इससे क्या है,
भरने वाले है अभी ज़ख्म पुराने कितने,
३५.
हम तो हैं परदेस में देश में निकला होगा चाँद,
अपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चाँद,
जिन आंखों में काजल बनकर तैरी काली रात,
उन आंखों में आंसू का इक कतरा होगा चाँद,
रात ने ऐसा पेच लगाया टूटी हाथ से डोर,
आँगन वाले नीम में जाकर अटका होगा चाँद,
चाँद बिना हर दिन यूँ बीता जैसे युग बीते,
मेरे बिना किस हाल में होगा कैसा होगा चाँद,
३६.
गम मुझे हसरत मुझे वहशत मुझे सौदा मुझे,
एक दिल देकर खुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे,
ये नमाज-ऐ-इश्क है कैसा आदाब किसका आदाब,
अपने पाये नाज़ पर करने भी दो सजदा मुझे,
देखते ही देखते दुनिया से मैं उठ जाऊंगा,
देखती ही देखती रह जायेगी दुनिया मुझे
३७.
वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे,
मैं तुझको भूल के जिंदा रहूँ खुदा न करे,
रहेगा साथ तेरा प्यार ज़िंदगी बनकर,
ये और बात मेरी ज़िंदगी वफ़ा न करे,
सुना है उसको मोहब्बत दुआएं देती है,
जो दिल पे चोट तो खाए मगर गिला न करे,
ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई मे,
खुदा किसी को किसी से मगर जुदा न करे,
३८.
अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निछार होता
कोई फ़ितना था क़यामत ना फिर आशकार होता
तेरे दिल पे काश ज़ालिम मुझे इख़्तियार होता
जो तुम्हारी तरह तुम से कोई झूठे वादे करता
तुम्हीं मुन्सिफ़ी से कह दो तुम्हे ऐतबार होता
ग़म-ए-इश्क़ में मज़ा था जो उसे समझ के खाते
ये वो ज़हर है के आखिर मै-ए-ख़ुशगवार होता
ना मज़ा है दुश्मनी में ना ही लुत्फ़ दोस्ती में
कोई ग़ैर ग़ैर होता कोई यार यार होता
ये मज़ा था दिल्लगी का के बराबर आग लगती
ना तुझे क़रार होता ना मुझे क़रार होता
तेरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते
अगर अपनी ज़िंदगी का हमें ऐतबार होता
ये वो दर्द-ए-दिल नहीं है के हो चारासाज़ कोई
अगर एक बार मिटता तो हज़ार बार होता
गए होश तेरे ज़ाहिद जो वो चश्म-ए-मस्त देखी
मुझे क्या उलट ना देता जो ना बादाख़्वार होता
मुझे मानते सब ऐसा के उदूं भी सजदा करते
दर-ए-यार काबा बनता जो मेरा मज़ार होता
तुम्हे नाज़ हो ना क्योंकर के लिया है “दाग़” का दिल
ये रक़म ना हाथ लगती ना ये इफ़्तिख़ार होता
३९.
तुझसे मिलने की सज़ा देंगे तेरे शहर के लोग,
ये वफाओं का सिला देंगे तेरे शहर के लोग,
क्या ख़बर थी तेरे मिलने पे क़यामत होगी,
मुझको दीवाना बना देंगे तेरे शहर के लोग,
तेरी नज़रों से गिराने के लिए जान-ऐ-हया,
मुझको मुजरिम भी बना देंगे तेरे शहर के लोग,
कह के दीवाना मुझे मार रहे हैं पत्थर,
और क्या इसके सिवा देंगे तेरे शहर के लोग,
४०.
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ू न हुई वो सई-ए-क़रम फ़रमा भी गए
इस सई-ए-क़रम का क्या कहिये बहला भी गए तड़पा भी गए
हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर ना सके कुछ कह ना सके कुछ सुन ना सके
यां हम ने ज़बां ही खोले थी वां आँख झुकी शरमा भी गए
आशुफ़्तगी-ए-वहशत की क़सम हैरत की क़सम हसरत की क़सम
अब आप कहें कुछ या ना कहें हम राज़-ए-तबस्सुम पा भी गए
रूदाद-ए-ग़म-ए-उल्फ़त उन से हम क्या कहते क्योंकर कहते
एक हर्फ़ ना निकला होठों से और आंख में आंसू आ भी गए
अरबाब-ए-जुनूं पे फ़ुरकत में अब क्या कहिये क्या क्या गुज़रा
आये थे सवाद-ए-उल्फ़त में कुछ खो भी गए कुछ पा भी गए
ये रंग-ए-बहार-ए-आलम है क्या फ़िक़्र है तुझ को ऐ साक़ी
महफ़िल तो तेरी सुनी ना हुई कुछ उठ भी गए कुछ आ भी गए
इस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में इस अंजुमन-ए-इरफ़ानी में
सब जाम-ब-कफ़ बैठे ही रहे हम पी भी गए छलका भी गए
४१.
रात भर दीदा-ए-ग़म नाक में लहराते रहे
सांस की तरह से आप आते रहे जाते रहे
खुश थे हम अपनी तमन्नाओं का ख़्वाब आएगा
अपना अरमान बर-अफ़्गंदा नक़ाब आएगा
नज़रें नीची किये शर्माए हुए आएगा
काकुलें चेहरे पे बिखराए हुए आएगा
आ गई थी दिल-ए-मुज़्तर में शकेबाई सी
बज रही थी मेरे ग़मखाने में शहनाई सी
शब के जागे हुए तारों को भी नींद आने लगी
आप के आने की इक आस थी अब जाने लगी
सुबह ने सेज से उठते हुए ली अंगड़ाई
ओ सबा तू भी जो आई तो अकेले आई
मेरे महबूब मेरी नींद उड़ानेवाले
मेरे मसजूद मेरी रूह पे छानेवाले
आ भी जा ताकि मेरे सजदों का अरमां निकले
४२.
किसी का यूं तो हुआ कौन उम्रभर फिर भी
ये हुस्न-ओ-इश्क़ तो धोखा है सब मगर फिर भी
हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है
नई नई सी है कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी
तेरी निगाह से बचने में उम्र गुज़री है
उतर गया रग-ए-जां में ये नेशतर फिर भी
४३.
इश्क़ के शोले को भड़काओ कि कुछ रात कटे
दिल के अंगारे को दहकाओ कि कुछ रात कटे
हिज्र में मिलने शब-ए-माह के गम आये हैं
चारासाजों को भी बुलवाओ कि रात कटे
कोई जलता ही नहीं कोई पिघलता ही नहीं
मोम बन जाओ पिघल जाओ कि कुछ रात कटे
चश्म-ओ-रुखसार के अज़गार को जारी रखो
प्यार के नग़मे को दोहराओ कि कुछ रात कटे
आज हो जाने दो हर एक को बद्-मस्त-ओ-ख़राब
आज एक एक को पिलवाओ कि कुछ रात कटे
कोह-ए-गम और गराँ और गराँ और गराँ
गमज़दों तेश को चमकाओ कि कुछ रात कटे
४४.
ग़ज़ल का साज़ उठाओ बड़ी उदास है रात
नवा-ए-मीर सुनाओ बड़ी उदास है रात
नवा-ए-दर्द में इक ज़िंदगी तो होती है
नवा-ए-दर्द सुनाओ बड़ी उदास है रात
उदासियों के जो हमराज़-ओ-हमनफ़स थे कभी
उन्हें ना दिल से भुलाओ बड़ी उदास है रात
जो हो सके तो इधर की राह भूल पड़ो
सनमक़दे की हवाओं बड़ी उदास है रात
कहें न तुमसे तो फ़िर और किससे जाके कहें
सियाह ज़ुल्फ़ के सायों बड़ी उदास है रात
अभी तो ज़िक्र-ए-सहर दोस्तों है दूर की बात
अभी तो देखते जाओ बड़ी उदास है रात
दिये रहो यूं ही कुछ देर और हाथ में हाथ
अभी ना पास से जाओ बड़ी उदास है रात
सुना है पहले भी ऐसे में बुझ गये हैं चिराग़
दिलों की ख़ैर मनाओ बड़ी उदास है रात
समेट लो कि बड़े काम की है दौलत-ए-ग़म
इसे यूं ही न गंवाओ बड़ी उदास है रात
इसी खंडहर में कहीं कुछ दिये हैं टूटे हुए
इन्ही से काम चलाओ बड़ी उदास है रात
दोआतिशां न बना दे उसे नवा-ए-’फ़िराक़’
ये साज़-ए-ग़म न सुनाओ बड़ी उदास है रात
४५.
देखना जज़्बे मोहब्बत का असर आज की रात
मेरे शाने पे है उस शोख़ का सर आज की रात
नूर ही नूर है किस सिम्त उठाऊं आँखें
हुस्न ही हुस्न है ता हद-ए-नज़र आज की रात
नग़मा-ओ-मै का ये तूफ़ान-ए-तरब क्या कहना
मेरा घर बन गया ख़ैयाम का घर आज की रात
नर्गिस-ए-नाज़ में वो नींद का हल्क़ा सा ख़ुमार
वो मेरे नग़मा-ए-शीरीं का असर आज की रात
४६.
शहर की रात और मै नाशाद-ओ-नाकारा फिरूं
जगमगाती जागती सड़कों पे आवारा फिरूं
ग़ैर की बस्ती है कब तक दर-ब-दर मारा फिरूं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
झिलमिलाते क़मक़मों की राह में ज़ंजीर सी
रात के हाथों में दिन की मोहनी तस्वीर सी
मेरे सीने पर मगर चलती हुई शमशीर सी
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
ये रुपहली छांव ये आकाश पर तारों का जाल
जैसे सूफ़ी का तसव्वुर जैसे आशिक़ का ख़याल
आह लेकिन कौन समझे कौन जाने जी का हाल
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
फिर वो टूटा एक सितारा फिर वो छूटी फुलझड़ी
जाने किस की गोद में आये ये मोती की लड़ी
हूक सी सीने में उठी चोट सी दिल पर पड़ी
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
रात हंस हंस कर ये कहती है के मैख़ाने में चल
फिर किसी शहनाज़-ए-लालारुख़ के काशाने में चल
ये नहीं मुमकिन तो फिर ऐ दोस्त वीराने में चल
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
हर तरफ़ बिखरी हुईं रंगीनियां रानाइयां
हर क़दम पर इशरतें लेतीं हुईं अंगड़ाइयां
बढ़ रही हैं गोद फैलाये हुए रुसवाइयां
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
रास्ते में रुक के दम ले लूं मेरी आदत नहीं
लौट कर वापस चला जाऊं मेरी फ़ितरत नहीं
और कोई हमनवा मिल जाये ये क़िस्मत नहीं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
मुन्तज़िर है एक तूफ़ान-ए-बला मेरे लिये
अब भी जाने कितने दरवाज़े हैं वा मेरे लिये
पर मुसीबत है मेरा अहद-ए-वफ़ा मेरे लिये
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
जी में आता है कि अब अहद-ए-वफ़ा भी तोड़ दूं
उन को पा सकता हूं मै ये आसरा भी छोड़ दूं
हां मुनासिब है ये ज़ंजीर-ए-हवा भी तोड़ डूं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
इक महल की आड़ से निकला वो पीला माहताब
जैसे मुल्ला का अमामा जैसे बनिये की किताब
जैसे मुफ़लिस की जवानी जैसे बेवा का शबाब
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
दिल में एक शोला भड़क उठा है आखिर क्या करूं
मेरा पैमाना छलक उठा है आखिर क्या करूं
ज़ख़्म सीने का महक उठा है आखिर क्या करूं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
मुफ़लिसी और ये मज़ाहिर हैं नज़र के सामने
सैकड़ों चंगेज़-ओ-नादिर हैं नज़र के सामने
सैकड़ों सुल्तान जाबर हैं नज़र के सामने
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
ले के इक चंगेज़ के हाथों से ख़ंजर तोड़ दूं
ताज पर उस के दमकता है जो पत्थर तोड़ दूं
कोई तोड़े या न तोड़े मै ही बढ़कर तोड़ दूं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
बढ़ के इस् इन्दरसभा का साज़-ओ-सामां फूंक दूं
इस का गुलशन फूंक दूं उस का शबिस्तां फूंक दूं
तख़्त-ए-सुल्तां क्या मै सारा क़स्र-ए-सुल्तां फूंक दूं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
जी में आता है ये मुर्दा चाँद तारे नोच लूं
इस किनारे नोच लूं और उस किनारे नोच लूं
एक दो का ज़िक्र क्या सारे के सारे नोच लूं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
मुझको किस्मत ने बनाय गदले पानी का कंवल
ख़ाक में मिल मिल गये सब आरज़ूओं के महल
क्या खबर थी यूं मेरी तकदीर जायेगी बदल
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
रूठनेवाले के तू मजबूर से रूठेगा क्या
जिस तरह किस्मत ने लूटा यूं कोई लूटेगा क्या
ऐ मेरे टूटे हुए दिल और तू टूटेगा क्या
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
४७.
