१.
बस्ती दर बस्ती भीड़ का छलावा है
बंद हैं खिड़कियां, ज़बाँ पे ताला है
बांटी जायें चाहे लाख खै़रातें
जरूरत यहां की सिर्फ एक निवाला है
ख़ु़श्क हो गईं नदियां, सिमट गए सागर
और बहती गंगा भी अब एक नाला है
जिस्म में रूह, रूह में गहराईयां हैं
ख़ामोशी है, बेबसी का हाला है
थम गयी बाजारी उमंगों की रफ़्तार
सरमायादारी का पिटा दिवाला है
बैचेन शहर की ये अजब खु़शलिबासी
ज़श्न है कोई या ग़मों की माला है
क्यों घबराता तूफां से बलाओं से
देश को हमारे हादसों ने पाला है
२.
सब्र को हमारे मिले कभी सौगात भी
मिले इन आंखों को लुत्फे हयात भी
न रंजो-गम, न नफरत की हवा कहीं
दिल से दिल की हो अब मुलाकात भी
न फासले रहें, न बंदिश कोई रहे
प्यार की छांव में बीते दिन-रात भी
निगाहों में बहार हो, बांहों में संसार
चाहतों से महके सारी कायनात भी
लफ्ज हों तो दुआ बनें, बिखरें तो सदा
आंखों से अयां हो दिल की बात भी
खुशबू बहार की बिखरे इन फिजाओं में
जुल्फों से खेले सावन की बरसात भी
३.
मुक्तसर-सी जिन्दगी हसरतों में निक़ल गयी
कुछ उम्मीदों पे और कुछ आहों में पल गयी
तकदीर लेके गयी जिधर उधर ही हम गये
कभी बहलाया हमे तो कभी चाल चल गयी
कांधे पे उठाये रहे हम अरमानों की गठरियां
वक्त की ठोकरों से हर चाहत मचल गयी
खाक-ए-तम्मना का वो मातम फिजूल था
दिल की बर्बादियां कई सांचों में ढ़ल गयी
सुलगती रेत पे भटका किये जो उम्र भर
मेहरबां हुई हयात जब तो उम्र छल गयी
लबों पे आत-आते रह गयी रक्से-तबस्सुम
सांसों के तरन्नुम पे गमे दुनिया बहल गयी
४.
अज़मे सफर सरों पे उठाना है दूर तक
ले जिन्दगी का साथ जाना है दूर तक
परछाइयां भी छोड़ गईं आज मेरा साथ,
पर गम को मेरा साथ निभाना है दूर तक
जी भर के जिन्दगी से करूं प्यार, था ख्याल
इस रह पे आंसुओं का ठिकाना है दूर तक
ये जिन्दगी नहीं है वफाओं का सिलसिला,
सांसों के टूटने का फसाना है दूर तक
५.
राह-ए-उल्फत में ऐसी हालत हो गयी,
हर मील के पत्थर से मुहब्बत हो गयी।
नजर आवारा, लब झूठे, दिल बेवफा,
बेहयाआई जहां की आदत हो गयी।
दूर हो गयी जब खुशफहमियां सारी,
औरों से नहीं खुद से शिकायत हो गयी।
कहां खो गयी दिलदारों की दुनिया,
मोहब्बत की अजब ही रंगत हो गयी।
वो शख्स बुलंदियों पे नजर आता है,
सर झुकाने की जिसकी आदत हो गयी।
मकीं बदल गये और मकाँ बदल गया,
दीवारो दर से अजनबियत हो गयी।
कसमें, वादे, वफा, ऐतबार सब झूठे,
इन लफ्जों की क्या हालत हो गयी।
६.
जिन्दगी कुछ नहीं उलझन के सिवा,
सराबें क्या देंगी चुभन के सिवा।
रफ्ता-रफ्ता सब छूट जायेंगे,
साथ क्या रहेगा कफन के सिवा।
अजनबी शहर में रूसवाइयां मिलेंगी,
पनाह कौन देगा वतन के सिवा।
ये बेचैनी, ये हवस, ये बदहवासी,
हमको क्या देंगी थकन के सिवा।
ये तो बस नजरिये की बात है,
खुबसूरती क्या है जेहन के सिवा।
ढ़ूंढते फिरोगे यूं ही सहरा-सहरा,
खुशबू कहां मिलेंगी गुलशन के सिवा।
हर मोड़ पर हुनर काम आयेगा,
कौन साथ देगा अपने फन के सिवा।