जन्म तिथि :२३ नवम्बर
शिक्षण : M Sc. LLB M Mus.
ब्लॉग : www.pbchaturvedi.blogspot.in, www.fulwaari.blogspot.in, http://geetghazalkavita. blogspot.in/
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इन्ही के शब्दों में : ग़ज़ल कहना, गीत लिखना, अपनी रचनाओं को आवाज़ देना मुझे बहुत पसंद है |
वो नहीं मंजिलों की डगर आदमी ।
उसके मन में है हैवान बैठा हुआ,
आ रहा है हमें जो नज़र आदमी ।
नफरतों की हुकूमत बढ़ी इस कदर,
आदमी जल रहा देखकर आदमी ।
दोस्त पर भी भरोसा नहीं रह गया,
आ गया है ये किस मोड़ पर आदमी ।
क्या करेगा ये दौलत मरने के बाद,
मुझको इतना बता सोचकर आदमी ।
इस जहाँ में तू चाहे किसी से न डर ,
अपने दिल की अदालत से डर आदमी ।
हर बुराई सुराखें है इस नाव की,
जिन्दगी नाव है नाव पर आदमी ।
आदमी है तो कुछ आदमीयत भी रख,
गैर का गम भी महसूस कर आदमी ।
तू समझदार है ना कहीं और जा,
ख़ुद से ही ख़ुद कभी बात कर आदमी ।
हो गई रूसवा मुहब्बत , आप ने धोखा दिया।
खुद से ज्यादा आप पर मुझको भरोसा था कभी;
झूठ लगती है हकीकत, आप ने धोखा दिया।
दिल मे रहकर आप का ये दिल हमारा तोड़ना;
हम करें किससे शिकायत,आप ने धोखा दिया।
बेवफ़ा होते हैं अक्सर, हुश्नवाले ये सभी;
जिन्दगी ने ली नसीहत, आप ने धोखा दिया।
पार करने वाला माझी खुद डुबोने क्यों लगा;
कर अमानत में खयानत,आप ने धोखा दिया।
३.
बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं।
न पूछो कैसे हम जीवन बिताएं।
अदाकारी हमें आती नही है,
ग़मों में कैसे अब हम मुस्कुराएं।
अँधेरा ऐसा है दिखता नही कुछ,
चिरागों को जलाएं या बुझाएं।
फ़रेबों,जालसाजी का हुनर ये,
भला खुद को ही हम कैसे सिखाएं।
ये माना मुश्किलों की ये घडी़ है,
चलो उम्मीद हम फिर भी लगाएं।
सियासत अब यही तो रह गई है,
विरोधी को चलो नीचा दिखाएं।
अगर सच बोल दें तो सब खफ़ा हों,
बनें झूठा तो अपना दिल दुखाएं।
कांटे भी खिलते हैं चमन में,
फूल हमेशा खिला नहीं है।
जिसको मंज़िल मिल ही जाए,
ऐसा हर काफ़िला नहीं है।
सदियों से होता आया है,
ये पहला सिलसिला नहीं है।
अनचाही हर चीज मिली है,
जो चाहा वो मिला नहीं है।
देर से तुम इसको समझोगे,
नफ़रत प्यार का सिला नहीं है।
जिस्म का नाजुक हिस्सा है दिल,
ये पत्थर का किला नहीं है।
इस तरह आज इन्सान है।
दिल में एक चोट गहरी-सी है,
और होठों पे मुस्कान है।
कुछ न कुछ ढूँढते हैं सभी,
और खुद से ही अन्जान है।
एक शोला है हर आँख में,
और हर दिल में तूफान है।
मंजिलों का पता ही नहीं,
हर तरफ एक बियाबान है।
आदमी में में ही है देवता,
आदमी में ही शैतान है।
सबको धोखे दिए जा रहे,
और खुशियों का अरमान है
कैसे खाई मात न पूछो।
मैं गमगीं हूँ आज बहुत ही,
आज तो कोई बात न पूछो।
दिल की बेताबी कैसी है,
क्यों बेचैन है रात न पूछो।
देने वाला अपना ही था,
किसने दी सौगात न पूछो।
बिन बादल के क्यों होती है,
अश्कों की बरसात न पूछो।
मजबूरी में ठीक कहूँगा,
कैसे हैं हालात न पूछो।
ये बात अभी सबसे छुपाने के लिए है ।
दुनिया के बाज़ार में बेचो न इसे तुम ,
ये बात अभी दिल के खजाने के लिए है ।
इस बात की चिंगारी अगर फ़ैल गयी तो ,
तैयार जहाँ आग लगाने के लिए है ।
आंसू कभी आ जाए तो जाहिर न ये करना ,
ये गम तेरा मुझ जैसे दीवाने के लिए है ।
होता रहा है होगा अभी प्यार पे सितम ,
ये बात जमानों से ज़माने के लिए है ।
तुम प्यार की बातों को जुबां से नहीं कहना ,
ये बात निगाहों से बताने के लिए है ।
