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सन्देश

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और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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मंगलवार, 14 मई 2013

अर्जुन कवि के दोहे


अर्जुन अनपढ़ आदमी पढ्यौ न काहू ज्ञान ।
मैंने तो दुनिया पढ़ी जन-मन लिखूँ निदान ।।1।।

ना कोऊ मानव बुरौ ब्रासत लाख बलाय।
जो हिन्दू ईसा मियाँ भेद अनेक दिखाय ।।2।।

बस्यौ आदमी में नहीं ब्रासत में सैतान ।
अर्जुन सब मिल मारिये बचै जगत इन्सान ।।3।।

कुदरत की कारीगरी चलता सकल जहान ।
सब दुनिया वा की बनी को का करै बखान ।।4।।

रोटी तू छोटी नहीं तो से बड़ौ न कोय ।
राम नाम तो में बिकै छोड़ैं सन्त न तोय ।।5।।

हिन्दू तौ हिन्दू जनै मुस्लिम मुस्लिम जान ।
ना कोऊ मानव जनै है गौ बाँझ जहान ।।6।।

राज मजब विद्या धनै घिस गे चारों बाँट ।
मनख न पूरा तुल सका एक-एक से आँट ।।7।।

राज मजब विद्या धनै ऊँचे बेईमान ।
भोजन वस्त्र मकान दे पद नीचौ ईमान ।।8।।

राजा सिंह समान है चीता मजहब ज्ञान ।
धन बिल्ली-सा छल करै विद्या बन्दर जान ।।9।।

प्राणदान शक्ती रखै अर्जुन एक किसान ।
राज मजब विद्या धनै हैं सब धूरि समान ।।10।।