" हिन्दी काव्य संकलन में आपका स्वागत है "


"इसे समृद्ध करने में अपना सहयोग दें"

सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
हिन्दी काव्य संकलन में उपल्ब्ध सभी रचनायें उन सभी रचनाकारों/ कवियों के नाम से ही प्रकाशित की गयी है। मेरा यह प्रयास सभी रचनाकारों को अधिक प्रसिद्धि प्रदान करना है न की अपनी। इन महान साहित्यकारों की कृतियाँ अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाना ही इस ब्लॉग का मुख्य उद्देश्य है। यदि किसी रचनाकार अथवा वैध स्वामित्व वाले व्यक्ति को "हिन्दी काव्य संकलन" के किसी रचना से कोई आपत्ति हो या कोई सलाह हो तो वह हमें मेल कर सकते हैं। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जायेगी। यदि आप अपने किसी भी रचना को इस पृष्ठ पर प्रकाशित कराना चाहते हों तो आपका स्वागत है। आप अपनी रचनाओं को मेरे दिए हुए पते पर अपने संक्षिप्त परिचय के साथ भेज सकते है या लिंक्स दे सकते हैं। इस ब्लॉग के निरंतर समृद्ध करने और त्रुटिरहित बनाने में सहयोग की अपेक्षा है। आशा है मेरा यह प्रयास पाठकों के लिए लाभकारी होगा.(rajendra651@gmail.com)

फ़ॉलोअर

सोमवार, 13 मई 2013

त्रिलोक सिंह ठकुरेला के दोहे


१.
रात-दिवस, पूनम-अमा, सुख-दुःख, छाया-धूप। 
यह जीवन बहुरूपिया, बदले कितने रूप।। 

समय बदलता देख कर, कोयल है चुपचाप।
पतझड़ में बेकार है, कुहू- कुहू का जाप।। 

हंसों को कहने लगे, आँख दिखाकर काग। 
अब बहुमत का दौर है, छोड़ो सच के राग।। 

अपमानित है आदमी, गोदी में है स्वान। 
मानवता को दे रहे, हम कैसी पहचान।। 

मोती कितना कीमती, दो कौड़ी की सीप। 
पथ की माटी ने दिये, जगमग करते दीप।। 

लेने देने का रहा, इस जग में व्यवहार। 
जो देगा सो पायेगा, इतना ही है सार।। 

इस दुनिया में हर तरफ, बरस रहा आनन्द । 
वह कैसे भीगे, सखे! जो ताले में बन्द।। 

जीवन कागज की तरह, स्याही जैसे काम। 
जो चाहो लिखते रहो, हर दिन सुबहो-शाम।। 

नयी पीढि़यों के लिए, जो बन जाते खाद। 
युगों युगों तक सभ्यता, रखती उनको याद।। 

२.
कहने को कहते रहें, सब ही इसे असार। 
सदा सारगर्भित रहा, यह सुन्दर संसार।। 

द्रवित हो गये देखकर, जो औरों की पीर। 
वंदनीय वह दे सके, जो परमार्थ शरीर।। 

लेने की वारी रहा, कितना रस, सुख चैन। 
देने में क्यों हो गये, लाल तुम्हारे नैन।। 

स्वार्थ के अवलम्ब पर, जीवित हो सम्बन्ध। 
जीवन भर नही आयेगी, अपनेपन की गन्ध।।

रे मन, पतझड़ को यहां, रूकना है दिन चार। 
जीवन में आ जायेगी, फिर से नयी बहार।। 

मन की शक्ति से सदा, चलता यह संसार। 
टूट गया मन तो समझ, निष्चित अपनी हार।। 

भेषज बहु बाधा हरे, कितने मिले प्रमाण। 
पर जीवन भर भेदते, कटु वाणी के बाण।। 

कठिन काम कोई नहीं, जारी रखो प्रयास। 
आ जायेगी एक दिन, स्वंय सफलता पास।। 

कभी नहीं कम हो सके, जग में खिलते फूल। 
कमी तुम्हारी ही रही, रहे बीनते शूल।। 

कौन महत्तम, कौन लघु, सब का अपना सत्व। 
सदा जरूरत के समय, मालुम पड़ा महत्व।।