जन्म: 16 मार्च 1938 को ग्राम भागो तहसील खोरिया
जिला गुजरात, पंजाब, पाकिस्तान।
कविता संग्रह : दोहे हैं कल्याण के पिता और पुत्र
सम्पर्क:hsk00@rediffmail.com
कविता संग्रह : दोहे हैं कल्याण के पिता और पुत्र
सम्पर्क:hsk00@rediffmail.com
१.
बचपन में अच्छी लगे यौवन में नादान।
आती याद उम्र
ढ़ले क्या थी माँ कल्यान।।१।।
करना माँ को खुश अगर कहते लोग तमाम।
रौशन अपने काम
से करो पिता का नाम।।२।।
विद्या पाई आपने बने महा विद्वान।
माता पहली गुरु
है सबकी ही कल्यान।।३।।
कैसे बचपन कट गया बिन चिंता कल्यान।
पर्दे पीछे माँ
रही बन मेरा भगवान।।४।।
माता देती सपन है बच्चों को कल्यान।
उनको करता
पूर्ण जो बनता वही महान।।५।।
बच्चे से पूछो जरा सबसे अच्छा कौन।
उंगली उठे उधर
जिधर माँ बैठी हो मौन।।६।।
माँ कर देती माफ़ है कितने करो गुनाह।
अपने बच्चों
के लिए उसका प्रेम अथाह।।७।।
२.
जनता सपने देखती, बदल-बदल कर ताज।
कभी सदी
इक्कीसवीं, कभी राम का राज।।1।।
वोट दिया या भीख दी, गया हाथ से तीर।
किस को हैं
पहिचानते, नेता, पीर, फकीर।।2।।
गीदड़ बहुमत ढूँढ़ते, रहे अकेला शेर।
गीदड़ रहते
डरे से, होता शेर दिलेर।।3।।
नेता जी की बात पर, कैसे करें यकीन।
जब से ऊँचे वह
उड़े, देखी नहीं ज़मीन।।4।।
छोटी-छोटी पार्टियाँ, मिली बड़ी के साथ।
भोली भाली
मछलियाँ, चढ़ीं मगर के हाथ।।5।।
चींटी काटी खाल में, कई जगह कल्यान।
उसने काटा कब
किधर, गेंडा था अंजान।।6।।
चढ़ता सूरज देख के, रहे नमन की होड़।
ढलते सूरज से
सभी, लेते नाता तोड़।।7।।
कैसा यह जनतंत्र है, वोट सभी का एक।
अंधी नगरी में
कहीं, चलता नहीं विवेक।।8।।
हम हारे वह पूछते, लाओ कहाँ हिसाब।
अगर नोट हम
खर्चते, जाते जीत जनाब।।9।।
जनता ने तो चुनी थी, सोच समझ सरकार।
दल बदलू ने बदल
दी, जनमत दिया नकार।।10।।
किसे फ़िक्र है वतन की, बनते सभी नवाब।
रोटी चुपड़ी
चाहिए, मिलता रहे कबाब।।11।।
गीदड़ कहता शेर से, नया ज़माना देख।
एक वोट तेरा
पड़ा, मेरा भी है एक।।12।।
घोटालों की बात सुन, धरें नेता मौन।
नंगे सभी हमाम
में, निकले बाहर कौन।।13।।
घर हमारे आए वह, हँसे मिलाया हाथ।
खुश होते हम अगर
वह, गरज न लाते साथ।।14।।
हम चुनाव थे लड़ पड़े, देख जान पहचान।
कितना महँगा
वोट है, जान गए कल्यान।।१15।।
सपन स्वर्ग के बेचिये, चलती खूब दुकान।
सीधे साधे
लोग हैं, ले लेते कल्यान।।16।।
सन सिक्के से वोट दे, लिया खेल आनंद।
वोटर हमें बता
गया, क्या है उसे पसंद।।17।।
सोच समझ कर कीजिए, नेता जी तक़रीर।
हुए सभी आज़ाद
हम, हुए न सभी अमीर।।18।।
शक्ति रूप श्री राम थे, मार दिया लंकेश।
जनमत धोबी
में रहा, हार गए अवधेश।।19।।
