१.
खिड़की-रोशनदान फेंक दो
ऐसा सब सामान फेंक दो
किसी बंद कमरे के अंदर
हवादार दालान फेंक दो
अच्छे से जीने की खातिर
बचा-खुचा सम्मान फेंक दो
बेहतर होगा जुबां फेंक दो
या फिर अपने कान फेंक दो
महरूम सभी चीजों से होकर
खालीपन का भान फेंक दो
२.
क्यों भयानक हैं इरादे उंगलियों के
खलबली है गांव में कठपुतलियों के
और रंगों के लिए रंगींतबीयत
गिरगिटों ने पर तराशे तितलियों के
देखिये पक्षी तड़ित चालक हुए तो
हल नहीं होंगे मसाइल बिजलियों के
चांद की आंखों में डोरे सुर्ख तो थे
कम न थे तेवर सुहानी बदलियों के
आज गांवों ने किए सौदे शहर से
नथनियों के, पायलों के, हंसलियों के
३.
वो आशियानों में घर रखेंगे
कि आसमानों के पर रखेंगे?
तुम्हारे कदमों के नीचे काँटे
तुम्हारे कदमों पे सर रखेंगे
तुम्हारा साया दगा करेगा
जो रास्ते में शजर रखेंगे
कि तुम भी शायद मुकर ही जाओ
हम आँखें अश्कों से तर रखेंगे
इधर है सोफा उधर है टीवी
ईमानदारी किधर रखेंगे?
तुम अपने पैरों को बाँध रक्खो
तुम्हारे आगे सफर रखेंगे
जो खुद ही खबरों की सुर्खियां हैं
वो क्या हमारी खबर रखेंगे।
४.
अपना खुद से सामना है
इसलिए मन अनमना है
सब तनावों की यही जड़
खुद का खुद से भागना है
इसको भी तुम जीत मानो
खुद से कैसा हारना है
अपनी नजरों में गिरा जो
उसको फिर क्या मारना है
डूब जाने को सतह तक
लोग कहते साधना है।
५.
यह नहीं देखा कि कंधों पर खड़ा है
लोग यह समझे कि वो सबसे बड़ा है
पुण्य के आकाश की सीमा नहीं है
पाप जल्दी भरने वाला इक घड़ा है
भूख क्यों हर रोज लगती है, न जाने
इस गरीबी का ये मुश्किल आँकड़ा है
देवता को हम भला क्यों पूजते हैं
पूजिए, मजदूर का ये फावड़ा है
साँप मिलते हैं विषैले उस जगह पर
जिस जगह पर भी किसी का धन गड़ा है
यह वही है जो कि कंधों पर खड़ा था
भीड़ के पैरों तले कुचला पड़ा है।