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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

गोपालदास नीरज

जन्म: 4 जनवरी 1925 ,ग्राम: पुरावली, जिला इटावा, उत्तर प्रदेश,2007 में पद्म भूषण सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित.
प्रमुख कृतियाँ: दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरी,गीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की गीतीकाएँ, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी, बादलों से सलाम लेता हूँ, कुछ दोहे नीरज के,कारवां गुजर गया
१.
दूर से दूर तलक एक भी दरख़्त न था
तुम्हारे घर का सफ़र इस क़दर तो सख़्त न था

इतने मसरूफ़ थे हम जाने की तैयारी में
खड़े थे तुम और तुम्हें देखने का वक़्त क था

मैं जिसकी खोज में ख़ुद खो गया था मेले में
कहीं वो मेरा ही एहसास तो कमबख़्त न था

जो ज़ुल्म सह के भी चुप रह गया न ख़ौल उठा
वो और कुछ हो मगर आदमी का रक्त न था

उन्हीं फ़क़ीरों ने इतिहास बनाया है यहाँ
जिनपे इतिहास को लिखने के लिये वक़्त न था

शराब कर के पिया उस ने ज़हर जीवन भर
हमारे शहर में 'नीरज'-सा कोई मस्त न था

२.
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए।

जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए।

आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी
कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए।

प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए
हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए।

मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए।

जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे
मेरा आँसु तेरी पलकों से उठाया जाए।

गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी
ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए।


३. 
जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला,
मेरे स्वागत को हर एक जेब से खंजर निकला ।

तितलियों फूलों का लगता था जहाँ पर मेला,
प्यार का गाँव वो बारूद का दफ़्तर निकला ।

डूब कर जिसमे उबर पाया न मैं जीवन भर,
एक आँसू का वो कतरा तो समुंदर निकला ।

मेरे होठों पे दुआ उसकी जुबाँ पे ग़ाली,
जिसके अन्दर जो छुपा था वही बाहर निकला ।

ज़िंदगी भर मैं जिसे देख कर इतराता रहा,
मेरा सब रूप वो मिट्टी की धरोहर निकला ।

वो तेरे द्वार पे हर रोज़ ही आया लेकिन,
नींद टूटी तेरी जब हाथ से अवसर निकला ।

रूखी रोटी भी सदा बाँट के जिसने खाई,
वो भिखारी तो शहंशाहों से बढ़ कर निकला ।

क्या अजब है इंसान का दिल भी 'नीरज'
मोम निकला ये कभी तो कभी पत्थर निकला ।