दिल तोड़ने वाले तू मेरा यार भी तो है ।
मुझे बेकरार कर गयी है ये तेरी बेरुखी,
और उसपे सितम ये तू ही करार भी तो है।
जब चाहता हूँ इतना तो क्यों ख़फ़ा न होऊं,
तेरे बिना मेरा जीना दुश्वार भी तो है ।
तुमसे ही मेरी जिन्दगी वीरान हुई है,
तुमसे ही जिन्दगी ये खुशगवार भी तो है।
दोनों के लुत्फ़ हैं यहां इस एक इश्क में,
कुछ जीत भी है इश्क में कुछ हार भी तो है।
वैसे तो मेरा दिल जरूर तुमसे ख़फ़ा है,
तुमको ही ढूंढता ये बार बार भी तो है ।
यार बनकर तू दगा मत करना।
जब यकीं तुमपे कोई भी कर ले,
ना अमानत में ख़यानत करना।
दूसरों की नज़र न तुम देखो,
अपनी नज़रों में गिरा मत करना।
प्यार तुमको मिले जिससे यारों,
तुम कभी उससे जफ़ा मत करना।
वो जो दुश्मन तेरे अपनों का हो,
मिलना चाहे तो मिला मत करना।
जिसके दामन में तेरे आंसू गिरें,
तू कभी उसको ख़फ़ा मत करना।
तनहाई में जब तुम ख़ुद से, अपनी बात चलाओगे।
झूठ, फरेब, दगाबाजी, नफरत, बेइमानी, मक्कारी,
करते हो, छलते हो सबको; पर कबतक छल पाओगे।
कुछ लम्हें ऐसे आते हैं, इन्सां जब पछताता है,
ऐसे लम्हें जब आयेंगे, तुम भी बहुत पछताओगे।
जीने की खातिर दुनिया में, तुम ये करते हो माना,
लेकिन औरों को दुख देकर, क्या सुख से जी पाओगे।
चोट किसी को देते हो खुश होते हो लेकिन सुन लो,
खुश ज्यादा होओगे किसी के, चोट को जब सहलाओगे।
जान बचाने में जो सुख है, कोई कातिल क्या जाने,
तुम ये करके देखो कातिल, एक नया सुख पाओगे।
दर्द से मेरे बेखबर निकला ।
मैं लुटा तो मगर ये रंज मुझे,
लूटने वाला हमसफर निकला।
वक्त ने भी दिया दगा मुझको,
प्यार का वक्त मुक्तसर निकला।
ये शिकायत तेरी वफ़ा से है,
बेवफाई की राह पर निकला।
दूसरा कोई रास्ता ही नहीं,
अश्क ये आँख की डगर निकला।
वक्त किसका बुरा नहीं होता।
वक्त की बात है नहीं कुछ और,
कोई अच्छा-बुरा नहीं होता।
इस जहाँ में नहीं जगह ऐसी,
दर्द कोई जहाँ नहीं होता।
हों चमन में अगर नहीं काटें,
फूल कोई वहाँ नहीं होता।
पल जो ग़मगीन गर नहीं आते,
वक्त ये खुशनुमा नहीं होता।
प्यार क्या है नहीं समझते सब,
गर कोई बेवफा नहीं होता।
जब कसौटी पे वक्त कसता है,
हर कोई तब खरा नहीं होता।
हर जगह आप ही तो होते हैं,
और तो दूसरा नहीं होता।
सब खुदा पे यकीन करते हैं,
जब कोई आसरा नहीं होता।
जो है सच्ची वही खुशी रखिए।
सीधी-सादी सी ज़िन्दगी रखिये ।
जो बुरे दिन में काम आते हों,
ऐसे लोगों से दोस्ती रखिए।
वक्त जब भी लगे अंधेरे में,
साथ यादों की रौशनी रखिए।
ग़म ये कहना सभी से ठीक नहीं,
राज अपना ये दिल में ही रखिए।
चीज कोई जो तुमको पानी हो,
चाहतों में दीवानगी रखिए।
दोस्ती दुश्मनी न बन जाये,
अपने काबू में दिल्लगी रखिए।
देवता आप मत बनें यारों,
आप अपने को आदमी रखिए।
लुत्फ़ तब दुश्मनी का आयेगा,
साथ कांटों के फूल भी रखिए।
हम पत्थरदिल यार नहीं हैं।
अपनी बस इतनी मजबूरी,
होता बस इज़हार नहीं है।
मिलने का कुछ कारण होगा,
ये मिलना बेकार नहीं है।
तुम मुझको अच्छे लगते हो,
अब इससे इनकार नहीं है।
कुछ लोगों से मन मिलता है,
इससे क्या गर यार नहीं हैं।
तुम फूलों सी नाजुक हो तो,
हम भौरें हैं खा़र नहीं है।
क्या मेरे दिल में रह लोगे,
बंगला,मोटरकार नहीं है।
तनहा-तनहा जीना मुश्किल,
संग तेरे दुश्वार नहीं है।
हुश्न की नैया डूबी-डूबी,
इश्क अगर पतवार नहीं है।
मैं तबतक साधू रहता हूँ,
जबतक आँखें चार नहीं हैं
ऐसे न मुस्कुराओ ये गीत दर्द का है।
शायर का दर्द तेरी आवाज़ में भी उभरे,
