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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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सोमवार, 29 अप्रैल 2013

साक़ी फ़ारूक़ी



१.

वो लोग जो ज़िन्दा हैं, वो मर जायेंगे इक दिन।
दुनिया के मुसाफ़िर हैं, गुज़र जायेंगे इक दिन।
सीने में उमंगें हैं, निगाहों में उजाले,
लगता है कि हालात संवर जायेंगे इक दिन।
दिल आज भी जलता है उसी तेज़ हवा में,
पत्तों की तरह हम भी बिखर जायेंगे इक दिन।
सच है कि तआकुब में है आसाइशे-दुनिया,
सच है कि मुहब्बत से मुकर जायेंगे इक दिन।
यूँ होगा कि इन आंखों से आंसू न बहेंगे,
ये चाँद सितारे भी ठहर जायेंगे इक दिन।
अब घर भी नहीं, घर की तमन्ना भी नहीं है,
मुद्दत हुई सोचा था कि घर जायेंगे इक दिन।