अब अक्सर चुप-चुप से रहे हैं यूं ही कभू लब खोले हैं
पहले “फ़िराक़” को देखा होता अब तो बहुत कम बोले हैं
दिन में हम को देखने वालों अपने अपने हैं औक़ाब
जाओ न तुम इन ख़ुश्क आँखों पर हम रातों को रो ले हैं
फ़ितरत मेरी इश्क़-ओ-मोहब्बत क़िस्मत मेरी तन्हाई
कहने की नौबत ही न आई हम भी कसू के हो ले हैं
बाग़ में वो ख्वाब-आवर आलम मौज-ए-सबा के इशारों पर
ड़ाली ड़ाली नौरस पत्ते सहस सहज जब ड़ोले हैं
उफ़ वो लबों पर मौज-ए-तबस्सुम जैसे करवटें लें कौंदें
हाय वो आलम जुम्बिश-ए-मिज़गां जब फ़ितने पर तोले हैं
इन रातों को हरीम-ए-नाज़ का इक आलम होये है नदीम
खल्वत में वो नर्म उंगलियां बंद-ए-क़बा जब खोले हैं
ग़म का फ़साना सुनने वालों आखिर-ए-शब आराम करो
कल ये कहानी फिर छेड़ेंगे हम भी ज़रा अब सो ले हैं
हम लोग अब तो पराये से हैं कुछ तो बताओ हाल-ए-”फ़िराक़”
अब तो तुम्हीं को प्यार करे हैं अब तो तुम्हीं से बोले हैं
४८.
हिज़ाब-ए-फ़ितना परवर अब उठा लेती तो अच्छा था
खुद अपने हुस्न को परदा बना लेती तो अच्छा था
तेरी नीची नज़र खुद तेरी इस्मत की मुहाफ़िज़ है
तू इस नश्तर की तेजी आजमा लेती तो अच्छा था
तेरे माथे का टीका मर्द की किस्मत का तारा है
अगर तू साज़े-बेदारी उठा लेती तो अच्छा था
तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही खूब है लेकिन
तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था
दिले-मजरूह को मजरूहतर करने से क्या हासिल
तू आँसू पोंछकर अब मुस्कुरा लेती तो अच्छा था
अगर खिलवत मैं तूने सर उठाया भी तो क्या हासिल
भरी महफ़िल मैं आकर सर झुका लेती तो अच्छा था
४९.
इज़्न-ए-खिराम लेते हुये आसमां से हम,
हटकर चले हैं रहगुज़र-ए-कारवां से हम,
क्योंकर हुआ है फ़ाश ज़माने पे क्या कहें,
वो राज़-ए-दिल जो कह न सके राज़दां से हम,
हमदम यही है रहगुज़र-ए-यार-ए-खुश-खिराम,
गुज़रे हैं लाख बार इसी कहकशां से हम,
क्या क्या हुआ है हम से जुनूं में न पूछिये,
उलझे कभी ज़मीं से कभी आसमां से हम,
ठुकरा दिये हैं अक़्ल-ओ-खिराद के सनमकदे,
घबरा चुके हैं कशमकश-ए-इम्तेहां से हम,
बख्शी हैं हम को इश्क़ ने वो जुर्रतें ’मजाज़’,
डरते नहीं सियासत-ए-अहल-ए-जहां से हम,
५०.
तुझ से रुख़सत की वो शाम-ए-अश्क़-अफ़्शां हाए हाए,
वो उदासी वो फ़िज़ा-ए-गिरिया सामां हाए हाए,
यां कफ़-ए-पा चूम लेने की भिंची सी आरज़ू,
वां बगल-गीरी का शरमाया सा अरमां हाए हाए,
वो मेरे होंठों पे कुछ कहने की हसरत वाये शौक़,
वो तेरी आँखों में कुछ सुनने का अरमां हाए हाए,
५१.
तोड़कर अहद-ए-करम नाआशना हो जाइये,
बंदापरवर जाइये अच्छा ख़फ़ा हो जाइये,
राह में मिलिये कभी मुझ से तो अज़राह-ए-सितम,
होंठ अपने काटकर फ़ौरन जुदा हो जाइये,
जी में आता है के उस शोख़-ए-तग़ाफ़ुल केश से,
अब ना मिलिये फिर कभी और बेवफ़ा हो जाइये,
हाये रे बेइख़्तियारी ये तो सब कुछ हो मगर,
उस सरापानाज़ से क्यूंकर ख़फ़ा हो जाइये,
५२.
मुद्दत में वो फिर ताज़ा मुलाक़ात का आलम,
ख़ामोश अदाओं में वो जज़्बात का आलम,
अल्लाह रे वो शिद्दत-ए-जज़्बात का आलम,
कुछ कह के वो भूली हुई हर बात का आलम,
आरिज़ से ढ़लकते हुए शबनम के वो क़तरे,
आँखों से झलकता हुआ बरसात का आलम,
वो नज़रों ही नज़रों में सवालात की दुनिया,
वो आँखों ही आँखों में जवाबात का आलम,
५३.
किस को आती है मसीहाई किसे आवाज़ दूं,
बोल ऐ ख़ूंख़ार तनहाई किसे आवाज़ दूं,
चुप रहूं तो हर नफ़स ड़सता है नागन की तरह,
आह भरने में है रुसवाई किसे आवाज़ दूं,
उफ़ ख़ामोशी की ये आहें दिल को बरमाती हुईं,
उफ़ ये सन्नाटे की शहनाई किसे आवाज़ दूं,
५४.
ऐ वतन मेरे वतन रूह-ए-रवानी-ए-एहराब,
ऐ के ज़र्रों में तेरे बू-ए-चमन रंग-ए-बहार,
रेज़े अल्मास के तेरे खस-ओ-ख़ाशाक़ में हैं,
हड़्ड़ियां अपने बुज़ुर्गों की तेरी ख़ाक में हैं,
तुझ से मुँह मोड़ के मुँह अपना दिखयेंगे कहां,
घर जो छोड़ेंगे तो फिर छांव निछायेंगे कहां,
बज़्म-ए-अग़यार में आराम ये पायेंगे कहां,
तुझ से हम रूठ के जायेंगे तो जायेंगे कहां,
५५.
अब तो उठ सकता नहीं आंखों से बार-ए-इन्तज़ार,
किस तरह काटे कोई लैल-ओ-नहार-ए-इन्तज़ार,
उन की उल्फ़त का यक़ीं हो उन् के आने की उम्मीद,
हों ये दोनों सूरतें तब है बहार-ए-इन्तज़ार,
मेरी आहें नारासा मेरी दुआऐं नाक़ुबूल,
या इलाही क्या करूं मै शर्मसार-ए-इन्तज़ार,
उन के ख़त की आराज़ू है उन के आमद का ख़याल,
किस क़दर फैला हुआ है कारोबार-ए-इन्तज़ार,
५६.
आप को देख कर देखता रह गया,
क्या कहुँ और कहने को क्या रह गया,
आते आते मेरा नाम सा रह गया,
उसके होठों पे कुछ कांपता रह गया,
वो मेरे सामने ही गया और मैं,
रास्ते की त्तरह देखता रह गया,
झूठ वाले कहीं से कहीं बढ गये,
और मैं था के सच बोलता रह गया,
आंधियों के इरादे तो अच्छे ना थे,
ये दिया कैसे जलता रह गया,
५७.
तेरे कदमो पे सर होगा, कजा सर पे खडी होगी,
फिर उस सजदे का क्या कहना अनोखी बन्दगी होगी,
नसीम-ए-सुबह गुनशन में गुलो से खेलती होगी,
किसी की आखरी हिच्चकी किसी की दिल्ल्गी होगी,
दिखा दुँगा सर-ए-महफिल, बता दुँगा सर-ए-महशिल,
वो मेरे दिल में होगें और दुनिया देखती होगी,
मजा आ जायेगा महफ़िल में फ़िर सुनने सुनाने का,
जुबान होगी वहाँ मेरी कहानी आप की होगी,
तुम्हे दानिश्ता महफ़िल में जो देखा हो तो मुजरिम,
नजर आखिर नजर है बेइरादा उठ गई होगी,
५८.
ठुकराओ अब के प्यार करो, मैं नशे मे हुँ,
जो चाहे मेरे यार करो, मैं नशे मे हुँ,
अभी दिला रहा हुँ यकीन-ए-वफ़ा मगर,
मेरा ना एतबार करो, मैं नशे मे हुँ,
गिरने दो तुम मुझे मेरा सागर सम्भाल लो,
इतना तो मेरे यार करो, मैं नशे मे हुँ,
मुझको कदम कदम पे भटकने दो आज दोस्त,
तुम अपना करोबार करो, मैं नशे मे हुँ,
फ़िर बेखुदी में हद से गुजर ने लगा हुँ मैं,
इतना ना मुझ से प्यार करो ,मैं नशे मे हुँ,
५९.
चांद के साथ कई दर्द पुराने निकले,
कितने गम थे जो तेरे गम के बहाने निकले,
फ़सल-ए-गुल आई फ़िर एक बार असीनाने-वफ़ा,
अपने ही खून के दरिया में नहाने निकले,
दिल ने एक ईंट से तामीर किया हसीं ताजमहल,
तुने एक बात कही लाख फसाने निकले,
दश्त-ए-तन्हाई ये हिजरा में खडा सोचता हुँ,
हाय क्या लोग मेरा साथ निभाने निकले,
६०.
तुमने दिल की बात कह दी, आज ये अच्छा हुआ,
हम तुम्हें अपना समझते थे, बढा धोखा हुआ,
जब भी हमने कुछ कहा, उसका असर उल्टा हुआ,
आप शायद भूलते है, बारहा ऎसा हुआ,
आपकी आंखों में ये आंसू कहाँ से आ गये,
हम तो दिवाने है लेकिन आप को ये क्या हुआ,
अब किसी से क्या कहें इकबाल अपनी दास्तां,
बस खुदा का शुक्र है जो भी हुआ अच्छा हुआ,
६१.
मुझे होश नहीं, मुझे होश नहीं,
कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं,
रात के साथ गयी बात , मुझे होश नहीं,
मुझको ये भी नहीं मालुम के जाना है कहाँ,
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं,
जाने क्या टुटा है पैमाना के दिल है मेरा,
बिखरे बिखरे है ख्यालात मुझे होश नहीं,
आंसुओं और शराबो मे गुजर है अब तो,
मैने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं,
६२.
चराग-ए-इश्क, जलाने की रात आयी है,
किसी को अपना बनाने की रात आयी है,
वो आज आये है महफ़िल में चांदनी लेकर,
के रोशनी में नहाने की रात आयी है,
फ़लक का चांद भी शर्मा के मुँह छुपायेगा,
नकाब रुख से उठा ने की रात आयी है,
निगाहें साकी से पेहम के छलक रही है शराब,
पियो के पीने पीलाने की रात आयी है,
६३.
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ू न हुई वो सई-ए-क़रम फ़रमा भी गये,
उस सई-ए-क़रम का क्या कहिये बहला भी गये तड़पा भी गये,
एक अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर न सके कुछ कह न सके कुछ सुन न सके,
यहां हम ने ज़बां ही खोले थी वहां आंख झुकी शरमा भी गये,
आशुफ़्तगी-ए-वहशत की क़सम हैरत की क़सम हसरत की क़सम,
अब आप कहे कुछ या न कहे हम राज़-ए-तबस्सुम पा भी गये,
रूदाद-ए-ग़म-ए-उल्फ़त उन से हम क्या कहते क्योंकर कहते,
एक हर्फ़ न निकला होठों से और आंख में आंसू आ भी गये,
अरबाब-ए-जुनूं पे फ़ुर्कत में अब क्या कहिये क्या क्या गुज़रा,
आये थे सवाद-ए-उल्फ़त में कुछ खो भी गये कुछ पा भी गये,
ये रन्ग-ए-बहार-ए-आलम है क्या फ़िक़्र है तुझ को ऐ साक़ी,
महफ़िल तो तेरी सूनी न हुई कुछ उठ भी गये कुछ आ भी गये,
इस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में इस अन्जुमन-ए-इरफ़ानी में,
सब जाम-ब-कफ़ बैठे रहे हम पी भी गये छलका भी गये,
६४.
ज़रा चेहरे से कमली को हटा दो या रसूल-अल्लाह,
हमें भी अपना दीवाना बना दो या रसूल-अल्लाह,
मोहब्बत ग़ैर से मेरी छुड़ा दो या रसूल-अल्लाह,
मेरी सोई हुई क़िस्मत जगा दो या रसूल-अल्लाह,
बड़ी क़िस्मत हमारी है के उम्मत में तुम्हारी हैं,
भरोसा दीन-ओ-दुनिया में तुम्हारा या रसूल-अल्लाह,
अंधेरी कब्र में मुझको अकेला छोड़ जायेंगे,
वहां हो फ़ज़ल से तेरे उजाला या रसूल-अल्लाह,
ख़ुदा मुझको मदीने पे जो पहुँचाये तो बेहतर है,
के रोज़े पर ही दे दूंजां उजाकर या रसूल-अल्लाह,
६५.
तुझे ढ़ूंढ़ता था मैं चारसूं तेरी शान जल्लेजलाल हूं,
तू मिला क़रीब-ए-रग-ए-गुलूं तेरी शान जल्लेजलाल हूं,
तेरी याद में है कली कली है चमन चमन में हुबल अली,
तू बसा है फूल में हू-ब-हू तेरी शान जल्लेजलाल हूं,
तेरे हुक्म से जो हवा चली तो चटक के बोली कली कली,
है करीम तू रहीम तू तेरी शान जल्लेजलाल हूं,
तेरा जलवा दोनों जहां में है तेरा नूर कोनोमकां में है,
यहां तू ही तू वहां तू ही तू तेरी शान जल्लेजलाल हूं,
६६.
तारीफ़ उस ख़ुदा की जिसने जहां बनाया,
कैसी ज़मीं बनाई क्या आसमां बनाया,
मिट्टी से बेल फूटे क्या ख़ुशनुमा उग आये,
पहना के सब्ज़ ख़िल्लत उनको जवां बनाया,
सूरज से हमने पाई गर्मी भी रोशनी भी,
क्या खूब चश्मा तूने ए महरबां बनाया,
हर चीज़ से है उसकी कारीगरी टपकती,
ये कारख़ाना तूने कब रायबां बनाया,
६७.