ऐसी कशिश से गाओ ये गीत दर्द का है।
गुजरा है ये तुम्हीं पर ऐसा लगे सभी को,
आँखों में अश्क लाओ ये गीत दर्द का है।
जितने भी सुन रहे हों उस गम में डूब जायें,
कुछ यूँ समां बनाओ ये गीत दर्द का है।
जब लिख रहा था इसको रोया बहुत था दिल ये,
वो दर्द फिर जगाओ ये गीत दर्द का है।
वो सच्ची शायरी है दिल पर असर करे जो,
दिल में जगह बनाओ ये गीत दर्द का है।
खामियाँ गैर की बताते हैं ,खुद बुरी आदतों में जीते हैं ।
सबको आगे आगे जाना है,तेज रफ़्तार जिन्दगी की हुई;
भागते दौड़ते जमाने में, हम बडी़ फ़ुरसतों में जीते हैं ।
आज तो ग़म है बेबसी भी है,जिन्दगी कट रही है मुश्किल से;
आने वाला पल अच्छा होगा , हम इन्हीं हसरतों में जीते हैं ।
आज के दौर मे जीना है कठिन,और मरना बडा़ आसान हुआ;
कामयाबी बडी़ हमारी है , जो ऐसी हालतों में जीते हैं ।
मिट्टी लगती है जो भी चीज मिली,जो भी पाया नहीं वो सोना लगा;
जो हमें चीज मिल नहीं सकती ,हम उन्हीं चाहतों में जीते हैं ।
दूर अंधेरे को करने को , कोई शमा जलानी होगी ।
अंगारों पर चलना होगा , काँटों पर सोना होगा ;
कितने ख्वाब तोड़ने होंगे , कितनी चाह मिटानी होगी ।
बस दो ही तो राहें अपने , इस जीवन में होती हैं ;
अच्छी राह चुनो तो अच्छा , बुरी राह नादानी होगी ।
इतना भी आसान नहीं है , मंजिल को यूँ पा लेना ;
कुछ पाने की खातिर तुमको , देनी कुछ कुर्बानी होगी।
लीक से हटकर चलना तो अच्छा है लेकिन मुश्किल है;
दिल का हौसला जारी रखोगे तो बड़ी आसानी होगी ।
पैदा होकर मर जाते हैं , जाने कितने लोग यहाँ ;
लेकिन नया करोगे कुछ तो , तेरी अमर कहानी होगी ।
दुनिया वाले कुछ बोलेंगे , जैसी उनकी आदत है;
लेकिन जब मंजिल पा लोगे , दुनिया पानी पानी होगी।
मुस्कराहट रोकना या आसुओं को रोकना ।
वक्त कैसा आएगा आगे न जाने ये कोई ,
इसलिए मुश्किल है शायद मुश्किलों को रोकना ।
मंजिलों की ओर जाने के लिए हैं रास्ते,
इसलिए मुमकिन नहीं है रास्तों को रोकना ।
इनको होना था तभी तो हो गए होते गए ,
चाहते तो हम भी थे इन फासलों को रोकना ।
दोस्तों के रूप में अक्सर छुपे रहते हैं ये,
इसलिये आसां नहीं है दुश्मनों को रोकना ।
खुल जाता है भेद एक दिन, सच्चाई-सच्चाई है।
होती है महसूस जरूरत, जीवन में इक साथी की,
तनहा जीवन कट नहीं सकता,तनहाई-तनहाई है।
चर्चे खूब हुए हैं तेरे,हर घर में हर महफ़िल में,
चाहे जितनी शोहरत पा ले, रुसवाई-रुसवाई है।
पूरे बदन को झटका देना,हाथों को ऊपर करके,
सच पूछो तो तेरी उम्र की, अँगडा़ई-अँगडा़ई है।
पश्चिम की पूरजोर हवा से,पैर थिरकने लगते हैं,
झूम उठता है सिर मस्ती में, पुरवाई-पुरवाई है।
भाषा अलग अलग पहनावा,अलग अलग हम रहतें हैं,
लेकिन हम सब हिन्दुस्तानी, भाई-भाई-भाई हैं।
गम़ में खुशी में एक सा रहना,जैसे एक सी रहती है;
सुख-दुख दोनों में बजती है, शहनाई-शहनाई है।
बंगला,मोटरकार का सपना सपना ही रह जाता है।
रोटी-दाल में खर्च हुई है उमर हमारी ये सारी,
इससे इतर विचार का सपना सपना ही रह जाता है।
गाँवों से तो लोग हमेशा शहरों में आ जाते हैं,
सात समन्दर पार का सपना सपना ही रह जाता है।
कोल्हू के बैलों के जैसे लोग शहर में जुतते हैं,
फ़ुरसत के व्यवहार का सपना सपना ही रह जाता है।
बिक जाते हैं खेत-बगीचे शहरों में बसते-बसते,
वापस उस आधार का सपना सपना ही रह जाता है।
पैसा तो मिलता है सात समुन्दर पार के देशों में,
लेकिन सच्चे प्यार का सपना सपना ही रह जाता है।
२१.
