नोशी गिलानी का जन्म 1964 में बहावलपुर पाकिस्तान
1.
महताब रुतें आयें, तो क्या-क्या नहीं करतीं
इस उम्र में तो लड़कियां सोया नहीं करतीं
किस्मत जिन्हें का दे शबे-ज़ुल्मत के हवाले
आँचल वो किसी नाम का ओढा नहीं करतीं
कुछ लड़कियां अंजामे-नज़र होते हुए भी
जब घर से निकलती हैं तो सोचा नहीं करतीं
यां प्यास का इज़हार मलामत है गुनह है,
फूलों से कभी तितलियाँ पूछा नहीं करतीं
जो लड़कियां तारीक मुक़द्दर हों, कभी भी
रातों को दिए घर में जलाया नहीं करतीं.
2.
तुमने तो कह दिया कि मुहब्बत नहीं मिली
मुझको तो ये भी कहने की मुहलत नहीं मिली
नींदों के देस जाते, कोई ख्वाब देखते
लेकिन दिया जलने से फुर्सत नहीं मिली
तुझको तो खैर शहर के लोगों का खौफ था
मुझको ख़ुद अपने घर से इजाज़त नहीं मिली
बेजार यूँ हुए कि तेरे उह्द में हमें
सब कुछ मिला सुकून की दौलत नहीं मिली
3.
कोई मुझको मेरा भरपूर सरापा लादे.
मेरे बाजू, मेरी आँखें, मेरा चेहरा लादे
कुछ नहीं चाहिए तुझ से ऐ मेरी उम्रे-रवां
मेरा बचपन, मेरे जुगनू, मेरी गुडिया लादे.
जिसकी आँखें मुझे अन्दर से भी पढ़ सकती हों
कोई चेहरा तू मेरे शह्र में ऐसा लादे
कश्तीए-जां तो भंवर में है कई बरसों से
या खुदा अब तू डुबो दे या किनारा लादे
4.
अब किस से कहें और कौन सुने जो हाल तुम्हारे बाद हुआ
इस दिल की झील सी आँखों में इक ख़्वाब बहुत बर्बाद हुआ
ये हिज्र-हवा भी दुश्मन है इस नाम के सारे रंगों की
वो नाम जो मेरे होंटों पे ख़ुशबू की तरह आबाद हुआ
उस शहर में कितने चेहरे थे कुछ याद नहीं सब भूल गए
इक शख़्स किताबों जैसा था वो शख़्स ज़बानी याद हुआ
वो अपने गाँव की गलियाँ थी दिल जिन में नाचता गाता था
अब इस से फ़र्क नहीं पड़ता नाशाद हुआ या शाद हुआ
बेनाम सताइश रहती थी इन गहरी साँवली आँखों में
ऐसा तो कभी सोचा भी न था अब जितना बेदाद हुआ
5.
ये नाम मुमकिन रहेगा मक़ाम मुमकिन नहीं रहेगा
ग़ुरूर लहजे में आ गया तो कलाम मुमकिन नहीं रहेगा
ये बर्फ़-मौसम जो शहर-ए-जाँ में कुछ और लम्हे ठहर गया तो
लहू का दिल की किसी गली में क़याम मुमकिन नहीं रहेगा
तुम अपनी साँसों से मेरी साँसे अलग तो करने लगे हो लेकिन
जो काम आसाँ समझ रहे हो वो काम मुमकिन नहीं रहेगा
वफ़ा का काग़ज़ तो भीग जाएगा बद-गुमानी की बारिशों में
ख़तों की बातें ख़्वाब होंगी पयाम मुमकिन नहीं रहेगा
ये हम मोहब्बत में ला-तअल्लुक़ से हो रहे हैं तू देख लेना
दुआएँ तो ख़ैर कौन देगा सलाम मुमकिन नहीं रहेगा
6.
तुझ से अब और मोहब्बत नहीं की जा सकती
ख़ुद को इतनी भी अज़िय्यत नहीं दी जा सकती
जानते हैं कि यक़ीं टूट रहा है दिल पर
फिर भी अब तर्क ये वहशत नहीं की जा सकती
हब्स का शहर है और उस में किसी भी सूरत
साँस लेने की सहूलत नहीं दी जा सकती
रौशनी के लिए दरवाज़ा खुला रखना है
शब से अब कोई इजाज़त नहीं ली जा सकती
इश्क़ ने हिज्र का आज़ार तो दे रक्खा है
इस से बढ़ कर तो रिआयत नहीं दी जा सकती
7.
ना कोई ख्वाब ना कोई सहेली थी...
इस मोहब्बत में, मैं अकेली थी...
इश्क़ में तुम कहाँ के सच्चे थे...
जो अज़ीयत थी हम ने झेली थी...
याद अब कुछ नहीं रहा लेकिन...
एक दरिया था या हवेली थी...
जिस ने उलझा के रख दिया दिल को...
वो मुहब्बत थी या पहेली थी...
मैं ज़रा सी भी कम वफ़ा करती
तुम ने तो मेरी जान ले ली थी...
वक़्त के साँप खा गये उस को...
मेरे आँगन में ऐक चमेली थी...
इस शब-ए-गम में किस को बतलाऊं...
कितनी रोशन मेरी हथेली थी