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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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शनिवार, 19 अक्तूबर 2013

गुलाब खंडेलवाल


परिचय:
जन्म: महाकवि गुलाब खंडेलवाल (Gulab Khandelwal) का जन्म अपने ननिहाल राजस्थान के शेखावाटी प्रदेश के नवलगढ़ नगर में २१ फरवरी सन्‌ १९२४ ई. को हुआ था. उनके पिता का नाम शीतलप्रसाद तथा माता का नाम वसन्ती देवी था. उनके पिता के अग्रज रायसाहब सुरजूलालजी ने उन्हें गोद ले लिया था. उनके पूर्वज राजस्थान केमंडावा से बिहार के गया में आकर बस गये थे.
कुछ प्रमुख कृतियाँ: सौ गुलाब खिले, गुलाब-ग्रंथावली, देश विराना है, पँखुरियाँ गुलाब की आदि। 
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१.
दुनिया को अपनी बात सुनाने चले हैं हम
पत्थर के दिल में प्यास जगाने चले हैं हम

हमको पता है ख़ूब, नहीं आँसुओं का मोल
पानी में फिर भी आग लगाने चले हैं हम

फिर याद आ रही है कोई चितवनों की छाँह
फिर दूध की लहर में नहाने चले हैं हम

मन के हैं द्वार-द्वार पे पहरे लगे हुए
उनको उन्हींसे छिपके चुराने चले हैं हम

यों तो कहाँ नसीब थे दर्शन भी आपके!
कहने को कुछ ग़ज़ल के बहाने चले हैं हम

कुछ और होंगी लाल पँखुरियाँ गुलाब की
काँटों से ज़िन्दगी को सजाने चले हैं हम

.

अंधेरी रात के परदे में झिलमिलाया किये
वे कौन थे कि जो सपनों में आया जाया किये!

थे उनकी आँखों में आँसू ही बस हमारे लिए
नज़र से और कहीं बिजलियाँ गिराया किये

बहुत था प्यार भी इतना कि पास बैठे रहे
हमारी बात को सुन-सुनके मुस्कुराया किये

सभीको एक ही चितवन से कर दिया मदहोश
सभीको एक ही प्याले से बरगलाया किये

उन्हींको उम्र की राहों में रख दिया हमने
दिए जो आपकी पलकों में झिलमिलाया किये

पता नहीं कि उन्हें कौन-सी रंगत हो पसंद!
हज़ारों रंग से घर अपना हम जलाया किये

नज़र से दूर भी जाकर हैं उनके पास बहुत
गुलाब प्यार के गीतों में छिपके आया किये

३.

आज तो शीशे को पत्थर पे बिखर जाने दे
दिल को रो लेंगें, ये दुनिया तो सँवर जाने दे

ज़िन्दगी कैसे कटी तेरे बिना, कुछ मत पूछ
यों तो कहने को बहुत कुछ है, मगर जाने दे

तेरे छूते ही तड़प उठता है साँसों का सितार
अपनी धड़कन मेरे दिल में भी उतर जाने दे

जी तो भरता नहीं इन आँखों की ख़ुशबू से, मगर
ज़िन्दगी का बड़ा लंबा है सफ़र, जाने दे

सुबह आयेगा कोई पोछने आँसू भी, 'गुलाब'
रात जिस हाल में जाती है, गुज़र जाने दे
 
४. 

हुआ है प्यार भी ऐसे ही कभी साँझ ढले 
कि जैसे चाँद निकल आये और पता न चले

कसो तो ऐसे कि जीवन के तार टूट न जायँ
पड़े जो चोट कहीं पर तो रागिनी ही ढले

मिले न हमको भले उनके प्यार की ख़ुशबू
नज़र से मिल ही लिया करते हैं गले से गले

हज़ार पाँव लड़खडाये ज़िन्दगी के, मगर
चले ही आये हैं उन चितवनों की छाँह तले

गुलाब बाग़ में करते रहे हैं सबसे निबाह
चुभे जो पाँव में काँटें तो वे भी साथ चले

५.

अब हमारे वास्ते दुनिया ठहर जाये तो क्या!
बाद मर जाने के जी को चैन भी आये तो क्या!

ख़ुद ही हम मंज़िल हैं अपनी, हमको अपनी है तलाश
दूसरी मंज़िल पे कोई लाख भटकाये तो क्या!

