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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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शुक्रवार, 15 मार्च 2013

सहर अंसारी



१.

महसूस क्यों न हो मुझे बेगानगी बहोत।
मैं भी तो इस दयार में हूँ अजनबी बहोत।
आसाँ नहीं है कश्मकशे-ज़ात का सफ़र,
है आगही के बाद गमे-आगही बहोत।
हर शख्स पुर-खुलूस है, हर शख्स बा-वफ़ा,
आती है अपनी सादा-दिली पर हँसी बहोत।
उस जाने-जां से क़तअ-तअल्लुक़ के बावजूद,
मैं ने भी की है शहर में आवारगी बहोत।
मस्ताना-वार वादिए-गम तै करो 'सहर',
बाक़ी हैं ज़िन्दगी के तक़ाज़े अभी बहोत।