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सन्देश

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और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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सोमवार, 13 मई 2013

विजेंद्र शर्मा के दोहे



सरहद से आया नहीं , होली पे क्यूँ लाल !
माँ की आँखें रंग से , करती रही सवाल !!

सच करना था झूठ को, बोले कितने झूठ !
जो मैं सच ही बोलता , आफत जाती छूट !!

इक सच बोला और फिर , देखा ऐसा हाल !
कुछ ने नज़रें फेर ली,कुछ की आँखें लाल !!

उल्टे - सीधे काफ़िये , ना ढंग का रदीफ़ !
कह दी सच्ची बात तो , शायर को तकलीफ़ !!

तपने से परहेज़ है , छपने का है चाव !
जो दिख लावे आइना ,उस पे खावे ताव !!

ये मेरे महबूब का ,कैसा अजब स्वभाव !
कभी जतावे प्यार तो ,कभी दिखावे ताव !!

पहरेदारी मुल्क़ की , सौंप हमारे हाथ !
पूरा भारत चैन से , सोये सारी रात !!

बिटिया बिन हो जायगा , मरघट ये संसार !
खिलने दे इस फूल को , तोड़ इसे ना यार !!

बिन बिटिया सब सून है , इतना तो तूं सोच !
तितली है ये बाग़ की ,पर ना इसके नोच !!

महबूबा सी है लगे , सरहद बनी लकीर !
नज़र उठी इस और तो , सीना देंगे चीर !!

कहाँ गई वो लोरियां , कहाँ गये वो चाव !
बच्चों ने भी फाड़ दी , काग़ज़ वाली नाव !!

दोहा है ना काव्य है ,बस छपने की होड़ !
पाठक पढ़कर श्राप दे ,ऐसा लिखना छोड़ !!

ज़रा -ज़रा सी बात पे ,आवे उसको ताव !
शायद ताज़ा हो गया , कोइ पुराना घाव !!

सरहद के ही नाम है , जीवन सारा यार !
सीमाएँ महफूज़ है , हम जो पहरेदार !!

सरहद ही बस तीर्थ है , सरहद ही है धाम !
सरहद पे ही काट दी , हमने उमर तमाम !!

दौलत की आग़ोश में , हुए खूब मशहूर !
पर अपनों से हो गये , यारों कौसों दूर !!

हिन्दी -उर्दू बैठ के , एक साथ में रोय
आशिक़ दोनों के बड़े , माँग भरे ना कोय 

माह सितम्बर आय है ,माह सितम्बर जाय 
हिन्दी हिन्दी तो करें ,कोई ना अपनाय 

या तो कह दो प्यार है , या कह दो तक़रार !
छोड़ो ना मझदार में , आर करो या पार !!

होंठ लगे जब काँपने, करने में इज़हार !
तब नैनों ने ये कहा ,मुझको तुमसे प्यार !!