दुनिया से दिल लगाकर दुनिया से क्या मिलेगा,
याद-ए-ख़ुदा किये जा तुझ को ख़ुदा मिलेगा,
दौलत हो या हुकूमत ताक़त हो या जवानी,
हर चीज़ मिटनेवाली हर चीज़ आनी-जानी,
ये सब ग़ुरूर इक दिन मिट्टी में जा मिलेगा,
आता नहीं पलटकर गुज़रा हुआ ज़माना,
क्या ख़्वाब का भरोसा क्या मौत का ठिकाना,
ये ज़िंदगी गंवाकर क्या फ़ायदा मिलेगा,
६८.
चिराग दिल के जलाओ के ईद का दिन है,
तराने झूम के गाओ के ईद का दिन है,
ग़मों को दिल से भुलाओ के ईद का दिन है,
ख़ुशी से बज़्म सजाओ के ईद का दिन है,
हुज़ूर उस की करो अब सलामती की दुआ,
सर-ए-नमाज़ झुकाओ के ईद का दिन है,
सभी मुरादें हों पूरी हर एक सवाली की,
दुआ को हाथ उठाओ के ईद का दिन है,
६९.
अब तो मेरे खुदा मुझे जलवा दिखाइये,
अपने नमाज़ियों का कहा मान जाइये,
कुछ कह रहे हैं आप से सीने की धड़कनें,
मेरा नहीं तो दिल का कहा मान जाइये,
मै जानता हूं तू बड़ा रहमतनवाज़ है,
सबके दिलों पे रहम का जादू जगाइये,
मुद्दत से तिशनगी है तुम्हारे जमाल की,
नूर-ए-कमाल से ज़रा परदा उठाइये,
७०.
शहरों शहरों आज हैं तन्हा दिल पर गहरा दाग़ लिये,
गलियों गलियों हो गये रुसवा दिल पर गहरा दाग़ लिये,
आज गुलिस्तां में फैली है ख़ुशबू तेरी यादों की,
मौसम-ए-गुल है हम हैं तन्हा दिल पर गहरा दाग़ लिये,
रोते-धोते जी को जलाते मंज़िल-ए-शब तक आ पहुंचे,
चेहरे पर है गर्द-ए-तमन्ना दिल पर गहरा दाग़ लिये,
ढ़ूंढ़ने उन को शहर-ए-बुतां में आज गये थे हम भी “अदीब”,
आँख में लेकर ग़म का दरिया दिल पर गहरा दाग़ लिये,
७१.
ये किसका तसव्वुर है ये किसका फ़साना है,
जो अश्क है आँखों में तस्बीह का दाना है,
आँखों में नमी सी है चुप-चुप से वो बैठे हैं,
नज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है,
ये इश्क़ नहीं आसां इतना तो समझ लीजे,
एक आग का दरिया है और ड़ूब के जाना है,
या वो थे ख़फ़ा हम से या हम थे ख़फ़ा उनसे,
कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है,
७२.
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हे याद हो के न याद हो,
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो के न याद हो,
वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें,
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हे याद हो के न याद हो,
कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी,
तो बयां से पहले ही भूलना तुम्हे याद हो के न याद हो,
जिसे आप गिनते थे आशना जिसे आप कहते थे बावफ़ा,
मै वही हूँ ‘मोमिन’-ए-मुब्तला तुम्हे याद हो के न याद हो,
७६.
मुझे दे रहे हैं तसल्लियां वो हर एक ताज़ा पयाम से,
कभी आके मंज़र-ए-आम पर कभी हट के मंज़र-ए-आम से,
ना ग़रज़ किसी से ना वास्ता मुझे काम अपने ही काम से,
तेरे ज़िक्र से तेरी फ़िक्र से तेरी याद से तेरे नाम से,
मेरे साक़िया मेरे साक़िया तुझे मरहबा तुझे मरहबा,
तू पिलाये जा तू पिलाये जा इसी चश्म-ए-जाम-ब-जाम से,
तेरी सुबह-ओ-ऐश है क्या बला तुझे ऐ फ़लक जो हो हौसला,
कभी कर ले आ के मुक़ाबला ग़म-ए-हिज्र-ए-यार की शाम से,
७७.
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी ना सकूं,
ढ़ूंढ़ने उस को चला हूँ जिसे पा भी ना सकूं,
ड़ाल कर ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल् ने कहा,
कुछ ये मेंहंदी नहीं मेरी के छुपा भी ना सकूं,
ज़ब्त कम्बख़्त ने और आके गला घोंटा है,
के उसे हाल सुनाऊं तो सुना भी ना सकूं,
उस के पहलू में जो ले जाके सुला दूं दिल को,
नींद ऐसी उसे आये के जगा भी ना सकूं,
७८.
जब भी आती है तेरी याद कभी शाम के बाद,
और बढ़ जाती है अफ़्सुर्दादिली शाम के बाद,
अब इरादों पे भरोसा है ना तौबा पे यकीं,
मुझ को ले जाये कहां तशनालबी शाम के बाद,
यूँ तो हर लम्हा तेरी याद का बोझल गुज़रा,
दिल को महसूस हुई तेरी कमी शाम के बाद,
यूँ तो कुछ शाम से पहले भी उदासी थी ‘अदीब’,
अब तो कुछ और बढ़ी दिल की लगी शाम के बाद
७९.
अपना ग़म भूल गये तेरी जफ़ा भूल गये,
हम तो हर बात मोहब्बत के सिवा भूल गये,
हम अकेले ही नहीं प्यार के दीवाने सनम,
आप भी नज़रें झुकाने की अदा भूल गये,
अब तो सोचा है के दामन ही तेरा थामेंगे,
हाथ जब हमने उठाये हैं दुआ भूल गये,
शुक्र समझो या इसे अपनी शिकायत समझो,
तुम ने वो दर्द दिया है के दवा भूल गये,
८०.
अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता,
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता,
ना मज़ा है दुश्मनी में ना है लुत्फ़ दोस्ती में,
कोई ग़ैर ग़ैर होता कोई यार यार होता,
ये मज़ा था दिल्लगी का के बराबर आग लगती,
ना तुम्हे क़रार होता ना हमें क़रार होता,
तेरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते,
अगर अपनी ज़िंदगी का हमें ऐतबार होता,
८१.
आँख को जाम समझ बैठा था अंजाने में,
साक़िया होश कहाँ था तेरे दीवाने में,
जाने किस बात की उनको है शिकायत मुझसे,
नाम तक जिनका नहीं है मेरे अफ़साने में,
दिल के टुकड़ों से तेरी याद की खुशबू ना गई,
बू-ए-मै बाकी है टूटे हुए पैमाने में,
दिल-ए-बरबाद में उम्मीद का आलम क्या है,
टिमटिमाती हुई इक शम्मा है वीराने में,
८२.
रातें थी सूनी सूनी, दिन भी उदास थे मेरे,
तुम मिल गए तो जागे सोये हुए सवेरे,
खामोश इन लबो को एक रागिनी मिली है,
मुरझाये से गुलो को एक ताजगी मिली है,
घेरे हुए थे मुझ को कब से घने अंधेरे,
रूठा हुआ था मुझसे, खुशियों को है तराना,
लगता था जिंदगानी, बन जायेगी फ़साना,
हर सु लगे हुए थे तन्हाइयो के फेरे,
८३.
सुनते है के मिल जाती है हर चीज़ दुआ से,
एक रोज़ तुझे मांग के देखेगे खुदा से,
दुनिया भी मिली है, गम-ऐ-दुनिया भी मिला है,
वो क्यों नही मिलता जिसे माँगा था खुदा से,
ए दिल तुम उन्हें देख के कुछ ऐसे तड़पना,
आ जाए हँसी उनको बैठे है खफा से,
जब कुछ न मिला हाथ दुआ को उठा कर,
फिर हाथ उठाने ही पड़े हमको दुआ से,
८४.
बड़ी नाजुक है ये मंजिल, मोहब्बत का सफर है,
धड़क आहिस्ता से ए दिल, मोहब्बत का सफर है,
कोई सुन ले न ये किस्सा, बहुत डर लगता है,
मगर डरने से क्या हासिल, मोहब्बत का सफर है,
बताना भी नही आसान, छुपाना भी कठिन है,
खुदा अक्सर कदर मुश्किल, मोहब्बत का सफर है,
उजाले दिल के फैले है, चले आओ न जानम,
बहुत ही प्यार के काबिल, मोहब्बत का सफर है,
८५.
अब खुशी है न कोई गम रुलाने वाला,
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला,
उसको रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था,
सारा घर ले गया, घर छोड़ के जाने वाला,
इक मुसाफिर के सफर जैसी है सबकी दुनिया,
कोई जल्दी में कोई देर से जाने वाला,
एक बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा-चेहरा,
जिस तरफ़ देखिये आने को है आने वाला,
८६.
उठा सुराही ले शीशा-ओ-जाम साकी,
फिर इसके बाद खुदा का भी नाम ले साकी,
फिर इसके बाद हमे तिशनगी रहे न रहे,
कुछ और देर मुरवत से काम ले साकी,
फिर इसके बाद जो होगा वो देखा जाएगा,
अभी तो पीने पिलाने से काम ले साकी,
तेरे हजूर में होश-ओ-खिरद से क्या हासिल,
नही है मए तो निगाहों से काम ले साकी,
८७.
हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए है,
जिंदा तो है जीने की अदा भूल गए है,
हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए है,
खुशबु जो लुटाती है मसलती है उसी को,
एहसान का बदला यही मिलता है कली को,
एहसान तो लेते है सिला भूल गए है,
करते है मोहब्बत का और एहसान का सौदा,
मतलब के लिए करते है इमान का सौदा,
डर मौत का और खौफ-ऐ-खुदा भूल गए है,
अब मोम पिघल कर कोई पत्थर नही होता,
अब कोई भी कुर्बान किसी पर नही होता,
यू भटकते है मंजिल का पता भूल गए है,
८८.
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुकदर मेरा,
मैं ही कश्ती हूँ मुझी मे है समंदर मेरा,
एक से हो गए मौसम्हो के चेहरे सारे,
मेरी आखो से कही खो गया मंजर मेरा,
किस से पुछु के कहा गुम हूँ कई बरसों से,
हर जगह दुन्द फिरता है मुझे घर मेरा,
मुद्दते हो गई एक खवाब सुन्हेरा देखे,
जागता रहता है हर नींद मे बिस्तर मेरा,
८९.
मुझ में जो कुछ अच्छा है सब उसका है,
मेरा जितना चर्चा है सब उसका है,
उसका मेरा रिश्ता बड़ा पुराना है,
मैंने जो कुछ सोचा है सब उसका है,
मेरे आँखें उसकी नूर से रोशन है,
मैंने जो कुछ देखा है सब उसका है,
मैंने जो कुछ खोया था सब उसका था,
मैंने जो कुछ पाया है सब उसका है,
जितनी बार मैं टूटा हूँ वो टूटा था,
इधर उधर जो बिखरा है सब उसका है,
९०.
आज के दौर में, ऐ दोस्त, ये मंजर क्यूं है,
ज़ख्म हर सर पे, हर इक हाथ में, पत्थर क्यूं है,
जब हकीकत है, के हर ज़र्रे में तू रहता है,
फ़िर ज़मीं पर, कहीं मस्जिद, कहीं मन्दिर क्यूं है,
अपना अंजाम तो मालूम है सबको फिर भी,
अपनी नज़रों में, हर इंसान, सिकंदर क्यूं है,
ज़िंदगी जीने के, काबिल ही नही, अब “फाकिर”,
वरना हर आँख में, अश्कों का, समंदर क्यूं है,
९१.
अपने चेहरे से जो जाहिर है, छुपाये कैसे,
तेरी मरजी के मुताबिक नज़र आए कैसे,
घर सजाने का तसबुर तो बहुत बाद का है,
पहले यह तय हो के इस घर को बचाए कैसे,
कहकहा आंख का बर्ताव बदल देता है,
हँसने वाले तुझे आंसू नज़र आये कैसे,
कोई अपनी ही नज़र से जो हमे देखेगा,
एक कतरे को समंदर नज़र आये कैसे,
९२.
ये क्या जाने में जाना है, जाते हो खफा हो कर,
मैं जब जानूं, मेरे दिल से चले जाओ जुदा हो कर,
क़यामत तक उडेगी दिल से उठकर खाक आंखों तक,
इसी रस्ते गया है हसरतों का काफिला हो कर,
तुम्ही अब दर्द-ऐ-दिल के नाम से घबराए जाते हो,
तुम्ही तो दिल में शायद आए थे दर्द-ऐ-आशियाँ हो कर,
यूंही हमदम घड़ी भर को मिला करते थे बेहतर था,
के दोनों वक्त जैसे रोज़ मिलते हैं जुदा हो कर,
९३.
मय पिलाकर आपका क्या जायेगा,
जायेगा ईमान जिसका जायेगा,
देख कर मुझको वो शरमा जायेगा,
ये तमाशा किस से देखा जायेगा,
जाऊं बुतखाने से क्यूं काबे को मैं,
हाथ से ये भी ठिकाना जायेगा,
क़त्ल की जब उसने दी धमकी मुझे,
कह दिया मैंने भी देखा जायेगा,
पी भी ले दो घूँट जाहिद पी भी ले,
मैक़दे से कौन प्यासा जायेगा,
९४.
है इख्तियार में तेरे तो मोज़दा कर दे,
वो शख्स मेरा नही है उसे मेरा कर दे,
यह रेक्ज़ार कहीं खत्म ही नही होता,
ज़रा सी दूर तो रास्ता हरा भरा कर दे,
मैं उसके शोर को देखूं वो मेरा सब्र-ओ-सुकून,
मुझे चिराग बना दे उसे हवा कर दे,
अकेली शाम बहुत ही उदास करती है,
किसी को भेज, कोई मेरा हमनवा कर दे,
९५.
