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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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गुरुवार, 28 मार्च 2013

नूर बिजनौरी



१.

दिल के सहरा में कोई आस का जुगनू भी नहीं।
इतना रोया हूँ कि अब आँख में आंसू भी नहीं।

इतनी बेरहम न थी ज़ीस्त की दोपह्र कभी,
इन खराबों में कोई सायए-गेसू भी नहीं।

कासए-दर्द लिए फिरती है गुलशन की हवा,
मेरे दामन में तेरे प्यार की खुशबू भी नहीं।

छिन गया मेरी निगाहों से भी एहसासे-जमाल,
तेरी तस्वीर में पहला सा वो जादू भी नहीं।

मौज-दर-मौज तेरे गम की शफ़क़ खिलती है,
मुझको इस सिलसिलाए-रंग पे काबू भी नहीं।

दिल वो कम्बख्त कि धड़के ही चला जाता है,
ये अलग बात कि तू ज़ीनते-पहलू भी नहीं।

हादसा ये भी गुज़रता है मेर जाँ हम पर,
पैकरे-संग हैं दो, मैं भी नहीं, तू भी नहीं।
2.

किसी की याद के जुगनू भी खो गये अब तो
अब इन उजाड़ घने जंगलों से भाग चलो

बला का शोर है लम्हात की रवानी में
कोई गुज़रते हुए वक़्त को ज़रा रोको

वो आंधियां हैं कि दिल कांप-कांप जाता है
मिरे उदास ख़यालो किवाड़ मत खोलो

यही है दश्ते-वफ़ा के मुसाफ़िरों का चलन
जो चल सको तो बगूलों के साथ-साथ चलो

धुआं-धुआं रही बरसों निगाहो-दिल की फ़ज़ा
भड़क-भड़क के बुझा शोला-ए-जुनूं यारो

तमाम रात जो लड़ता रहा घटाओं से
अरे वो आख़िरी तारा भी छुप गया देखो