जन्म १४ अक्टूबर १९४९ को भोपाल में हुआ.प्रकाशित कृतियाँ- 'भूख से घबराकर','आपकी जेब में','सोचिये तो सही' आदि।
१.
मेरे नज़दीक से तू जब भी गुज़र जाती है।
यूँ लगा जैसे ये दुनिया ही ठहर जाती है।।
मैंनें रोका है नज़र को उधर नहीं देखूँ।
तू जिधर है, नज़र हर बार उधर जाती है।।
तेरी आँखों से तेरी हाँ का यकीं होता है।
जुबाँ को जाने क्या हुआ है कि ड़र जाती है।।
जाने क्या बात है महसूस यही होता है।
आजकल आजकल में उम्र गुज़र जाती है।।
आँख से आँख तक नज़रों का सफ़र लम्बा था।
एक पूरी सदी लम्हे में गुजर जाती है।।
अपने मोबाईल से नम्बर हटा दिया लेकिन।
तेरी तस्वीर निगाहों में उतर जाती है।।
२.
क्या हुआ वो अगर नहीं मिलता।
यूं भी मिलता है पर नहीं मिलता।।
रास्ते हैं जुदा, जुदा मंजिल।
बन के वो हम सफ़र नहीं मिलता।।
शब्द के अर्थ ही बदल ड़ाले।
वरना मुझको सिफ़र नहीं मिलता।।
दिल में जो है वही जुबाँ पर हो।
झूठ से ये हुनर नहीं मिलता।।
मैंने तुमसे कहा सुना तुमने।
कोई उत्तर मगर नहीं मिलता।।
३.
मेरी बस्ती के च़रागों में रोशनी कम है।
लोग ज़िन्दा हैं मगर इनमें ज़िन्दगी कम है।।
एक नलका है जिसपे भीड़ बहुत भारी है।
प्यास बस्ती में है इतनी कि इक नदी कम है।।
सबकी आँखों में कई स्वप्न झिलमिलाते हैं।
कुछ तो साकार हो चुके हैं पर अभी कम है।।
मैं अपने प्यार का इज़हार करूँ तो कैसे।
बस इतनी बात को कहने में ये सदी कम है।।
मैं खुद को आइने में देख के ड़र जाता हूँ।
ये है बदमाश बहुत इसमें सादगी कम है।।
चलो अच्छा हुआ तुम मिल गये कुछ बात करें।
लोग बस कहते हैं सुनने को वक्त भी कम है।।
१.
मेरे नज़दीक से तू जब भी गुज़र जाती है।
यूँ लगा जैसे ये दुनिया ही ठहर जाती है।।
मैंनें रोका है नज़र को उधर नहीं देखूँ।
तू जिधर है, नज़र हर बार उधर जाती है।।
तेरी आँखों से तेरी हाँ का यकीं होता है।
जुबाँ को जाने क्या हुआ है कि ड़र जाती है।।
जाने क्या बात है महसूस यही होता है।
आजकल आजकल में उम्र गुज़र जाती है।।
आँख से आँख तक नज़रों का सफ़र लम्बा था।
एक पूरी सदी लम्हे में गुजर जाती है।।
अपने मोबाईल से नम्बर हटा दिया लेकिन।
तेरी तस्वीर निगाहों में उतर जाती है।।
२.
क्या हुआ वो अगर नहीं मिलता।
यूं भी मिलता है पर नहीं मिलता।।
रास्ते हैं जुदा, जुदा मंजिल।
बन के वो हम सफ़र नहीं मिलता।।
शब्द के अर्थ ही बदल ड़ाले।
वरना मुझको सिफ़र नहीं मिलता।।
दिल में जो है वही जुबाँ पर हो।
झूठ से ये हुनर नहीं मिलता।।
मैंने तुमसे कहा सुना तुमने।
कोई उत्तर मगर नहीं मिलता।।
३.
मेरी बस्ती के च़रागों में रोशनी कम है।
लोग ज़िन्दा हैं मगर इनमें ज़िन्दगी कम है।।
एक नलका है जिसपे भीड़ बहुत भारी है।
प्यास बस्ती में है इतनी कि इक नदी कम है।।
सबकी आँखों में कई स्वप्न झिलमिलाते हैं।
कुछ तो साकार हो चुके हैं पर अभी कम है।।
मैं अपने प्यार का इज़हार करूँ तो कैसे।
बस इतनी बात को कहने में ये सदी कम है।।
मैं खुद को आइने में देख के ड़र जाता हूँ।
ये है बदमाश बहुत इसमें सादगी कम है।।
चलो अच्छा हुआ तुम मिल गये कुछ बात करें।
लोग बस कहते हैं सुनने को वक्त भी कम है।।