था लिखा किस्मत में तो काँटों से हरदम जूझना
कोई दिल को दो घड़ी फूलों में उलझाये तो क्या!

जिनको सुर भाते ग़ज़ल के, वे तो कब के जा चुके
अब इन्हें गाये तो क्या! कोई नहीं गाये तो क्या!

हर नये मौसम में खिलते हैं नये रँग में गुलाब
एक दुनिया को नहीं भाये तो क्या, भाये तो क्या!

६.

आप क्यों जान को यह रोग लगा लेते हैं
वे तो बस वैसे ही फूलों की हवा लेतें हैं

हमको भूली है नहीं याद घड़ी भर उनकी
देखें, अब कब वे हमें पास बुला लेते हैं

एक-से-एक है तस्वीर इन आँखों में बसी
जब जिसे चाहते सीने से लगा लेते हैं

है न दुनिया में कहीं कोई पराया हमको
जो भी मिलता है उसे अपना बना लेते हैं

एक दिन बाग़ से ख़ुद ही चले जायेंगे गुलाब
आज खिलते हैं अगर, आपका क्या लेते हैं!

७.

जहाँ है दिल ने पुकारा, वहीं जाना होगा
उन्हें भुलाना तो खुद को ही भुलाना होगा

चले तो बाग़ से जाते हो मगर याद रहे
जुही में फूल जो आयेंगे तो आना होगा

तुम्हीं जो रूठ गए, गायें भी तो क्या गायें!
हमारा गीत भी रोने का बहाना होगा

हमारा जान से जाना भी उनको खेल हुआ
मचल रहे हैं इसे फिर से दिखाना होगा

हमें तो प्यार में मिलने से रहा चैन कभी
नहीं जो तुम हुए दुश्मन तो ज़माना होगा

यहाँ गुलाब की रंगत का मोल कुछ भी नहीं
कलेजा चीरके काँटे पे दिखाना होगा

८.

दिल के लुट जाने का ग़म कुछ भी नहीं!
आप ही सब कुछ हैं, हम कुछ भी नहीं!

मुस्कुरा उठती थीं हमको देखकर
आज उन भौंहों पे ख़म कुछ भी नहीं!

मौत का डर प्यार में क्यों हो हमें!
ज़िन्दगी मरने से कम कुछ भी नहीं!

हम समझते थे कि सब कुछ हैं हमीं
मर के यह निकला कि हम कुछ भी नहीं

जा रहे मुँह फेरकर भौंरे गुलाब!
आपकी ख़ुशबू में दम कुछ भी नहीं!

९.

पहले तो मेरे दर्द को अपना बनाइए
फिर जो भी सुनाना हो, ख़ुशी से सुनाइए

ख़ुशबू न वह मिटेगी जो दिल में है बस गयी
जाकर कहीं भी प्यार की दुनिया बसाइए

पलकों की ओट में कोई दिल भी है बेक़रार
मुँह पर भले ही बेरुख़ी हमसे दिखाइए

कुछ मैं भी अपने आप को धीरज सिखा रहा
कुछ आप भी तो ख़ुद को तड़पना सिखाइए

मुस्कान नहीं होँठों पर, आँखें भरी-भरी
सौ बार आइये मगर ऐसे न आइए

उड़िए सुगंध बनके हवाओं में अब, गुलाब!
निकले हैं बाग़ से तो ग़ज़ल में समाइए

१०.

प्यार को हम न कोई नाम दिया चाहते हैं
बस उन्हें एक नज़र देख लिया चाहते हैं

एक प्याले के लिए कौन तड़पता इतना!
ज़िन्दगी हम तेरी हर साँस पिया चाहते हैं

और तड़पायेंगी यादें हमें इन ख़ुशियों की
आप क्यों हम पे ये एहसान किया चाहते हैं!

जिनको कस्तूरी के हिरणों-सी है ख़ुशबू की तलाश
दो घड़ी हम उन्हीं आँखों में जिया चाहते हैं

वह जो तुमको कभी हँसते हुए मिलते थे गुलाब
आज रो-रोके, सुना, जान दिया चाहते हैं

११.

लुभा रही है बहुत उनकी देखने की अदा
पर उसको क्यों कहें बादल कि जो बरस न सका!

