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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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मंगलवार, 20 अगस्त 2013

अख़्तर अज़ीज़ के सौ शेर


127, दोंदीपुर,इलाहाबाद-211003

हर क़दम इक नई सी आहट है।
कुछ नहीं, सिर्फ़ बौखलाहट है।1

दिल में चिनगारियां चटकती हैं,
मन की भट्टी में ताव कितना है।2

सिफ़ खुशियां बटोरने वालो,
दुःख भी रक्खा करो दुलार के साथ।3

जब तेरे दिल को जीत लिया,
तब सात समुन्दर पार हुए।4

उनसे होती मुसालेहत अपनी,
बीच में आ गयी मगर दुनिया।5

जब चढ़ी होगी बारगाह मेरी,
कितने चेहरे उतर गये होंगे।6

दर्द की चाह लग चुकी थी उसे,
ज़ख़्म उसका दवाइयों में था।7

कोई तहरीर उसकी सनद में नहीं,
गुफ्तगू जो हुई सब ज़बानी हुई।8

जो तरक़्क़ी पे नाज़ नहीं करता,
हमने उसका ज़वाल नहीं देखा।9

हर मरज़ की इश्क़ है दवा,
इश्क़ की दवाई क्या करें।10

मंजि़लों के नक़्श खो गये,
सर पे बस गुबार लाये हैं।11

उजाले को तरस जाएंगे इक दिन,
चराग़ों को जो मद्धम कर रहे हैं।12

मेरी तरह जीने का शौक़,
तन्हाई में जल के देख।13

करने वाले बुराई करते हैं,
मेरे हक़ में भलाई होती है।14

सारा संविधान घर में है,
जबसे हम वज़ीर बन गए।15

कोठी बंगला तुझको मुबारक,
मुझको रेगिस्तान बहुत है।16

आप मिलते नहीं हैं, अब कोई,
आप ही के समान मिल जाये।17

तीर तुमने चलाये सारे फ़ुजूल,
मैंने फेंका तो जा के बैठ गया।18

ख़्वाहिशों के जाल में उलझे हैं सब,
ऐसी हालत में करें फ़रियाद क्या।19

अब संभल के खोलिये अपनी ज़बां,
गुफ़्तगू के बीच ठोकर आ गयी।20

ग़ौर से अब न आइना देखो,
आइने पर असर न हो जाए।21

सुना है एक शख़्स मेहमान के खि़लाफ़ है।
वहां दुबारा जाउं मेरी शान के खि़लाफ़ है।22

अपनी खुशबू ज़रा सी क्या बिखरी,
फूल जलते हैं काग़ज़ी हमसे।23

दरिया झील समुन्दर तूफां आंखों में,
जादू टोना जंतर मंतर सब कुछ है।24

मूरती ऐसी बने संगतराशों से कहो,
आंख हीरे की बदन मोम का लब शीशे के।25

प्यासे जब भी पानी-पानी करते हैं,
दरिया वाले आना कानी करते हैं।26

गुबार-ए-राह बन जाओगे तुम भी,
अगर उलझोगे मेरी रहगुज़र से।27

जिसे अब चाहता कोई नहीं है,
वो मैं हूं दूसरा कोई नहीं है।28

कहानी में वही सहरा की बातें,
मगर उनवान दरिया रख दिया है।29

भूख लगे तो हम पानी पी लेते हैं,
रहना सहना हां मेअ-यारी होता है।30

शायद अब के जवाब आ जाए,
भेजिये एक ख़त जवाबी फिर।31

मेरी आंखों पे बंदिश यह लगी है,
तमन्नाओं का बादल अब न बरसे।32

बात साफ़-साफ़ हो चुकी,
बात की सफ़ाई क्या करें।33

शह्र की बिगड़ी हुई तहज़ीब पहुंचेगी ज़रूर,
गांव में अपने अगर पक्की सड़क आ जाएगी।34

चेहरे पे झुर्रियों के निशानात देखिये,
दिल ढल चुका है शाम हुई रात देखिये।35

रौनक़ से निकल कर कभी कम से कम,
आईये हम फ़क़ीरों का घर देखिये।36

एक काग़ज़ पे तेरा नाम लिखे बैठा हूं,
लोग पढ़ने लगे मुझको भी रिसालों की तरह।37

रास्ते में अपना दिल रक्खा है हमने इसलिये,
आपकी ठोकर लगेगी आईना हो जाएगा।38

सोचती हैं गोरियां मेहन्दी लगेगी हाथ में,
शाख़ कोई गुलसितां में जब हरी हो जाएगी।39

