१.
नावक-अंदाज़ जिधर दीदए-जानां होंगे।
नीम बिस्मिल कई होंगे, कई बेजाँ होंगे।
ताबे-नज़्ज़ारा नहीं आइना क्या देखने दूँ,
और बन जायेंगे तस्वीर जो हैराँ होंगे।
तू कहाँ जायेगी कुछ अपना ठिकाना कर ले,
हम तो कल ख्वाबे अदम में शबे-हिज्राँ होंगे।
फिर बहार आई वही दश्त -नवर्दी होगी,
फिर वही पाँव वही खारे-मुगीलाँ होंगे।
नासिहा दिल में तू इतना तो समझ अपने कि हम,
लाख नादाँ हुए क्या तुझसे भी नादाँ होंगे।
एक हम है कि हुए ऐसे पशेमान कि बस,
एक वो हैं कि जिन्हें चाह के अरमाँ होंगे।
उम्र तो सारी कटी इश्के-बुताँ में'मोमिन,'
आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे।
२.
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो के न याद हो वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो के न याद हो
वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो के न याद हो
कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो के न याद हो
सुनो ज़िक्र है कई साल का, कोई वादा मुझ से था आप का वो निबाहने का तो ज़िक्र क्या, तुम्हें याद हो के न याद हो
कभी हम में तुम में भी चाह थी, कभी हम से तुम से भी राह थी कभी हम भी तुम भी थे आश्ना, तुम्हें याद हो के न याद हो
हुए इत्तेफ़ाक़ से गर बहम, वो वफ़ा जताने को दम-ब-दम गिला-ए-मलामत-ए-अर्क़बा, तुम्हें याद हो के न याद हो
वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेश्तर, वो करम के हाथ मेरे
हाथ पर मुझे सब हैं याद ज़रा ज़रा, तुम्हें याद नो कि न याद हो
कभी बैठे सब हैं जो रू-ब-रू तो इशारतों ही से गुफ़्तगू वो बयान शौक़ का बरमला तुम्हें याद हो कि न याद हो
वो बिगड़ना वस्ल की रात का, वो न मानना किसी बात का वो नहीइं नहीं की हर आन अदा, तुम्हें याद हो कि न याद हो
जिसे आप गिन्ते थे आश्ना जिसे आप कहते थे बावफ़ा मैं वही हूँ "मोमिन"-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो के न याद हो
३.
ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम पर क्या करे के हो गये लाचार जी से हम
हम से न बोलो तुम इसे क्या कहते हैं भला इन्साफ़ कीजे पूछते हैं आप ही से हम
क्या गुल खिलेगा देखिये है फ़स्ल-ए-गुल तो दूर और सू-ए-दश्त भागते हैं कुछ अभी से हम
क्या दिल को ले गया कोई बेगाना आश्ना क्यूँ अपने जी को लगते हैं कुछ अजनबी से हम
४.
शब तुम जो बज़्म-ए-ग़ैर में आँखें चुरा गये
खोये गये हम ऐसे के अग़्यार पा गये
मजलिस में उस ने पान दिया अपने हाथ से अग़्यार सब्ज़ बख़्त थे हम ज़हर खा गये
ग़ैरों से हो वो पर्दानशीं क्यों न बेहिजाब दम हाय बे-असर मेरे पर्दा उठा गये
वाइज़ के ज़िक्र-ए-मेहर-ए-क़यामत को क्या कहूँ आलम शब-ए-वस्ल के आँखों में छा गये
दुनिया ही से गया मैं जो नहीं नाज़ से कहा अब भी गुमान-ए-बद न गये तेरे या गये
ऐ "मोमिन" आप कब से हुए बंदा-ए-बुताँ बारे हमारे ??? में हज़रत भी आ गये .
५.
रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह अटका कहीं जो आप का दिल भी मेरी तरह
ना ताब हिज्र में है ना आराम वस्ल में कमबख़्त दिल को चैन नहीं है किसी तरह
गर चुप रहें तो ग़म-ए-हिज्राँ से छूट जायेँ कहते तो हैं भले की वो लेकिन बुरी तरह
न जाये वाँ बने है न बिन जाये चैन है क्या कीजिये हमें तो है मुश्किल सभी तरह
लगती हैं गालियाँ भी तेरी मुझे क्या भली क़ुरबान तेरे, फिर मुझे कह ले इसी तरह
हूँ जाँबलब बुतान-ए-सितमगर के हाथ से
क्या सब जहाँ में जीते हैं "मोमिन" इसी तरह
६.
नावक अंदाज़ जिधर दीदा-ए-जानाँ होंगे
नीम-बिस्मिल कई होंगे कई बेजाँ होंगे
ताब-ए-नज़ारा नहीं आईना क्या देखने दूँ
और बन जायेंगे तस्वीर जो हैराँ होंगे
तू कहाँ जायेगी कुछ अपना ठिकाना कर ले
हम तो कल ख़्वाब-ए-अदम में शब-ए-हिजराँ होंगे
फिर बहार आई वही दश्त-ए-नावर्दी होगी
फिर वही पाओं वही ख़ार-ए-मुग़ेलाँ होंगे
नासिहा दिल में तू इतना तो समझ अपने
के हम लाख नादाँ हुये क्या तुझ से भी नादाँ होंगे
एक हम हैं के हुये ऐसे पशेमाँ के बस
एक वो हैं के जिंहें चाह के अर्माँ होंगे
मिन्नत-ए-हज़रत-ए-इसा न उठायेँगे कभी
ज़िन्दगी के लिये शर्मिंदा-ए-एहसाँ होंगे
उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में "मोमिन"
अब आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे
७.
ऐं एहवाल-ए-दिल मर गया कहते कहते
थके तुम न "बस, बस, सुना!" कहते कहते
मुझे चुप लगी मुद्द'आ कहते कहते
रुके हैं वो जाने क्या कहते कहते
ज़बाँ गुंग है इश्क़ में गोश कर हैं
बुरा सुनते सुनते भला कहते कहते
शब-ए-हिज्र में क्या हजूम-ए-बला है
ज़बाँ थक गई मर्हबा कहते कहते
गिला हर्ज़ा-गर्दी का बेजा न था कुछ
वो क्यूँ मुस्कुराये बजा कहते कहते
सद अफ़सोस जाती रही वस्ल की शब
"ज़रा ठहर ऐ बेवफ़ा" कहते कहते
चले तुम कहाँ मैं ने तो दम लिया था
फ़साना दिल-ए-ज़ार का कहते कहते
सितम हाये! गर्दूँ मुफ़स्सिल न पूछो
के सर फिर गया माजरा कहते कहते
नहीं या सनम "मोमिन" अब कुफ़्र से कुछ
के ख़ू हो गई है सदा कहते कहते
८.
मार ही डाल मुझे चस्म-ए-अदा से पहले
अपनी मंज़िल को पहुँच जौउँ क़ज़ा से पहले
इक नज़र देख लूँ आ जाओ क़ज़ा से पहले
तुम से मिलने की तमन्ना है ख़ुदा से पहले
हश्र के रोज़ मैं पूछूँगा ख़ुदा से पहले
तू ने रोका नहीं क्यूँ मुझको ख़ता से पहले
ऐ मेरी मौत ठहर उनको ज़रा आने दे
ज़हर क जाम न दे मुझको दवा से पहले
हाथ पहुँचे भी न थे ज़ुल्फ़ दोता तक "मोमिन"
हथकड़ी डाल दी ज़ालिम ने ख़ता से पहले
८.
