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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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रविवार, 25 अगस्त 2013

आरसी प्रसाद सिंह


परिचय: 
जन्म: 19 अगस्त 1911,आरसी बाबू का जन्म बिहार के समस्तीपुर जिले के एरौत गाँव में 
निधन: 15 नवंबर 1996.
कुछ प्रमुख कृतियाँ: कविता संग्रह : आजकल, कलापी, संचयिता, आरसी, जीवन और यौवन, नई दिशा, पांचजन्य.साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित।

1.
हो गई हैं चार आँखें यार से
लड़ गई तलवार क्यों तलवार से

आप क्या हैं ? आपको मालूम क्या ?
पूछिये अपने किसी बीमार से


प्यार का कुछ और ही दस्तूर है 
रंग लाता और कुछ तकरार से

मौत ने क्यों कर दिया हमको अलग ?
हम कभी चिपके न थे संसार से


शत्रु को हरगिज न छोटा जानिए 
जल गया घर एक ही अंगार से

किस बला का नाम औरत रख दिया ?
कौन बचता है दुतरफ़ा धार से

ज़िंदगी ही जब सलामत है नहीं
माँग क्या कुछ और हो सरकार से

जो बनी अपनी हिफ़ाजत के लिए
हम गये टकरा उसी दीवार से


आदमी हम भी कभी थे काम के 
गो कि लगते हैं कभी बेकार से

अब कमर कस कूच करना चाहिए
आ रही आवाज़ सीमा पार से

2.

दिल हमारा लापता है शाम से
कर रहा है क्या ? गया किस काम से

दर्द ले कर दिल हमारा ले लिया
हो गए दोनों बड़े अंजाम से

लाश में ही जान अब तो डालिए
एक भी बाक़ी न क़त्लेआम से

आप हों चाहे न जितनी दूर क्यों ?
जी रहे हम आपके ही नाम से

ज़िंदगी गुज़री मुसीबत से भरी
मर गए हम तो बहुत आराम से

3.

आपके इस शहर में गुज़ारा नहीं
अजनबी को कहीं पर सहारा नहीं

बह गया मैं अगर, तो बुरा क्या हुआ ?
खींच लेती किसे तेज़ धारा नहीं

आरज़ू में जनम भर खड़ा मैं रहा
आपने ही कभी तो पुकारा नहीं

हाथ मैंने बढ़ाया किया बारहा
आपको साथ मेरा गवारा नहीं

मौन भाषा हृदय की उन्हें क्यों छुए ?
जो समझते नयन का इशारा नहीं

मैं भटकता रहा रौशनी के लिए
गगन में कहीं एक तारा नहीं

लौटने का नहीं अब कभी नाम लो
सामने है शिखर और चारा नहीं

बस, लहर ही लहर एक पर एक है
सिंधु ही है, कहीं भी किनारा नहीं

ग़ज़ल की फसल यह इसी खेत की
किसी और का घर सँवारा नहीं

4.

तुम्हारी प्रेम-वीणा का अछूता तार मैं भी हूँ
मुझे क्यों भूलते वादक विकल झंकार मैं भी हूँ

मुझे क्या स्थान-जीवन देवता होगा न चरणों में
तुम्हारे द्वार पर विस्मृत पड़ा उपहार मैं भी हूँ

बनाया हाथ से जिसको किया बर्बाद पैरों से
विफल जग में घरौंदों का क्षणिक संसार मैं भी हूँ

खिला देता मुझे मारूत मिटा देतीं मुझे लहरें
जगत में खोजता व्याकूल किसी का प्यार मैं भी हूँ

कभी मधुमास बन जाओ हृदय के इन निकुंजों में
प्रतीक्षा में युगों से जल रही पतझाड़ मैं भी हूँ

सरस भुज बंध तरूवर का जिसे दुर्भाग्य से दुस्तर
विजन वन वल्लरी भूतल-पतित सुकुमार मैं भी हूँ