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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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रविवार, 8 सितंबर 2013

मीना कुमारी

परिचय: 
जन्म: 01 अगस्त 1932,मुम्बई, महाराष्ट्र।
निधन: 31 मार्च 1972।
मीना कुमारी भारतीय हिन्दी सिनेमा की एक बहुत मशहूर अभिनेत्री थीं। 

टुकडे -टुकडे दिन बिता, धज्जी -धज्जी रात मिली
जितना -जितना आँचल था, उतनी हीं सौगात मिली

1.

आगाज़ तॊ होता है अंजाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वॊ नाम नहीं होता

जब ज़ुल्फ़ की कालिख़ में घुल जाए कोई राही
बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं हॊता

हँस- हँस के जवां दिल के हम क्यों न चुनें टुकडे़
हर शख्स़ की किस्मत में ईनाम नहीं होता

बहते हुए आँसू ने आँखॊं से कहा थम कर
जो मय से पिघल जाए वॊ जाम नहीं होता

दिन डूबे हैं या डूबे बारात लिये कश्ती
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता

2.


हाँ कोई और होगा तूने जो देखा होगा 
हम नहीं आग से बच-बचके गुज़रने वाले

न इन्तज़ार न आहट न तमन्ना न उमीद
ज़िन्दगी है कि यूँ बेहिस हुई जाती है

इतना कह कर बीत गई हर ठंडी भीगी रात
सुखके लम्हे दुख के साथी तेरे ख़ाली हात

हाँ बात कुछ और थी कुछ और ही बात हो गई
और आँख ही आँख में तमाम रात हो गई

कई उलझे हुए ख़यालात का मजमा है यह मेरा वुजूद
कभी वफ़ा से शिकायत कभी वफ़ा मौजूद

जिन्दगी आँख से टपका हुआ बेरंग कतरा
तेरे दामन की पनाह पाता तो आंसु होता

3.


आबलापा कोई इस दश्त में आया होगा| 
वर्ना आँधी में दिया किस ने जलाया होगा|

ज़र्रे-ज़र्रे पे जड़े होंगे कुँवारे सजदे
एक-एक बुत को ख़ुदा उस ने बनाया होगा|

प्यास जलते हुए काँटों की बुझाई होगी
रिसते पानी को हथेली पे सजाया होगा|

मिल गया होगा अगर कोई सुनहरी पत्थर
अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा|

ख़ून के छींटे कहीं पोंछ न लें रेह्रों से
किस ने वीराने को गुलज़ार बनाया होगा

4.


टुकड़े-टुकड़े दिन बीता धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था उतनी ही सौगात मिली

रिमझिम-रिमझिम बूँदों में ज़हर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दीं दिल रोया यह अच्छी बरसात मिली

जब चाहा दिल को समझें हँसने की आवाज़ सुनी
जैसे कोई कहता हो ले फिर तुझको मात मिली

मातें कैसी घातें क्या चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया बेचैनी भी साथ मिली

होंठों तक आते आते जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में सादा-सी जो बात मिली

5.


पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
रात ख़ैरात की सदक़े की सहर होती है

साँस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब
दिल ही दुखता है न अब आस्तीं तर होती है

जैसे जागी हुई आँखों में चुभें काँच के ख़्वाब
रात इस तरह दीवानों की बसर होती है

ग़म ही दुश्मन है मेरा ग़म ही को दिल ढूँढता है
एक लम्हे की जुदाई भी अगर होती है

एक मर्कज़ की तलाश एक भटकती ख़ुशबू
कभी मंज़िल कभी तम्हीदे-सफ़र होती है

दिल से अनमोल नगीने को छुपायें तो कहाँ
बारिशे-संग यहाँ आठ पहर होती है

काम आते हैं न आ सकते हैं बे-जाँ अल्फ़ाज़
तर्जमा दर्द की ख़ामोश नज़र होती है

6.


यह न सोचो कल क्या हो
कौन कहे इस पल क्या हो

रोओ मत न रोने दो
ऐसी भी जल-थल क्या हो

बहती नदी की बांधे बांध
चुल्लू में हलचल क्या हो

हर छन हो जब आस बना
हर छन फिर निर्बल क्या हो

रात ही गर चुपचाप मिले
सुबह फिर चंचल क्या हो

आज ही आज की कहें-सुने
क्यों सोचें कल कल क्या हो

7.


यूँ तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
काँधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे

बैठे हैं रास्ते में दिल का खंडहर सजा कर
शायद इसी तरफ़ से एक दिन बहार गुज़रे

बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे
कोई तो पार उतरे कोई तो पार गुज़रे

तू ने भी हम को देखा हमने भी तुझको देखा
तू दिल ही हार गुज़रा हम जान हार गुज़रे।