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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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बुधवार, 1 जनवरी 2014

'श्रीप्रकाश जी के मुक्तक'


जन्म- 28 फरवरी 1959
शिक्षा- एम.ए. (हिंदी), कानपुर विश्वविधालय
प्रकाशित कृतियाँ - सौरभ (काव्य संग्रह), उभरते स्वर, दस दिशाएं, सप्त स्वर इत्यादि काव्य संकलनों में तथा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं अंतरजाल मंचों पर कवितायें/गीत/लेख आदि |
सम्मान- निराला साहित्य परिषद् महमूदाबाद (सीतापुर), युवा रचनाकार मंच लखनऊ, अखिल भारत वैचारिक क्रांति मंच लखनऊ आदि संस्थाओं द्वारा सम्मानित |
गतिविधियाँ- सचिव (साहित्य), निराला साहित्य परिषद् महमूदाबाद (उ.प्र.) एवं संस्थापक/निदेशक ‘ज्ञान भारती’ (लोक सेवी संस्थान) महमूदाबाद (उ.प्र.) |
सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन
ईमेल- sahitya_sadan@rediffmail.com

तीन मुक्तक
श्रीप्रकाश

विश्व को विश्व के चाह की यह लड़ी
विश्व में चेतना प्राण जब तक रहे,
प्रिय मधुप का कली पे बजे राग भी
जब तलक गंध सौरभ सुमन में बहे !
***
प्यार छलता रहा प्रीति के पंथ पर
दीप जलता रहा शाम ढलती रही,
जिंदगी निशि प्रभा की मधुर आस ले
रात दिन सी सरल साँस चलती रही !
***
नेह की गति नहीं है निरति अंक में
काल की गति नहीं उम्र की गति नहीं,
चाह की गति नहीं कल्प की गति नहीं
रूप के पंथ पर तृप्ति की गति नहीं
***