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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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रविवार, 26 मई 2013

बी. आर. विप्लवी


परिचय : बी. आर. विप्लवी
कार्य: अपर मंडल रेल प्रबंधक-पूर्व मध्य रेल,मुगलसराय
सम्पर्क :  brviplavi@gmail.com
प्रमुख कृतियाँ : सुबह की उम्मीद (ग़ज़ल संग्रह), वाणी प्रकाशन
१.
मुझे वह इस तरह से तोलता है
मिरी क़ीमत घटा कर बोलता है

वो जब भी बोलता है झूठ मुझसे
तो पूरा दम लगाकर बोलता है

मैं अपनी ही नज़र से बच रहा हूँ
न जाने कौन ऐसे खोलता है

जुबां काटी ताअरुर्फ़ यूँ कराया
यही है जो बड़ा मुंह बोलता है

मुझे तो ज़हर भी अमृत लगे हैं
वो कानों में अज़ब रस घोलता है


२.
ज़रूरत के मुताबिक़ चेहरे लेकर साथ चलता है
मिरा दमसाज़ ये देखें मुझे कैसे बदलता है

कहीं हो एक दो तो हम बुझाने की भी सोचेंगे
यहाँ हर गाम में शोले हैं सारा मुल्क़ जलता है

इसे अब खेल गुड्डे गुड़िया का अच्छा नहीं लगता
फ़क़त बारूद और बन्दूक से बच्चा बहलता है

