१.
रात-दिवस, पूनम-अमा, सुख-दुःख, छाया-धूप।
यह जीवन बहुरूपिया, बदले कितने रूप।।
समय बदलता देख कर, कोयल है चुपचाप।
पतझड़ में बेकार है, कुहू- कुहू का जाप।।
हंसों को कहने लगे, आँख दिखाकर काग।
अब बहुमत का दौर है, छोड़ो सच के राग।।
अपमानित है आदमी, गोदी में है स्वान।
मानवता को दे रहे, हम कैसी पहचान।।
मोती कितना कीमती, दो कौड़ी की सीप।
पथ की माटी ने दिये, जगमग करते दीप।।
लेने देने का रहा, इस जग में व्यवहार।
जो देगा सो पायेगा, इतना ही है सार।।
इस दुनिया में हर तरफ, बरस रहा आनन्द ।
वह कैसे भीगे, सखे! जो ताले में बन्द।।
जीवन कागज की तरह, स्याही जैसे काम।
जो चाहो लिखते रहो, हर दिन सुबहो-शाम।।
नयी पीढि़यों के लिए, जो बन जाते खाद।
युगों युगों तक सभ्यता, रखती उनको याद।।
२.
कहने को कहते रहें, सब ही इसे असार।
सदा सारगर्भित रहा, यह सुन्दर संसार।।
द्रवित हो गये देखकर, जो औरों की पीर।
वंदनीय वह दे सके, जो परमार्थ शरीर।।
लेने की वारी रहा, कितना रस, सुख चैन।
देने में क्यों हो गये, लाल तुम्हारे नैन।।
स्वार्थ के अवलम्ब पर, जीवित हो सम्बन्ध।
जीवन भर नही आयेगी, अपनेपन की गन्ध।।
रे मन, पतझड़ को यहां, रूकना है दिन चार।
जीवन में आ जायेगी, फिर से नयी बहार।।
मन की शक्ति से सदा, चलता यह संसार।
टूट गया मन तो समझ, निष्चित अपनी हार।।
भेषज बहु बाधा हरे, कितने मिले प्रमाण।
पर जीवन भर भेदते, कटु वाणी के बाण।।
कठिन काम कोई नहीं, जारी रखो प्रयास।
आ जायेगी एक दिन, स्वंय सफलता पास।।
कभी नहीं कम हो सके, जग में खिलते फूल।
कमी तुम्हारी ही रही, रहे बीनते शूल।।
कौन महत्तम, कौन लघु, सब का अपना सत्व।
सदा जरूरत के समय, मालुम पड़ा महत्व।।