ये भी क्या एहसान कम है देखिये न आप का,
हो रहा है हर तरफ़ चर्चा हमारा आप का,
चाँद में तो दाग है पर आप में वो भी नही,
चौध्वी के चाँद से बढ़के है चेहरा आप का,
इश्क में ऐसे भी हम डूबे हुए हैं आप के,
अपने चेहरे पे सदा होता है धोखा आप का,
चाँद-सूरज, धुप-सुबह, कहकशा तारे शमा,
हर उजाले ने चुराया है उजाला आप का,
९६.
जब भी तन्हाई से घबरा के सिमट जाते हैं,
हम तेरी याद के दामन से लिपट जाते हैं,
उन पे तूफान को भी अफ़सोस हुआ करता है,
वो सफिने जो किनारों पे उलट जाते हैं,
हम तो आए थे रहें साख में फूलों की तरह,
तुम अगर हार समझते हो तो हट जाते हैं,
९७.
झुकी झुकी सी नज़र बेकरार है के नही,
दबा दबा सा सही दिल में प्यार है के नही,
तू अपने दिल की जवाँ धडकनों को गिन के बता,
मेरी तरह तेरा दिल बेकरार है के नही,
वो पल के जिस में मोहब्बत जवाँ होती है,
उस एक पल का तुझे इंतज़ार है के नही,
तेरी उम्मीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को,
तुझे भी अपने पे ये ऐतबार है के नही,
९८.
मेरे दरवाज़े से अब चाँद को रुकसत कर दो,
साथ आया है तुम्हारे जो तुम्हारे घर से,
अपने माथे से हटा दो ये चमकता हुआ ताज,
फेंक दो जिस्म से किरणों का सुनहरी ज़ेवर,
तुम्ही तन्हा मेरा गम खाने मे आ सकती हो,
एक मुद्दत से तुम्हारे ही लिए रखा है,
मेरे जलते हुए सीने का दहकता हुआ चाँद,
९९.
फिर आज मुझे तुमको बस इतना बताना है,
हँसना ही जीवन है हँसते ही जाना है,
मधुबन हो या गुलशन हो पतझड़ हो या सावन हो,
हर हाल में इन्सां का इक फूल सा जीवन हो,
काँटों में उलझ के भी खुशबू ही लुटाना है,
हँसना ही जीवन है हंसते ही जाना है,
हर पल जो गुज़र जाये दामन को तो भर जाये,
ये सोच के जी लें तो तक़दीर संवर जाये,
इस उम्र की राहों से खुशियों को चुराना है,
हँसना ही जीवन है हँसते ही जाना है,
सब दर्द मिटा दें हम हर ग़म को सज़ा दें हम,
कहते हैं जिसे जीना दुनिया को सिखा दें हम,
ये आज तो अपना है कल भी अपनाना है,
हँसना ही जीवन है हँसते ही जाना है,
१००.
एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी,
ऐसा तो कम ही होता है वो भी हों तनहाई भी,
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं,
कितनी सौंधी लगती है तब माझी की रुसवाई भी,
दो दो शक़्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में,
मेरे साथ चला आया है आप का इक सौदाई भी,
ख़ामोशी का हासिल भी इक लंबी सी ख़ामोशी है,
उन की बात सुनी भी हमने अपनी बात सुनाई भी,
१०१.
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते,
वक़्त की शाख से लम्हे नहीं तोड़ा करते,
जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन,
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते,
शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा,
जानेवालों के लिये दिल नहीं तोड़ा करते,
लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो,
ऐसे दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते,
१.
चाँद से फूल से या मेरी जुबां से सुनिए,
हर तरफ आप का किसा जहां से सुनिए,
सब को आता है दुनिया को सता कर जीना,
ज़िंदगी क्या मुहब्बत की दुआ से सुनिए,
मेरी आवाज़ पर्दा मेरे चहरे का,
मैं हूँ खामोश जहां मुझको वहां से सुनिए,
क्या ज़रूरी है की हर पर्दा उठाया जाए,
मेरे हालात अपने अपने मकान से सुनिए..
२.
तन्हा-तन्हा हम रो लेंगे महफ़िल-महफ़िल गायेंगे,
जब तक आंसू साथ रहेंगे तब तक गीत सुनायेंगे,
तुम जो सोचो वो तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं,
देर न करना घर जाने में वरना घर खो जायेंगे,
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारें छूने दो,
चार किताबे पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे,
किन राहों से दूर है मंजिल कौन सा रास्ता आसान है,
हम जब थक कर रुक जायेंगे, औरों को समझायेंगे,
अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर दिल हों मुमकिन है,
हम तो उस दिन रायें देंगे जिस दिन धोखा खायेंगे..
३.
न शिवाले न कालिस न हरम झूठे हैं,
बस यही सच है के तुम झूठे हो हम झूठे हैं,
हमने देखा ही नहीं बोलते उनको अब तक,
कौन कहता है के पत्थर के सनम झूठे हैं,
उनसे मिलिए तो ख़ुशी होती है उनसे मिलकर,
शहर के दुसरे लोगों से जो कम झूठे हैं,
कुछ तो है बात जो तहरीरों में तासीर नहीं,
झूठे फनकार नहीं हैं तो कलम झूठे हैं..
४.
क्या खबर थी इस तरह से वो जुदा हो जाएगा,
ख्वाब में भी उसका मिलना ख्वाब सा हो जाएगा,
ज़िन्दगी थी क़ैद हम-में क्या निकालोगे उसे,
मौत जब आ जायेगी तो खुद रिहा हो जाएगा,
दोस्त बनकर उसको चाहा ये कभी सोचा न था,
दोस्ती ही दोस्ती में वो खुदा हो जाएगा,
उसका जलवा होगा क्या जिसका के पर्दा नूर है,
जो भी उसको देख लेगा वो फ़िदा हो जाएगा..
५.
खुदा हमको ऐसी खुदाई न दे,
के अपने सिवा कुछ दिखाई न दे,
खतावार समझेगी दुनिया तुझे,
के इतनी जियादा सफाई न दे,
हंसो आज इतना के इस शोर में,
सदा सिसकियों की सुनायी न दे,
अभी तो बदन में लहू है बहुत,
कलम छीन ले रोशनाई न दे,
खुदा ऐसे एहसास का नाम है,
रहे सामने और दिखाई न दे..
६.
कभी यूंह भी आ मेरी आँख में,
के मेरी नज़र को खबर न हो,
मुझे एक रात नवाज़ दे,
मगर उस के बाद सहर न हो,
वोह बड़ा रहीम-ओ-करीम है,
मुझे यह सिफत भी अत करे,
तुझे भूलने की दुआ करू,
तो दुआ में मेरी असर न हो,
कभी दिन की धुप में जहम के,
कभी शब् के फूल को चूम के,
यूंह ही साथ साथ चले सदा,
कभी ख़त्म आपना सफ़र न हो,
मेरे पास मेरे हबीब आ,
जरा और दिल के करीब आ,
तुझे धडकनों में बसा लू में,
के बिचादने का कभी दार न हो..
७.
धुप है क्या और साया क्या है अब मालूम हुआ,
ये सब खेल तमाशा क्या है अब मालूम हुआ,
हँसते फूल का चेहरा देखूं और भर आई आँख,
अपने साथ ये किस्सा क्या है अब मालूम हुआ,
हम बरसों के बाद भी उनको अब तक भूल न पाए,
दिल से उनका रिश्ता क्या है अब मालूम हुआ,
सेहरा सेहरा प्यासे भटके सारी उम्र जले,
बादल का इक टुकड़ा क्या है अब मालूम हुआ..
८.
देखा जो आइना तो मुझे सोचना पड़ा,
खुद से न मिल सका तो मुझे सोचना पड़ा,
उसका जो ख़त मिला तो मुझे सोचना पड़ा,
अपना सा वो लगा तो मुझे सोचना पड़ा,
मुझको था गुमान के मुझी में है एक अना,
देखा तेरी अना तो मुझे सोचना पड़ा,
दुनिया समझ रही थी के नाराज़ मुझसे है,
लेकिन वो जब मिला तो मुझे सोचना पड़ा,
इक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा करार,
जब खुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा..
९.
ऐसे हिज्र के मौसम तब तब आते हैं,
तेरे अलावा याद हमें सब आते हैं,
जादू की आँखों से भी देखो दुनिया को,
ख़्वाबों का क्या है वो हर सब आते हैं,
अब के सफ़र की बात नहीं बाक़ी वरना,
हम को बुलाएं दस्त से जब वो आते हैं,
कागज़ की कस्थी में दरिया पार किया,
देखो हम को क्या क्या करतब आते हैं..
१०.
ना मुहब्बत ना दोस्ती के लिए,
वक़्त रुकता नहीं किसी के लिए,
दिल को अपने सज़ा न दे यूं ही,
सोच ले आज दो घडी के लिए,
हर कोई प्यार ढूढता है यहाँ,
अपनी तन्हा सी ज़िंदगी के लिए,
वक़्त के साथ साथ चलता रहे,
यही बेहतर है आदमी के लिए..
११.
मेरे दरवाज़े से अब चाँद को रुक्सत कर दो,
साथ आया है तुम्हारे जो तुम्हारे घर से,
अपने माथे से हटा दो ये चमकता हुआ ताज,
फेंक दो जिस्म से किरणों का सुनहरी जेवर,
तुम्ही तनहा मेरा ग़म खाने में आ सकती हो,
एक मुद्दत से तुम्हारे ही लिए रखा है,
मेरे जलते हुए सीने का दहकता हुआ चाँद..
१२.
हम तो यूँ अपनी ज़िन्दगी से मिले,
अजनबी जैसे अजनबी से मिले,
हर वफ़ा एक जुर्म हो गया,
दोस्त कुछ ऎसी बेरुखी से मिले,
फूल ही फूल हमने मांगे थे,
दाग ही दाग ज़िंदगी से मिले,
जिस तरह आप हम से मिलते हैं,
आदमी यूँ न आदमी से मिले..
१३.
होंठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो,
बन जाओ मीत मेरे मेरी प्रीत अमर कर दो,
न उम्र की सीमा हो न जनम का हो बंधन,
जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन,
नयी रीत चला कर तुम ये रीत अमर कर दो,
आकाश का सूनापन मेरे तन्हा मन में,
पायल छनकाती तुम आ जाओ जीवन में,
साँसें देकर अपनी संगीत अमर कर दो,
जग ने छीना मुझसे मुझे जो भी लगा प्यारा,
सब जीता किये मुझसे मैं हर दम ही हारा,
तुम हार के दिल अपना मेरी जीत अमर कर दो..
१४.
ये करें और वो करें ऐसा करें वैसा करें,
ज़िन्दगी दो दिन की है दो दिन में हम क्या क्या करें,
जी में आता है की दें परदे से परदे का जवाब,
हम से वो पर्दा करें दुनिया से हम पर्दा करें,
सुन रहा हूँ कुछ लुटेरे आ गये हैं शहर में,
आप जल्दी बांध अपने घर का दरवाजा करें,
इस पुरानी बेवफ़ा दुनिया का रोना कब तलक,
आइये मिलजुल के इक दुनिया नयी पैदा करें..
१५.
मेरे दिल में तू ही तू है दिल की दावा क्या करूँ,
दिल भी तू है जान भी तू है तुझपे फ़िदा क्या करूँ,
खुद को खोके तुझको पाकर क्या क्या मिला क्या कहो,
तेरी होके जीने में क्या आया मज़ा क्या कहूँ,
कैसे दिन हैं कैसी रातें कैसी फिजा क्या कहूँ,
मेरी होके तुने मुझको क्या क्या दिया क्या कहूँ,
मेरे पहलू में जब तू है फिर मैं दुआ क्या करूँ,
दिल भी तू है जान भी तू है तुझपे फ़िदा क्या करूँ,
है ये दुनिया दिल की दुनिया मिलके रहेंगे यहाँ,
लूटेंगे हम खुशियाँ हर पल दुःख न सहेंगे यहाँ,
अरमानो के चंचल धारे ऐसे बहेंगे यहाँ,
ये तो सपनो की जन्नत है सब ही कहेंगे यहाँ,
ये दुनिया मेरे दिल में बसी है दिल से जुदा क्या करूँ,
दिल भी तू है जान भी तू है तुझपे फ़िदा क्या करूँ..
१६.
हमसफ़र बन के हम साथ हैं आज भी,
फिर भी है ये सफ़र अजनबी अजनबी,
राह भी अजनबी मोड़ भी अजनबी,
जाएँ हम किधर अजनबी अजनबी,
ज़िन्दगी हो गयी है सुलगता सफ़र,
दूर तक आ रहा है धुंआ सा नज़र,
जाने किस मोड़ पर खो गयी हर ख़ुशी,
देके दर्द-ऐ-जिगर अजनबी अजनबी,
हमने चुन चुन के तिनके बनाया था जो,
आशियाँ हसरतों से सजाया था जो,
है चमन में वही आशियाँ आज भी,
लग रहा है मगर अजनबी अजनबी,
किसको मालूम था दिन ये भी आयेंगे,
मौसमों की तरह दिल बदल जायेंगे,
दिन हुआ अजनबी रात भी अजनबी,
हर घडी हर पहर अजनबी अजनबी..
१७.
उसकी बातें तो फूल हो जैसे,
बाकि बातें बाबुल हो जैसे,
छोटी छोटी सी उसकी वो आंखे,
दो चमेली के फूल हो जैसे,
उसकी हसकर नज़र झुका लेना,
साडी शर्ते कुबूल हो जैसे,
कितनी दिलकश है उसकी ख़ामोशी,
सारी बातें फिजूल हो जैसे..