बालू की दीवार पे लोगों घर न कोई बन पायेगा,
कि़स्मत का हल ढूंढ रहे हो हाथों की रेखाओं में।40

मैं तन्हा रह के भी इक काफ़ला हूं,
किताबों में मेरी पहचान लिखिये।41

आराम करने आये मुसाफि़र वो ग़ार के,
मकड़ी ने जाल बुन दिये रेशम के तार के।42

ज़माने भर का जो एहसास अपने सर ले ले,
ज़माने वाले उसे ताजदार रखते हैं।43

बात बन जाए तो सबके आइनों की ख़ैर है,
बात बिगड़ेगी तो शीशे में दरक आ जाएगी।44

कश्तियों के ज़ख़्म भर के कोई दरिया पार कर,
वर्ना साहिल मिल न पाएगा तुझे पतवार से।45

सामने इक दोस्त आया है बड़ा हमदर्द है,
या इलाही फिर न मेरी पीठ में ख़न्जर लगे।46

न जाने कितनी तहरीरें उभर आएंगी लहरों पर,
सुना है वह समुन्दर में स्याही ले के डूबेगा।47

ग़ज़ल में खूं से बनी रोशनी देता हूं,
मैं अपने जे़ह्न की सारी कमाई देता हूं।48

जि़न्दगी नंगे बदन कांटों के बिस्तर पे कटी,
आख़री दम लोग फूलों की क़बा देने लगे।49

चैन से सो न सकें फूल के बिस्तर पे कभी,
नींद उचट जाए कोई दर्द का पहलू दे दे।50

जि़न्दगी दिल के धड़कने का है छोटा सा नाम,
और रगों में दौड़ता फिरता परिन्दा है लहू।51

तुम्हारे शह्र की ठोकर ने यह मक़ाम दिया,
ज़मीन वाले मुझे आसमान कहते हैं।52

दिलों की बस्तियां आबाद यूं होती नहीं अख़्तर,
दिलों में रास्ता तो आने जाने से निकलता है।53

बढ़ी जब प्यास तो एड़ी किसी ने ख़ूब रगड़ी थी,
ज़ख़ीरा बन गया है आज उसके पांव का पानी।54

जिस रस्ते पर चलने से तुम रोक रहे हो याद करो,
उस रस्ते पर चोरी-चोरी तुम भी तो सौ बार चले।55

गोद में लेकर थपेड़ों के हवाले कर दिया,
मुख़तलिफ़ है किस क़दर तूफां से साहिल का मिज़ाज।56

हम ग़रीबी की रिदा ओढ़ के सो जाते हैं,
तू तो बेचैन रहे कांच के ऐवानों में।57

एक जुमले से अगर दिल में ख़राश आ जाए,
बात छोटी ही सही फिर भी बड़ी लगती है।58

हर सुब्ह ये उम्मीद कि फैलेगा उजाला,
हर रात ये खटका कि सहर आए न आए।59

न जाने कब ज़मीन पर लहू-लहू बरस पड़ूं,
न छेड़ मुझको सुखऱ् आसमान हो रहा हूं मैं।60

मोम जैसा सिफ़त नहीं तुममे,
आदमी हो कि जैसे पत्थर हो।61

मैंने देखा ही नहीं तेरे सिवा दुनिया को,
बस इसी बात पे दुनिया को जलन होती है।62

ये मैंने कब कहा है ग़लतियां मुझसे नहीं होतीं,
बुराई ताक़ पे रक्खो, मेरी अच्छाइयां देखो।63

हक़ दबाने से सुकूं मिलेगा कैसे,
मुझको लौटा दो सलीके से अगर मेरा है।64

आंसू कभी ज़मीन पे गिरने नहीं दिया,
आंसू हमारे माओं के आंचल में खो गये।65

मैं तेरी कैफि़यत-ए-क़ल्ब जान लेता हूं,
कि तेरे दिल से मेरी रूह की तरंग मिले।66

मैं जिसको तीर चलाना सिखा के आया था,
वो मेरे सामने लेकर कमान बोलता है।67

इस क़दर रंज-ओ-ग़म से भरा है ये दिल,
अब मसाइल की इसमें खपत भी नहीं।68

जिसकी लौ देती है खुद्दारी को हर पल जि़न्दगी,
हम ग़रीबी की उसी मिट्टी में तप के आये हैं।69