वोट गिनो यह ग़लत है, वोट तौलना ठीक।
मगर तुलैया
मिले यदि, बुद्धिमान निर्भीक।।20।।
मत पूछो जनतंत्र में, बनता कहाँ विधान।
होता है
दंगल कहाँ, पूछो यह कल्यान।।21।।
मिली जुली सरकार है, करती खींचातान।
बंदर मगर की
दोस्ती, कितने दिन कल्यान।।22।।
माचिस सम जनतंत्र है, कर दे पैदा आग।
चाहे चूल्हा
फूँक लो, चाहे फूँको पाग।।23।।
माँगा उनसे वोट जो, दीखी उनको हार।
कहते अपने वोट
को, कौन करे बेकार।।24।।
भारत के जनतंत्र में, खाती जनता चोट।
धनपति करते
राज हैं, जनमत की ले ओट।।25।।
बेचें कथा अतीत की, सपनों के वरदान।
वर्तमान में
देखते, खुद को वह कल्यान।।26।।
बहुमत के प्रतिनिधि बनो, क्या है फिर इन्साफ़।
किए
जुर्म संगीन भी, हो जाते सब माफ़।।27।।
पद लोलुप नेता हुए, बेच रहे ईमान।
कर के जनता वोट
का खुले आम अपमान।।28।।
पास हमारे वोट थे, बदले हम सरकार।
हम जहाँ के तहाँ
रहे, होते रहे ख़वार।।29।।
नेता हैं जो आज के, हैं कच्चे उस्ताद।
तीखे नारे दे
रहे, भूल गूँज अनुनाद।।30।।
नारी सीमित घरों तक, लोक सभा से दूर।
आधा भाग समाज
का, क्यों इतना मजबूर।।31।।
ढ़ोल पीट वह कर रहे, खुले आम एलान।
उनके नाम
रिज़र्व है, भारत का कल्यान।।32।।
जनता की हर माँग को, कर दें नेता गोल।
अपनी नब्ज़
टटोल कर, करते रहे मखौल।।33।।
जिनको अपना समझते, वह रहते थे मौन।
हमें चुनाव बता
गया, इन में अपना कौन।।34।।
जाती उम्रें बीत थीं, करते पालिश बूट।
अब चुनाव में
जीत के, जाते बंदी छूट।।35।।
जनमत के प्रति राम का, देख लिया अनुराग।
इक धोबी की
बात पर, दिया सिया को त्याग।।36।।
गांधी नेता बन गए, कर के पर उपकार।
कहो बात कल्यान
की, मानेगा संसार।।37।।
हर दल वोटर से कहे, बीती ताहि बिसार।
फिर से अवसर
दे मुझे ला दूँ तुझे बहार।।38।।
आज गए थे बूथ पर, दी वोटर ने चोट।
नैतिकता की बात
की, डाले जाली वोट।।39।।
हर दल को अच्छे लगें, अपने गीत बहार।
कोई कब तक
सुनेगा, जनता की मल्हार।।40।।
३.
करते रहिए फील गुड़ गया चुटकला फैल।
देखो मूर्ख बने
कौन, आने दो अप्रैल।
धोखा, झूठ, फरेब से किया हमें हैरान।
बोले मूर्ख
दिवस है, करता क्या कल्यान।
बुद्धू मुझे बना दिया, बोले हैं अप्रैल।
मैं बोलूँ
तो अर्थ है, मार मुझे आ बैल।
किसी बहाने आपने, किया हमें है याद।
मूर्ख बने तो
क्या हुआ, आया मीठा स्वाद।
होली की सद्भावना, मूर्ख दिवस की जान।
महामूर्ख हम
भी बनें चाहें सब कल्यान।
करे फर्स्ट अप्रैल को, लोक सभा तकरार।
चाहे भला
ग़रीब का, धनियों की सरकार।
पूर्ण वर्ष में एक दिन, कहते हमको फूल।
बाकी के दिन
बचें जो, करते भूल कबूल।
मूर्ख दिवस उपनाम दे, बढ़ जाता सम्मान।
बीवी बुद्धू
कहे तो, होता खुश कल्यान।
४.
सब से भोले देव जो, गंगा जिनके केश।
सबसे पहले पूज्य
हैं, उन के पुत्र गणेश।।
महादेव से लड़ गये, माँ की आज्ञा मान।
रूप गजानन
मिला तब, शिवजी से वरदान।।
श्री गणेश ने दिया जब, मात पिता को मान।
प्रथम
पूज्य वह हो गये, पा कर के वरदान।।
कहें गजानन भक्त कुछ, कहते कई
गणेश।
उन की माता पार्वती, उनके पिता महेश।।
लक्ष्मी बिना गणेश के, होय न
खुश कल्यान।
पूजो गणपति को अगर, देती वह वरदान।।
मूषक ऊपर वह सजे, करते
लडडू भोग।
गणपति बप्पा मोरया, जय जय करते लोग।।
कह श्री गणेशाय नम:, करें
शुरू हर वर्ष।
कृपा लक्ष्मी जी करें, घर में फैले हर्ष।।
सुनते हैं देखी
नहीं, गणपति उत्सव रीत।
गणपति बप्पा मोरया, लगता अपना गीत।।
उत्सव मनते
देश में, निकलें कई जलूस।
बप्पा गणपति दें खूशी, करते हम महसूस।।
एक दन्त
से मार कर, अमर दैत्य कल्यार।
मूषक उसे बना दिया, गणपति देव महान।।
शिवजी
की है सर्जरी, है प्रत्यक्ष प्रमाण।
बोलों कैसे मान लें, पिछड़ा
हिन्दुस्तान।।
५.
आ गया ग्रीष्मकाल फिर, होगी बिजली फेल।
दिये जलाने
पड़ेंगे, होगा महँगा तेल।।1।।
गर्मी ने है कर दिया, सागर जल निर्यात।
अब वह बादल
बनेगा, लाएगा बरसात।।2।।
बढ़ती गर्मी देख कर, पत्नी हुई अधीर।
कहे सौ की एक
कहूँ, ले चल अब कश्मीर।।3।।
नेता अभिनेता बने, करके कई जुगाड़।
लगती गर्मी
जिन्हे है, जाते वही पहाड़।।4।।
सर्दी भी, बरसात भी, आ कर गई बहार।
अब फिर गर्मी
लगेगी, ठंडी लगे फुहार।।5।।
गर्मी में सूखे गला, सूखे नदिया ताल।
कोल्डड्रींक
को बेच वह, होते मालामाल।।6।।
वह गर्मी बरसात का, डर कर लेते नाम।
हमको अच्छे
लगें यह, हम खाते हैं आम।।7।।
सड़कों पर भी फैलती, गर्मी में दुर्गंध।
घर-घर पौध
लगाइए, देंगे पुष्प सुगंध।।8।।
सर्दी तक तो लगे थे, हीटर हमें मुफीद।
स्वागत गर्मी
का किया, कूलर लिए ख़रीद।।9।।
गर्मी में अच्छे लगें, बरगद पीपल नीम।
पाकड़ इमली
आम भी, कहते वैद्य हकीम।।10।।
अब तो गर्मी आ गई, आएँगे तूफ़ान।
आँधी आए ज़ोर की,
पकड़ें आग मकान।।11।।
गर्मी आई ज़ोर की, होना नहीं उदास।
भूख आपकी घटेगी,
नहीं बुझेगी प्यास।।12।।
टंकी है जल निगम की, करती रहे विनाश।
नल भी गर्मी
देख कर, करता हमें निराश।।13।।
लोग घरों में बंद हैं, लगते शहर उजाड़।
गर्मी का
वरदान है, रौनक बढ़ी पहाड़।।14।।
गए थे पास प्रेमिका, लौटे हुए उदास।
गर्मी के
बलिहार है, कहे न आओ पास।।15।।
कंगन का जोड़ा मिला, लाई मेरी सास।
ठंडे पानी ने
दिया, ग्रीष्म का एहसास।।16।।
सूरज गोला आग का, पृथ्वी बहता नीर।
दोनों आते पास
जब, होती गर्म समीर।।17।।
पृथ्वी चक्कर काटती, सूरज के कल्यान।
गर्मी सर्दी
प्यार वश, दे देता भगवान।।18।।
आया ग्रीष्म गया निकल, भीगे कई रूमाल।
होता नहीं
चुनाव तो, जाते नैनीताल।।19।।
गर्मी आई मर गए, लू से लोग पचास।
आग लगी अस्सी मरे,
सुन हम हुए उदास।।20।।
गर्मी की हों छुटि्टयाँ, बनते गिन-गिन प्लान।
यों
ही निकल जाती वह, जाने कब कल्यान।।21।।
यहाँ ग्रीष्म उत्सव बनी, वहाँ फैलाती रोग।
जगह-जगह
की बात है, कहें सियाने लोग।।22।।
स्वागत करें ग्रीष्म का, बच्चे और कुम्हार।
मालिक
रेस्टोरेंट के, पर्वत की सरकार।।23।।
रो रो बच्चे पढ़ रहे, कहते हो बेहाल।
राह ग्रीष्म
की देखते, जाना है ननिहाल।।24।।
गर्मी लगती प्यास है, पानी बसते कीट।
मंत्री जी अब
करो कुछ, या फिर छोड़ो सीट।।25।।
६.
मई दिवस को भूल कर हुए नशे में चूर।
आदत से मजबूर
थे मेहनत कश मजदूर।।1।।
पी शराब मज़दूर ने बेच रही सरकार।
करना भला ग़रीब
का किसको है दरकार।।2।।
बच्चे मज़दूरी करें घटे देश की शान।
न करें तो कैसे
चले उनका घर कल्यान।।3।।
करे सुबह से शाम तक काम विवश मजदूर।
घर-घर बर्तन
माँजती उसके दिल की हूर।।4।।
बीवी हो मज़दूर की वह भी पाए मान।
वर्ना कहना ढोंग
है भारत देश महान।।5।।
बन बंधुआ मज़दूर न कहता है कानून।
रोटी देता है
नहीं कैसे घटे जुनून।।6।।
हमदर्दी सरकार की बदले सिर्फ़ विधान।
शिक्षा दो
मज़दूर को हो उसका कल्यान।।7।।
शिक्षा दो मज़दूर को करता ज़्यादा काम।
मालिक को
आराम हो उसको भी आराम।।8।।
आँखें उनकी देख कर जाना समझ जुबान।
बच्चे हैं मजदूर
के लेकिन हैं इंसान।।9।।
हम हैं खाना खा चुके चार बार सरकार।
होते यदि मजबूर
तो खाते कितनी बार।।10।।
देखें केवल आज को भारत के मज़दूर।
पैसा हो यदि गाँठ
में नहीं काम मंजूर।।11।।
मालिक जल कर दूध से सोचे हो मजबूर।
मिलते उनको
क्यों नहीं दूध धुले मज़दूर।।12।।
कह दो तू मज़दूर को होता बेआराम।
मिस्त्री जी उसको
कहो करता दूना काम।।13।।
किस्मत को सब कोसते दुनिया का दस्तूर।
भाग्य बनाते
आप खुद मेहनत कश मज़दूर।।14।।
कुछ हों रानी चींटियाँ कुछ होती हैं दास।
सभी बराबर
होय तो होता नहीं विकास।।15।।
७.
दावत हमने करी थी, नाचे घंटे चार।
गई कमायी साल की,
शिकवे सुने हज़ार।
आज गए थे बूथ पर, दी वोटर ने चोट।
नैतिकता की बात
की, डाले जाली वोट।
आज़ादी ने किया है, कैसा यह कल्यान।
रोटी कपड़ा घर
दिया, छीन लिया ईमान।
इतनी पैनी कीजिए, नहीं कलम की धार।
टूटे जिस से
मित्रता, दिल में पड़े दरार।
रिश्वत लेना जुर्म है, तब ही तो कल्याण।
ले लेना
आसान है, मिले न कहीं प्रमाण।
ओझा जी ने सच कहा, आएगा भूचाल।
आ तो जाता वो मगर,
दिया पूज के टाल।
कहते माँ जिस देश को, उसके तोड़ें अंग।
होते भारत
देश में, कितने अद्भुत व्यंग।
किसे बताऊँ किसलिए, होती सर में खाज।
मेरी बिल्ली
कह गई, मुझसे म्याऊँ आज।
कहीं सिफ़ारिश चलेगी, कहीं चलेगी घूस।
होंगे यों ही
काम सब, होते क्यों मायूस।
खाना दे कर थाल में, खींच लिया फिर थाल।
माँगा था
ना भूख थी, फिर भी लगा मलाल।
८.