सात समुन्दर पार का सपना सपना ही रह जाता है।
आखिर में तो हासिल सिर्फ़ तड़पना ही रह जाता है।
बाग-बगीचे बिकते-बिकते कंगाली आ जाती है,
लेके कटोरा नाम प्रभु का जपना ही रह जाता है।
सोच समझकर काम किया तो सब अच्छा होगा वरना,
आखिर में बस रोना और कलपना ही रह जाता है।
दौलत खत्म हुई तो कोई साथ नहीं फिर देता है,
पूरी दुनिया में तनहा दिल अपना ही रह जाता है।
रोज़ किताबें लिखते हैं वो क्या लिखते मालूम नहीं,
कैसे लेखक जिनका मक़सद छपना ही रह जाता है।
ऊँचे-ऊँचे पद पर बैठे अधिकारी और ये मंत्री,
लक्ष्य कहो क्यों उनका सिर्फ हड़पना ही रह जाता है।
दुख से उबर जाऊँगा लेकिन प्रश्न मुझे ये मथता है,
सोने की किस्मत में क्योंकर तपना ही रह जाता है।
२२.
पूरे जीवन इंसा अच्छे काम से शोहरत पाता है।
भूल अगर इक हो जाये तो पल में नाम गँवाता है।
खूब कबूतरबाज़ी होती बिक जाते हैं घर फिर भी,
सात समुन्दर पार का सपना सपना ही रह जाता है।
गाँव-शहर से हटकर जो परदेश चला जाता है वो,
अपने मिट्टी की खुशबू की यादें भी ले जाता है।
आइस-बाइस,ओक्का-बोक्का,ओल्हा-पाती भूल गये,
शहरों में अब बचपन को बस बल्ला-गेंद ही भाता है।
पेड़ जड़ों से कट जाये तो कैसे फल दे सकता है,
बस इन्सान यँहा है ऐसा,ऐसा भी कर जाता है।
हो गई रूसवा मुहब्बत , आप ने धोखा दिया।
बेवफ़ा होते हैं अक्सर, हुश्नवाले ये सभी;
जिन्दगी ने ली नसीहत, आप ने धोखा दिया।
खुद से ज्यादा आप पर मुझको भरोसा था कभी;
झूठ लगती है हकीकत, आप ने धोखा दिया।
दिल मे रहकर आप का ये दिल हमारा तोड़ना;
हम करें किससे शिकायत,आप ने धोखा दिया।
पार करने वाला माझी खुद डुबाने क्यों लगा;
कर अमानत में खयानत,आप ने धोखा दिया।
शिक्षण : M Sc. LLB M Mus.
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प्रस्तुत हैं कुछ उत्कृष्ट ग़ज़लें
१.
जा रहा है जिधर बेखबर आदमी ।वो नहीं मंजिलों की डगर आदमी ।
उसके मन में है हैवान बैठा हुआ,
आ रहा है हमें जो नज़र आदमी ।
नफरतों की हुकूमत बढ़ी इस कदर,
आदमी जल रहा देखकर आदमी ।
दोस्त पर भी भरोसा नहीं रह गया,
आ गया है ये किस मोड़ पर आदमी ।
क्या करेगा ये दौलत मरने के बाद,
मुझको इतना बता सोचकर आदमी ।
इस जहाँ में तू चाहे किसी से न डर ,
अपने दिल की अदालत से डर आदमी ।
हर बुराई सुराखें है इस नाव की,
जिन्दगी नाव है नाव पर आदमी ।
आदमी है तो कुछ आदमीयत भी रख,
गैर का गम भी महसूस कर आदमी ।
तू समझदार है ना कहीं और जा,
ख़ुद से ही ख़ुद कभी बात कर आदमी ।
२.