जलता हूँ हिज्र-ए-शाहिद-ओ-याद-ए-शराब में
शौक़-ए-सवाब ने मुझे डाला अज़ाब में
कहते हैं तुम को होश नहीं इज़्तराब में
सारे गिले तमाम हुए एक जवाब में
फैली शमीम-ए-यार मेरे अश्क-ए-सुर्ख़ से
दिल को ग़ाज़ब फ़िशार हुआ पेच-ओ-ताब में
रहते हैं जमा कूचा-ए-जानाँ में ख़ास-ओ-आम
आबाद एक घर है जहान-ए-ख़राब में
बदनाम मेरे गिरिया-ए-रुसवा से हो चुके
अब उज़्र क्या रहा निगाह-ए-बेहिजाब में
मतलब की जुस्तजू ने ये क्या हाल कर दिया
हसरत भी नहीं दिल-ए-नाकामयाब में
नाकामियों से काम रहा उम्र भर हमें
पिरी में यास है जो हवस थी शबाब में
क्या जल्वे याअद आये के अपनी ख़बर नहीं
बे-बादा मस्त हूँ मैं शब-ए-माहताब में
पैहम सजूद पा-ए-सनम पर दम-ए-विदा
"मोमिन" ख़ुदा को भूल गये इज़्तराब में
९.
डर तो मुझे किसका है के मैं कुछ नहीं कहता
पर हाल ये अफ़्शाँ है के मैं कुछ नहीं कहता
नासेह ये गिला है के मैं कुछ नहीं कहता
तू कब मेरी सुनता है के मैं कुछ नहीं कहता
कुछ ग़ैर से होंठों में कहे है पे जो पूछो
तो वहीं मुकरता है के मैं कुछ नहीं कहता
नासेह को जो चाहूँ तो अभी ठीक बना दूँ
पर ख़ौफ़ ख़ुदा का है के मैं कुछ नहीं कहता
चुपके से तेरे मिलने का घर वालों में तेरे
इस वास्ते चर्चा है के मैं कुछ नहीं कहता
ऐ चारागरो क़बिल-ए-दरमाँ नहीं ये दर्द
वर्ना मुझे सौदा है के मैं कुछ नहीं कहता
हर वक़्त है दुश्नाम हर एक बात पे ताना
फिर इस पे भी कहता है के मैं कुछ नहीं कहता
"मोमिन" बा-ख़ुदा सिहर बयानी का जभी तक
हर एक को दावा है के मैं कुछ नहीं कहता
१०.
असर उसको ज़रा नहीं होता
रंज राहत फ़ज़ा नहीं होता
तुम हमारे किसी तरह न हुए वरना
दुनिया में क्या नहीं होता
नारसाई से दम रुके तो रुके
मैं किसी से ख़फ़ा नहीं होता
तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता
हाल-ए-दिल यार को लिखूँ क्यों कर
हाथ दिल से जुदा नहीं होता
क्यों सुने अर्ज़-ए-मुज़्तरिब ऐ "मोमिन"
सनम आख़िर ख़ुदा नहीं होता
२.
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो के न याद हो वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो के न याद हो
वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो के न याद हो
कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो के न याद हो
सुनो ज़िक्र है कई साल का, कोई वादा मुझ से था आप का वो निबाहने का तो ज़िक्र क्या, तुम्हें याद हो के न याद हो
कभी हम में तुम में भी चाह थी, कभी हम से तुम से भी राह थी कभी हम भी तुम भी थे आश्ना, तुम्हें याद हो के न याद हो
हुए इत्तेफ़ाक़ से गर बहम, वो वफ़ा जताने को दम-ब-दम गिला-ए-मलामत-ए-अर्क़बा, तुम्हें याद हो के न याद हो
वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेश्तर, वो करम के हाथ मेरे
हाथ पर मुझे सब हैं याद ज़रा ज़रा, तुम्हें याद नो कि न याद हो
कभी बैठे सब हैं जो रू-ब-रू तो इशारतों ही से गुफ़्तगू वो बयान शौक़ का बरमला तुम्हें याद हो कि न याद हो
वो बिगड़ना वस्ल की रात का, वो न मानना किसी बात का वो नहीइं नहीं की हर आन अदा, तुम्हें याद हो कि न याद हो
जिसे आप गिन्ते थे आश्ना जिसे आप कहते थे बावफ़ा मैं वही हूँ "मोमिन"-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो के न याद हो
३.
ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम पर क्या करे के हो गये लाचार जी से हम
हम से न बोलो तुम इसे क्या कहते हैं भला इन्साफ़ कीजे पूछते हैं आप ही से हम
क्या गुल खिलेगा देखिये है फ़स्ल-ए-गुल तो दूर और सू-ए-दश्त भागते हैं कुछ अभी से हम
क्या दिल को ले गया कोई बेगाना आश्ना क्यूँ अपने जी को लगते हैं कुछ अजनबी से हम
४.
शब तुम जो बज़्म-ए-ग़ैर में आँखें चुरा गये
खोये गये हम ऐसे के अग़्यार पा गये
मजलिस में उस ने पान दिया अपने हाथ से अग़्यार सब्ज़ बख़्त थे हम ज़हर खा गये
ग़ैरों से हो वो पर्दानशीं क्यों न बेहिजाब दम हाय बे-असर मेरे पर्दा उठा गये
वाइज़ के ज़िक्र-ए-मेहर-ए-क़यामत को क्या कहूँ आलम शब-ए-वस्ल के आँखों में छा गये
दुनिया ही से गया मैं जो नहीं नाज़ से कहा अब भी गुमान-ए-बद न गये तेरे या गये
ऐ "मोमिन" आप कब से हुए बंदा-ए-बुताँ बारे हमारे ??? में हज़रत भी आ गये .
५.
रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह अटका कहीं जो आप का दिल भी मेरी तरह
ना ताब हिज्र में है ना आराम वस्ल में कमबख़्त दिल को चैन नहीं है किसी तरह
गर चुप रहें तो ग़म-ए-हिज्राँ से छूट जायेँ कहते तो हैं भले की वो लेकिन बुरी तरह
न जाये वाँ बने है न बिन जाये चैन है क्या कीजिये हमें तो है मुश्किल सभी तरह
लगती हैं गालियाँ भी तेरी मुझे क्या भली क़ुरबान तेरे, फिर मुझे कह ले इसी तरह
हूँ जाँबलब बुतान-ए-सितमगर के हाथ से
क्या सब जहाँ में जीते हैं "मोमिन" इसी तरह
६.
नावक अंदाज़ जिधर दीदा-ए-जानाँ होंगे
नीम-बिस्मिल कई होंगे कई बेजाँ होंगे
ताब-ए-नज़ारा नहीं आईना क्या देखने दूँ
और बन जायेंगे तस्वीर जो हैराँ होंगे
तू कहाँ जायेगी कुछ अपना ठिकाना कर ले
हम तो कल ख़्वाब-ए-अदम में शब-ए-हिजराँ होंगे
फिर बहार आई वही दश्त-ए-नावर्दी होगी
फिर वही पाओं वही ख़ार-ए-मुग़ेलाँ होंगे
नासिहा दिल में तू इतना तो समझ अपने
के हम लाख नादाँ हुये क्या तुझ से भी नादाँ होंगे
एक हम हैं के हुये ऐसे पशेमाँ के बस
एक वो हैं के जिंहें चाह के अर्माँ होंगे
मिन्नत-ए-हज़रत-ए-इसा न उठायेँगे कभी
ज़िन्दगी के लिये शर्मिंदा-ए-एहसाँ होंगे
उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में "मोमिन"
अब आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे
७.
ऐं एहवाल-ए-दिल मर गया कहते कहते
थके तुम न "बस, बस, सुना!" कहते कहते
मुझे चुप लगी मुद्द'आ कहते कहते
रुके हैं वो जाने क्या कहते कहते
ज़बाँ गुंग है इश्क़ में गोश कर हैं
बुरा सुनते सुनते भला कहते कहते
शब-ए-हिज्र में क्या हजूम-ए-बला है
ज़बाँ थक गई मर्हबा कहते कहते
गिला हर्ज़ा-गर्दी का बेजा न था कुछ
वो क्यूँ मुस्कुराये बजा कहते कहते
सद अफ़सोस जाती रही वस्ल की शब
"ज़रा ठहर ऐ बेवफ़ा" कहते कहते
चले तुम कहाँ मैं ने तो दम लिया था
फ़साना दिल-ए-ज़ार का कहते कहते
सितम हाये! गर्दूँ मुफ़स्सिल न पूछो
के सर फिर गया माजरा कहते कहते
नहीं या सनम "मोमिन" अब कुफ़्र से कुछ
के ख़ू हो गई है सदा कहते कहते
८.
