" हिन्दी काव्य संकलन में आपका स्वागत है "


"इसे समृद्ध करने में अपना सहयोग दें"

सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
हिन्दी काव्य संकलन में उपल्ब्ध सभी रचनायें उन सभी रचनाकारों/ कवियों के नाम से ही प्रकाशित की गयी है। मेरा यह प्रयास सभी रचनाकारों को अधिक प्रसिद्धि प्रदान करना है न की अपनी। इन महान साहित्यकारों की कृतियाँ अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाना ही इस ब्लॉग का मुख्य उद्देश्य है। यदि किसी रचनाकार अथवा वैध स्वामित्व वाले व्यक्ति को "हिन्दी काव्य संकलन" के किसी रचना से कोई आपत्ति हो या कोई सलाह हो तो वह हमें मेल कर सकते हैं। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जायेगी। यदि आप अपने किसी भी रचना को इस पृष्ठ पर प्रकाशित कराना चाहते हों तो आपका स्वागत है। आप अपनी रचनाओं को मेरे दिए हुए पते पर अपने संक्षिप्त परिचय के साथ भेज सकते है या लिंक्स दे सकते हैं। इस ब्लॉग के निरंतर समृद्ध करने और त्रुटिरहित बनाने में सहयोग की अपेक्षा है। आशा है मेरा यह प्रयास पाठकों के लिए लाभकारी होगा.(rajendra651@gmail.com)

फ़ॉलोअर

मंगलवार, 12 मार्च 2013

माजिद अल-बाक़री



१.

क्या ज़माना आ गया है दोस्त भी दुश्मन लगे।
जिस्म, दिल की आँख से देखो तो इक मद्फ़न लगे।
छाँव में अपने ही कपडों के बदन जलता रहा,
चारपाई घर लगे और पायंती आँगन लगे।
बे-मआनी लफ्ज़ की कसरत है हर तहरीर में,
मसअला जो भी है, इक बढ़ती हुई उलझन लगे।
कोरे कागज़ पर लकीरों के घने जंगल तो हैं,
आज का लिखा हुआ कल के लिए ईंधन लगे।
ज़हन में उगते हैं अब बेफस्ल चेहरों के गुलाब,
जो भी सूरत सामने आती है, इक चिलमन लगे।
बस्तियों को तोड़ देता है घरौंदों की तरह,
ये बुढापा भी मुझे इंसान का बचपन लगे।
छुपके जब साया जड़ों में बैठ जाए पेड़ की,
उजड़ी-उजड़ी डालियों का सिलसिला गुलशन लगे।
धूप में बे-बर्ग माजिद हो गई शाखे-सदा,
वो उमस है जून की गर्मी में भी सावन लगे।