किसीने देखा, किसीने सुना, किसीने कहा
हमारा जान से जाना भी रंग लाके रहा

रहे हैं एक-से तेवर न ज़िन्दगी के कभी
नहीं हैं चाँद और सूरज भी एक रुख़ पे सदा

बनी तो तुमसे किसी और से बने न बने
तुम्हारा है जो किसी और का हुआ न हुआ

मिलेंगे हम जो पुकारेगा दुख में कोई कभी
हरेक आँख के आँसू में है हमारा पता

सभी के ख़ून की रंगत तो लाल ही है मगर
वो रंग और ही कुछ है कि जो गुलाब बना

१२.

यह ज़िन्दगी तो कट गयी काँटों की डाल में
रखते हो अब गुलाब को सोने के थाल में

कुछ तो है बेबसी कि न आती है मौत भी
मछली तड़प रही है मछेरे के जाल में

साज़ों को ज़िन्दगी के बिखरना नहीं था यों
कुछ तो हुई थी भूल किसीकी सँभाल में

आहट तो उनकी आयी पर आँखें हुईं न चार
रातें हमारी कट गयीं ऐसे ही हाल में

बँधकर रही न डाल से ख़ुशबू गुलाब की
कोयल न कूकती कभी सुर और ताल में

१३.

हम अपने मन का उन्हें देवता समझते हैं
पता नहीं है कि हमको वे क्या समझते हैं

भला भले को, बुरे को बुरा समझते हैं
हम आदमी को ही लेकिन बड़ा समझते हैं

चढ़ा हुआ है सभी पर हमारे प्यार का रंग
कोई न इससे बड़ा कीमिया समझते हैं

समझ ने आपकी जाने समझ लिया है क्या!
ज़रा ये फिर से तो कहिये कि क्या समझते हैं

कोई जो सामने आता है मुस्कुराता हुआ
हम अपने मन का उसे आइना समझते हैं

किसी भी काम न आये, गुलाब! तुम, लेकिन
समझनेवाले तुम्हींको बड़ा समझते हैं

१४.

हमसे किसीका प्यार छिपाया न जायगा
इतना हसीन बोझ उठाया न जायगा

मेंहदी लगी हुई है उमंगों के पाँव में
सपने में भी तो आपसे आया न जायगा

लय-ताल टूट जाते हैं आते ही उनका नाम
जीवन का गीत हमसे तो गाया न जायगा

हँसने की बात और थी, रोने की बात और
पत्थर के दिल में फूल खिलाया न जायगा

यों तो किसीके मन से उतारे हुए हैं हम
आयेंगे याद फिर तो भुलाया न जायगा

लहरा रहे हैं आपकी आँखों में अब गुलाब
काँटों से ज़िन्दगी को बचाया न जायगा

१५.

हमारे प्यार का सपना भी आज टूट न जाय
सुरों को हाथ लगाने में साज़ टूट न जाय

जो देखने से ही पड़ता है आइने में बाल
लो, देखने से भी बाज़ आये आज टूट न जाय

है दिल की ज़िद तो यही, ख़ुद को भी लुटा के रहे
नज़र को ध्यान है इसका कि लाज टूट न जाय

हदें तो प्यार ने दुनिया की तोड़ दी हैं, मगर
बहुत हैं आप भी नाज़ुकमिज़ाज, टूट न जाय

गुलाब! बाग़ में फूलों के बादशाह हो तुम
धरा है सर पे जो काँटों का ताज, टूट न जाय

१६.

कुछ हम भी लिख गये हैं तुम्हारी किताब में
गंगा के जल को ढाल न देना शराब में

हम से तो ज़िन्दगी की कहानी न बन सकी
सादे ही रह गये सभी पन्ने किताब में

दुनिया ने था किया कभी छोटा-सा एक सवाल
हमने तो ज़िन्दगी ही लुटा दी जवाब में

लेते न मुँह जो फेर हमारी तरफ से आप
कुछ ख़ूबियाँ भी देखते ख़ानाख़राब में

कुछ बात है कि आपको आया है आज प्यार
देखा नहीं था ज्वार यों मोती के आब में

हमने ग़ज़ल का और भी गौरव बढ़ा दिया
रंगत नयी तरह की जो भर दी गुलाब में

१७.

