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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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रविवार, 17 फ़रवरी 2013

नक़्श लायलपुरी


1.

तुझको सोचा तो खो गईं आँखें
दिल का आईना हो गईं आँखें

ख़त का पढ़ना भी हो गया मुश्किल
सारा काग़ज़ भिगो गईं आँखें

कितना गहरा है इश्क़ का दरिया
उसकी तह में डुबो गईं आँखें

कोई जुगनू नहीं तसव्वुर का
कितनी वीरान हो गईं आँखें

दो दिलों को नज़र के धागे से
इक लड़ी में पिरो गईं आँखें

रात कितनी उदास बैठी है
चाँद निकला तो सो गईं आँखें

‘नक़्श’ आबाद क्या हुए सपने
और बरबाद हो गईं आँखें


2.
हम से पूछो कैसा है वो
शेर ग़ज़ल का लगता है वो

उन आँख़ों से मिल कर देख़ो
जिन आँख़ों में रहता है वो

आओ करें उस पेड़ से बातें
जंगल में भी तनहा है वो

चाहें भी तो हाथ न आए
तेज़ हवा का झोंका है वो

आया था जो बनके समंदर
साहिल साहिल प्यासा है वो

दुख़ में भी है चेहरा रौशन
मिट्टी में भी सोना है वो

‘नक़्श’ के बारे में सुनते हैं
रिश्तों का दीवाना है वो


3.
अपना दामन देख कर घबरा गए
ख़ून के छींटे कहाँ तक आ गए

भूल थी अपनी किसी क़ातिल को हम
देवता समझे थे धोका का गए

हर क़दम पर साथ हैं रुसवाइयां
हम तो अपने आप से शरमा गए

हम चले थे उनके आँसू पोंछने
अपनी आँखों में भी आँसू आ गए

साथ उनके मेरी दुनिया भी गयी
आह वो दुनिया से मेरी क्या गए

‘नक़्श’ कोई हम भी जाएँ छोड़ कर
जैसे ‘मीरो’ ‘ग़ालिबो’ ‘सौदा’ गए


4.
शाख़ों को तुम क्या छू आए
काँटों से भी ख़ुशबू आए

देखें और दीवाना कर दें
गोया उनको जादू आए

कोई तो हमदर्द है मेरा
आप न आए आँसू आए

इश्क़ है यारो उनके बस का
जिन को दिल पर काबू आए

उन कदमों की आहट पाकर
फूल ही फूल लबे –जू आए

गूँज सुनी तेरे चरख़े की
पर्बत छोड़ के साधू आए

‘नक्श़’ घने जंगल में दिल के
फ़िर यादों के जुगनू आए


5.
अपनी भीगी हुई पलकों पे सजा लो मुझको
रिश्ताए-दर्द समझकर ही निभा लो मुझको

चूम लेते हो जिसे देख के तुम आईना
अपने चेहरे का वही अक्स बना लो मुझको

मैं हूँ महबूब अंधेरों का मुझे हैरत है
कैसे पहचान लिया तुमने उजालो मुझको

छाँओं भी दूँगा, दवाओं के भी काम आऊँगा
नीम का पौदा हूँ, आँगन में लगा लो मुझको

दोस्तों शीशे का सामान समझकर बरसों
तुमने बरता है बहुत अब तो संभालो मुझको

गए सूरज की तरह लौट के आ जाऊँगा
तुमसे मैं रूठ गया हूँ तो मनालो मुझको

एक आईना हूँ ऐ ‘नक़्श’ मैं पत्थर तो नहीं
टूट जाऊँगा न इस तरह उछालो मुझको


6.
वो आएगा दिल से दुआ तो करो
नमाज़े-मुहब्बत अदा तो करो

मिलेगा कोई बन के उनवान भी
कहानी के तुम इब्तदा तो करो

समझने लगोगे नज़र की ज़बां
मुहब्बत से दिल आशना तो करो

तुम्हें मार डालेंगी तन्हाईयाँ
हमें अपने दिल से जुदा तो करो

तुम्हारे करम से है यह ज़िंदगी
मैं बुझ जाऊँगा तुम हवा तो करो

हज़ारों मनाज़िर निगाहों में हैं
रुकोगे कहाँ फ़ैसला तो करो

पुकारे तुम्हें कूचाए-आरज़ू
कभी ‘नक़्श’ दिल का कहा तो करो


7.
मैं दुनिया की हक़ीकत जानता हूँ
किसे मिलती है शोहरत जानता हूँ

मेरी पहचान है शेरो सुख़न से
मैं अपनी कद्रो-क़ीमत जानता हूँ

तेरी यादें हैं , शब बेदारियाँ हैं
है आँखों को शिकायत जानता हूं

मैं रुसवा हो गया हूँ शहर-भर में
मगर ! किसकी बदौलत जानता हूँ

ग़ज़ल फ़ूलों-सी, दिल सेहराओं जैसा
मैं अहले फ़न की हालत जानता हूँ

तड़प कर और तड़पाएगी मुझको
शबे-ग़म तेरी फ़ितरत जानता हूँ

सहर होने को है ऐसा लगे है
मैं सूरज की सियासत जानता हूँ

दिया है ‘नक़्श’ जो ग़म ज़िंदगी ने
उसे मै अपनी दौलत जानता हूँ


8.
मेरी तलाश छोड़ दे तू मुझको पा चुका
मैं सोच की हदों से बहुत दूर जा चुका

लोगो ! डराना छोड़ दो तुम वक्त़ से मुझे
यह वक्त़ बार बार मुझे आज़मा चुका

दुनिया चली है कैसे तेरे साथ तू बता
ऐ दोस्त मैं तो अपनी कहानी सुना चुका

बदलेगा अनक़रीब यह ढाँचा समाज का
इस बात पर मैं दोस्तो ईमान ला चुका

अब तुम मेरे ख़याल की परवाज़ देख़ना
मैं इक ग़ज़ल को ज़िंदगी अपनी बना चुका

ऐ सोने वालो नींद की चादर उतार दो
किरनों के हाथ सुब्ह का पैगाम आ चुका

पानी से ‘नक्श’ कब हुई रौशन यह ज़िंदगी
मैं अपने आँसुओं के दिये भी जला चुका


9.
माना तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नहीं
कैसे कहें के तेरे तलबगार हम नहीं

सींचा था जिस को ख़ूने तमन्ना से रात दिन
गुलशन में उस बहार के हक़दार हम नहीं

हमने तो अपने नक़्शे क़दम भी मिटा दिए
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं

यह भी नहीं के उठती नहीं हम पे उँगलियाँ
यह भी नहीं के साहबे किरदार हम नहीं

कहते हैं राहे इश्क़ में बढ़ते हुए क़दम
अब तुझसे दूर, मंज़िले दुशवार हम नहीं

जानें मुसाफ़िराने रहे – आरज़ू हमें
हैं संगे मील, राह की दीवार हम नहीं

पेशे-जबीने-इश्क़ उसी का है नक़्शे पा
उस के सिवा किसी के परस्तार हम नहीं


10.
पलट कर देख़ लेना जब सदा दिल की सुनाई दे
मेरी आवाज़ में शायद मेरा चेहरा दिख़ाई दे

मुहब्बत रौशनी का एक लमहा है मगर चुप है
किसे शमए-तमन्ना दे किसे दाग़े जुदाई दे

चुभें आँख़ों में भी और रुह में भी दर्द की किरचें
मेरा दिल इस तरह तोड़ो के आईना बधाई दे

खनक उठें न पलकों पर कहीं जलते हुए आँसू
तुम इतना याद मत आओ के सन्नाटा दुहाई दे

रहेगा बन के बीनाई वो मुरझाई सी आँख़ों में
जो बूढ़े बाप के हाथों में मेहनत की कमाई दे

मेरे दामन को बुसअत दी है तूने दश्तो-दरिया की
मैं ख़ुश हूँ देने वाले, तू मुझे कतरा के राई दे

किसी को मख़मलीं बिस्तर पे भी मुश्किल से नींद आए
किसी को नक़्श दिल का चैन टूटी चारपाई दे


11.
एक आँसू गिरा सोचते-सोचते
याद क्या आ गया सोचते-सोचते

कौन था, क्या था वो, याद आता नहीं
याद आ जाएगा सोचते-सोचते

जैसे तसवीर लटकी हो दीवार से
हाल ये हो गया सोचते-सोचते

सोचने के लिए कोई रस्ता नहीं
मैं कहाँ आ गया सोचते-सोचते

मैं भी रसमन तअल्लुक़ निभाता रहा
वो भी अक्सर मिला सोचते-सोचते

फ़ैसले के लिए एक पल था बहुत
एक मौसम गया सोचते-सोचते

‘नक़्श’ को फ़िक्र रातें जगाती रहीं
आज वो सो गया सोचते-सोचते


12.
कई ख्व़ाब मुस्कुराए सरे शाम बेख़ुदी में
मेरे लब पे आ गया था तेरा नाम बेख़ुदी में