हमारी टूटी छत पर धूप भी बरसा गई पानी
ये मौसम 'विपल्वी' के साथ कैसी चाल चलता है


३.
उम्र की दास्तान लम्बी है
चैन कम है थकान लम्बी है

हौसले देखिए परिंदों के
पर कटे हैं उड़ान लम्बे हैं

पैर फिसले ख़ताएँ याद आईं
कैसे ठहरें ढलान लम्बी है

ज़िंदगी की ज़रूरतें समझो
वक़्त कम है दुकान लम्बी है

झूठ-सच जीत-हार की बातें
छोड़िए दास्तान लम्बी है


४.
ये कौन हवाओं में ज़हर घोल रहा है
सब जानते हैं कोई नहीं बोल रहा है

बाज़ार कि शर्तों पे ही ले जाएगा शायद
वो आँखों ही आँखों में मुझे तोल रहा है

मर्दों की नज़र में तो वो कलयुग हो कि सतयुग
औरत के हसीं जिस्म का भूगोल रहा है

तू ही न समझ पाए कमी तेरी है वरना
दरवेश की सूरत में ख़ुदा बोल रहा है

जो ख़ुद को बचा ले गया दुनिया की हवस से
इस दौर में वह शख़्स ही अनमोल रहा है


५.
दूर से ही क़रीब लगते हैं
उनसे रिश्ते अज़ीब लगते हैं

उनकी आराइशों से क्या लेना
उनके गेसू सलीब लगते हैं

जो हुकूमत से लड़ते रहते हैं
वो बड़े बदनसीब लगते हैं

नेक नीयत नहीं दुआओं में
लोग दिल से ग़रीब लगते हैं

'विप्लवी' सोने की कलम वाले
आज आला अदीब लगते हैं


६.
थक गई है नज़र फिर भी उम्मीद है
उनका आना टला टल गई ईद है

सोचता ही रहा तुम तो ऐसे न थे
कहके आते नहीं किसकी तक़ीद है

ख़त पढूं ख्वाब देखूं कि ज़िंदा रहूँ
वो न आँखें न वह ताक़ते दीद है


७.
जहाँ शीशे तराशे जा रहे हैं
वहीं पत्थर तलाशे जा रहे हैं

कुआँ खोदा गया था जिनकी ख़ातिर
वही प्यासे के प्यासे जा रहे हैं

कहाँ सीखेंगे बच्चे जिद पकड़ना
सभी मेले तमाशे जा रहे हैं

जिन्हें महफ़िल में ढूँढा जाएगा फिर
वही मेरी बला से जा रहे हैं


८.
तू हजारों ख़्वाहिशों में बँट गई
ज़िन्दगी क़ीमत ही तेरी घट गई

सुबह की उम्मीद यूँ रोशन रही
इस भरोसे रात काली कट गई

पहले मुझसे तुम कि मैं तुमसे मिला
ये बताओ किसकी इज़्ज़त घट गई

तिश्नगी सहराओं सी बढती गई
जुस्तजू में उम्र सारी कट गई

'विप्लवी' इस हिज्र के क्या वहम थे
हो गया दीदार कड़वाहट गई


९.
आँख का फ़ैसला दिल की तज्वीज़ है
इश्क़ गफ़लत भरी एक हंसी चीज़ है

आँख खुलते ही हाथों से जाती रही
ख़्वाब में खो गई कौन सी चीज़ है

मैं कहाँ आसमाँ की तरफ देखता
मेरे सजदों को जब तेरी दहलीज़ है

दिल दुखाकर रुलाते हैं आते नहीं
क्या ये अपना बनाने की तज्वीज़ है

हो न पाएगी जन्नत ज़मीं से हंसी
'विप्लवी' ज़िन्दगी ही बड़ी चीज़ है


१०.
इबादतख़ाने ढाए जा रहे हैं
सिनेमाघर बनाए जा रहे हैं

फिरें आजाद क़ातिल और पहरे
शरीफ़ों पर बिठाए जा रहे हैं

क़लम करना था जिनका सर ज़रूरी
उन्हीं को सर झुकाए जा रहे हैं

सुयोधन मुन्सिफ़ी के भेष में हैं
युधिष्ठर आज़माए जा रहे हैं

लड़े थे 'विप्लवी' जिनके लिए हम
उन्हीं से मात खाए जा रहे हैं


११. 
मैं मुसाफिर था गुमनाम चलता रहा
आपके प्यार में दिल बहलता रहा

मैं उजालों का पैगाम लेकर चला
आँधियों में दिया बनकर जलता रहा

मेरी मिहनत को नाकामियाँ क्यों मिली
होम करने में क्यों हाथ जलता रहा

हर्फ छेनी-हथौड़ी से अनगिन लिखे
हाथ की ख़म लकीरें बदलता रहा

मैं खतावार बनकर जिऊँ किसलिए
इस अना के लिए दम निकलता रहा

कौन मेहनत करे किसको सुहरत मिले
देख अन्याय यह दिल दहलता रहा

भूल जाना मिरी खामियाँ दोस्तो
फिर मिलूँगा अगर दम ये चलता रहा

विप्लवी’ कामयाबी उसी का है हक़
जो गिरा और गिरकर सँभलता रहा
१२. 

जनता‬ का हक़ मिले कहाँ से, चारों ओर ‪दलाली‬ है |
‪चमड़े‬ का दरवाज़ा है और ‪कुत्तों‬ की रखवाली है ||

‪मंत्री‬, नेता, अफसर, मुंसिफ़ सब जनता के सेवक हैं |
ये जुमला भी प्रजातंत्र के मुख पर ‪भद्दी गाली‬ है ||

उसके हाथों की ‪कठपुतली‬ हैं सत्ता के ‪शीर्षपुरुष‬ |
कौन कहे संसद में बैठा ‪गुंडा और मवाली‬ है ||

सत्ता ‪बेलगाम‬ है जनता ‪गूँगी बहरी‬ लगती है |
कोई उज़्र न करने वाला कोई नहीं ‪सवाली‬ है ||

सच को यूँ ‪मजबूर‬ किया है देखो झूठ बयानी पर |
‪माला फूल‬ गले में लटके पीछे सटी ‪दोनाली‬ है ||

‪दौलत शोहरत‬ बँगला गाड़ी के पीछे सब भाग रहे हैं |
‪फसल जिस्म‬ की हरी भरी है ‪ज़हनी रक़बा‬ खाली है ||

‪सच्चाई‬ का जुनूँ उतरते ही हम ‪मालामाल‬ हुए |
हर सूँ यही हवा है ‪रिश्वत‬ हर ताली ताली है ||

वो ‪सावन‬ के अंधे हैं उनसे मत पूँछो रुत का हाल |
उनकी खातिर हवा ‪रसीली‬ चारों सूँ ‪हरियाली‬ है ||

‪पंचशील‬ के नियमो में हम खोज रहे हैं सुख साधन |
चारों ओर ‪महाभारत‬ है दाँव चढ़ी ‪पञ्चाली‬ है ||

पहले भी ‪मुगलों-अंग्रेजो‬ ने जनता का ‪‎खून पिया‬ |
आज 'विप्लवी' भेष बदलकर नाच रही खुशहाली है ||