१८.
परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता,
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता,
बड़े लोगो से मिलने में हमेशा फासला रखना,
जहा दरिया समंदर से मिला दरिया नहीं रहता,
तुम्हारा शहर तो बिलकुल नए अंदाज़ वालाहाई,
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता,
मोहब्बत एक खुसबू है हमेशा साथ चलती है,
कोई इंसान तन्हाई में भी तनहा नहीं रहता..
१९.
बादल की तरह झूम के लहरा के पियेंगे,
सकी तेरे मएखाने पे हम जा के पियेंगे,
उन मदभरी आखों को भी शर्मा के पियेंगे,
पएमाने को पएमाने से टकरा के पियेंगे,
बादल भी है बादा भी है मीना भी तुम भी,
इतराने का मौसम है अब इतराके पियेंगे,
देखेंगे की आता है किधर से गम-ए-दुनिया,
साकी तुझे हम सामने बैठा के पियेंगे..
२०.
कभी गुंचा कभी शोला कभी शबनम की तरह,
लोग मिलते हैं बदलते हुए मौसम की तरह,
मेरे महबूब मेरे प्यार को इलज़ाम न दे,
हिज्र में ईद मनाई है मुहर्रम की तरह,
मैंने खुशबू की तरह तुझको किया है महसूस,
दिल ने छेड़ा है तेरी याद को शबनम की तरह,
कैसे हमदर्द हो तुम कैसी मसीहाई है,
दिल पे नश्तर भी लगाते हो तो मरहम की तरह..
२१.
कभी तो खुल के बरस अब के मेहरबान की तरह,
मेरा वजूद है जलते हुए मकां की तरह,
मैं इक ख्वाब सही आपकी अमानत हूँ,
मुझे संभाल के रखियेगा जिस्म-ओ-जान की तरह,
कभी तो सोच के वो साक्ष किस कदर था बुलंद,
जो बिछ गया तेरे क़दमों में आसमान की तरह,
बुला रहा है मुझे फिर किसी बदन का बसंत,
गुज़र न जाए ये रूठ भी कहीं खिज़ां की तरह..
२२.
तेरे खुशबु में बसे ख़त मैं जलाता कैसे,
जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाये रखा,
जिनको इक उम्र कलेजे से लगाए रखा,
जिनका हर लफ्ज़ मुझे याद था पानी की तरह ,
याद थे मुझको जो पैगाम-इ-जुबानी की तरह,
मुझ को प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह,
तूने दुनिया की निगाहों से जो बचाकर लिखे ,
सालाहा-साल मेरे नाम बराबर लिखे,
कभी दिन में तोह कभी रात में उठकर लिखे,
तेरे खुशबु में बसे ख़त मैं जलाता कैसे,
प्यार में दूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे,
तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे,
तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ,
आग बहेती हुए पानी में लगा आया हूँ…
२३.
इन्तिहा आज इश्क की कर दी,
आप के नाम ज़िन्दगी कर दी,
था अँधेरा गरीब खाने में,
आप ने आ के रोशनी कर दी,
देने वाले ने उन को हुस्न दिया,
और अता मुझ को आशिकी कर दी,
तुम ने जुल्फों को रुख पे बिखरा कर,
शाम रंगीन और भी कर दी
२४.
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो
पत्थरों में भी ज़ुबां होती है दिल होते हैं
अपने घर के दरोदीवार सजा कर देखो
फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है
वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो
२५.
आँख से दूर न हो दिल से उतर जायेगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जायेगा
इतना मानूस न हो ख़िलवतेग़म से अपनी
तू कभी खुद को भी देखेगा तो ड़र जायेगा
तुम सरेराहेवफ़ा देखते रह जाओगे
और वो बामेरफ़ाक़त से उतर जायेगा
ज़िंदगी तेरी अता है तो ये जानेवाला
तेरी बख़्शिश तेरी दहलीज़ पे धर जायेगा
ड़ूबते ड़ूबते कश्ती को उछाला दे दूँ
मै नहीं कोई तो साहिल पे उतर जायेगा
ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का ‘फ़राज़’
ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जायेगा
२६.
वस्ल की रात तो राहत से बसर होने दो
शाम से ही है ये धमकी के सहर होने दो
जिसने ये दर्द दिया है वो दवा भी देगा
लादवा है जो मेरा दर्द-ए-जिगर होने दो
ज़िक्र रुख़सत का अभी से न करो बैठो भी
जान-ए-मन रात गुज़रने दो सहर होने दो
वस्ल-ए-दुश्मन की ख़बर मुझ से अभी कुछ ना कहो
ठहरो ठहरो मुझे अपनी तो ख़बर होने दो
२७.
हर गोशा गुलिस्तां था कल रात जहां मै था
एक जश्न-ए-बहारां था कल रात जहां मै था
नग़्मे थे हवाओं में जादू था फ़िज़ाओं में
हर साँस ग़ज़लफ़ां था कल रात जहां मै था
दरिया-ए-मोहब्बत में कश्ती थी जवानी की
जज़्बात का तूफ़ां था कल रात जहां मै था
मेहताब था बाहों में जलवे थे निगाहों में
हर सिम्त चराग़ां था कल रात जहां मै था
‘ख़ालिद’ ये हक़ीक़त है नाकर्दा गुनाहों की
मै ख़ूब पशेमां था कल रात जहां मै था
२८.
घर से हम निकले थे मस्जिद की तरफ़ जाने को
रिंद बहका के हमें ले गये मैख़ाने को
ये ज़बां चलती है नासेह के छुरी चलती है
ज़ेबा करने मुझे आय है के समझाने को
आज कुछ और भी पी लूं के सुना है मैने
आते हैं हज़रत-ए-वाइज़ मेरे समझाने को
हट गई आरिज़-ए-रोशन से तुम्हारे जो नक़ाब
रात भर शम्मा से नफ़रत रही दीवाने को
२९.
एक दीवाने को ये आये हैं समझाने कई
पहले मै दीवाना था और अब हैं दीवाने कई
मुझको चुप रहना पड़ा बस आप का मुंह देखकर
वरना महफ़िल में थे मेरे जाने पहचाने कई
एक ही पत्थर लगे है हर इबादतगाह में
गढ़ लिये हैं एक ही बुत के सबने अफ़साने कई
मै वो काशी का मुसलमां हूं के जिसको ऐ ‘नज़ीर’
अपने घेरे में लिये रहते हैं बुतख़ाने कई
३०.
बज़्म-ए-दुश्मन में बुलाते हो ये क्या करते हो
और फिर आँख चुराते हो ये क्या करते हो
बाद मेरे कोई मुझ सा ना मिलेगा तुम को
ख़ाक में किस को मिलाते हो ये क्या करते हो
छींटे पानी के ना दो नींद भरी आँखों पर
सोते फ़ितने को जगाते हो ये क्या करते हो
हम तो देते नहीं क्या ये भी ज़बरदस्ती है
छीन कर दिल लिये जाते हो ये क्या करते हो
हो ना जाये कहीं दामन का छुड़ाना मुश्किल
मुझ को दीवाना बनाते हो ये क्या करते हो
३१.
मिलकर जुदा हुए तो न सोया करेंगे हम,
एक दूसरे की याद में रोया करेंगे हम,
आंसू छलक छलक के सतायेंगे रात भर,
मोती पलक पलक में पिरोया करेंगे हम,
जब दूरियों की याद दिलों को जलायेगी,
जिस्मों को चांदनी में भिगोया करेंगे हम,
गर दे गया दगा हमें तूफ़ान भी ‘क़तील’,
साहिल पे कश्तियों को डुबोया करेंगे हम,
३२.
तेरे खुशबु मे बसे ख़त मैं जलाता कैसे,
जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाये रखा,
जिनको इक उम्र कलेजे से लगाए रखा,
जिनका हर लफ्ज़ मुझे याद था पानी की तरह,
याद थे मुझको जो पैगाम-ऐ-जुबानी की तरह,
मुझ को प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह,
तूने दुनिया की निगाहों से जो बचाकर लिखे,
सालाहा-साल मेरे नाम बराबर लिखे,
कभी दिन में तो कभी रात में उठकर लिखे,
तेरे खुशबु मे बसे ख़त मैं जलाता कैसे,
प्यार मे डूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे,
तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे,
तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ,
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ,
३३.
ऐसी आंखें नही देखी, ऐसा काजल नही देखा,
ऐसा जलवा नही देखा, ऐसा चेहरा नही देखा,
जब ये दामन की हवा ने, आग जंगल में लगा दे,
जब ये शहरो में जाए, रेत में फूल खिलाये,
ऐसी दुनिया नही देखी, ऐसा मंजर नही देखा,
ऐसा आलम नही देखा, ऐसा दिलबर नही देखा,
उस के कंगन का खड़कना, जैसा बुल-बुल का चहकना,
उस की पाजेब की छम-छम, जैसे बरसात का मौसम,
ऐसा सावन नही देखा, ऐसी बारिश नही देखी,
ऐसी रिम-झिम नही देखी, ऐसी खवाइश नही देखी,
उस की बेवक्त की बाते, जैसे सर्दी की हो राते,
उफ़ ये तन्हाई, ये मस्ती, जैसे तूफान में कश्ती,
मीठी कोयल सी है बोली, जैसे गीतों की रंगोली,
सुर्ख गालों पर पसीना, जैसे फागुन का महीना,
३४.
मुझसे मिलने के वो करता था बहाने कितने,
अब गुजारेगा मेरे साथ ज़माने कितने,
मैं गिरा था तो बहुत लोग रुके थे लेकिन,
सोचता हूँ मुझे आए थे उठाने कितने,
जिस तरह मैंने तुझे अपना बना रखा है,
सोचते होंगे यही बात न जाने कितने,
तुम नया ज़ख्म लगाओ तुम्हे इससे क्या है,
भरने वाले है अभी ज़ख्म पुराने कितने,
३५.
हम तो हैं परदेस में देश में निकला होगा चाँद,
अपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चाँद,
जिन आंखों में काजल बनकर तैरी काली रात,
उन आंखों में आंसू का इक कतरा होगा चाँद,
रात ने ऐसा पेच लगाया टूटी हाथ से डोर,
आँगन वाले नीम में जाकर अटका होगा चाँद,
चाँद बिना हर दिन यूँ बीता जैसे युग बीते,
मेरे बिना किस हाल में होगा कैसा होगा चाँद,
३६.
गम मुझे हसरत मुझे वहशत मुझे सौदा मुझे,
एक दिल देकर खुदा ने दे दिया क्या क्या मुझे,
ये नमाज-ऐ-इश्क है कैसा आदाब किसका आदाब,
अपने पाये नाज़ पर करने भी दो सजदा मुझे,
देखते ही देखते दुनिया से मैं उठ जाऊंगा,
देखती ही देखती रह जायेगी दुनिया मुझे
३७.
वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे,
मैं तुझको भूल के जिंदा रहूँ खुदा न करे,
रहेगा साथ तेरा प्यार ज़िंदगी बनकर,
ये और बात मेरी ज़िंदगी वफ़ा न करे,
सुना है उसको मोहब्बत दुआएं देती है,
जो दिल पे चोट तो खाए मगर गिला न करे,
ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई मे,
खुदा किसी को किसी से मगर जुदा न करे,
३८.
अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निछार होता
कोई फ़ितना था क़यामत ना फिर आशकार होता
तेरे दिल पे काश ज़ालिम मुझे इख़्तियार होता
जो तुम्हारी तरह तुम से कोई झूठे वादे करता
तुम्हीं मुन्सिफ़ी से कह दो तुम्हे ऐतबार होता
ग़म-ए-इश्क़ में मज़ा था जो उसे समझ के खाते
ये वो ज़हर है के आखिर मै-ए-ख़ुशगवार होता
ना मज़ा है दुश्मनी में ना ही लुत्फ़ दोस्ती में
कोई ग़ैर ग़ैर होता कोई यार यार होता
ये मज़ा था दिल्लगी का के बराबर आग लगती
ना तुझे क़रार होता ना मुझे क़रार होता
तेरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते
अगर अपनी ज़िंदगी का हमें ऐतबार होता
ये वो दर्द-ए-दिल नहीं है के हो चारासाज़ कोई
अगर एक बार मिटता तो हज़ार बार होता
गए होश तेरे ज़ाहिद जो वो चश्म-ए-मस्त देखी
मुझे क्या उलट ना देता जो ना बादाख़्वार होता
मुझे मानते सब ऐसा के उदूं भी सजदा करते
दर-ए-यार काबा बनता जो मेरा मज़ार होता
तुम्हे नाज़ हो ना क्योंकर के लिया है “दाग़” का दिल
ये रक़म ना हाथ लगती ना ये इफ़्तिख़ार होता
३९.
तुझसे मिलने की सज़ा देंगे तेरे शहर के लोग,
ये वफाओं का सिला देंगे तेरे शहर के लोग,
क्या ख़बर थी तेरे मिलने पे क़यामत होगी,
मुझको दीवाना बना देंगे तेरे शहर के लोग,
तेरी नज़रों से गिराने के लिए जान-ऐ-हया,
मुझको मुजरिम भी बना देंगे तेरे शहर के लोग,
कह के दीवाना मुझे मार रहे हैं पत्थर,
और क्या इसके सिवा देंगे तेरे शहर के लोग,
४०.
