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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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शुक्रवार, 22 मार्च 2013

आदीब सहारनपुरी.


१.

इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया

जान कर हम ने उन्हें नामेहरबाँ रहने दिया

 
कितनी दीवारों के साये हाथ फैलाते रहे

इश्क़ ने लेकिन हमें बेख़्वानमाँ रहने दिया
 

अपने अपने हौसले अपनी तलब की बात है

चुन लिया हम्ने उन्हें सारा जहाँ रहने दिया

 
ये भी क्या जीने में जीना है बग़ैर उन के "आदीब"

शम गुल कर दी गई बाक़ी धुआँ रहने दिया