नहीं कोई भी मरने के सिवा अब काम बाक़ी है
हमारी ज़िन्दगी में बस यही एक शाम बाक़ी है

उमड़ आते हैं झट आँसू, कलेजा मुँह को आता है
उसे होँठों पे मत लाओ जो कोई नाम बाक़ी है

नहीं आया ज़वाब उनका तो हम ख़ुशकिस्मती समझे
रहा तो दिल में हरदम, उनसे कोई काम बाक़ी है

तलब आँखों में, चक्कर पाँव में है दिल में बेचैनी
नहीं अब इनसे बढ़कर और कुछ आराम बाक़ी है

गुलाब! आता है क्या तुमको सिवा आँसू बहाने के
यही तो ज़िन्दगी में बस सुबह और शाम बाक़ी है

१८.

मिलने की हर ख़ुशी में बिछुड़ने का ग़म हुआ
एहसान उनका ख़ूब हुआ फिर भी कम हुआ

कुछ तो नज़र का उनकी भी इसमें क़सूर था
देखा जिसे भी प्यार का उसको वहम हुआ

नज़रें मिलीं तो मिलके झुकीं, झुकके मुड़ गयीं
यह बेबसी कि आँख का कोना न नम हुआ

ज्यों ही लगी थी फैलने घर में दिए की जोत
त्योंही हवा का रुख़ भी बहुत बेरहम हुआ

कुछ तो चढ़ा था पहले से हम पर नशा, मगर
कुछ आपका भी सामने आना सितम हुआ

आती नहीं है प्यार की ख़ुशबू कहीं से आज
लगता है अब गुलाब का खिलना भी कम हुआ

१९.

सभी तरफ है अँधेरा, कहीं भी कोई नहीं
भरम ही मन का है मेरा, कहीं भी कोई नहीं

नहीं निशान भी तेरा, कहीं भी कोई नहीं
घिरा है घेरे में घेरा, कहीं भी कोई नहीं

वहाँ पहाड़ की घाटी से, आधी रात के बाद
ये किसने फिर मुझे टेरा! कहीं भी कोई नहीं

चले है खोजने किसको ये खोजनेवाले!
पता तो बस यही तेरा--'कहीं भी कोई नहीं'

कहाँ है रोशनी तारों की, चाँद, सूरज की
अँधेरा और अँधेरा, कहीं भी कोई नहीं

कहाँ जुड़ी थीं सभाएँ? कहाँ थे उनसे मिले?
कहाँ था अपना बसेरा? कहीं भी कोई नहीं

नहीं रहे हैं वही वह कि मैं ही मैं न रहा!
न साँझ वह न सवेरा, कहीं भी कोई नहीं

भले ही साँप यह रस्सी में आ रहा है नज़र
न बीन है, न सँपेरा, कहीं भी कोई नहीं

अभी तो छाँह-सी उतरी थी एक दिल में, मगर
नज़र को मैंने जो फेरा, कहीं भी कोई नहीं

न बाग़ है, नहीं भौंरे, न तितलियाँ, न गुलाब
उठा वसंत का डेरा, कहीं भी कोई न

२०.

हमारी रात अँधेरी से चाँदनी बन जाय
ज़रा सा रुख़ तो मिलाओ कि ज़िन्दगी बन जाय

वे और होते हैं जिनसे कि बंदगी बन जाय
मिले जो देवता हमको तो आदमी बन जाय

तुम्हारा प्यार हमारा है, बस हमारा है
कहीं न जान की दुश्मन ये दोस्ती बन जाय

कभी किसीसे जो लग जाय तो छूटे ही नहीं
नज़र का खेल है यह तो कभी-कभी बन जाय

गुलाब इतने हैं दुनिया की चोट खाए हुए
कलम हवा में छिड़क दें तो शायरी बन जाय

२१.

नज़र से दूर भी जाने से कोई दूर न था
हमारा दिल भी निशाने से कोई दूर न था

समझना चाहते उसको तो समझ लेते आप
ग़ज़ल में प्यार भी ताने से कोई दूर न था

जो रंग एक था आता तो एक जाता था
किसीके दूर बताने से कोई दूर न था

हमारा दिल तो धड़कता था आपके दिल में
छिपा था प्यार बहाने से, कोई दूर न था

पहुँच न पाई वहाँ क्यों गुलाब की ख़ुशबू!
हमारा मौन भी गाने से कोई दूर न था