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ू न हुई वो सई-ए-क़रम फ़रमा भी गए
इस सई-ए-क़रम का क्या कहिये बहला भी गए तड़पा भी गए
हम अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर ना सके कुछ कह ना सके कुछ सुन ना सके
यां हम ने ज़बां ही खोले थी वां आँख झुकी शरमा भी गए
आशुफ़्तगी-ए-वहशत की क़सम हैरत की क़सम हसरत की क़सम
अब आप कहें कुछ या ना कहें हम राज़-ए-तबस्सुम पा भी गए
रूदाद-ए-ग़म-ए-उल्फ़त उन से हम क्या कहते क्योंकर कहते
एक हर्फ़ ना निकला होठों से और आंख में आंसू आ भी गए
अरबाब-ए-जुनूं पे फ़ुरकत में अब क्या कहिये क्या क्या गुज़रा
आये थे सवाद-ए-उल्फ़त में कुछ खो भी गए कुछ पा भी गए
ये रंग-ए-बहार-ए-आलम है क्या फ़िक़्र है तुझ को ऐ साक़ी
महफ़िल तो तेरी सुनी ना हुई कुछ उठ भी गए कुछ आ भी गए
इस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में इस अंजुमन-ए-इरफ़ानी में
सब जाम-ब-कफ़ बैठे ही रहे हम पी भी गए छलका भी गए
४१.
रात भर दीदा-ए-ग़म नाक में लहराते रहे
सांस की तरह से आप आते रहे जाते रहे
खुश थे हम अपनी तमन्नाओं का ख़्वाब आएगा
अपना अरमान बर-अफ़्गंदा नक़ाब आएगा
नज़रें नीची किये शर्माए हुए आएगा
काकुलें चेहरे पे बिखराए हुए आएगा
आ गई थी दिल-ए-मुज़्तर में शकेबाई सी
बज रही थी मेरे ग़मखाने में शहनाई सी
शब के जागे हुए तारों को भी नींद आने लगी
आप के आने की इक आस थी अब जाने लगी
सुबह ने सेज से उठते हुए ली अंगड़ाई
ओ सबा तू भी जो आई तो अकेले आई
मेरे महबूब मेरी नींद उड़ानेवाले
मेरे मसजूद मेरी रूह पे छानेवाले
आ भी जा ताकि मेरे सजदों का अरमां निकले
४२.
किसी का यूं तो हुआ कौन उम्रभर फिर भी
ये हुस्न-ओ-इश्क़ तो धोखा है सब मगर फिर भी
हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है
नई नई सी है कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी
तेरी निगाह से बचने में उम्र गुज़री है
उतर गया रग-ए-जां में ये नेशतर फिर भी
४३.
इश्क़ के शोले को भड़काओ कि कुछ रात कटे
दिल के अंगारे को दहकाओ कि कुछ रात कटे
हिज्र में मिलने शब-ए-माह के गम आये हैं
चारासाजों को भी बुलवाओ कि रात कटे
कोई जलता ही नहीं कोई पिघलता ही नहीं
मोम बन जाओ पिघल जाओ कि कुछ रात कटे
चश्म-ओ-रुखसार के अज़गार को जारी रखो
प्यार के नग़मे को दोहराओ कि कुछ रात कटे
आज हो जाने दो हर एक को बद्-मस्त-ओ-ख़राब
आज एक एक को पिलवाओ कि कुछ रात कटे
कोह-ए-गम और गराँ और गराँ और गराँ
गमज़दों तेश को चमकाओ कि कुछ रात कटे
४४.
ग़ज़ल का साज़ उठाओ बड़ी उदास है रात
नवा-ए-मीर सुनाओ बड़ी उदास है रात
नवा-ए-दर्द में इक ज़िंदगी तो होती है
नवा-ए-दर्द सुनाओ बड़ी उदास है रात
उदासियों के जो हमराज़-ओ-हमनफ़स थे कभी
उन्हें ना दिल से भुलाओ बड़ी उदास है रात
जो हो सके तो इधर की राह भूल पड़ो
सनमक़दे की हवाओं बड़ी उदास है रात
कहें न तुमसे तो फ़िर और किससे जाके कहें
सियाह ज़ुल्फ़ के सायों बड़ी उदास है रात
अभी तो ज़िक्र-ए-सहर दोस्तों है दूर की बात
अभी तो देखते जाओ बड़ी उदास है रात
दिये रहो यूं ही कुछ देर और हाथ में हाथ
अभी ना पास से जाओ बड़ी उदास है रात
सुना है पहले भी ऐसे में बुझ गये हैं चिराग़
दिलों की ख़ैर मनाओ बड़ी उदास है रात
समेट लो कि बड़े काम की है दौलत-ए-ग़म
इसे यूं ही न गंवाओ बड़ी उदास है रात
इसी खंडहर में कहीं कुछ दिये हैं टूटे हुए
इन्ही से काम चलाओ बड़ी उदास है रात
दोआतिशां न बना दे उसे नवा-ए-’फ़िराक़’
ये साज़-ए-ग़म न सुनाओ बड़ी उदास है रात
४५.
देखना जज़्बे मोहब्बत का असर आज की रात
मेरे शाने पे है उस शोख़ का सर आज की रात
नूर ही नूर है किस सिम्त उठाऊं आँखें
हुस्न ही हुस्न है ता हद-ए-नज़र आज की रात
नग़मा-ओ-मै का ये तूफ़ान-ए-तरब क्या कहना
मेरा घर बन गया ख़ैयाम का घर आज की रात
नर्गिस-ए-नाज़ में वो नींद का हल्क़ा सा ख़ुमार
वो मेरे नग़मा-ए-शीरीं का असर आज की रात
४६.
शहर की रात और मै नाशाद-ओ-नाकारा फिरूं
जगमगाती जागती सड़कों पे आवारा फिरूं
ग़ैर की बस्ती है कब तक दर-ब-दर मारा फिरूं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
झिलमिलाते क़मक़मों की राह में ज़ंजीर सी
रात के हाथों में दिन की मोहनी तस्वीर सी
मेरे सीने पर मगर चलती हुई शमशीर सी
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
ये रुपहली छांव ये आकाश पर तारों का जाल
जैसे सूफ़ी का तसव्वुर जैसे आशिक़ का ख़याल
आह लेकिन कौन समझे कौन जाने जी का हाल
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
फिर वो टूटा एक सितारा फिर वो छूटी फुलझड़ी
जाने किस की गोद में आये ये मोती की लड़ी
हूक सी सीने में उठी चोट सी दिल पर पड़ी
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
रात हंस हंस कर ये कहती है के मैख़ाने में चल
फिर किसी शहनाज़-ए-लालारुख़ के काशाने में चल
ये नहीं मुमकिन तो फिर ऐ दोस्त वीराने में चल
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
हर तरफ़ बिखरी हुईं रंगीनियां रानाइयां
हर क़दम पर इशरतें लेतीं हुईं अंगड़ाइयां
बढ़ रही हैं गोद फैलाये हुए रुसवाइयां
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
रास्ते में रुक के दम ले लूं मेरी आदत नहीं
लौट कर वापस चला जाऊं मेरी फ़ितरत नहीं
और कोई हमनवा मिल जाये ये क़िस्मत नहीं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
मुन्तज़िर है एक तूफ़ान-ए-बला मेरे लिये
अब भी जाने कितने दरवाज़े हैं वा मेरे लिये
पर मुसीबत है मेरा अहद-ए-वफ़ा मेरे लिये
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
जी में आता है कि अब अहद-ए-वफ़ा भी तोड़ दूं
उन को पा सकता हूं मै ये आसरा भी छोड़ दूं
हां मुनासिब है ये ज़ंजीर-ए-हवा भी तोड़ डूं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
इक महल की आड़ से निकला वो पीला माहताब
जैसे मुल्ला का अमामा जैसे बनिये की किताब
जैसे मुफ़लिस की जवानी जैसे बेवा का शबाब
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
दिल में एक शोला भड़क उठा है आखिर क्या करूं
मेरा पैमाना छलक उठा है आखिर क्या करूं
ज़ख़्म सीने का महक उठा है आखिर क्या करूं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
मुफ़लिसी और ये मज़ाहिर हैं नज़र के सामने
सैकड़ों चंगेज़-ओ-नादिर हैं नज़र के सामने
सैकड़ों सुल्तान जाबर हैं नज़र के सामने
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
ले के इक चंगेज़ के हाथों से ख़ंजर तोड़ दूं
ताज पर उस के दमकता है जो पत्थर तोड़ दूं
कोई तोड़े या न तोड़े मै ही बढ़कर तोड़ दूं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
बढ़ के इस् इन्दरसभा का साज़-ओ-सामां फूंक दूं
इस का गुलशन फूंक दूं उस का शबिस्तां फूंक दूं
तख़्त-ए-सुल्तां क्या मै सारा क़स्र-ए-सुल्तां फूंक दूं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
जी में आता है ये मुर्दा चाँद तारे नोच लूं
इस किनारे नोच लूं और उस किनारे नोच लूं
एक दो का ज़िक्र क्या सारे के सारे नोच लूं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
मुझको किस्मत ने बनाय गदले पानी का कंवल
ख़ाक में मिल मिल गये सब आरज़ूओं के महल
क्या खबर थी यूं मेरी तकदीर जायेगी बदल
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
रूठनेवाले के तू मजबूर से रूठेगा क्या
जिस तरह किस्मत ने लूटा यूं कोई लूटेगा क्या
ऐ मेरे टूटे हुए दिल और तू टूटेगा क्या
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूं ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं
४७.
अब अक्सर चुप-चुप से रहे हैं यूं ही कभू लब खोले हैं
पहले “फ़िराक़” को देखा होता अब तो बहुत कम बोले हैं
दिन में हम को देखने वालों अपने अपने हैं औक़ाब
जाओ न तुम इन ख़ुश्क आँखों पर हम रातों को रो ले हैं
फ़ितरत मेरी इश्क़-ओ-मोहब्बत क़िस्मत मेरी तन्हाई
कहने की नौबत ही न आई हम भी कसू के हो ले हैं
बाग़ में वो ख्वाब-आवर आलम मौज-ए-सबा के इशारों पर
ड़ाली ड़ाली नौरस पत्ते सहस सहज जब ड़ोले हैं
उफ़ वो लबों पर मौज-ए-तबस्सुम जैसे करवटें लें कौंदें
हाय वो आलम जुम्बिश-ए-मिज़गां जब फ़ितने पर तोले हैं
इन रातों को हरीम-ए-नाज़ का इक आलम होये है नदीम
खल्वत में वो नर्म उंगलियां बंद-ए-क़बा जब खोले हैं
ग़म का फ़साना सुनने वालों आखिर-ए-शब आराम करो
कल ये कहानी फिर छेड़ेंगे हम भी ज़रा अब सो ले हैं
हम लोग अब तो पराये से हैं कुछ तो बताओ हाल-ए-”फ़िराक़”
अब तो तुम्हीं को प्यार करे हैं अब तो तुम्हीं से बोले हैं
४८.
हिज़ाब-ए-फ़ितना परवर अब उठा लेती तो अच्छा था
खुद अपने हुस्न को परदा बना लेती तो अच्छा था
तेरी नीची नज़र खुद तेरी इस्मत की मुहाफ़िज़ है
तू इस नश्तर की तेजी आजमा लेती तो अच्छा था
तेरे माथे का टीका मर्द की किस्मत का तारा है
अगर तू साज़े-बेदारी उठा लेती तो अच्छा था
तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही खूब है लेकिन
तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था
दिले-मजरूह को मजरूहतर करने से क्या हासिल
तू आँसू पोंछकर अब मुस्कुरा लेती तो अच्छा था
अगर खिलवत मैं तूने सर उठाया भी तो क्या हासिल
भरी महफ़िल मैं आकर सर झुका लेती तो अच्छा था
४९.
इज़्न-ए-खिराम लेते हुये आसमां से हम,
हटकर चले हैं रहगुज़र-ए-कारवां से हम,
क्योंकर हुआ है फ़ाश ज़माने पे क्या कहें,
वो राज़-ए-दिल जो कह न सके राज़दां से हम,
हमदम यही है रहगुज़र-ए-यार-ए-खुश-खिराम,
गुज़रे हैं लाख बार इसी कहकशां से हम,
क्या क्या हुआ है हम से जुनूं में न पूछिये,
उलझे कभी ज़मीं से कभी आसमां से हम,
ठुकरा दिये हैं अक़्ल-ओ-खिराद के सनमकदे,
घबरा चुके हैं कशमकश-ए-इम्तेहां से हम,
बख्शी हैं हम को इश्क़ ने वो जुर्रतें ’मजाज़’,
डरते नहीं सियासत-ए-अहल-ए-जहां से हम,
५०.
तुझ से रुख़सत की वो शाम-ए-अश्क़-अफ़्शां हाए हाए,
वो उदासी वो फ़िज़ा-ए-गिरिया सामां हाए हाए,
यां कफ़-ए-पा चूम लेने की भिंची सी आरज़ू,
वां बगल-गीरी का शरमाया सा अरमां हाए हाए,
वो मेरे होंठों पे कुछ कहने की हसरत वाये शौक़,
वो तेरी आँखों में कुछ सुनने का अरमां हाए हाए,
५१.
तोड़कर अहद-ए-करम नाआशना हो जाइये,
बंदापरवर जाइये अच्छा ख़फ़ा हो जाइये,
राह में मिलिये कभी मुझ से तो अज़राह-ए-सितम,
होंठ अपने काटकर फ़ौरन जुदा हो जाइये,
जी में आता है के उस शोख़-ए-तग़ाफ़ुल केश से,
अब ना मिलिये फिर कभी और बेवफ़ा हो जाइये,
हाये रे बेइख़्तियारी ये तो सब कुछ हो मगर,
उस सरापानाज़ से क्यूंकर ख़फ़ा हो जाइये,
५२.
