१.
इक ख़लिश को
हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया
जान कर हम ने उन्हें
नामेहरबाँ रहने दिया
कितनी दीवारों के साये
हाथ फैलाते रहे
इश्क़ ने लेकिन हमें
बेख़्वानमाँ रहने दिया
अपने अपने हौसले अपनी तलब
की बात है
चुन लिया हम्ने उन्हें
सारा जहाँ रहने दिया
शम गुल कर दी गई बाक़ी
धुआँ रहने दिया