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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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सोमवार, 13 मई 2013

बृजेश नीरज के दोहे

जन्म- 19-08-1966 लखनऊ, उतर प्रदेश। 
शिक्षा- एम0एड0, एल0एल0बी0, लेखन विधाएँ- छंदमुक्त, गीत, सॉनेट, 
सम्पर्क-ईमेल- brijeshkrsingh19@gmail.com,ब्लॉग- Voice of Silent Majority,(http://voice-brijesh.blogspot.com),
निवास- छितवापुर रोड, लखनऊ-226001
सम्प्रति- उ0प्र0 सरकार का कर्मचारी।
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कंचन काया कामिनी, डोलत कटि ज्यों डोर।

मोहक अति मन भावनी, भ्रमर सरिस चित चोर।।

नैनन में कजरा भरे, चितवन चतुर चकोर।
इत उत खोजत फिरत है, नटखट श्याम किशोर।।


काटे से तो नहि कटी, पानी की ये धार।

छोटी सी इक बात ने, बाँटा घर संसार।।

अब तो मन बैरी भया, पिया मिलन की आस। 
बासंती मधुबन भया, बढ़ती जाए प्यास।।

टेसू, सरसों सब खिले, आंगन में मलमास।
रंग सभी फीके हुए, पिया नहीं जो पास।।

बागों में कलियां खिलीं, पेड़ सभी हरियाय।
मैं पतझड़ की बेल सी, सूखत दिन दिन जाय।

इस होली के रंग में, डूबा सब संसार।
तुम बिन सूनी मैं हुई, सूना ये घर द्वार।।