मुद्दत में वो फिर ताज़ा मुलाक़ात का आलम,
ख़ामोश अदाओं में वो जज़्बात का आलम,
अल्लाह रे वो शिद्दत-ए-जज़्बात का आलम,
कुछ कह के वो भूली हुई हर बात का आलम,
आरिज़ से ढ़लकते हुए शबनम के वो क़तरे,
आँखों से झलकता हुआ बरसात का आलम,
वो नज़रों ही नज़रों में सवालात की दुनिया,
वो आँखों ही आँखों में जवाबात का आलम,
५३.
किस को आती है मसीहाई किसे आवाज़ दूं,
बोल ऐ ख़ूंख़ार तनहाई किसे आवाज़ दूं,
चुप रहूं तो हर नफ़स ड़सता है नागन की तरह,
आह भरने में है रुसवाई किसे आवाज़ दूं,
उफ़ ख़ामोशी की ये आहें दिल को बरमाती हुईं,
उफ़ ये सन्नाटे की शहनाई किसे आवाज़ दूं,
५४.
ऐ वतन मेरे वतन रूह-ए-रवानी-ए-एहराब,
ऐ के ज़र्रों में तेरे बू-ए-चमन रंग-ए-बहार,
रेज़े अल्मास के तेरे खस-ओ-ख़ाशाक़ में हैं,
हड़्ड़ियां अपने बुज़ुर्गों की तेरी ख़ाक में हैं,
तुझ से मुँह मोड़ के मुँह अपना दिखयेंगे कहां,
घर जो छोड़ेंगे तो फिर छांव निछायेंगे कहां,
बज़्म-ए-अग़यार में आराम ये पायेंगे कहां,
तुझ से हम रूठ के जायेंगे तो जायेंगे कहां,
५५.
अब तो उठ सकता नहीं आंखों से बार-ए-इन्तज़ार,
किस तरह काटे कोई लैल-ओ-नहार-ए-इन्तज़ार,
उन की उल्फ़त का यक़ीं हो उन् के आने की उम्मीद,
हों ये दोनों सूरतें तब है बहार-ए-इन्तज़ार,
मेरी आहें नारासा मेरी दुआऐं नाक़ुबूल,
या इलाही क्या करूं मै शर्मसार-ए-इन्तज़ार,
उन के ख़त की आराज़ू है उन के आमद का ख़याल,
किस क़दर फैला हुआ है कारोबार-ए-इन्तज़ार,
५६.
आप को देख कर देखता रह गया,
क्या कहुँ और कहने को क्या रह गया,
आते आते मेरा नाम सा रह गया,
उसके होठों पे कुछ कांपता रह गया,
वो मेरे सामने ही गया और मैं,
रास्ते की त्तरह देखता रह गया,
झूठ वाले कहीं से कहीं बढ गये,
और मैं था के सच बोलता रह गया,
आंधियों के इरादे तो अच्छे ना थे,
ये दिया कैसे जलता रह गया,
५७.
तेरे कदमो पे सर होगा, कजा सर पे खडी होगी,
फिर उस सजदे का क्या कहना अनोखी बन्दगी होगी,
नसीम-ए-सुबह गुनशन में गुलो से खेलती होगी,
किसी की आखरी हिच्चकी किसी की दिल्ल्गी होगी,
दिखा दुँगा सर-ए-महफिल, बता दुँगा सर-ए-महशिल,
वो मेरे दिल में होगें और दुनिया देखती होगी,
मजा आ जायेगा महफ़िल में फ़िर सुनने सुनाने का,
जुबान होगी वहाँ मेरी कहानी आप की होगी,
तुम्हे दानिश्ता महफ़िल में जो देखा हो तो मुजरिम,
नजर आखिर नजर है बेइरादा उठ गई होगी,
५८.
ठुकराओ अब के प्यार करो, मैं नशे मे हुँ,
जो चाहे मेरे यार करो, मैं नशे मे हुँ,
अभी दिला रहा हुँ यकीन-ए-वफ़ा मगर,
मेरा ना एतबार करो, मैं नशे मे हुँ,
गिरने दो तुम मुझे मेरा सागर सम्भाल लो,
इतना तो मेरे यार करो, मैं नशे मे हुँ,
मुझको कदम कदम पे भटकने दो आज दोस्त,
तुम अपना करोबार करो, मैं नशे मे हुँ,
फ़िर बेखुदी में हद से गुजर ने लगा हुँ मैं,
इतना ना मुझ से प्यार करो ,मैं नशे मे हुँ,
५९.
चांद के साथ कई दर्द पुराने निकले,
कितने गम थे जो तेरे गम के बहाने निकले,
फ़सल-ए-गुल आई फ़िर एक बार असीनाने-वफ़ा,
अपने ही खून के दरिया में नहाने निकले,
दिल ने एक ईंट से तामीर किया हसीं ताजमहल,
तुने एक बात कही लाख फसाने निकले,
दश्त-ए-तन्हाई ये हिजरा में खडा सोचता हुँ,
हाय क्या लोग मेरा साथ निभाने निकले,
६०.
तुमने दिल की बात कह दी, आज ये अच्छा हुआ,
हम तुम्हें अपना समझते थे, बढा धोखा हुआ,
जब भी हमने कुछ कहा, उसका असर उल्टा हुआ,
आप शायद भूलते है, बारहा ऎसा हुआ,
आपकी आंखों में ये आंसू कहाँ से आ गये,
हम तो दिवाने है लेकिन आप को ये क्या हुआ,
अब किसी से क्या कहें इकबाल अपनी दास्तां,
बस खुदा का शुक्र है जो भी हुआ अच्छा हुआ,
६१.
मुझे होश नहीं, मुझे होश नहीं,
कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं,
रात के साथ गयी बात , मुझे होश नहीं,
मुझको ये भी नहीं मालुम के जाना है कहाँ,
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं,
जाने क्या टुटा है पैमाना के दिल है मेरा,
बिखरे बिखरे है ख्यालात मुझे होश नहीं,
आंसुओं और शराबो मे गुजर है अब तो,
मैने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं,
६२.
चराग-ए-इश्क, जलाने की रात आयी है,
किसी को अपना बनाने की रात आयी है,
वो आज आये है महफ़िल में चांदनी लेकर,
के रोशनी में नहाने की रात आयी है,
फ़लक का चांद भी शर्मा के मुँह छुपायेगा,
नकाब रुख से उठा ने की रात आयी है,
निगाहें साकी से पेहम के छलक रही है शराब,
पियो के पीने पीलाने की रात आयी है,
६३.
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ू न हुई वो सई-ए-क़रम फ़रमा भी गये,
उस सई-ए-क़रम का क्या कहिये बहला भी गये तड़पा भी गये,
एक अर्ज़-ए-वफ़ा भी कर न सके कुछ कह न सके कुछ सुन न सके,
यहां हम ने ज़बां ही खोले थी वहां आंख झुकी शरमा भी गये,
आशुफ़्तगी-ए-वहशत की क़सम हैरत की क़सम हसरत की क़सम,
अब आप कहे कुछ या न कहे हम राज़-ए-तबस्सुम पा भी गये,
रूदाद-ए-ग़म-ए-उल्फ़त उन से हम क्या कहते क्योंकर कहते,
एक हर्फ़ न निकला होठों से और आंख में आंसू आ भी गये,
अरबाब-ए-जुनूं पे फ़ुर्कत में अब क्या कहिये क्या क्या गुज़रा,
आये थे सवाद-ए-उल्फ़त में कुछ खो भी गये कुछ पा भी गये,
ये रन्ग-ए-बहार-ए-आलम है क्या फ़िक़्र है तुझ को ऐ साक़ी,
महफ़िल तो तेरी सूनी न हुई कुछ उठ भी गये कुछ आ भी गये,
इस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में इस अन्जुमन-ए-इरफ़ानी में,
सब जाम-ब-कफ़ बैठे रहे हम पी भी गये छलका भी गये,
६४.
ज़रा चेहरे से कमली को हटा दो या रसूल-अल्लाह,
हमें भी अपना दीवाना बना दो या रसूल-अल्लाह,
मोहब्बत ग़ैर से मेरी छुड़ा दो या रसूल-अल्लाह,
मेरी सोई हुई क़िस्मत जगा दो या रसूल-अल्लाह,
बड़ी क़िस्मत हमारी है के उम्मत में तुम्हारी हैं,
भरोसा दीन-ओ-दुनिया में तुम्हारा या रसूल-अल्लाह,
अंधेरी कब्र में मुझको अकेला छोड़ जायेंगे,
वहां हो फ़ज़ल से तेरे उजाला या रसूल-अल्लाह,
ख़ुदा मुझको मदीने पे जो पहुँचाये तो बेहतर है,
के रोज़े पर ही दे दूंजां उजाकर या रसूल-अल्लाह,
६५.
तुझे ढ़ूंढ़ता था मैं चारसूं तेरी शान जल्लेजलाल हूं,
तू मिला क़रीब-ए-रग-ए-गुलूं तेरी शान जल्लेजलाल हूं,
तेरी याद में है कली कली है चमन चमन में हुबल अली,
तू बसा है फूल में हू-ब-हू तेरी शान जल्लेजलाल हूं,
तेरे हुक्म से जो हवा चली तो चटक के बोली कली कली,
है करीम तू रहीम तू तेरी शान जल्लेजलाल हूं,
तेरा जलवा दोनों जहां में है तेरा नूर कोनोमकां में है,
यहां तू ही तू वहां तू ही तू तेरी शान जल्लेजलाल हूं,
६६.
तारीफ़ उस ख़ुदा की जिसने जहां बनाया,
कैसी ज़मीं बनाई क्या आसमां बनाया,
मिट्टी से बेल फूटे क्या ख़ुशनुमा उग आये,
पहना के सब्ज़ ख़िल्लत उनको जवां बनाया,
सूरज से हमने पाई गर्मी भी रोशनी भी,
क्या खूब चश्मा तूने ए महरबां बनाया,
हर चीज़ से है उसकी कारीगरी टपकती,
ये कारख़ाना तूने कब रायबां बनाया,
६७.
दुनिया से दिल लगाकर दुनिया से क्या मिलेगा,
याद-ए-ख़ुदा किये जा तुझ को ख़ुदा मिलेगा,
दौलत हो या हुकूमत ताक़त हो या जवानी,
हर चीज़ मिटनेवाली हर चीज़ आनी-जानी,
ये सब ग़ुरूर इक दिन मिट्टी में जा मिलेगा,
आता नहीं पलटकर गुज़रा हुआ ज़माना,
क्या ख़्वाब का भरोसा क्या मौत का ठिकाना,
ये ज़िंदगी गंवाकर क्या फ़ायदा मिलेगा,
६८.
चिराग दिल के जलाओ के ईद का दिन है,
तराने झूम के गाओ के ईद का दिन है,
ग़मों को दिल से भुलाओ के ईद का दिन है,
ख़ुशी से बज़्म सजाओ के ईद का दिन है,
हुज़ूर उस की करो अब सलामती की दुआ,
सर-ए-नमाज़ झुकाओ के ईद का दिन है,
सभी मुरादें हों पूरी हर एक सवाली की,
दुआ को हाथ उठाओ के ईद का दिन है,
६९.
अब तो मेरे खुदा मुझे जलवा दिखाइये,
अपने नमाज़ियों का कहा मान जाइये,
कुछ कह रहे हैं आप से सीने की धड़कनें,
मेरा नहीं तो दिल का कहा मान जाइये,
मै जानता हूं तू बड़ा रहमतनवाज़ है,
सबके दिलों पे रहम का जादू जगाइये,
मुद्दत से तिशनगी है तुम्हारे जमाल की,
नूर-ए-कमाल से ज़रा परदा उठाइये,
७०.
शहरों शहरों आज हैं तन्हा दिल पर गहरा दाग़ लिये,
गलियों गलियों हो गये रुसवा दिल पर गहरा दाग़ लिये,
आज गुलिस्तां में फैली है ख़ुशबू तेरी यादों की,
मौसम-ए-गुल है हम हैं तन्हा दिल पर गहरा दाग़ लिये,
रोते-धोते जी को जलाते मंज़िल-ए-शब तक आ पहुंचे,
चेहरे पर है गर्द-ए-तमन्ना दिल पर गहरा दाग़ लिये,
ढ़ूंढ़ने उन को शहर-ए-बुतां में आज गये थे हम भी “अदीब”,
आँख में लेकर ग़म का दरिया दिल पर गहरा दाग़ लिये,
७१.
ये किसका तसव्वुर है ये किसका फ़साना है,
जो अश्क है आँखों में तस्बीह का दाना है,
आँखों में नमी सी है चुप-चुप से वो बैठे हैं,
नज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है,
ये इश्क़ नहीं आसां इतना तो समझ लीजे,
एक आग का दरिया है और ड़ूब के जाना है,
या वो थे ख़फ़ा हम से या हम थे ख़फ़ा उनसे,
कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है,
७२.
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हे याद हो के न याद हो,
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो के न याद हो,
वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें,
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हे याद हो के न याद हो,
कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी,
तो बयां से पहले ही भूलना तुम्हे याद हो के न याद हो,
जिसे आप गिनते थे आशना जिसे आप कहते थे बावफ़ा,
मै वही हूँ ‘मोमिन’-ए-मुब्तला तुम्हे याद हो के न याद हो,
७६.
मुझे दे रहे हैं तसल्लियां वो हर एक ताज़ा पयाम से,
कभी आके मंज़र-ए-आम पर कभी हट के मंज़र-ए-आम से,
ना ग़रज़ किसी से ना वास्ता मुझे काम अपने ही काम से,
तेरे ज़िक्र से तेरी फ़िक्र से तेरी याद से तेरे नाम से,
मेरे साक़िया मेरे साक़िया तुझे मरहबा तुझे मरहबा,
तू पिलाये जा तू पिलाये जा इसी चश्म-ए-जाम-ब-जाम से,
तेरी सुबह-ओ-ऐश है क्या बला तुझे ऐ फ़लक जो हो हौसला,
कभी कर ले आ के मुक़ाबला ग़म-ए-हिज्र-ए-यार की शाम से,
७७.
