" हिन्दी काव्य संकलन में आपका स्वागत है "


"इसे समृद्ध करने में अपना सहयोग दें"

सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
हिन्दी काव्य संकलन में उपल्ब्ध सभी रचनायें उन सभी रचनाकारों/ कवियों के नाम से ही प्रकाशित की गयी है। मेरा यह प्रयास सभी रचनाकारों को अधिक प्रसिद्धि प्रदान करना है न की अपनी। इन महान साहित्यकारों की कृतियाँ अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाना ही इस ब्लॉग का मुख्य उद्देश्य है। यदि किसी रचनाकार अथवा वैध स्वामित्व वाले व्यक्ति को "हिन्दी काव्य संकलन" के किसी रचना से कोई आपत्ति हो या कोई सलाह हो तो वह हमें मेल कर सकते हैं। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जायेगी। यदि आप अपने किसी भी रचना को इस पृष्ठ पर प्रकाशित कराना चाहते हों तो आपका स्वागत है। आप अपनी रचनाओं को मेरे दिए हुए पते पर अपने संक्षिप्त परिचय के साथ भेज सकते है या लिंक्स दे सकते हैं। इस ब्लॉग के निरंतर समृद्ध करने और त्रुटिरहित बनाने में सहयोग की अपेक्षा है। आशा है मेरा यह प्रयास पाठकों के लिए लाभकारी होगा.(rajendra651@gmail.com)

फ़ॉलोअर

रविवार, 26 मई 2013

बसंत देशमुख

जन्म तिथि : ११ जनवरी १९४२(बसंत पंचमी) जन्म स्थान : ग्राम टिकरी(अर्जुन्दा) जिला - दुर्ग (छत्तीसगढ़),प्रमुख कृतियाँ, मुखरित मौन ( काव्य संग्रह),गीतों की बस्ती कंहाँ पर बसायें ( काव्य संग्रह), सनद रहे ( काव्य संग्रह), धुप का पता (ग़ज़ल संग्रह), लिखना हाल मालूम हो (मुक्तक - संग्रह)

१.
देखकर माहौल घबराए हुए हैं
इस शहर में हम नए आए हुए हैं

बोल दें तो आग लग जाए घरों में
दिल में ऐसे राज़ दफ़नाए हुए हैं

रौशनी कि खोज में मिलता अंधेरा
हम हज़ारों बार आजमाए हुए हैं

दिन में वे मूरत बने इंसानियत की
रात में हैवान के साए हुए हैं

दो ध्रुवों का फ़र्क है क्यों आचरण में
एक ही जब कोख के जाए हुए हैं

२.
रुख़े-तूफ़ान वहशियाना है
शाखे-नाज़ुक पे आशियाना है

मौत आई किराए के घर में
सिर्फ़ दो गज पे मालिकाना है

ज़र्रे-ज़र्रे पे ज़लज़ला होगा
ये ख़यालात सूफ़ियाना है

वक़्त सोया है तान के चादर
किधर है पाँव कहाँ सिरहाना है

सिरफिरे लोग जहाँ हैं बसते
उन्ही के दरमियाँ ठिकाना है

३.
कस्बे सभी अब शहर हो गए हैं
यहाँ आदमी अब मगर हो गए हैं

हँसी बन्दिनी हो गई है कहीं पर
नयन आँसुओं के नगर हो गए हैं

कहो रौशनी से कि मातम मनाए
अंधेरे यहाँ के सदर हो गए हैं

विषपाइयों कि पीढ़ी से कह दो
सुकरात मर कर अमर हो गए हैं

४.
अब नही उनसे यारी रख
अपनी लडाई जारी रख

भूख ग़रीबी के मसले पे
अब इक पत्थर भारी रख

कवि मंचों पर बने विदूषक
उनके नाम मदारी रख

भीड़-भाड़ में खो मत जाना
अपनी अलग चिन्हारी रख

५.
आँखों में ख़ुशनुमा कई मंज़र लिए हुए
कैसे हैं लोग गाँव से शहर गए हुए

सीने में लिए पर्वतो से हौसले बुलंद
गहराइयों में दिल की समुन्दर लिए हुए

बदहाल बस्तियों के हालात पूछने
आया है इक तूफ़ान बवंडर लिए हुए

बिल्लियों के बीच न बँट पाए रोटियाँ
ऐसे ही फैसले सभी बन्दर किए हुए

इस राह की तक़दीर में लिखी है तबाही
इस राह में रहबर खड़े खंजर लिए हुए