माना मैं डरपोक हूँ निडर न देखा कोय।
खुली किवाड़ें
छोड़ जो घर में सोता होय।।
करते मीठी बात वह सावधान कल्यान।
उन को मुर्गा
फाँसना तू भोला इंसान।।
मिलते थे सब शौक से जब हम रहे जवान।
कपड़े अनफिट हो
गए तब के अब कल्यान।।
तेरे हाथों कुछ नहीं सूत्रधार भगवान।
तू कठपुतली की
तरह नाचे जा कल्यान।।
अफ़सर अच्छे बहुत थे बोले हुए निहाल।
फ़ाइल चलती
यों नहीं सौ का नोट निकाल।।
कोई कुछ कहता रहे मत देना तू ध्यान।
झगड़ा करने की
उम्र निकल गई कल्यान।।
नकल न करिये किसी की न ही पीटिये लीक।
खर्चा उतना
कीजिए जितनी हो तौफ़ीक।।
कैसे कहूँ महान मैं जीत गया शैतान।
जिन बातों पर
गर्व था रहीं न वो कल्यान।।
घर का मुखिया कौन है ये जाने भगवान।
पत्नी के सहयोग
से चलता घर कल्यान।।
करते मुझको याद वह पड़ते जब बीमार।
खोटा सिक्का जब
लगूँ रूठें तब सरकार।।
तेरी वंशावली के रहे आख़िरी जीव।
उनके आगे कुछ नहीं
इक आदम इक ईव।।
ज़ीरो और अनंत को करो गुणा कल्यान।
जो फल निकले देख
लो वह ही है भगवान।।
विद्या वह ही सीखना होवे जिसकी माँग।
वर्ना शाह न
बनोगे देते रहना बांग।।
सादा काग़ज़ पूछता नोटों में क्या बात।
मुहर लगी
सरकार की गई बदल औक़ात।।
सब कुछ सुन कर सह गए नहीं हुआ विस्फोट।
निश्चित है
कल्यान यह खाई गहरी चोट।।
दे कर मुझको गिफ्ट तुम करो हिसाब किताब।
होता यह
व्यापार है कहो न प्यार जनाब।।
कैसे कह दें किसी से शर्म करो श्रीमान।
नंगे खड़े
हमाम में सारे ही कल्यान।।
काम, अध्यात्म, अर्थ व स्वास्थ्य, कला,
विज्ञान।
पुराना इन पर लिखा न होय कभी कल्यान।।
बिखरे हैं संसार में भेद बड़े अनमोल।
न्यूटन से कुछ
लोग हैं लेते उनको खोल।।
उम्र हमारी ढल गई लेटे हो बीमार।
बेटा आया पूछने बन
के दुनियादार।।
भूखों को बतलाइए लगे हमें भी भूख।
इक तरफ़ा बहती
नदी जल्दी जाती सूख।।
आँसू का घर नयन है घर में सुख से सोय।
दुख में घर
से निकलकर देता पलक भिगोय।।
ज्यों छोटे से बीज में रहता पूरा पेड़।
तेरे में
ब्रह्मांड है मिले न जिस्म उधेड़।।
मुर्गी कैसे दूध दे बकरी कैसे बाँग।
जो कुछ जिसके
पास है वह ही उससे माँग।।
कहते सच का साथ दो दो तो कहें हजूर।
चला न मेरे साथ
क्यों अब रह मुझसे दूर।।
कैसे बोलें आपसे कर ऊँची आवाज़।
न हिम्मत है न
हौसला आँखों बसा लिहाज।।
अपना अपना देखिए कहते हैं वो लोग।
जिन की आता समझ
में महँगा है सहयोग।।
९.
शिक्षक दिवस मना रहे, गा शिक्षक के गीत।
हमें मिली जो
सफलता, वह है उनकी जीत।।
गहन तिमिर की रात जब, करे हमें हैरान।
शिक्षक
देता रोशनी, करके विद्या दान।।
तुम में छिपी महानता, वाह वाह शाबाश।
टीचर
ने यह कह दिया, छूएँ हम आकाश।।
टीचर कहता बहुत कुछ, देता जो उत्साह।
जहाँ
कहीं हम भटकते, वही दिखाता राह।।
शिक्षक हो महान तो, बनते शिष्य
महान।
कहता यह इतिहास है, सुनें अगर श्रीमान।।
पढ़ीं किताबें बहुत सी,
छोटे बड़े पुराण।
बिन शिक्षक के रहे हम, अधकचरे विद्वान।।
पूछो कैसे बने
हम , बुद्विमान विद्वान।
हमने जीवन भर किया, शिक्षक का सम्मान।।
शिक्षक
को धन्यवाद दें, दें कितना सम्मान।
जीना हमें सिखा रहे, करके विद्या दान।।
पाँच सितम्बर ने दिया, गुरूओं को सम्मान।
गुरूओं को अब चाहिये, रख लें
इसका मान।।
बुद्विमान विद्वान था, था अच्छा इन्सान।
पर इक टीचर के बिना,
हुआ फेल कल्यान।।
हर वर्ष में एक दिवस, हो शिक्षक के नाम।
चले उसे भी यह
पता, किया भला कुछ काम।।
शिक्षक से शिक्षा मिली, सीख गये व्यवहार।
अब आया
शिक्षक दिवस, क्या दें हम उपहार।।