जन्म: 12 नवंबर 1915,निधन: 1996,कुछ प्रमुख कृतियाँ-तारीक सय्यारा (1943), गर्दयाब (1946), आबजू (1959), यादें (1961), बिंत-ए-लम्हात (1969), नया आहंग (1977), सार-ओ-सामान
१.
आती नहीं कहीं से दिल-ए-ज़िन्दा की सदा
सूने पड़े हैं कूचा-ओ-बाज़ार इश्क़ के
ताज़ा न रख सकेगी रिवायात-ए-दश्त-ओ-दर
वो फ़ित्नासर[4] गए जिन्हें काँटें अज़ीज़ थे
अब कुछ नहीं तो नींद से आँखें जलाएँ हम
आओ कि जश्न-ए-मर्ग-ए-मुहब्बत मनाएँ हम
सोचा न था कि आएगा ये दिन भी फिर कभी
इक बार हम मिले हैं ज़रा मुस्कुरा तो लें
क्या जाने अब न उल्फ़त-ए-देरीना[5] याद आए
इस हुस्न-ए-इख़्तियार पे आँखें झुका तो लें
बरसा लबों से फूल तेरी उम्र हो दराज़
संभले हुए तो हैं पर ज़रा डगमगा तो लें ।
शब्दार्थ:
↑ प्रेम की मृत्यु का महोत्सव
↑ पिघलता हुआ
↑ उत्साह उमंग
↑ पाग़ल
↑ पुरातन प्रेम
२.
काम अब कोई न आएगा बस इक दिल के सिवा
रास्ते बंद हैं सब कूचा-ए-क़ातिल के सिवा
बायस-ए-रश्क़ है तन्हा रवी-ए-रहरौ-ए-शौक़
हमसफ़र कोई नहीं दूरी-ए-मंज़िल के सिवा
हम ने दुनिया की हर इक शै से उठाया दिल को
लेकिन इक शोख के हंगामा-ए-महफ़िल के सिवा
तेग़ मुन्सिफ़ हो जहाँ दार-ओ-रसन हों शाहिद
बेगुनाह कौन है उस शहर मे क़ातिल के सिवा
ज़ाने किस रंग से आई है गुलशन में बहार
कोई नग़मा ही नही शोर-ए-सिलासिल के सिवा
३.
फिर वही तारीक रातों में ख़याल-ए-माहताब
फिर वही तारों की पेशानी पे रंग-ए-लाज़वाल
फिर वही भूली हुई बातों का धुंधला-सा ख़याल
फिर वो आँखें भीगी भीगी दामन-ए-शब में उदास
फिर वही रुख़्सार वो आग़ोश वो ज़ुल्फ़-ए-सियाह
फिर वही शहर-ए-तमन्ना फिर वही तारीक राह
ज़िन्दगी की बेबसी उफ़्फ़ वक़्त के तारीक जाल
दर्द भी छिनने लगा उम्मीद भी छिनने लगी
फिर वही बेसोज़ लम्हें फिर वही जाम-ए-शराब
फिर वही तारीक रातों में ख़याल-ए-माहताब
शब्दार्थ:
↑ मक़बरा समाधि
↑ आने वाला कल भविष्य
↑ भ्रम
↑ निद्राविहीन
↑ ख़ुद अपने आप में खोया हुआ
↑ काला अँधेरा
↑ उमंगहीन जीवनहीन
४.
तुम्हारे लहजे में जो गर्मी-ओ-हलावत[1] है
इसे भला सा कोई नाम दो वफ़ा की जगह
सिवा तुम्हारे मुझे कुछ नज़र नहीं आता
हयात नाम है यादों का तल्ख़ और शीरीं
भला किसी ने कभी रन्ग-ओ-बू को पकड़ा है
शफ़क़[8] को क़ैद में रखा सबा को बन्द किया