मार ही डाल मुझे चस्म-ए-अदा से पहले
अपनी मंज़िल को पहुँच जौउँ क़ज़ा से पहले
इक नज़र देख लूँ आ जाओ क़ज़ा से पहले
तुम से मिलने की तमन्ना है ख़ुदा से पहले
हश्र के रोज़ मैं पूछूँगा ख़ुदा से पहले
तू ने रोका नहीं क्यूँ मुझको ख़ता से पहले
ऐ मेरी मौत ठहर उनको ज़रा आने दे
ज़हर क जाम न दे मुझको दवा से पहले
हाथ पहुँचे भी न थे ज़ुल्फ़ दोता तक "मोमिन"
हथकड़ी डाल दी ज़ालिम ने ख़ता से पहले
८.
जलता हूँ हिज्र-ए-शाहिद-ओ-याद-ए-शराब में
शौक़-ए-सवाब ने मुझे डाला अज़ाब में
कहते हैं तुम को होश नहीं इज़्तराब में
सारे गिले तमाम हुए एक जवाब में
फैली शमीम-ए-यार मेरे अश्क-ए-सुर्ख़ से
दिल को ग़ाज़ब फ़िशार हुआ पेच-ओ-ताब में
रहते हैं जमा कूचा-ए-जानाँ में ख़ास-ओ-आम
आबाद एक घर है जहान-ए-ख़राब में
बदनाम मेरे गिरिया-ए-रुसवा से हो चुके
अब उज़्र क्या रहा निगाह-ए-बेहिजाब में
मतलब की जुस्तजू ने ये क्या हाल कर दिया
हसरत भी नहीं दिल-ए-नाकामयाब में
नाकामियों से काम रहा उम्र भर हमें
पिरी में यास है जो हवस थी शबाब में
क्या जल्वे याअद आये के अपनी ख़बर नहीं
बे-बादा मस्त हूँ मैं शब-ए-माहताब में
पैहम सजूद पा-ए-सनम पर दम-ए-विदा
"मोमिन" ख़ुदा को भूल गये इज़्तराब में
९.
डर तो मुझे किसका है के मैं कुछ नहीं कहता
पर हाल ये अफ़्शाँ है के मैं कुछ नहीं कहता
नासेह ये गिला है के मैं कुछ नहीं कहता
तू कब मेरी सुनता है के मैं कुछ नहीं कहता
कुछ ग़ैर से होंठों में कहे है पे जो पूछो
तो वहीं मुकरता है के मैं कुछ नहीं कहता
नासेह को जो चाहूँ तो अभी ठीक बना दूँ
पर ख़ौफ़ ख़ुदा का है के मैं कुछ नहीं कहता
चुपके से तेरे मिलने का घर वालों में तेरे
इस वास्ते चर्चा है के मैं कुछ नहीं कहता
ऐ चारागरो क़बिल-ए-दरमाँ नहीं ये दर्द
वर्ना मुझे सौदा है के मैं कुछ नहीं कहता
हर वक़्त है दुश्नाम हर एक बात पे ताना
फिर इस पे भी कहता है के मैं कुछ नहीं कहता
"मोमिन" बा-ख़ुदा सिहर बयानी का जभी तक
हर एक को दावा है के मैं कुछ नहीं कहता
१०.
असर उसको ज़रा नहीं होता
रंज राहत फ़ज़ा नहीं होता
तुम हमारे किसी तरह न हुए वरना
दुनिया में क्या नहीं होता
नारसाई से दम रुके तो रुके
मैं किसी से ख़फ़ा नहीं होता
तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता
हाल-ए-दिल यार को लिखूँ क्यों कर
हाथ दिल से जुदा नहीं होता
क्यों सुने अर्ज़-ए-मुज़्तरिब ऐ "मोमिन"
सनम आख़िर ख़ुदा नहीं होता