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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

मसऊद अनवर



१.


रात आई है बलाओं से रिहाई देगी।
अब न दीवार न ज़ंजीर दिखायी देगी।
वक़्त गुज़रा है, पे मौसम नहीं बदला यारो,
ऐसी गर्दिश है ज़मीं ख़ुद भी दुहाई देगी।
ये धुंधलका सा जो है इसको गनीमत जानो,
देखना फिर कोई सूरत न सुझाई देगी।
दिल जो टूटेगा तो इकतरफा तमाशा होगा,
कितने आईनों में ये शक्ल दिखायी देगी।
साथ के घर में बड़ा शोर है बरपा अनवर,
कोई आएगा तो दस्तक न सुनाई देगी।