(४.०५.१९५३---२७.०६.२०११)
१
आज उनको सलाम कर आए
ज़िंदगी को तमाम कर आए
चंद ख़ुशियां जो पास थीं अपने
आज वो उनके नाम कर आए
सुबह होते ही हम गए थे वहां
बातों-बातों में शाम कर आए
जाने क्या देखा उनकी आंखों में
जो गए , दिल को थाम कर आए
ख़ुश्क ज़ाहिद दिखाई देते थे
पैश उनको भी जाम कर आए
उनके क़दमों में गिर पड़े थे मगर
जब उठे हाथ थाम कर आए
अब न ‘अनजान’ रूठ पाएंगे
रूठना तो हराम कर आए
२.
देर तक आज ज़िक्रे-यार चले
तीर इस दिल के आर-पार चले
चार दिन उम्र के गुज़ार चले
शोर बरपा हुआ ‘निसार’ चले
उसका क्या दिल पे इख़्तियार चले
जिस पे शमशीरे-आबदार चले
पास जो कुछ था वक्फ़ कर डाला
है सफ़र लम्बा , किससे बार चले
जो उठे तेरी बज्म से सीधे
मिस्ले-मंसूर सू-ए-दार चले
तेरी रहमत को कब गवारा है
सर झुकाए गुनाहगार चले
उम्रे-रफ़्ता की याद आती है
सिर्फ़ धुन थी कि रोज़गार चले
मेरे मरने पे जश्न मत रोको
दुनिया, दुनिया है , कारोबार चले
अलविदा अहले-गुलसितां ! हम तो
सू-ए-सहरा-ओ-खारज़ार चले
दावरे-हश्र ने पुकारा जब
हम ही ‘अनजान’ ख़ुशगवार चले
३.
शहंशाही तख़य्युल है , मुकद्दर है फ़क़ीराना
कोई देखे तो किस अंदाज़ से जीता है दीवाना
लड़ाते आए हैं दैरो-हरम सदियों से इंसां को
मगर लड़तों को मिलवाता रहा है सिर्फ़ मयखाना
लगा है साये-सा पीछे , ये शैतां जानले आदम
न इसकी बातों में आना , पड़ेगा वरना पछताना
मज़ारों पर नहूसत का ज़रा तुम हाल तो देखो
कभी इन नाज़नीनों का भी था अंदाज़े-सुलताना
गया जो वक़्त हर्गिज़ लौट कर आता नहीं लेकिन
मैं फौरन दौड़े आऊंगा , कभी तुम दिल से बुलवाना
न आहट ही हुई कोई , न थी उम्मीद आने की
हमेशा याद आएगा तेरा चुपके से यूं आना
हमें ‘अनजान’ कितना नाज़ है ज़ख़्मों पे मत पूछो
गवारा कैसे करलें दोस्तों फिर इनका भर जाना
४.
जो मुहब्बत से आश्’ना होगा
दोस्तों ! वो न फ़िर फ़ना होगा
मिस्ल शम्मा के जो जला होगा
तीरगी से वो ही लड़ा होगा
कर भला तेरा भी भला होगा
किसलिए तेरा फ़िर बुरा होगा
हुस्न जब आपका ढला होगा
कितना हैरान आईना होगा
दरमयां पर्दा-ए-हया होगा
शौक़े-दीदार फ़िर सिवा होगा
इश्क़ उस वक़्त कीमिया होगा
दर्दे-दिल जब भी लादवा होगा
रिंद है , पारसा लगा होगा
कोई अनजान से मिला होगा
५.
दोस्तों ! वो न फ़िर फ़ना होगा
मिस्ल शम्मा के जो जला होगा
तीरगी से वो ही लड़ा होगा
कर भला तेरा भी भला होगा
किसलिए तेरा फ़िर बुरा होगा
हुस्न जब आपका ढला होगा
कितना हैरान आईना होगा
दरमयां पर्दा-ए-हया होगा
शौक़े-दीदार फ़िर सिवा होगा
इश्क़ उस वक़्त कीमिया होगा
दर्दे-दिल जब भी लादवा होगा
रिंद है , पारसा लगा होगा
कोई अनजान से मिला होगा
५.
चीख तो चीख है सदा तो नहीं
माना बहरे नहीं , सुना तो नहीं
जो तेरे दर पे सर को फोड़े है
देखले तेरा आश्’ना तो नहीं
जब हिकायते-दर्द उसने सुनी
उसके चेहरे का रंग उड़ा तो नहीं
मिस्ले-मंसूर बाद में मेरे
दार पर दूसरा चढ़ा तो नहीं
ज्यों का त्यों लौट आया ख़त मेरा
शुक्र है उसने ये पढ़ा तो नहीं
सहमा कोने में कौन बैठा है
देखलो , वो कहीं ख़ुदा तो नहीं
बूंदा-बूंदी है आज सहरा में
आबलों से धुआं उठा तो नहीं
न सही रू’नुमां निगाहों में
नक़्श जो दिल में है मिटा तो नहीं
जाने क्यों मेरा नाम लेते नहीं
इतना अन्जान मैं बुरा तो नहीं
माना बहरे नहीं , सुना तो नहीं
जो तेरे दर पे सर को फोड़े है
देखले तेरा आश्’ना तो नहीं
जब हिकायते-दर्द उसने सुनी
उसके चेहरे का रंग उड़ा तो नहीं
मिस्ले-मंसूर बाद में मेरे
दार पर दूसरा चढ़ा तो नहीं
ज्यों का त्यों लौट आया ख़त मेरा
शुक्र है उसने ये पढ़ा तो नहीं
सहमा कोने में कौन बैठा है
देखलो , वो कहीं ख़ुदा तो नहीं
बूंदा-बूंदी है आज सहरा में
आबलों से धुआं उठा तो नहीं
न सही रू’नुमां निगाहों में
नक़्श जो दिल में है मिटा तो नहीं
जाने क्यों मेरा नाम लेते नहीं
इतना अन्जान मैं बुरा तो नहीं