तेरे गेसुओं का साया है के शामे-मैकदा है
तेरी आँख़ बन गई है मेरा जाम बेख़ुदी में

कई बार चाँद चमके तेरी नर्म आहटों के
कई बार जगमगाए दरो-बाम बेख़ुदी में

जिसे ढूँढ़ती रही हैं मेरी बेक़रार आँख़े
मेरे दिल ने पा लिया है वो मक़ाम बेख़ुदी में

वो ख़याल कौन-सा है के बना हुआ है पैकर
किसे ‘नक्श़’ कर रहा हूँ मैं सलाम बेख़ुदी में


13.
तमाम उम्र चला हूँ मगर चला न गया
तेरी गली की तरफ़ कोई रास्ता न गया

तेरे ख़याल ने पहना शफ़क का पैराहन
मेरी निगाह से रंगों का सिलसिला न गया

बड़ा अजीब है अफ़साना-ए-मुहब्बत भी
ज़बाँ से क्या ये निगाहों से भी कहा न गया

उभर रहे हैं फ़ज़ाओं में सुब्ह के आसार
ये और बात मेरे दिल का डूबना न गया

खुले दरीचों से आया न एक झोंका भी
घुटन बढ़ी तो हवाओं से दोस्ताना गया

किसी के हिज्र से आगे बढ़ी न उम्र मेरी
वो रात बीत गई ‘नक्श़’ रतजगा न गया


14.
ज़हर देता है कोई, कोई दवा देता है
जो भी मिलता है मेरा दर्द बढ़ा देता है

किसी हमदम का सरे शाम ख़याल आ जाना
नींद जलती हुई आँखों की उड़ा देता है

प्यास इतनी है मेरी रूह की गहराई में
अश्क गिरता है तो दामन को जला देता है

किसने माज़ी के दरीचों से पुकारा है मुझे
कौन भूली हुई राहों से सदा देता है

वक़्त ही दर्द के काँटों पे सुलाए दिल को
वक़्त ही दर्द का एहसास मिटा देता है

‘नक़्श’ रोने से तसल्ली कभी हो जाती थी
अब तबस्सुम मेरे होटों को जला देता है


15.
जब दर्द मुहब्बत का मेरे पास नहीं था
मैं कौन हूँ, क्या हूँ, मुझे एहसास नहीं था

टूटा मेरा हर ख़्वाब, हुआ जबसे जुदा वो
इतना तो कभी दिल मेरा बेआस नहीं था

आया जो मेरे पास मेरे होंट भिगोने
वो रेत का दरिया था, मेरी प्यास नहीं था

बैठा हूँ मैं तनहाई को सीने से लगा के
इस हाल में जीना तो मुझे रास नहीं था

कब जान सका दर्द मेरा देखने वाला
चेहरा मेरे हालात का अक्कास नहीं था

क्यों ज़हर बना उसका तबस्सुम मेरे ह़क में
ऐ ‘नक़्श’ वो इक दोस्त था अलमास नहीं था


16.
कोई झंकार है, नग़मा है, सदा है क्या है ?
तू किरन है, के कली है, के सबा है, क्या है ?

तेरी आँख़ों में कई रंग झलकते देख़े
सादगी है, के झिझक है, के हया है, क्या है ?

रुह की प्यास बुझा दी है तेरी क़ुरबत ने
तू कोई झील है, झरना है, घटा है, क्या है ?

नाम होटों पे तेरा आए तो राहत-सी मिले
तू तसल्ली है, दिलासा है, दुआ है, क्या है ?

होश में लाके मेरे होश उड़ाने वाले
ये तेरा नाज़ है, शोख़ी है, अदा है, क्या है ?

दिल ख़तावार, नज़र पारसा, तस्वीरे अना
वो बशर है, के फ़रिश्ता है, के ख़ुदा है, क्या है ?

बन गई नक़्श जो सुर्ख़ी तेरे अफ़साने की
वो शफ़क है, के धनक है, के हिना है, क्या है ?


17.

कत‍आत

1.
नक़्श से मिलके तुमको चलेगा पता
जुर्म है किस क़दर सादगी दोस्तो

2.

कई बार चाँद चमके तेरी नर्म आहटों के
कई बार जगमगाए दरो-बाम बेख़ुदी में

3.

हमने क्या पा लिया हिंदू या मुसलमाँ होकर
क्यों न इंसाँ से मुहब्बत करें इंसां होकर

4.

ये अंजुमन, ये क़हक़हे, ये महवशों की भीड़
फिर भी उदास, फिर भी अकेली है ज़िंदगी