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी ना सकूं,
ढ़ूंढ़ने उस को चला हूँ जिसे पा भी ना सकूं,
ड़ाल कर ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल् ने कहा,
कुछ ये मेंहंदी नहीं मेरी के छुपा भी ना सकूं,
ज़ब्त कम्बख़्त ने और आके गला घोंटा है,
के उसे हाल सुनाऊं तो सुना भी ना सकूं,
उस के पहलू में जो ले जाके सुला दूं दिल को,
नींद ऐसी उसे आये के जगा भी ना सकूं,
७८.
जब भी आती है तेरी याद कभी शाम के बाद,
और बढ़ जाती है अफ़्सुर्दादिली शाम के बाद,
अब इरादों पे भरोसा है ना तौबा पे यकीं,
मुझ को ले जाये कहां तशनालबी शाम के बाद,
यूँ तो हर लम्हा तेरी याद का बोझल गुज़रा,
दिल को महसूस हुई तेरी कमी शाम के बाद,
यूँ तो कुछ शाम से पहले भी उदासी थी ‘अदीब’,
अब तो कुछ और बढ़ी दिल की लगी शाम के बाद
७९.
अपना ग़म भूल गये तेरी जफ़ा भूल गये,
हम तो हर बात मोहब्बत के सिवा भूल गये,
हम अकेले ही नहीं प्यार के दीवाने सनम,
आप भी नज़रें झुकाने की अदा भूल गये,
अब तो सोचा है के दामन ही तेरा थामेंगे,
हाथ जब हमने उठाये हैं दुआ भूल गये,
शुक्र समझो या इसे अपनी शिकायत समझो,
तुम ने वो दर्द दिया है के दवा भूल गये,
८०.
अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता,
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता,
ना मज़ा है दुश्मनी में ना है लुत्फ़ दोस्ती में,
कोई ग़ैर ग़ैर होता कोई यार यार होता,
ये मज़ा था दिल्लगी का के बराबर आग लगती,
ना तुम्हे क़रार होता ना हमें क़रार होता,
तेरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते,
अगर अपनी ज़िंदगी का हमें ऐतबार होता,
८१.
आँख को जाम समझ बैठा था अंजाने में,
साक़िया होश कहाँ था तेरे दीवाने में,
जाने किस बात की उनको है शिकायत मुझसे,
नाम तक जिनका नहीं है मेरे अफ़साने में,
दिल के टुकड़ों से तेरी याद की खुशबू ना गई,
बू-ए-मै बाकी है टूटे हुए पैमाने में,
दिल-ए-बरबाद में उम्मीद का आलम क्या है,
टिमटिमाती हुई इक शम्मा है वीराने में,
८२.
रातें थी सूनी सूनी, दिन भी उदास थे मेरे,
तुम मिल गए तो जागे सोये हुए सवेरे,
खामोश इन लबो को एक रागिनी मिली है,
मुरझाये से गुलो को एक ताजगी मिली है,
घेरे हुए थे मुझ को कब से घने अंधेरे,
रूठा हुआ था मुझसे, खुशियों को है तराना,
लगता था जिंदगानी, बन जायेगी फ़साना,
हर सु लगे हुए थे तन्हाइयो के फेरे,
८३.
सुनते है के मिल जाती है हर चीज़ दुआ से,
एक रोज़ तुझे मांग के देखेगे खुदा से,
दुनिया भी मिली है, गम-ऐ-दुनिया भी मिला है,
वो क्यों नही मिलता जिसे माँगा था खुदा से,
ए दिल तुम उन्हें देख के कुछ ऐसे तड़पना,
आ जाए हँसी उनको बैठे है खफा से,
जब कुछ न मिला हाथ दुआ को उठा कर,
फिर हाथ उठाने ही पड़े हमको दुआ से,
८४.
बड़ी नाजुक है ये मंजिल, मोहब्बत का सफर है,
धड़क आहिस्ता से ए दिल, मोहब्बत का सफर है,
कोई सुन ले न ये किस्सा, बहुत डर लगता है,
मगर डरने से क्या हासिल, मोहब्बत का सफर है,
बताना भी नही आसान, छुपाना भी कठिन है,
खुदा अक्सर कदर मुश्किल, मोहब्बत का सफर है,
उजाले दिल के फैले है, चले आओ न जानम,
बहुत ही प्यार के काबिल, मोहब्बत का सफर है,
८५.
अब खुशी है न कोई गम रुलाने वाला,
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला,
उसको रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था,
सारा घर ले गया, घर छोड़ के जाने वाला,
इक मुसाफिर के सफर जैसी है सबकी दुनिया,
कोई जल्दी में कोई देर से जाने वाला,
एक बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा-चेहरा,
जिस तरफ़ देखिये आने को है आने वाला,
८६.
उठा सुराही ले शीशा-ओ-जाम साकी,
फिर इसके बाद खुदा का भी नाम ले साकी,
फिर इसके बाद हमे तिशनगी रहे न रहे,
कुछ और देर मुरवत से काम ले साकी,
फिर इसके बाद जो होगा वो देखा जाएगा,
अभी तो पीने पिलाने से काम ले साकी,
तेरे हजूर में होश-ओ-खिरद से क्या हासिल,
नही है मए तो निगाहों से काम ले साकी,
८७.
हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए है,
जिंदा तो है जीने की अदा भूल गए है,
हम दोस्ती एहसान वफ़ा भूल गए है,
खुशबु जो लुटाती है मसलती है उसी को,
एहसान का बदला यही मिलता है कली को,
एहसान तो लेते है सिला भूल गए है,
करते है मोहब्बत का और एहसान का सौदा,
मतलब के लिए करते है इमान का सौदा,
डर मौत का और खौफ-ऐ-खुदा भूल गए है,
अब मोम पिघल कर कोई पत्थर नही होता,
अब कोई भी कुर्बान किसी पर नही होता,
यू भटकते है मंजिल का पता भूल गए है,
८८.
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुकदर मेरा,
मैं ही कश्ती हूँ मुझी मे है समंदर मेरा,
एक से हो गए मौसम्हो के चेहरे सारे,
मेरी आखो से कही खो गया मंजर मेरा,
किस से पुछु के कहा गुम हूँ कई बरसों से,
हर जगह दुन्द फिरता है मुझे घर मेरा,
मुद्दते हो गई एक खवाब सुन्हेरा देखे,
जागता रहता है हर नींद मे बिस्तर मेरा,
८९.
मुझ में जो कुछ अच्छा है सब उसका है,
मेरा जितना चर्चा है सब उसका है,
उसका मेरा रिश्ता बड़ा पुराना है,
मैंने जो कुछ सोचा है सब उसका है,
मेरे आँखें उसकी नूर से रोशन है,
मैंने जो कुछ देखा है सब उसका है,
मैंने जो कुछ खोया था सब उसका था,
मैंने जो कुछ पाया है सब उसका है,
जितनी बार मैं टूटा हूँ वो टूटा था,
इधर उधर जो बिखरा है सब उसका है,
९०.
आज के दौर में, ऐ दोस्त, ये मंजर क्यूं है,
ज़ख्म हर सर पे, हर इक हाथ में, पत्थर क्यूं है,
जब हकीकत है, के हर ज़र्रे में तू रहता है,
फ़िर ज़मीं पर, कहीं मस्जिद, कहीं मन्दिर क्यूं है,
अपना अंजाम तो मालूम है सबको फिर भी,
अपनी नज़रों में, हर इंसान, सिकंदर क्यूं है,
ज़िंदगी जीने के, काबिल ही नही, अब “फाकिर”,
वरना हर आँख में, अश्कों का, समंदर क्यूं है,
९१.
अपने चेहरे से जो जाहिर है, छुपाये कैसे,
तेरी मरजी के मुताबिक नज़र आए कैसे,
घर सजाने का तसबुर तो बहुत बाद का है,
पहले यह तय हो के इस घर को बचाए कैसे,
कहकहा आंख का बर्ताव बदल देता है,
हँसने वाले तुझे आंसू नज़र आये कैसे,
कोई अपनी ही नज़र से जो हमे देखेगा,
एक कतरे को समंदर नज़र आये कैसे,
९२.
ये क्या जाने में जाना है, जाते हो खफा हो कर,
मैं जब जानूं, मेरे दिल से चले जाओ जुदा हो कर,
क़यामत तक उडेगी दिल से उठकर खाक आंखों तक,
इसी रस्ते गया है हसरतों का काफिला हो कर,
तुम्ही अब दर्द-ऐ-दिल के नाम से घबराए जाते हो,
तुम्ही तो दिल में शायद आए थे दर्द-ऐ-आशियाँ हो कर,
यूंही हमदम घड़ी भर को मिला करते थे बेहतर था,
के दोनों वक्त जैसे रोज़ मिलते हैं जुदा हो कर,
९३.
मय पिलाकर आपका क्या जायेगा,
जायेगा ईमान जिसका जायेगा,
देख कर मुझको वो शरमा जायेगा,
ये तमाशा किस से देखा जायेगा,
जाऊं बुतखाने से क्यूं काबे को मैं,
हाथ से ये भी ठिकाना जायेगा,
क़त्ल की जब उसने दी धमकी मुझे,
कह दिया मैंने भी देखा जायेगा,
पी भी ले दो घूँट जाहिद पी भी ले,
मैक़दे से कौन प्यासा जायेगा,
९४.
है इख्तियार में तेरे तो मोज़दा कर दे,
वो शख्स मेरा नही है उसे मेरा कर दे,
यह रेक्ज़ार कहीं खत्म ही नही होता,
ज़रा सी दूर तो रास्ता हरा भरा कर दे,
मैं उसके शोर को देखूं वो मेरा सब्र-ओ-सुकून,
मुझे चिराग बना दे उसे हवा कर दे,
अकेली शाम बहुत ही उदास करती है,
किसी को भेज, कोई मेरा हमनवा कर दे,
९५.
ये भी क्या एहसान कम है देखिये न आप का,
हो रहा है हर तरफ़ चर्चा हमारा आप का,
चाँद में तो दाग है पर आप में वो भी नही,
चौध्वी के चाँद से बढ़के है चेहरा आप का,
इश्क में ऐसे भी हम डूबे हुए हैं आप के,
अपने चेहरे पे सदा होता है धोखा आप का,
चाँद-सूरज, धुप-सुबह, कहकशा तारे शमा,
हर उजाले ने चुराया है उजाला आप का,
९६.
जब भी तन्हाई से घबरा के सिमट जाते हैं,
हम तेरी याद के दामन से लिपट जाते हैं,
उन पे तूफान को भी अफ़सोस हुआ करता है,
वो सफिने जो किनारों पे उलट जाते हैं,
हम तो आए थे रहें साख में फूलों की तरह,
तुम अगर हार समझते हो तो हट जाते हैं,
९७.
झुकी झुकी सी नज़र बेकरार है के नही,
दबा दबा सा सही दिल में प्यार है के नही,
तू अपने दिल की जवाँ धडकनों को गिन के बता,
मेरी तरह तेरा दिल बेकरार है के नही,
वो पल के जिस में मोहब्बत जवाँ होती है,
उस एक पल का तुझे इंतज़ार है के नही,
तेरी उम्मीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को,
तुझे भी अपने पे ये ऐतबार है के नही,
९८.
मेरे दरवाज़े से अब चाँद को रुकसत कर दो,
साथ आया है तुम्हारे जो तुम्हारे घर से,
अपने माथे से हटा दो ये चमकता हुआ ताज,
फेंक दो जिस्म से किरणों का सुनहरी ज़ेवर,
तुम्ही तन्हा मेरा गम खाने मे आ सकती हो,
एक मुद्दत से तुम्हारे ही लिए रखा है,
मेरे जलते हुए सीने का दहकता हुआ चाँद,
९९.
फिर आज मुझे तुमको बस इतना बताना है,
हँसना ही जीवन है हँसते ही जाना है,
मधुबन हो या गुलशन हो पतझड़ हो या सावन हो,
हर हाल में इन्सां का इक फूल सा जीवन हो,
काँटों में उलझ के भी खुशबू ही लुटाना है,
हँसना ही जीवन है हंसते ही जाना है,
हर पल जो गुज़र जाये दामन को तो भर जाये,
ये सोच के जी लें तो तक़दीर संवर जाये,
इस उम्र की राहों से खुशियों को चुराना है,
हँसना ही जीवन है हँसते ही जाना है,
सब दर्द मिटा दें हम हर ग़म को सज़ा दें हम,
कहते हैं जिसे जीना दुनिया को सिखा दें हम,
ये आज तो अपना है कल भी अपनाना है,
हँसना ही जीवन है हँसते ही जाना है,
१००.
एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी,
ऐसा तो कम ही होता है वो भी हों तनहाई भी,
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं,
कितनी सौंधी लगती है तब माझी की रुसवाई भी,
दो दो शक़्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में,
मेरे साथ चला आया है आप का इक सौदाई भी,
ख़ामोशी का हासिल भी इक लंबी सी ख़ामोशी है,
उन की बात सुनी भी हमने अपनी बात सुनाई भी,
१०१.
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते,
वक़्त की शाख से लम्हे नहीं तोड़ा करते,
जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन,
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते,
शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा,
जानेवालों के लिये दिल नहीं तोड़ा करते,
लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो,
ऐसे दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते,