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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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शनिवार, 14 सितंबर 2013

एकता नाहर


विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित, अनेकों बार कवि सम्मलेन में प्रस्तुति,ग़ज़ल और कविताओं के अलावा कहानियां और कॉलम लिखने में भी रूचि है.सम्पर्क-ektanhr315@gmail.com

1.
रात की ख़ामोशी इस बात की गवाही है,
शायद आने वाली फिर एक नयी तबाही है!!

सहमा-सा हर मंजर सनसनी-सी फैली हुई,
सुनसान रास्तों पर शायद कोई आतंक का राही है!!

यह सीमा पार के हमले हैं या अपनों के हैं विद्रोह,
सारी रात कश्मीर ने इस सोच में बितायी है!!

जंग-ए-मैदान में पल-पल छलनी होते सीने,
मौत के सामानों ने कैसी होड़ मचाई है!!

‘एकता' अब तुमको भी हथियार उठाने होंगे,
अब फीकी पड़ने लगी तुम्हारी कलम की स्याही है!!

2.

ना बुराई के अँधेरों से डरा कीजिये,
मन को सदा रोशन रखा कीजिये !!

कभी न बन सकेगा सूरज रात का मेहमां,
बगावत न दीपों की लौ से किया कीजिये !!

मिल जायेंगे हर चेहरे में छिपे दशानन,
यूँ खुले आम न चेहरों से अनावरण किया कीजिये !!

हो जाये किसी गरीब के घर तक भी उजाला,
दिए इस तरह घर में जला कर रखा कीजिये !!

होना चाहते हो अगर मर्यादा पुरुषोत्तम राम,
तो न उसूलों के परिंदे को कभी रिहा कीजिये !!

फिर आई इसी उमंग के साथ दीवाली,
हर बुराई को अपने दिल से विदा कीजिये !!



3.
तन्हा नहीं कटते ज़िन्दगी के रास्ते,
हमसफ़र किसी को तो बनाना चाहिए था !!

शब् के अँधेरे गहरे थे बहुत,
मेरे लिए रौशनी किसी को तो जलाना चाहिए था !!

रोते हुए दिल की बात वो समझ ना सके,
शायद आँखों को भी आँसू गिराना चाहिए था !!

यूँ ही ऐतवार कर बेठे एक अजनबी पर हम,
एक बार तो उस शख्स को आजमाना चाहिए था !!