१.
आप में गुम हैं मगर सबकी ख़बर रखते हैं.
बैठकर घर में ज़माने पे नज़र रखते हैं.
हमसे अब गर्दिशे-दौराँ तुझे क्या लेना है,
एक ही दिल है सो वो जेरो-ज़बर रखते हैं.
जिसने इन तीरा उजालों का भरम रक्खा है,
अपने सीने में वो नादीदा सहर रखते हैं.
रहनुमा खो गए मंजिल तो बुलाती है हमें,
पाँव ज़ख्मी हैं तो क्या, जौके-सफर रखते हैं.
वो अंधेरों के पयम्बर हैं तो क्या गम है 'जमील'
हम वो हैं आंखों में जो शम्सो-क़मर रखते हैं.