डॉ. राही मासूम रजा का जन्म १ अगस्त १९२७ को, गंगौली, गाजीपुर (उत्तर प्रदेश)
१.
जिनसे हम छूट गये अब वो जहाँ कैसे हैं
शाखे गुल कैसे हैं खुश्बू के मकाँ कैसे हैं ।
ऐ सबा तू तो उधर से ही गुज़रती होगी
उस गली में मेरे पैरों के निशाँ कैसे हैं ।
कहीं शबनम के शगूफ़े कहीं अंगारों के फूल
आके देखो मेरी यादों के जहाँ कैसे हैं ।
मैं तो पत्थर था मुझे फेंक दिया ठीक किया
आज उस शहर में शीशे के मकाँ कैसे हैं ।
२.
अजनबी शहर के अजनबी रास्ते
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे।
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहा
तुम बहुत देर तक याद आते रहे।
ज़हर मिलता रहा ज़हर पीते रहे
रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे।
ज़िंदगी भी हमे आजमाती रही
और हम भी उसे आजमाते रहे।
ज़ख्म जब भी कोई जहन-ओ-दिल पे लगा
ज़िंदगी की तरफ एक दरीचा खुला
हम भी गोया किसी साज़ के तार हैं
चोट खाते रहे गुनगुनाते रहे।
कल कुछ ऐसा हुआ मैं रोकर गया
इसलिए सुन के भी अनसुनी कर गया।
कितनी यादों के भटके हुआ कारवाँ
दिल के ज़ख्मों के दर खटखटाते रहे।
सख्त हालात के तेज़ तूफानों,
गिर गया था हमारा जुनूने वफ़ा
हम चिराग़े-तमन्ना़ जलाते रहे,
वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे ।
१.
जिनसे हम छूट गये अब वो जहाँ कैसे हैं
शाखे गुल कैसे हैं खुश्बू के मकाँ कैसे हैं ।
ऐ सबा तू तो उधर से ही गुज़रती होगी
उस गली में मेरे पैरों के निशाँ कैसे हैं ।
कहीं शबनम के शगूफ़े कहीं अंगारों के फूल
आके देखो मेरी यादों के जहाँ कैसे हैं ।
मैं तो पत्थर था मुझे फेंक दिया ठीक किया
आज उस शहर में शीशे के मकाँ कैसे हैं ।
२.
अजनबी शहर के अजनबी रास्ते
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे।
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहा
तुम बहुत देर तक याद आते रहे।
ज़हर मिलता रहा ज़हर पीते रहे
रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे।
ज़िंदगी भी हमे आजमाती रही
और हम भी उसे आजमाते रहे।
ज़ख्म जब भी कोई जहन-ओ-दिल पे लगा
ज़िंदगी की तरफ एक दरीचा खुला
हम भी गोया किसी साज़ के तार हैं
चोट खाते रहे गुनगुनाते रहे।
कल कुछ ऐसा हुआ मैं रोकर गया
इसलिए सुन के भी अनसुनी कर गया।
कितनी यादों के भटके हुआ कारवाँ
दिल के ज़ख्मों के दर खटखटाते रहे।
सख्त हालात के तेज़ तूफानों,
गिर गया था हमारा जुनूने वफ़ा
हम चिराग़े-तमन्ना़ जलाते रहे,
वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे ।