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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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बुधवार, 22 जुलाई 2015

रजनी मल्होत्रा नैय्यर

परिचय:
नाम --------- रजनी मल्होत्रा (नैय्यर) .
जन्म स्थान ------- झारखण्ड के पलामू जिले (कुमंदी ग्राम )लालन -पालन रांची में |
जन्म की तिथि -- ----- ७-जून-
वर्तमान पता ------- बोकारो थर्मल (झारखण्ड)
शिक्षा ------ झारखण्ड एवं उ .प्र में. इतिहास (प्रतिष्ठा) से बी.ए.संगणक
विज्ञान में बी .सी. ए. एवं हिंदी से बी.एड . रांची इग्नोऊ से हिंदी में
स्नातकोत्तर | इतिहास में स्नातकोत्तर | हिंदी में पी.एच. डी. चल रही |
भाषा लेखन ---हिंदी, पंजाबी, उर्दू.
लेखन- गीत, ग़ज़ल, कहानियां, कविताएँ.
सम्प्रति ----- ( संगणक विज्ञान की शिक्षिका)
मेरी प्रथम काव्यकृति --------- "स्वप्न मरते नहीं “ संकलन
काव्य संग्रह " ह्रदय तारों का स्पन्दन " ," पगडंडियाँ " व् मृगतृष्णा
में मेरी ग़ज़ल |
प्रकाशन की प्रतीक्षा में --- ग़ज़ल संग्रह ,व् दूसरी कविता संग्रह |
विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित . मंच पर सामयिक सामाजिक
राजनीतिक व् नारी सम्बन्धित रचनाओं का काव्य पाठ | हिंदी विकाष परिषद्
द्वारा सम्मान प्राप्त |19 वां अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन 2011
(आगरा )में सम्मानित २० वां अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन 2012
(गाज़ियाबाद )में सम्मानित | साहित्यांचल द्वारा रंजना चौहान सम्मान
२०१३ भीलवाड़ा राजस्थान से प्राप्त |सुरभि सलोनी पत्रिका में "वो बुरी औरत
" चर्चित धारावाहिक कहानी मेरे द्वारा लिखित | हिंदी पत्रिका वागर्थ,
कादम्बिनी, पाखी, अदबी दहलीज़ , आदि में रचनाएँ प्रकाशित| पंख पत्रिका
की सलाहकार ,
कनाडा की त्रैमासिक पत्रिका हिंदी चेतना में रचनाएँ प्रकाशित |अब्जद ,
इंसा , बिहार उर्दू एकेडमी, उर्दू टुडे, अदीब कर्नाटक उर्दू एकेडमी ,सदा
कश्मीर, ज़र्रीन शोआयें, बंगलौर, उफ़ुके अदब, महफिले फनकार, आजकल दिल्ली ,
आदि उर्दू पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित ." माँ दा नाम ध्या लौ भगतों "
पंजाबी सी. डी . के गीत मेरे द्वारा लिखित |
http://rajninayyarmalhotra.blogspot.in/
https://www.facebook.com/rajni.sweet11
rajni.sweet11@gmail.com
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तुम सितम करो, हम करम करें
तुम ज़ुल्म करो, हम रहम करें|

ये बुज़दिली नहीं तो और क्या है ?
जाम में डूबकर ग़लत ग़म करें.

इंसानियत का उठ रहा है जनाज़ा
इंसानियत के नाते सही मातम करें.

वो शहर छोड़ कर जा रहा है,
उसके जाने का ग़म करें.

लाख अदावत सही उनसे, "रजनी"
उनकी बर्बादी पर चश्म नम करें.


तारीकी में डूब गया दर- ओ- बाम,
ढल गया दिन और हो गयी शाम.

एक चिराग़ जला दें रास्ते में,
कुछ तो हो जाये नेक काम.

पसंद आये तो दाद दे देना,
यही है मेरे अशआर का इनाम.

किताबों से उठ नेट पर आ गया,
मीर हो या ग़ालिब का कलाम.

दौर -ए- तिश्नगी है ये "रजनी"
इल्म से ख़ाली है सबका जाम.


मातृत्व दिवस पर दुनियां की हर माँ को नमन ...........

थपकी, चुम्बन, मीठी लोरी , ऐसे प्यार जताती है माँ,
लाल - पीली होकर गुस्से से, फटकार लगाती है माँ .

सीने से लिपट जाती है,छोड़- चूल्हा -चौका, झाड़ू बर्तन ,
बच्चों के दुःख में खुशियों का उपहार बन जाती है माँ

देकर अपने ममता का संबल, जीते जीवन का हर दंगल
कभी ढाल बनकर डटे ,कभी तलवार बन जाती है माँ .

काँटों के गुलशन में भी फूलों का हार बन जाती है
बच्चों की खुशियों में त्यौहार बन जाती है माँ

दे कर ममता स्नेह की बहती धार बन जाती है
प्यासे धरा पर सावन की बौछार बन जाती है माँ,

जीवन के हर एक उलझन , ले कर अपने अंकों में ,
कर दे मात नियति को भी ,ऐसी औजार बन जाती है माँ |

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 मत बांध मेरे तारीफों के पुल
झूठ से खुद्दारी जल जाती है

आधा दफ्तर पकाता है उन्हें
आधी घर में पक जाती है

आज के इस भाग- दौड़ में
आधी आबादी थक जाती है

जब भी पकड़ने मचलता हूँ
परछाई आगे खिसक जाती है

एक ही बार के निवाले में
भूकंप व् सुनामी चख जाती है

वो अपने हिस्से की धूप को
मेरे आँगन में रख जाती है

कायम धीरज धैर्य का
अधीरता जाने क्या खाती है

किसी का बक़ाया नहीं छोड़ती
ज़िन्दगी सूद भर कर जाती है

हर किसी के तक़दीर की फसल
कहाँ इक जैसे लहलहाती है

नसीब दुःख के पसीने में उबल
सुख की नदी में नहाती है

जिस रास्ते भी चलूँ आजकल
पीछे कामयाबी आ जाती है

सोचने पर कर देता है मज़बूर
जिस बात में दम होता है

बिक नही सकता किसी बाजार में
दोस्तों वो नुमाइश ग़म होता है

जल जाता है जिसके फटने से
घर या देश वो बम होता है

माँ का आँचल वो दौलत है
जितना भी मिले कम होता है

डरता नहीं टूटकर बिखरने से
बोलता है सच जो दर्पण होता है

गद्दारों से मिलकर वफ़ा कर रहा है,
कुछ भी नहीं वो नया कर रहा है

मासूमियत या सयानेपन से
नादानी अपनी बयाँ कर रहा है

भटका हुआ सहाब हो गया है
नीलाम अपनी अना कर रहा है

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 बहारों ढूंढ लाते उनको भी तो अच्छा होता
तन्हा मुझसे अब गीत गाये नहीं जाते

दफ़न कर देता तेरी हर याद सीने में
कम्बख़्त कुछ लम्हें भुलाये नही जाते

मुहब्बत साँस बन जाये तो याद रहे बात
ज़िन्दगी की झूठी कसमें खाये नहीं जाते

उतर जाएँ जब नुमाइश पर राज़ आपके
छिपाने से भी वो राज़ छिपाए नहीं जाते

सांसों सा ज़िन्दगी से जुड़ गया जो
फिर उन यादों की बरसी मनाये नही जाते

भावनाएं उतर गयी बिकने बाजार में
तभी रिश्ते आजकल निभाए नही जाये

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 समेट दिया एक दायरे सा
ज़िन्दगी को रुमाल कर दिया

रख दिया कमर तोड़ कर
महंगाई ने कमाल कर दिया

संसद में हर पक्ष कह रहा
आम आदमी ने बवाल कर दिया

ख़ुदकुशी बता रहे उसकी मौत को
छिप कर जिसे हलाल कर दिया

कुछ भगवा धारियों की ज़मात ने
शर्म को शर्म से लाल कर दिया