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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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बुधवार, 8 मई 2013

खान हसनैन आकिब

जन्म- ८ जुलाई १९७१ को अकोला महाराष्ट्र में।ई-मेल hasnainaaqib1@gmail.com

१.
बसतियाँ छोड़ के जाने ये किधर जाते हैं
गुमबदों पर से कबूतर जो गुजर जाते हैं

एक हम है के जो खातिर में नहीं लाते तुझे
जिन्दगी ! तेरे बिना लोग तो मर जाते हैं

इनको खाली ना समझिये के ये मोहलत है मियां
वक्त आने पे घड़े पाप के भर जाते हैं

चाँद चुपके से किसी झील में जैसे उतरे
आप आते ही मेरे दिल में उतर जाते हैं

हम तो जेबो में लिये फिरते हैं कुछ साँपों को
और एक आप जो रस्सी से भी डर जाते हैं


२.
एक पत्ता निराशा का, एक आस का
जिन्दगी वृक्ष जैसे अमलतास का

क्या करें लेके सन्देह की एक सदी
एक क्षण ही बहोत तेरे विश्वास का

इस को घाटे, नफे में ना यो तौलिये
प्रेम तो नाम है केवल आभास का

अब
जो हम सत्य को सत्य कहने लगे
आगया है समय अपने बनवास का

ज्ञात अज्ञात हैं, और अज्ञात ज्ञात
हमसे पूछे कोई खेल इतिहास का

पंक्ति से भी कम था हृदय का बखान
जिसको समझा मैं पन्ना उपन्यास का

मुझसे बोली मेरे कर्मो की कुंडली
लेखा जोखा हूँ मैं तेरे हर श्वास का

आज हसनैन सेवा में है आपकी
कीजे स्वीकार प्रणाम इस दास का


३.
कभी आसां, कभी मुश्किल मुहब्बत
जमीं ता अर्श, दिल ही दिल मुहब्बत

हमेशा साथ रखती है कनीजें
कभी मुझसे अकेले मिल मुहब्बत

किसी बच्चे की एक मुस्कान बन जा
कभी फूलो के जैसी खिल मुहब्बत

समझते सब इसे अच्छा हैं लेकिन
सुकून- ए- दिल की हैं कातिल मुहब्बत

गुमां उन का, मुहब्बत रास्ता है
यकी मेरा के है मंजिल मुहब्बत

अभी यह फैसला होना है बाकी
है तूफां या के है साहिल मुहब्बत

अकेले मेरे बस की तो नहीं ये
अगर तू है, तो है कामिल मुहब्बत

लुटी आवारगी में अपनी दुनिया
हुई आकिब, मगर हासिल मुहब्बत


४.
तेरे नजदीक ही बैठा हूँ मैं
लोग कहते है के तन्हा हूँ मैं

उस के माथे पे शिकन आई है
उसने देखा है के अच्छा हू मैं

कोई क्या कहता है, इस को छोड़ो
फैसला तुम करो, कैसा हूँ मैं

जिन्दगी तेरे बिना कुछ भी नहीं
बस इसी बात को समझा हूँ मैं

सोच कर इश्क नही होता कभी
कल कहा, आज भी कहता हूँ मैं
तुझ को पाने में जो नाकाम रहूँ
बस यही सोच के डरता हूँ मैं

दिल में एक टीस उठी है आकिब
अब भी उसको नहीं भूला हूँ मैं