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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

अवधेश कुमार जौहरी

परिचय:
नाम-अवधेश कुमार जौहरी
पिता- श्री हरिश्चंद्र जौहरी
जन्म -09-sept-1978
चन्द्र शेखर आज़ाद नगर ,भीलवाड़ा (राजस्थान )
संपर्क-09001712728
Mail id –avijauhari@gmail.com ,avi_jauhari@yahoo.co.in
2. शिक्षा दीक्षा
* एम.ए, एम.फिल., यू.जी.सी.नेट (हिंदी साहित्य)
* एक वर्षीय डिप्लोमा (उर्दू भाषा) मानव संसाधन मंत्रालय ,दिल्ली (भारत )
* लघु शोध- “हिंदी में ग़ज़ल की परम्परा और दुष्यंत कुमार’’
3. सम्प्रति:हिंदी व्याख्याता (विभागाध्यक्ष हिंदी विभाग )
आचार्य श्री महाप्रज्ञ इंस्टिट्यूट ऑफ़ एक्सीलेंस ,आसींद, भीलवाड़ा (राजस्थान)
4. साहित्यिक उपलब्धियाँ: अंतर्राष्ट्रीय संगठन “हिंदी दसा,दिशा और दुर्दशा’’ ग्रुप का सफ़ल संचालन .लगभग 700सदस्य .
*ग़ज़ल क्या ,क्यों और कैसे प्रकाशित पुस्तक प्रकाशित .
*हिंदी भाषा के उन्नयन के लिए समर्पित ,लेखन,परिचर्चा,और साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय .
*अंतर्राष्ट्रीय,राष्ट्रीय साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं और इ-पत्रिकाओं में रचनाएँ,समीक्षा,कविता,ग़ज़ल नज़्म आदि का निरंतर प्रकाशन | जिसका विवरण अधोलिखित है .
*विश्व हिंदी संस्थान,कनाड़ा से प्रकाशित “प्रयास”,और “मालती’’(अंतर्राष्ट्रीय इ –साहित्यिक पत्रिका और हिंदी साहित्य शोध पत्रिका)
*समय सृजन,साहित्य निधि (राष्ट्रीय साहित्यिक पत्रिका )
*राजस्थान पत्रिका ,दैनिक भास्कर ,उत्कर्ष मेल (राष्ट्रीय पत्र )
* “जत्र नारेषु पूज्यन्ते” एकांकी का सफ़ल लेखन और मंचन |
*ग़ज़ल संग्रह ,हिंदी व्याकरण (प्रकाशाधीन )
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1. 
कभी फुर्सत हो तो देखो , अपना गुज़रा ज़माना | 
मुहबब्त की वो बातें ,चिड़ियों का चहचहाना || 

ना थी कोई बंदिशें ,ना हीं था कोई फ़साना | 
मर्जी का ही था आना ,मर्जी का ही था जाना || 

स्कूल की वो घन्टी , अंतहीन दोस्तों की बाते | 
झूठे ही रूठ जाना , पर सच्चा था वो मनाना|| 

हर राह में थी कलीयां ,बागन था हर मुहल्ला | 
शबनम के थे ये आँसू ,कलियों का मुस्कुराना || 

लगती थी चोट जब भी ,आती थी याद अम्मा | 
वो मुस्कुराते रहना ,आँसूओं का भी छुपाना || 

अम्मा की प्यारी मूरत ,बाबूजी की वो सूरत | 
आबाद जिसके दम से था ,मेरा वो आशियाना || 

आती नहीं है गोया क्यों, अब आँगन में भी मेरे | 
बदली है क्यों फिजायें , बदला है क्यों ज़माना || 

जीवन बहुत है छोटा ,कुछ खो गया है इसमें | 
सब खोजते है अब तो ,खुशियों का ही ठिकाना || 

ख़ुद खो गया है खोजी ,ये खोज भी गज़ब है | 
चन्द कहकहों के खातिर,भटका कहाँ कहाँ ना || 

2.  
यूँ ही बेसबब दिन-रात गुज़ारा मत कीजिये | 
एहसान वक़्त का यूँ भी उतारा मत कीजिये || 

तुम्हारे ज़िगर से निकलेंगे फिर लहूँ के आँसू | 
इस कदर भी किसी को निहारा मत कीजिये || 

यहाँ पिंजरे की हकीकत से वाकिफ है परिंदा | 
किसी को भी दिखावे का सहारा मत कीजिये || 

अभी तो जाग रही है चिरागें भी उन राहों में | 
सफरे प्यार में ख़ुद को आंवारा मत कीजिये || 