आप की जब थी जरूरत, आप ने धोखा दिया।हो गई रूसवा मुहब्बत , आप ने धोखा दिया।
खुद से ज्यादा आप पर मुझको भरोसा था कभी;
झूठ लगती है हकीकत, आप ने धोखा दिया।
दिल मे रहकर आप का ये दिल हमारा तोड़ना;
हम करें किससे शिकायत,आप ने धोखा दिया।
बेवफ़ा होते हैं अक्सर, हुश्नवाले ये सभी;
जिन्दगी ने ली नसीहत, आप ने धोखा दिया।
पार करने वाला माझी खुद डुबोने क्यों लगा;
कर अमानत में खयानत,आप ने धोखा दिया।
३.
बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं।
न पूछो कैसे हम जीवन बिताएं।
अदाकारी हमें आती नही है,
ग़मों में कैसे अब हम मुस्कुराएं।
अँधेरा ऐसा है दिखता नही कुछ,
चिरागों को जलाएं या बुझाएं।
फ़रेबों,जालसाजी का हुनर ये,
भला खुद को ही हम कैसे सिखाएं।
ये माना मुश्किलों की ये घडी़ है,
चलो उम्मीद हम फिर भी लगाएं।
सियासत अब यही तो रह गई है,
विरोधी को चलो नीचा दिखाएं।
अगर सच बोल दें तो सब खफ़ा हों,
बनें झूठा तो अपना दिल दुखाएं।
४.
तुमसे कोई गिला नहीं है।
प्यार हमेशा मिला नहीं है।तुमसे कोई गिला नहीं है।
कांटे भी खिलते हैं चमन में,
फूल हमेशा खिला नहीं है।
जिसको मंज़िल मिल ही जाए,
ऐसा हर काफ़िला नहीं है।
सदियों से होता आया है,
ये पहला सिलसिला नहीं है।
अनचाही हर चीज मिली है,
जो चाहा वो मिला नहीं है।
देर से तुम इसको समझोगे,
नफ़रत प्यार का सिला नहीं है।
जिस्म का नाजुक हिस्सा है दिल,
ये पत्थर का किला नहीं है।
५.
जो जहाँ है परेशान है ।इस तरह आज इन्सान है।
दिल में एक चोट गहरी-सी है,
और होठों पे मुस्कान है।
कुछ न कुछ ढूँढते हैं सभी,
और खुद से ही अन्जान है।
एक शोला है हर आँख में,
और हर दिल में तूफान है।
मंजिलों का पता ही नहीं,
हर तरफ एक बियाबान है।
आदमी में में ही है देवता,
आदमी में ही शैतान है।
सबको धोखे दिए जा रहे,
और खुशियों का अरमान है
६.
किसने की है घात न पूछो।कैसे खाई मात न पूछो।
मैं गमगीं हूँ आज बहुत ही,
आज तो कोई बात न पूछो।
दिल की बेताबी कैसी है,
क्यों बेचैन है रात न पूछो।
देने वाला अपना ही था,
किसने दी सौगात न पूछो।
बिन बादल के क्यों होती है,
अश्कों की बरसात न पूछो।
मजबूरी में ठीक कहूँगा,
कैसे हैं हालात न पूछो।
७.
सुनने के लिए है न सुनाने के लिए है ।ये बात अभी सबसे छुपाने के लिए है ।
दुनिया के बाज़ार में बेचो न इसे तुम ,
ये बात अभी दिल के खजाने के लिए है ।
इस बात की चिंगारी अगर फ़ैल गयी तो ,
तैयार जहाँ आग लगाने के लिए है ।
आंसू कभी आ जाए तो जाहिर न ये करना ,
ये गम तेरा मुझ जैसे दीवाने के लिए है ।
होता रहा है होगा अभी प्यार पे सितम ,
ये बात जमानों से ज़माने के लिए है ।
तुम प्यार की बातों को जुबां से नहीं कहना ,
ये बात निगाहों से बताने के लिए है ।
८.
नाराजगी भी है तुमसे प्यार भी तो है ।दिल तोड़ने वाले तू मेरा यार भी तो है ।
मुझे बेकरार कर गयी है ये तेरी बेरुखी,
और उसपे सितम ये तू ही करार भी तो है।
जब चाहता हूँ इतना तो क्यों ख़फ़ा न होऊं,
तेरे बिना मेरा जीना दुश्वार भी तो है ।
तुमसे ही मेरी जिन्दगी वीरान हुई है,
तुमसे ही जिन्दगी ये खुशगवार भी तो है।
दोनों के लुत्फ़ हैं यहां इस एक इश्क में,
कुछ जीत भी है इश्क में कुछ हार भी तो है।
वैसे तो मेरा दिल जरूर तुमसे ख़फ़ा है,
तुमको ही ढूंढता ये बार बार भी तो है ।
९.
ना कभी ऐसी कयामत करना।यार बनकर तू दगा मत करना।
जब यकीं तुमपे कोई भी कर ले,
ना अमानत में ख़यानत करना।
दूसरों की नज़र न तुम देखो,
अपनी नज़रों में गिरा मत करना।
प्यार तुमको मिले जिससे यारों,
तुम कभी उससे जफ़ा मत करना।
वो जो दुश्मन तेरे अपनों का हो,
मिलना चाहे तो मिला मत करना।
जिसके दामन में तेरे आंसू गिरें,
तू कभी उसको ख़फ़ा मत करना।
१०.
