जन्म : २० नवंबर १९४७, को हाथरस में।मुक्तक संग्रह- सफ़र में साथ-साथ
एक
उल्लास को आधार न दे तो कहना
बदले में पुरस्कार न
दे तो कहना
तुम धूप से पौधे को बचाओ, सींचो
तब यह फूल महकार न दे तो कहना
दो
नाव संकल्प की वापस नहीं मोड़ा करते
काम
कोई हो, अधूरा नहीं छोड़ा करते
दूर हो लक्ष्य तो करते नहीं मन को छोटा
रास्ते में कभी हिम्मत नहीं तोड़ा करते
तीन
क्यों बात कोई मन की सुनाने आए
क्यों
घाव कोई अपने दिखाने आए
क्यों आप ही हम हाल न पूछें उसका
क्यों हमको कोई
हाल अपना बताने आए
चार
हर गीत में पैग़ाम छिपा होता है
हर
कष्ट में आराम छिपा होता है
तुम काम का अंजाम न ढूँढ़ो अपने
हर काम में
अंजाम छिपा होता है
पाँच
पत्थर का जरूरी नहीं कोमल होना
दरिया
के लिए शुभ नहीं दलदल होना
निर्माण भी बल में है, तो फल भी बल में
दुनिया
में महापाप है निर्बल होना
छह
मानव का कल्याण मुहब्बत होगी
क्या इससे
अधिक कोई राहत होगी
क्या मन से बड़ा है कोई सागर जग में
क्या ज्ञान से
बढक़र कोई दौलत होगी
सात
बच्चे के बिना जैसे हो आँगन सूना
आए न
घटा फिरके तो सावन सूना
उम्मीद के पंछी से है मन में रौनक
आशा जो नहीं हो
तो है जीवन सूना
आठ
सूरज की चमकार सिर्फ गगन में कब है
सीमित कोई महकार चमन में कब है
अपनत्व से बन जाती है दुनिया अपनी
जो बात प्रेम में है वो धन में कब है
नौ
चौखट पे जो दिया है वो नारी की देन है
जो फूल खिल रहा है वो नारी की देन है
नारी ने बचपने में घरौंदे बनाए हैं
जो घर की कल्पना है वो नारी की देन है
दस
पूरी हुई दुनिया की कहानी हमसे
अँगनाइयाँ आबाद हैं घर की हमसे
हम साथ रहेंगी तो उजाला होगा
है रोशनी संसार की आधी हमसे
ग्यारह
गुजरी थी बचपने में जहाँ खेलते हुए
बर्षों रही है मन में उसी रास्ते की याद
अब मैं हूँ और साथ ही दो कश्तियों में पाँव
ससुराल का ख़्याल कभी मायके की याद
बारह
जीवन का मधुर गीत सुनाती हूँ तम्हें
सोए हो तो सोते से जगाती हूँ तुम्हें
जो ढूँढने निकलेगा सो पाएगा वही
इक बात पते की यह बताती हूँ तुम्हें
तेरह
क्यों बात कोई मन की सुनाने आए
क्यों घाव कोई अपने दिखाने आए
क्यों आप ही हम हाल न पूछें उसका
क्यों हमको कोई हाल अपना बताने आए
चौदहरह जाएगी बाक़ी न ये ताक़त तेरी
भगवान से लेनी है तो हिम्मत ले ले
कुछ साथ अगर होगी तो हिम्मत तेरी