सवाबी काम यूं तो आज दामन की ज़ीनत है,
मगर पैरों के नीचे से गुनहगारी नहीं जाती।70

मछलियां बेखौफ़ साहिल के क़रीब आने लगीं,
आदमी उलझा हुआ है आदमी के जाल में।71

मेरे दामन को हर दम मसअलों ने थाम रक्खा है,
इसी उलझाव में किस्मत ने भी आराम रक्खा है।72

तेरा मिलना एक मिसरे की तरह जान गया,
गुफ्तगू से हो गई फिर शेर की तकमील भी।73

कश्तियों के टूटने से या भंवर से क्यों डरें,
तैरना खुद आएगा हमको परेशानी के बाद।74

ज़रा सा छलकेगा अख़्तर उसे छलकने दो,
कटोरा दूध का अक्सर उबल के बैठता है।75

धरती पे लोग आए हैं उलझन समेट के,
हर आदमी के साथ मसाइल हैं पेट के।76

एक लमहा आज़माईश का अगर दे दे खुदा,
उस घड़ी को गर्दिश-ए-अय्याम बलाते हैं सब।77

मुसीबतों को ख़राशे छुपाए बैठा है,
मसरर्तों से लिये है उधार का चेहरा।78

कभी तीमारदारी करते-करते दूर जा बैठे,
मगर चाहत कुछ ऐसी फिर उसी बीमार तक पहुंचे।79

अगर बातें करो तो आंख के दरिया में खो जाओ,
बड़ा मुश्किल है इन जादूगरों से गुफ्तगू करना।80

ज़ेब-ए-तन मैंने किया उसके लिबासों का चलन,
लेकिन अच्छा न लगा मेरे बदन पर मख़मल।81

धड़कनों की तेज़ रफ्तारी से अब कितना डरें,
जि़न्दगी के सब मसाइल इख़तेलाजी हो गए।82

सुकून जब न मिला हमको शीश-महलों में,
हमीं ने तोड़ दिये आइनों के दरवाज़े।83

मुसीबतों के डर से अब तो बैठना फुजूल है,
उठ और रास्ते की सारी मुश्किलें ग़ुबार कर।84

सब दर्द खींच ले गया इक एक पोर से
उसने गले लगाया मुझे इतने ज़ोर से।85

सो जाये ंतो राजसिंहासन ख़्वाबों का मिल जाये,
जाग उठे तो सच्चाई का कांटा लगता है।86

अगर हो तश्नगी तो खुद ही पानी की तरफ जाओ,
किसी प्यासे की जानिब खुद कभी दरिया नहीं जाता।87

नित नये अंदाज़ में ग़ज़लों की शहज़ादी मिली,
हाथ में कंगन कभी पैरों में घुंघरूं बांध के।88

आप वादा किसी साये का न कीजेगा कभी,
आप गिरती हुई दीवार नज़र आते हैं।89

ये न समझो कि मसाइल से डरे बैठे हैं,
जान हम लोग हथेली पे धरे बैठे हैं।90

अजब सी जान लेवा हरकते करता है चुप रहकर,
उसे ख़ामोश रहने में महारत हो गई है क्या।91

अपने की हाथों बनाई इक इमारत की कशिश,
देखते हैं और खुद को दंग कर लेते हैं लोग।92

ये कालापन हमेशा जो नहाने से निकलता है,
धुंवा है ये बदन के कारख़ाने से निकलता है।93

रगों में लाल परी रक़्स करने लगती है,
ख़याल ओ ख़्वाब में जब अपसरायें बोलती है।94

कई कि़स्मों की चादर में लपेटे खु़द को बैठ हो,
मगर पहचान वाले सब तुम्हें पहचान लेते है। 95

तुम किसी की आंख में हो चांद सूरज की तरह,
हम तुम्हारी आंख के तारे हुए अच्छा हुआ।96

आईना देख के हैरत में न पडि़ये साहब,
आप में कुछ नहीं शीशे में बुराई होगी।97

कुछ आंधियों ने रेत के घर ढाये और कुछ,
हालात ने भी ख़्वाब संजोने नहीं दिये।98

अश्क निकलेंगे तो मोती सब्र का खो जाएगा,
हम अगर रोये तो फिर दरिया खंगाले जाएंगे।99

शीशमहलों के निवासी जंग क्या कर पाएंगे,
शीशमहलों की तरफ़ हम ले के पत्थर जाएं तो। 100
गुफ्तगू के जून-2012 अंक में प्रकाशित