औरों से तो झूठ कहोगे, ख़ुद को क्या समझाओगे।तनहाई में जब तुम ख़ुद से, अपनी बात चलाओगे।
झूठ, फरेब, दगाबाजी, नफरत, बेइमानी, मक्कारी,
करते हो, छलते हो सबको; पर कबतक छल पाओगे।
कुछ लम्हें ऐसे आते हैं, इन्सां जब पछताता है,
ऐसे लम्हें जब आयेंगे, तुम भी बहुत पछताओगे।
जीने की खातिर दुनिया में, तुम ये करते हो माना,
लेकिन औरों को दुख देकर, क्या सुख से जी पाओगे।
चोट किसी को देते हो खुश होते हो लेकिन सुन लो,
खुश ज्यादा होओगे किसी के, चोट को जब सहलाओगे।
जान बचाने में जो सुख है, कोई कातिल क्या जाने,
तुम ये करके देखो कातिल, एक नया सुख पाओगे।
११.
सारे बन्धन वो तोड़कर निकला।दर्द से मेरे बेखबर निकला ।
मैं लुटा तो मगर ये रंज मुझे,
लूटने वाला हमसफर निकला।
वक्त ने भी दिया दगा मुझको,
प्यार का वक्त मुक्तसर निकला।
ये शिकायत तेरी वफ़ा से है,
बेवफाई की राह पर निकला।
दूसरा कोई रास्ता ही नहीं,
अश्क ये आँख की डगर निकला।
१२.
वक्त ये एक-सा नहीं होता।वक्त किसका बुरा नहीं होता।
वक्त की बात है नहीं कुछ और,
कोई अच्छा-बुरा नहीं होता।
इस जहाँ में नहीं जगह ऐसी,
दर्द कोई जहाँ नहीं होता।
हों चमन में अगर नहीं काटें,
फूल कोई वहाँ नहीं होता।
पल जो ग़मगीन गर नहीं आते,
वक्त ये खुशनुमा नहीं होता।
प्यार क्या है नहीं समझते सब,
गर कोई बेवफा नहीं होता।
जब कसौटी पे वक्त कसता है,
हर कोई तब खरा नहीं होता।
हर जगह आप ही तो होते हैं,
और तो दूसरा नहीं होता।
सब खुदा पे यकीन करते हैं,
जब कोई आसरा नहीं होता।
१३.
सीधी-सादी सी ज़िन्दगी रखिये ।
जो बुरे दिन में काम आते हों,
ऐसे लोगों से दोस्ती रखिए।
वक्त जब भी लगे अंधेरे में,
साथ यादों की रौशनी रखिए।
ग़म ये कहना सभी से ठीक नहीं,
राज अपना ये दिल में ही रखिए।
चीज कोई जो तुमको पानी हो,
चाहतों में दीवानगी रखिए।
दोस्ती दुश्मनी न बन जाये,
अपने काबू में दिल्लगी रखिए।
देवता आप मत बनें यारों,
आप अपने को आदमी रखिए।
लुत्फ़ तब दुश्मनी का आयेगा,
साथ कांटों के फूल भी रखिए।
१४.
कैसे कह दें प्यार नहीं है।हम पत्थरदिल यार नहीं हैं।
अपनी बस इतनी मजबूरी,
होता बस इज़हार नहीं है।
मिलने का कुछ कारण होगा,
ये मिलना बेकार नहीं है।
तुम मुझको अच्छे लगते हो,
अब इससे इनकार नहीं है।
कुछ लोगों से मन मिलता है,
इससे क्या गर यार नहीं हैं।
तुम फूलों सी नाजुक हो तो,
हम भौरें हैं खा़र नहीं है।
क्या मेरे दिल में रह लोगे,
बंगला,मोटरकार नहीं है।
तनहा-तनहा जीना मुश्किल,
संग तेरे दुश्वार नहीं है।
हुश्न की नैया डूबी-डूबी,
इश्क अगर पतवार नहीं है।
मैं तबतक साधू रहता हूँ,
जबतक आँखें चार नहीं हैं
१५.
संजीदगी से गाओ ये गीत दर्द का है।ऐसे न मुस्कुराओ ये गीत दर्द का है।
शायर का दर्द तेरी आवाज़ में भी उभरे,
ऐसी कशिश से गाओ ये गीत दर्द का है।
गुजरा है ये तुम्हीं पर ऐसा लगे सभी को,
आँखों में अश्क लाओ ये गीत दर्द का है।
जितने भी सुन रहे हों उस गम में डूब जायें,
कुछ यूँ समां बनाओ ये गीत दर्द का है।
जब लिख रहा था इसको रोया बहुत था दिल ये,
वो दर्द फिर जगाओ ये गीत दर्द का है।
वो सच्ची शायरी है दिल पर असर करे जो,
दिल में जगह बनाओ ये गीत दर्द का है।
१६.