वक्त की उलझन सभी उलझनों से बड़ी होती है| 
सिर्फ़ उलझे जुल्फों को संवारा मत कीजिये || 

हर अँधेरे के ज़हन में होते है उजाले का वज़ूद | 
अहसान जुगनुओं का भी नकारा मत कीजिये|| 

हम तो मुसाफिर है हमारे नसीब में राहतें कैसी | 
जो हो न सका किसी का हमारा मत कीजिये || 

ज़माने वाले तो मुहब्बत को बदनाम कहते है | 
कलम वाले ये गुनाह है दोबारा मत कीजिये ||
3. 
सियासत के खेल बड़े ही निराले होते है |
जिधर देखो उधर गड़बड़ झाले होते है ||

जिसने ज़माने का पेट भरने की कसम खाई है |
उनके बच्चों को ही रोटियों के लाले होते है ||

सियासत ने ज़ज्बातों का खून कर दिया |
सभी जुबाँ वालो के जुबाँ पे ताले होते है ||

जिन मुश्किलों से निजात हमे नहीं मिलती |
न मुश्किलों को हमने ही कहीं न कही पाले होते है ||

रंग बदलती दुनिया का दस्तूर भीअ जीब है |
झूठे का बोल बाला सच्चे के मुँह काले होते है ||

ज़माने में जो नहीं रखते है अहले- हूनर |
वो सारे सियासत के साले होते है||

बड़ा अजीब शख्स था जो सरे- राह मिल गया |
कहता है हिन्दुस्तान में बड़े ही बवाले होते है ||

अपनों की ही बंदिशों ने हमे मारा है |
वरना किसको कहते की ये हमारे घरवाले होते है ||
4. 

कैसे कैसे मंज़र देखे ।
यारों के कर खंज़र देखे ।।1

सावन के मौसम में भी 

खाली उनके झंझर देखे ।।2
लोगो में वो प्यार कहाँ ।

सर कटाते बन्दर देखे ।।3
बाहर की मत पूछ कहानी ।

इतने किरदार अंदर देखे ।।4
हरियाली की आस नहीं ।

जब देखें तब बंजर देखे ।।5
ज़ज्बातों की प्यास बड़ी है 

ऐसे प्यासे समन्दर देखे ।।6
5

कभी तय हो तो ,मंजिल की बात करें ।

कभी बात होतो ,तय मिल साथ करें ।।

बादलों की कशम्शसाजिश समझ लो ।
कच्चे घर में ही बेमौसम न बरसात कर।।

इस शहर में आदमी कम पुतले अधिक है ।
इनसे मिल के चलने में एहतियात करें ।।

कभी आओ यूं भी की मजमा सजा ले हम 
दुल्हन तुम दूल्हा मै,और सब बारात करें ।।

उम्र भी कम पड़ती हैज़माने के काम से 
कुछ लम्हे यूं ही चुरा के मिलेंबर्बाद करें ।।

तुम पूनम की चाँद हो मै सर्दी का सूरज हूँ ।
दुनिया को छोड़ो ,कहीं और दिनों रात करें ।।

कमोबेश हर शख्श परेसान है इस जहाँ से ।
क्यों न मिल के हम,खुदा से मुलाकात करें ।।
6. 

आँखों ही आँखों में यूँ न रोया करो।

कभी खुल के भी दामन भिगोया करो।।

ज़ुल्फ़ चेहरे से हटा दो ,या हटा दू मैं खुद ?
नूर के रहते इतना,ना अँधेरा करो।।

साकी मैं बन के फिर पिलाने चला।
रोक के साँस मैं मयखाने चला॥

उनके लरजते हैं आँसू लड़खड़ाते है पैर।
कमज़र्फ को शराब न पिलाया करो॥

प्रेम को खुद खुदा वाले माने खुदा।
चोट खा के भी दिल से जो नहीं है जुदा॥

हम दीवानों के महफ़िल में आते तो हो।
ज़ख्म को देख के न मुस्कुराया करो॥

दिल ने पूजा जिसे भागवान की तरह।
पेश आये वो अनजान की तरह॥

तुमसे ही रौशन हैं हम, हमारे सभी
दीप बन के जलोघर को न जलाया करो॥

जिनको ज़माने की सारी ख़ुशी मिल गयी।
दिल के गुलशन में कोई कली खिल गयी॥

आप हँसते है ,हँसाने का सही वक़्त है।
उनके दुःख परन हंसोन हंसाया करो॥

आपको जानता तो हूँ पहचानता नहीं।
जो बात दिल में थी ,कभी न कही॥

गर निकाल न सको तुम भंवर से हमेँ।
समन्दरमें लाके ,न दामन छुड़ाया करो॥