बात करते हैं हम मुहब्बत की,और हम नफ़रतों में जीते हैं ।खामियाँ गैर की बताते हैं ,खुद बुरी आदतों में जीते हैं ।
सबको आगे आगे जाना है,तेज रफ़्तार जिन्दगी की हुई;
भागते दौड़ते जमाने में, हम बडी़ फ़ुरसतों में जीते हैं ।
आज तो ग़म है बेबसी भी है,जिन्दगी कट रही है मुश्किल से;
आने वाला पल अच्छा होगा , हम इन्हीं हसरतों में जीते हैं ।
आज के दौर मे जीना है कठिन,और मरना बडा़ आसान हुआ;
कामयाबी बडी़ हमारी है , जो ऐसी हालतों में जीते हैं ।
मिट्टी लगती है जो भी चीज मिली,जो भी पाया नहीं वो सोना लगा;
जो हमें चीज मिल नहीं सकती ,हम उन्हीं चाहतों में जीते हैं ।
१७.
मंजिल को पाने की खातिर , कोई राह बनानी होगी ।दूर अंधेरे को करने को , कोई शमा जलानी होगी ।
अंगारों पर चलना होगा , काँटों पर सोना होगा ;
कितने ख्वाब तोड़ने होंगे , कितनी चाह मिटानी होगी ।
बस दो ही तो राहें अपने , इस जीवन में होती हैं ;
अच्छी राह चुनो तो अच्छा , बुरी राह नादानी होगी ।
इतना भी आसान नहीं है , मंजिल को यूँ पा लेना ;
कुछ पाने की खातिर तुमको , देनी कुछ कुर्बानी होगी।
लीक से हटकर चलना तो अच्छा है लेकिन मुश्किल है;
दिल का हौसला जारी रखोगे तो बड़ी आसानी होगी ।
पैदा होकर मर जाते हैं , जाने कितने लोग यहाँ ;
लेकिन नया करोगे कुछ तो , तेरी अमर कहानी होगी ।
दुनिया वाले कुछ बोलेंगे , जैसी उनकी आदत है;
लेकिन जब मंजिल पा लोगे , दुनिया पानी पानी होगी।
१८.
है कठिन इस जिंदगी के हादसों को रोकना । मुस्कराहट रोकना या आसुओं को रोकना ।
वक्त कैसा आएगा आगे न जाने ये कोई ,
इसलिए मुश्किल है शायद मुश्किलों को रोकना ।
मंजिलों की ओर जाने के लिए हैं रास्ते,
इसलिए मुमकिन नहीं है रास्तों को रोकना ।
इनको होना था तभी तो हो गए होते गए ,
चाहते तो हम भी थे इन फासलों को रोकना ।
दोस्तों के रूप में अक्सर छुपे रहते हैं ये,
इसलिये आसां नहीं है दुश्मनों को रोकना ।
१९.
चाहे जितना कष्ट उठा ले, अच्छाई-अच्छाई है।खुल जाता है भेद एक दिन, सच्चाई-सच्चाई है।
होती है महसूस जरूरत, जीवन में इक साथी की,
तनहा जीवन कट नहीं सकता,तनहाई-तनहाई है।
चर्चे खूब हुए हैं तेरे,हर घर में हर महफ़िल में,
चाहे जितनी शोहरत पा ले, रुसवाई-रुसवाई है।
पूरे बदन को झटका देना,हाथों को ऊपर करके,
सच पूछो तो तेरी उम्र की, अँगडा़ई-अँगडा़ई है।
पश्चिम की पूरजोर हवा से,पैर थिरकने लगते हैं,
झूम उठता है सिर मस्ती में, पुरवाई-पुरवाई है।
भाषा अलग अलग पहनावा,अलग अलग हम रहतें हैं,
लेकिन हम सब हिन्दुस्तानी, भाई-भाई-भाई हैं।
गम़ में खुशी में एक सा रहना,जैसे एक सी रहती है;
सुख-दुख दोनों में बजती है, शहनाई-शहनाई है।
२०.
मुफलिस के संसार का सपना सपना ही रह जाता है।बंगला,मोटरकार का सपना सपना ही रह जाता है।
रोटी-दाल में खर्च हुई है उमर हमारी ये सारी,
इससे इतर विचार का सपना सपना ही रह जाता है।
गाँवों से तो लोग हमेशा शहरों में आ जाते हैं,
सात समन्दर पार का सपना सपना ही रह जाता है।
कोल्हू के बैलों के जैसे लोग शहर में जुतते हैं,
फ़ुरसत के व्यवहार का सपना सपना ही रह जाता है।
बिक जाते हैं खेत-बगीचे शहरों में बसते-बसते,
वापस उस आधार का सपना सपना ही रह जाता है।
पैसा तो मिलता है सात समुन्दर पार के देशों में,
लेकिन सच्चे प्यार का सपना सपना ही रह जाता है।
२१.
सात समुन्दर पार का सपना सपना ही रह जाता है।
आखिर में तो हासिल सिर्फ़ तड़पना ही रह जाता है।
बाग-बगीचे बिकते-बिकते कंगाली आ जाती है,
लेके कटोरा नाम प्रभु का जपना ही रह जाता है।
सोच समझकर काम किया तो सब अच्छा होगा वरना,
आखिर में बस रोना और कलपना ही रह जाता है।
दौलत खत्म हुई तो कोई साथ नहीं फिर देता है,
पूरी दुनिया में तनहा दिल अपना ही रह जाता है।
रोज़ किताबें लिखते हैं वो क्या लिखते मालूम नहीं,
कैसे लेखक जिनका मक़सद छपना ही रह जाता है।
ऊँचे-ऊँचे पद पर बैठे अधिकारी और ये मंत्री,
लक्ष्य कहो क्यों उनका सिर्फ हड़पना ही रह जाता है।
दुख से उबर जाऊँगा लेकिन प्रश्न मुझे ये मथता है,
सोने की किस्मत में क्योंकर तपना ही रह जाता है।
२२.
पूरे जीवन इंसा अच्छे काम से शोहरत पाता है।
भूल अगर इक हो जाये तो पल में नाम गँवाता है।
खूब कबूतरबाज़ी होती बिक जाते हैं घर फिर भी,
सात समुन्दर पार का सपना सपना ही रह जाता है।
गाँव-शहर से हटकर जो परदेश चला जाता है वो,
अपने मिट्टी की खुशबू की यादें भी ले जाता है।
आइस-बाइस,ओक्का-बोक्का,ओल्हा-पाती भूल गये,
शहरों में अब बचपन को बस बल्ला-गेंद ही भाता है।
पेड़ जड़ों से कट जाये तो कैसे फल दे सकता है,
बस इन्सान यँहा है ऐसा,ऐसा भी कर जाता है।
२३.
आप की जब थी जरूरत, आप ने धोखा दिया।हो गई रूसवा मुहब्बत , आप ने धोखा दिया।
बेवफ़ा होते हैं अक्सर, हुश्नवाले ये सभी;
जिन्दगी ने ली नसीहत, आप ने धोखा दिया।
खुद से ज्यादा आप पर मुझको भरोसा था कभी;
झूठ लगती है हकीकत, आप ने धोखा दिया।
दिल मे रहकर आप का ये दिल हमारा तोड़ना;
हम करें किससे शिकायत,आप ने धोखा दिया।
पार करने वाला माझी खुद डुबाने क्यों लगा;
कर अमानत में खयानत,आप ने धोखा दिया।
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एक बेहतरीन बेटी पर लिखी इनकी बेहतरीन कविता
सृष्टि ही मार डालोगे, तो होगी सर्जना फिर क्या ?
बचा लो बेटियाँ अपनी, पड़ेगा तड़पना फिर क्या ?
डरी-सहमी सी रहती है, नहीं ये कुछ भी कहती है,
मगर बेटों से ज्यादा पूरे अपने फर्ज़ करती है,
बढ़ाती वंश जो दुनियां में उसको मारना फिर क्या ?
बचा लो बेटियाँ अपनी, पड़ेगा तड़पना फिर क्या ?
अगर बेटी नहीं होगी, बहू तुम कैसे लाओगे,
बहन, माँ, दादी, नानी के, ये रिश्ते कैसे पाओगे,
बताओ माँ के ममता की करोगे कल्पना फिर क्या ?
बचा लो बेटियाँ अपनी, पड़ेगा तड़पना फिर क्या ?
जब तलक मायके में है, वहाँ की आन होती है,
और ससुराल जब जाती, वहाँ की शान होती है,
बेटियाँ दो कुलों की लाज रखती सोचना फिर क्या ?
बचा लो बेटियाँ अपनी, पड़ेगा तड़पना फिर क्या ?
कोई प्रतियोगिता हो टाप करती है तो बेटी ही,
किसी भी फर्ज़ से इन्साफ़ करती है तो बेटी ही,
ये है माँ- बाप के आँखों की पुतली फोड़ना फिर क्या ?
बचा लो बेटियाँ अपनी, पड़ेगा तड़पना फिर क्या ?
कई बेटे तो अपने फर्ज़ से ही ऊब जाते हैं,
कई बेटे हैं ऐसे जो नशे में डूब जाते हैं,
नशे से पुत्र बच जाए भ्रुणों से पुत्रियाँ फिर क्या ?
बचा लो बेटियाँ अपनी, पड़ेगा तड़पना फिर क्या ?
धन्यबाद,